राघव और शहर की कहानी अभी खत्म नहीं हुई है। बादलों के टॉर्चर से मुक्ति तो मिली, पर उसके बाद जो हुआ वह और भी अप्रत्याशित था.
जब आसमान साफ हुआ और सूरज की रोशनी शहर पर पड़ी, तो लोगों ने एक नई ताजगी महसूस की. लेकिन जल्द ही यह अहसास हुआ कि बादलों के जाने से सब कुछ पहले जैसा नहीं हुआ था. वे अपने पीछे एक अदृश्य निशान छोड़ गए थे.
राघव ने अपने अध्ययन को जारी रखा. उसने पाया कि बादलों द्वारा अवशोषित की गई नकारात्मक ऊर्जा पूरी तरह से खत्म नहीं हुई थी. वह शहर की मिट्टी और हवा में घुल गई थी. इसका असर यह हुआ कि वनस्पतियों और जानवरों पर एक अजीब परिवर्तन आने लगा. पेड़-पौधे तेजी से बढ़ने लगे, लेकिन उनके फल और फूल बेस्वाद और रंगहीन थे. जानवर शांत और सुस्त हो गए, जैसे उनकी सहज प्रवृत्ति खो गई हो.
शहर के लोग भी फिर से एक अजीब से अवसाद में फंसने लगे. यह पहले जैसा तीखा टॉर्चर नहीं था, बल्कि एक धीमी, सुस्त बीमारी की तरह था जो उनकी आत्मा को खा रही थी. छोटे-छोटे मतभेद बड़े झगड़ों में बदलने लगे. लोग एक-दूसरे पर आसानी से अविश्वास करने लगे.
राघव को समझ आया कि यह एक नया संकट है. वह अब सिर्फ एक मौसम विज्ञानी नहीं था, बल्कि एक मनोवैज्ञानिक और सामाजिक वैज्ञानिक भी बन गया था. उसने शहर के लोगों के साथ मिलकर काम करना शुरू किया. वह जानते थे कि इस बार बाहरी ताकत से नहीं, बल्कि अपने अंदर की लड़ाई लड़नी होगी.
उन्होंने एक “सकारात्मक आंदोलन” शुरू किया. हर किसी को दिन में कम से कम एक अच्छा काम करने और उसकी खुशी को साझा करने के लिए प्रोत्साहित किया गया. बच्चों को एक-दूसरे के साथ खेलने और मिलकर कला बनाने के लिए कहा गया. बूढ़े-बुजुर्ग अपनी कहानियाँ सुनाने लगे. यह आसान नहीं था. नकारात्मक ऊर्जा ने अपनी जड़ें गहरी जमा ली थीं. कई बार राघव को निराशा हुई, लेकिन फिर उसे बादलों के सबक याद आया. उसने हार नहीं मानी. धीरे-धीरे, सकारात्मकता की छोटी-छोटी बूंदों ने उस नकारात्मकता के सागर को सुखाना शुरू कर दिया.
शहर के केंद्र में, जहाँ पहले सबसे घने बादल थे, लोगों ने मिलकर एक “उम्मीद का बगीचा” बनाया. हर फूल जो खिलता, हर पौधा जो बढ़ता, वह उनके सामूहिक प्रयासों और सकारात्मकता का प्रतीक था.
एक दिन, जब राघव उस बगीचे में था, उसने देखा कि एक छोटा पक्षी एक फूल पर गुनगुना रहा था. उसकी धुन में वही जीवन और उमंग थी जो बहुत पहले खो गई थी. उसने पास के पेड़ के फल को चखा. पहली बार, उसका स्वाद मीठा और ताज़ा था.
राघव मुस्कुराया. वह जानता था कि लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है, लेकिन उन्हें रास्ता मिल गया था. बादलों का टॉर्चर सिर्फ एक शुरुआत थी. असली परीक्षा तो उस अंधेरे को दूर करने की थी जो अपने पीछे छोड़ गया था. और इस बार, वे जानते थे कि सबसे बड़ा हथियार न कोई ड्रोन था, न कोई वैज्ञानिक उपकरण, बल्कि उनके अपने दिल में छिपी हुई उम्मीद और खुशी थी.
शेष भाग अगले अंक में…,



