
गौरी की बेचैनी देखकर राम खेलावन समझ गया कि कुछ गड़बड़ है. गौरी कभी बेवजह नहीं रंभाती थी. उसने गाँव के लोगों को इकट्ठा किया और कालू को ढूँढने निकल पड़े.
गौरी भी उनके साथ-साथ चलती रही, कभी आगे दौड़ती तो कभी पीछे मुड़कर देखती, मानो उन्हें रास्ता दिखा रही हो. उसकी आँखों में कालू के लिए चिंता और प्यार साफ़ झलक रहा था.
काफी देर ढूँढने के बाद, उन्हें कालू एक सूखे कुएँ के पास मिला. वह उसमें गिर गया था और बुरी तरह से डरा हुआ था. राम खेलावन और गाँव के लोगों ने मिलकर बड़ी मुश्किल से कालू को कुएँ से बाहर निकाला.
जब कालू सुरक्षित गौरी के पास पहुँचा, तो गौरी ने उसे चाटना शुरू कर दिया, मानो उसे दिलासा दे रही हो. कालू भी उससे लिपट गया, उसकी शरारतें उस पल के लिए कहीं गुम हो गई थीं.
उस दिन राम खेलावन को एहसास हुआ कि, बेजुबान जानवरों की भी अपनी भावनाएँ होती हैं, अपनी चिताएँ होती हैं, और वे भी प्यार और दोस्ती के बंधन में बंध सकते हैं. गौरी और कालू की दोस्ती इस बात का जीता-जागता प्रमाण थी.
शेष भाग अगले अंक में…,