बादलों का टॉर्चर, और उसके बाद की नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव से उबरने के बाद, शहर के लोगों ने सोचा कि अब सब कुछ ठीक हो गया है. राघव का “उम्मीद का बगीचा” फल-फूल रहा था और शहर धीरे-धीरे अपनी खोई हुई उमंग वापस पा रहा था. लेकिन नियति ने कुछ और ही तय कर रखा था.
एक रात, जब पूरा शहर सो रहा था, राघव को अपने प्रयोगशाला के कंप्यूटर से एक चेतावनी मिली. हवा में ऊर्जा का स्तर फिर से असामान्य रूप से बढ़ रहा था. पर इस बार यह नकारात्मक ऊर्जा नहीं थी. यह एक बिल्कुल नई, अज्ञात ऊर्जा थी. वह तुरंत अपनी बालकनी में गया और देखा कि आसमान में दूर-दूर तक एक गुलाबी और बैंगनी रंग की चमक फैल रही थी, जो बादलों के उस भूरे रंग से बिल्कुल अलग थी.
यह बादल नहीं थे, बल्कि एक तरह की “ऊर्जा धुंध” थी. जैसे-जैसे यह धुंध शहर के करीब आ रही थी, लोगों में अजीबोगरीब बदलाव आने लगे. जो लोग पहले उदास और शांत थे, वे अचानक अति-उत्साहित और बेपरवाह हो गए. संगीत बहुत तेज बजने लगा, लोग सड़कों पर नाचने लगे, और हर कोई बिना सोचे-समझे काम करने लगा. यह टॉर्चर का दूसरा रूप था—अति-उत्साह का टॉर्चर.
राघव ने डेटा का विश्लेषण किया और पाया कि यह ऊर्जा धुंध लोगों के मस्तिष्क के उन हिस्सों को उत्तेजित कर रही थी जो भावनाओं और आवेगों को नियंत्रित करते हैं. लोग खुशी और उत्साह में गलत फैसले ले रहे थे, जैसे अपनी बचत उड़ा देना, या खतरनाक स्टंट करना. यह नकारात्मकता की तरह जानलेवा तो नहीं थी, लेकिन समाज में एक नई अराजकता फैला रही थी.
राघव जानता था कि लोगों को फिर से समझाना मुश्किल होगा. जो लोग अब अति-उत्साही हो चुके थे, उन्हें शांत करने की कोशिश करना आग में घी डालने जैसा था. उसने एक नया अभियान शुरू करने का फैसला किया. उसने “सकारात्मकता के संतुलन” का सिद्धांत पेश किया.
उसने लोगों से कहा कि जीवन में हर भावना का एक स्थान होता है खुशी, दुख, शांति, और उत्साह. हमें किसी एक भावना को हद से ज्यादा हावी नहीं होने देना चाहिए. उसने शांत संगीत और ध्यान के सत्र आयोजित किए. उसने लोगों से एक-दूसरे से खुलकर बात करने को कहा कि वे कैसा महसूस कर रहे हैं, ताकि वे अपनी भावनाओं को संतुलित कर सकें.
यह एक लंबी और कठिन लड़ाई थी, लेकिन राघव और उसके कुछ साथी, जो अभी भी संतुलित थे, हार नहीं माने. उन्होंने शहर के अलग-अलग हिस्सों में छोटे-छोटे शांति के केंद्र बनाए, जहाँ लोग कुछ देर के लिए इस अति-उत्साह से दूर रहकर शांति पा सकें.
धीरे-धीरे, लोगों ने महसूस करना शुरू किया कि यह अति-उत्साह उन्हें खाली कर रहा है. जैसे शराब का नशा उतरता है, वैसे ही इस धुंध का असर कम होने पर लोग थकान और निराशा महसूस करने लगे. उन्होंने राघव की बात को समझना शुरू किया.
जब लोगों ने अपनी भावनाओं को स्वीकारना और संतुलित करना शुरू किया, तो वह ऊर्जा धुंध धीरे-धीरे फीकी पड़ गई. आसमान फिर से साफ और नीला हो गया, और शहर ने एक नई परिपक्वता हासिल कर ली. राघव ने अपनी डायरी में लिखा, “हमें सिर्फ बुराई से नहीं लड़ना है, बल्कि उस अत्यधिक अच्छाई से भी बचना है जो हमें अंधा कर दे. जीवन का सार संतुलन में है.” शहर ने अब यह सबक हमेशा के लिए सीख लिया था.
शेष भाग अगले अंक में…,
				
	


