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अशांत लहरों का नाविक

पहली चुनौती और आत्मनिर्भरता

रवि ने हमेशा अपने पिता और अन्य अनुभवी नाविकों को समुद्र से जूझते देखा था, लेकिन वह खुद कभी उस स्थिति में नहीं पड़ा था. उसके लिए समुद्र एक खेल का मैदान था, जहाँ वह बिना किसी डर के दौड़ता-भागता था. लेकिन यह मासूमियत तब खत्म हुई जब उसने पहली बार समुद्र की असली शक्ति का सामना किया.

एक दिन, जब रवि अपनी छोटी नाव पर अकेला था, मौसम अचानक खराब होने लगा. पहले हल्की हवा थी, फिर तेज़ झोंके आने लगे. लहरें ऊँची उठने लगीं, और उसकी नाव डरावने ढंग से हिलने लगी. रवि के हाथों से पतवार छूट गई, और उसे समझ नहीं आया कि क्या करना है.

डर से भरे उस क्षण में, उसने पहली बार जाना कि समुद्र कोई खेल नहीं, बल्कि एक परीक्षा है. उसने घबराहट पर काबू पाया और अपने पिता की सलाह को याद किया—”लहरों के साथ बहो, उनसे लड़ो मत.” उसने धैर्य रखा, अपनी नाव को संतुलित किया, और धीरे-धीरे किनारे की ओर बढ़ा. जब वह सुरक्षित किनारे पर पहुँचा, तब उसने जाना कि असली ताकत केवल शारीरिक नहीं, बल्कि मानसिक भी होती है.

उस दिन रवि ने अपने भीतर आत्मनिर्भरता की भावना को जन्म लेते देखा. उसने सीखा कि परिस्थितियाँ कैसी भी हों, धैर्य और सूझबूझ ही असली हथियार होते हैं. यह पहला कदम था उस यात्रा का, जिसने उसे एक मजबूत और जुझारू नाविक बनाया.

शेष भाग अगले अंक में…,

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