राघव और शहर ने तीन बड़े संकटों का सामना किया था—उदासी, अति-उत्साह और क्षणिक सुंदरता. हर बार उन्होंने सामूहिक प्रयास और बुद्धिमत्ता से जीत हासिल की थी. शहर अब पहले से कहीं ज्यादा परिपक्व और शांत था. लेकिन जैसा कि इतिहास हमेशा दिखाता है, जब एक लड़ाई खत्म होती है, तो दूसरी शुरू होने को तैयार होती है.
कुछ सालों बाद, शहर के आसमान में एक चमकती हुई जाली दिखाई दी, जिसे लोगों ने “द नेटवर्क” (The Network) नाम दिया. यह एक अदृश्य, ऊर्जा-आधारित ग्रिड थी जो शहर के हर व्यक्ति के दिमाग से जुड़ सकती थी. राघव ने इसके बारे में सबसे पहले पता लगाया, लेकिन इस बार लोगों ने उसकी चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया. यह नेटवर्क उन्हें एक-दूसरे से सीधे जोड़ने का वादा कर रहा था, बिना किसी डिवाइस के। बस सोचो और जुड़ जाओ.
शुरू में, यह अविश्वसनीय लगता था. लोग एक-दूसरे की भावनाएँ और विचार साझा कर सकते थे. दूर बैठे परिवार एक-दूसरे की खुशी और दुख महसूस कर सकते थे. यह एक तरह का कनेक्शन का टॉर्चर था. कोई अकेला नहीं था. कोई रहस्य नहीं था. कोई भी विचार निजी नहीं था.
जल्द ही इसके भयावह परिणाम सामने आने लगे. जब हर कोई एक-दूसरे की भावनाओं और विचारों को महसूस कर रहा था, तो व्यक्तिगत पहचान धीरे-धीरे मिटने लगी. एक व्यक्ति का डर तुरंत दूसरे में फैल जाता था. किसी की खुशी सामूहिक उन्माद में बदल जाती थी. रचनात्मकता रुक गई, क्योंकि हर कोई वही सोच रहा था जो दूसरा सोच रहा था. यह एक भयानक मानसिक भीड़ थी जहाँ हर कोई था, पर कोई नहीं था.
राघव ने महसूस किया कि यह पहले के संकटों से भी ज्यादा खतरनाक है. पहले, दुश्मन बाहरी थे और उन्हें हराया जा सकता था. लेकिन इस बार, दुश्मन अंदर था—कनेक्शन की लालसा, अपनी निजता खोने का डर. उसने एक नया आंदोलन शुरू किया, जिसका नाम था “अकेलेपन का अधिकार”.
उसने लोगों को शांत रहने, आँखें बंद करने और अपने विचारों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए कहा. उसने उन्हें अपनी भावनाओं को महसूस करने और दूसरों की भावनाओं से अलग करने के लिए सिखाया. यह एक योग और ध्यान का मिश्रण था, जो मन को नेटवर्क के शोर से अलग करता था.
यह बहुत कठिन था. जो लोग अकेले रहने के आदी नहीं थे, उन्हें अपने ही विचारों का सामना करना पड़ा. राघव ने छोटे-छोटे समूह बनाए, जहाँ लोग नेटवर्क से डिस्कनेक्ट होकर बात कर सकें, एक-दूसरे को अपनी असली कहानियाँ सुना सकें, बिना किसी फिल्टर के.
धीरे-धीरे, कुछ लोगों ने इस “अकेलेपन” को गले लगाया. उन्होंने महसूस किया कि सच्ची ताकत और शांति दूसरों के शोर में नहीं, बल्कि अपने अंदर की आवाज को सुनने में है. जब उन्होंने अपने अंदर की रोशनी खो दी थी, तो बादलों ने उसे दिखाया था. जब वे अति-उत्साही थे, तो उन्हें संतुलन मिला. जब वे बाहरी सुंदरता से मोहित थे, तो उन्हें आंतरिक सच्चाई मिली. और अब, जब वे अति-कनेक्टेड थे, तो उन्हें अपनी निजता और पहचान मिली.
एक-एक करके, लोग नेटवर्क से डिस्कनेक्ट होने लगे. जब पर्याप्त लोगों ने ऐसा किया, तो “द नेटवर्क” टूट गया. वह सिर्फ एक ऊर्जा ग्रिड बनकर रह गया, बिना किसी दिमाग से जुड़ा हुआ.
शहर ने एक और जीत हासिल की. राघव ने अपनी डायरी के अंतिम पृष्ठ पर लिखा, “जीवन का सबसे बड़ा तोहफा खुद से जुड़ा रहना है. जब तक तुम अपनी खुद की कहानी नहीं सुनोगे, तब तक तुम दूसरों की कहानी में खो जाओगे.”
शेष भाग अगले अंक में…,



