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सुरमई शाम-1.

चाय और यादें

शहर के एक पुराने मोहल्ले की तंग गलियों में, नुक्कड़ पर एक छोटी-सी चाय की दुकान थी. शाम होते ही वहाँ बैठने वाले बुजुर्ग रामलाल, हमेशा अपने अनुभवों और कहानियों के साथ तैयार रहते. उनकी चाय में जितनी मिठास थी, उनकी बातों में उससे भी ज़्यादा गर्माहट.

उस शाम, हल्की बारिश की फुहारें गिर रही थीं. दुकान के सामने लकड़ी की बेंच पर बैठा रामलाल, पुराने दिनों की बातें कर रहा था. “यह जगह पहले इतनी चहल-पहल से भरी रहती थी,” उन्होंने चाय की चुस्की लेते हुए कहा, “तब लोगों के पास कहानियाँ होती थीं, सुनाने के लिए, सुनने के लिए…”

भीड़ के बीच से एक लड़की आई. उसने मुस्कुराते हुए पूछा, “क्या आज भी आप वही पुरानी कहानियाँ सुनाते हैं?”रामलाल चौंके. उस आवाज़ में एक जानी-पहचानी गूँज थी. लड़की ने आगे कहा, “आपने मुझे एक बार एक कहानी सुनाई थी—एक अधूरी कहानी. आज मैं उसे पूरा करने आई हूँ.”

चाय के भाप के बीच, वह शाम सिर्फ़ चाय की नहीं, बल्कि यादों और अधूरी कहानियों की भी थी.

शेष भाग अगले अंक में…,

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