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बेजुबान के चोचलें…

अध्याय 2: कालू की शरारतें

गौरी के शांत जीवन में एक हलचल मचाने वाला किरदार था – कालू, गाँव के ठाकुर सूरज सिंह का काला, शरारती बछड़ा. कालू अपनी माँ से बिछड़ गया था और अक्सर भटकता हुआ गौशाला पहुँच जाता था.

कालू स्वभाव से बहुत चंचल और नटखट था. वह गौरी के सींगों से टकराता, उसकी पूंछ खींचता और उसे बेवजह परेशान करता. गौरी पहले तो उसकी हरकतों से थोड़ी परेशान होती, लेकिन धीरे-धीरे उसे कालू की मासूम शरारतों में अपनापन दिखने लगा.

कालू अपनी बेतरतीब हरकतों से गौशाला के शांत माहौल को भंग कर देता. वह कभी मिट्टी में लोटता, कभी घास के गट्ठरों को गिरा देता. राम खेलावन उसे डाँटता, लेकिन कालू अपनी बड़ी-बड़ी आँखों से उसे ऐसे देखता, मानो कह रहा हो, “मैंने क्या किया?”

गौरी और कालू की दोस्ती अजीब थी. एक शांत और समझदार, दूसरा चंचल और नासमझ. लेकिन उनके बीच एक अटूट बंधन बन गया था, एक ऐसी भाषा जो सिर्फ उनकी आँखों और हरकतों से समझी जा सकती थी.

एक दिन, कालू खेलते-खेलते गौशाला से बहुत दूर निकल गया। जब शाम हो गई और वह वापस नहीं लौटा, तो राम खेलावन और गाँव के लोग परेशान हो गए. गौरी बेचैन होकर रंभाने लगी, उसकी आँखों में चिंता साफ़ झलक रही थी.

शेष भाग अगले अंक में,

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