धर्म को समझने के लिए सत्य को समझना आवश्यक है।
भगवान शिव, श्रीकृष्ण, वृन्दावन आदि सब हमारे ही भीतर है। किन्तु जानकारी के अभाव में हम इन्हें तीर्थों में खोजते हैं। हमें समझना चाहिए कि हमारे भीतर है पांच तन्मात्र — रुप,रस,गन्ध, शब्द, स्पर्श।इस पांचों तन्मात्र के बारे में कबीर दास कहते हैं –
“अलि,पतंग,मृग,मीन,गज, एक एक तै जाय,
कबिरा तेरी क्या गति जां में पांचों पाय।”
भौरा और फतिंगा रुप तन्मात्र,मृग गन्ध तन्मात्र,मदली रस तन्मात्र,हाथी स्पर्श तन्मात्र के कारण संकट में पड़कर जान गंवा देता है। यदि ये पांचों तन्मात्र मनुष्य में एक साथ सक्रिय हो जाय तो उसका बचना कैसे संभव हो सकता है? मनुष्य को जीवन में तीन प्रकार से ज्ञान प्राप्त होता है – प्रत्यक्ष दर्शन से, अनुमान से, और आगम से।इन तीनों का ज्ञान,शिक्षण और प्रशिक्षण से प्राप्त होता है। तारक ब्रह्म श्री श्री आनन्द मूर्ति जी ने कहा है – जहां सत्य नहीं है, वहां धर्म नहीं है।धर्म को समझने के लिए सत्य को समझना आवश्यक है।
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Lord Shiva, Shri Krishna, Vrindavan, etc are all within us. But due to lack of information, we search for them in pilgrimages. We should understand that there are five tanmatras within us – form, taste, smell, sound, touch. Kabir Das says about these five tanmatras –
“Ali, Kite, Deer, Pisces, Gaj, swim one by one,
Kabira teri kya gati jaan mein five paay.”
Tanmatra of Bhaura and Fatinga, Tanmatra of deer smell, Tanmatra of madli juice, Tanmatra of elephant, loses life in trouble due to touch. If all these five become active together in a human being, then how can it be possible for him to survive? Man gets knowledge in three ways in life – by direct vision, by estimation, and by Aagam. The knowledge of these three is obtained by teaching and training. Tarak Brahma Shri Shri Anand Murthy ji has said – Where there is no truth, there is no religion. To understand religion, it is necessary to understand truth.
Note: This has not been edited.