
व्यक्ति विशेष भाग 367….
ठा.महाराजा खेतसिंह खंगार
ठाकुर महाराजा खेतसिंह खंगार एक ऐतिहासिक योद्धा और वीर पुरुष थे, जिनका नाम भारतीय इतिहास में उनकी शौर्य और वीरता के लिए जाना जाता है. खंगार समुदाय, जो प्रमुखतः बुंदेलखंड क्षेत्र में पाया जाता है.
खेतसिंह खंगार का जन्म 27 दिसंबर 1140 को जूनागढ़, गुजरात में जूनागढ़ के शाही परिवार में विक्रम संवत में पौष माह चैत्र शुक्ल पक्ष में हुआ था. उनके पिता गुजरात के राजा थे.महाराजा खेतसिंह खंगार ने अपने समय में अपनी भूमि और प्रजा की रक्षा के लिए अनेकों युद्ध लड़े और अपने दुश्मनों को पराजित किया. उनकी रणनीतिक कुशलता और साहस ने उन्हें एक महान योद्धा के रूप में प्रतिष्ठित किया.
खंगार वंश की स्थापना और उनके गौरवशाली इतिहास में महाराजा खेतसिंह का योगदान विशेष रूप से उल्लेखनीय है. यह वंश बुंदेलखंड के किले और भूमि की रक्षा में अग्रणी भूमिका निभाता रहा.ऐसा माना जाता है कि महाराजा खेतसिंह ने बुंदेलखंड क्षेत्र में कई किलों का निर्माण किया, जिनमें करारगढ़ किला प्रमुख है. यह किला उनकी शक्ति और साम्राज्य का प्रतीक था.
महाराजा खेतसिंह धर्म और संस्कृति के प्रति भी निष्ठावान थे. उन्होंने अपनी प्रजा के कल्याण के लिए सामाजिक और धार्मिक कार्य किए. महाराजा खेतसिंह खंगार का निधन 30 अगस्त 1212 को जिझौटीखंड में हुआ था. उनकी वीरता और प्रशासनिक कुशलता के कारण महाराजा खेतसिंह को उनके अनुयायी आज भी आदर्श मानते हैं. खंगार समुदाय उन्हें अपने प्रेरणा स्रोत के रूप में देखता है.
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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष व्योमेश चन्द्र बनर्जी
व्योमेश चन्द्र बनर्जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रथम अध्यक्ष थे. वे एक प्रमुख वकील और राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
व्योमेश चन्द्र बनर्जी का जन्म 29 दिसंबर 1844 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता में प्राप्त की और बाद में इंग्लैंड जाकर कानून की पढ़ाई की. वे बैरिस्टर बने और वापस भारत लौटे. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना वर्ष 1885 में हुई थी. इसका उद्देश्य भारतीय जनता के राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक हितों की रक्षा करना और उन्हें ब्रिटिश शासन से मुक्ति दिलाना था.
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पहला अधिवेशन 28-31 दिसंबर 1885 को मुंबई में आयोजित किया गया था. इस अधिवेशन में व्योमेश चन्द्र बनर्जी को कांग्रेस का प्रथम अध्यक्ष चुना गया. उन्होंने अपने अध्यक्षीय भाषण में भारतीय जनता की समस्याओं और ब्रिटिश शासन की नीतियों के खिलाफ आवाज उठाई.
व्योमेश चन्द्र बनर्जी एक सफल वकील थे और उन्होंने कई महत्वपूर्ण मामलों में वकालत की. उनकी कानूनी क्षमता और तार्किकता ने उन्हें भारतीय न्याय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया. उनके नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने भारतीय जनता की आवाज को ब्रिटिश सरकार तक पहुंचाने का कार्य किया. उनके अध्यक्षीय भाषणों और सुझावों ने भारतीय राजनीति को नई दिशा दी.
व्योमेश चन्द्र बनर्जी ने सामाजिक सुधारों के लिए भी कार्य किया. वे शिक्षा, स्वच्छता, और सामाजिक न्याय के पक्षधर थे. उन्होंने भारतीय समाज में सुधार लाने के लिए कई कदम उठाए. व्योमेश चन्द्र बनर्जी का निधन 21 जुलाई 1906 को हुआ. उनके योगदान और सेवाओं को भारतीय इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा.
व्योमेश चन्द्र बनर्जी का जीवन और कार्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रारंभिक चरण में महत्वपूर्ण थे. उनके नेतृत्व और समर्पण ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को एक मजबूत आधार प्रदान किया और भारतीय जनता के अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा दी. उनके योगदान को भारतीय इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा और वे एक महान नेता के रूप में सम्मानित किए जाएंगे.
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साहित्यकार गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी
गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी हिंदी साहित्य के एक साहित्यकार, विद्वान और इतिहासकार थे. उनका लेखन मुख्य रूप से भारतीय इतिहास, संस्कृति, धर्म और सामाजिक विषयों पर आधारित था. उन्होंने अपने गहन शोध और लेखन के माध्यम से हिंदी साहित्य और भारतीय परंपरा को समृद्ध किया है.
गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी का जन्म 29 दिसम्बर 1881 ई. को जयपुर, राजस्थान में हुआ था. वे एक शिक्षक, साहित्यकार और ऐतिहासिक शोधकर्ता के रूप में सक्रिय रहे। उन्होंने इतिहास और साहित्य के क्षेत्र में कई उल्लेखनीय कार्य किए. गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी ने भारतीय इतिहास, विशेष रूप से राजपूत और खंगार वंशों के गौरवशाली अतीत को शोधपूर्ण तरीके से प्रस्तुत किया. उनके लेखन में ऐतिहासिक तथ्यों के साथ-साथ साहित्यिक सौंदर्य भी झलकता है.
गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी ने खंगार वंश के शौर्य, परंपरा और सांस्कृतिक धरोहर का विस्तार से वर्णन किया है. इसमें बुंदेलखंड क्षेत्र के राजाओं, योद्धाओं और सांस्कृतिक परंपराओं पर प्रकाश डाला गया है. उनके लेखन में भारतीय धर्म और संस्कृति की गहरी समझ देखने को मिलती है साथ ही उन्होंने सामाजिक सुधार और भारतीय परंपराओं के पुनरुत्थान पर भी लेख लिखे. गिरिधर शर्मा चतुर्वेदी का योगदान हिंदी साहित्य और भारतीय इतिहास के क्षेत्र में अद्वितीय है. उनके कार्य आज भी शोधकर्ताओं और पाठकों के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं.
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शास्त्रीय संगीतज्ञ दीनानाथ मंगेशकर
दीनानाथ मंगेशकर एक भारतीय शास्त्रीय गायक और थियेटर कलाकार थे, जिन्होंने मराठी म्यूजिकल थियेटर के क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ी. उनका जन्म 29 दिसंबर 1900 को हुआ था और उनका निधन 24 अप्रैल 1942 को हुआ. वे लता मंगेशकर, आशा भोसले, उषा मंगेशकर, मीना खाडिलकर और हृदयनाथ मंगेशकर के पिता थे.
दीनानाथ ने अपने संगीत कैरियर की शुरुआत मराठी नाटकों में अभिनय करके और गान गा कर की थी. उनकी गायन शैली ख्याल और भजन में गहराई तक पैठी हुई थी, जिसमें उन्होंने ग्वालियर, आग्रा और जयपुर घराने के गायकी के तत्वों का समावेश किया था. उनके गायन में भावनात्मक गहराई और तकनीकी कुशलता का बेजोड़ संयोजन था, जिसे आज भी संगीत प्रेमी सराहते हैं.
दीनानाथ मंगेशकर ने नाट्य संगीत की शैली में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनके द्वारा प्रस्तुत नाटकों में ‘संगीत सौभद्र’, ‘संगीत मानापमान’, और ‘संगीत संशय कल्लोळ’ जैसे नाटक शामिल हैं, जिनमें उन्होंने मुख्य भूमिकाएँ निभाईं. उनकी मृत्यु के बाद भी, उनकी संगीत विरासत उनके बच्चों के माध्यम से जीवित रही, जिन्होंने भारतीय संगीत के क्षेत्र में अपने-अपने योगदान से उनके नाम को और भी ऊँचा किया.
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फ़िल्म निर्देशक रामानन्द सागर
रामानंद सागर एक भारतीय फिल्म निर्देशक और टेलीविजन प्रोड्यूसर थे, जिन्होंने अपने योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए. उनका जन्म 29 दिसंबर 1917 को बरेली, उत्तर प्रदेश, भारत में हुआ था और उनका नाम चंद्रा शेखर गुप्त था, लेकिन उन्हें रामानंद सागर के नाम से ज्यादा पहचाना जाता है.
रामानंद सागर ने अपनी कैरियर की शुरुआत फिल्म निर्देशन से की और उन्होंने कई हिट फिल्में बनाईं, जिनमें “अराधना”, “अनुराग”, “चाँद्रकोर”, “आन मिलो सजना” और “बागबान” शामिल हैं. हालांकि, उनका सबसे बड़ा और सबसे प्रसिद्ध योगदान उनके टेलीविजन सीरीज़ के माध्यम से हुआ.
रामानंद सागर का सबसे अच्छा कार्य उनकी टेलीविजन सीरीज़ “रामायण” और “महाभारत” है, जो भारतीय टेलीविजन के इतिहास में सबसे प्रशिद्ध और सफल सीरीज़ में से हैं. इन सीरीज़ ने उन्हें अनेक पुरस्कारों और सम्मानों से सम्मानित किया और लाखों लोगों को आकर्षित किया.
रामानंद सागर का निधन 12 दिसंबर 2005 को हुआ, लेकिन उनका योगदान भारतीय सिनेमा और टेलीविजन इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा.
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अभिनेता राजेश खन्ना
राजेश खन्ना भारतीय सिनेमा के पहले सुपरस्टार और हिंदी फिल्म जगत के सबसे प्रतिष्ठित और लोकप्रिय अभिनेताओं में से एक थे. उन्होंने अपने अद्वितीय अभिनय, भावनात्मक गहराई, और चार्म से सिनेमा प्रेमियों के दिलों में अमिट स्थान बनाया.
राजेश खन्ना का जन्म 29 दिसंबर 1942 को अमृतसर, पंजाब, भारत में हुआ था और उनका असली नाम जतिन खन्ना था. उन्होंने गिरगांव, मुंबई के सेण्ट सेबेस्टियन हाई स्कूल और किशोर नमित कपूर एक्टिंग स्कूल में प्रशिक्षण लिया. उन्होंने अभिनेत्री डिंपल कपाड़िया से शादी की। उनकी दो बेटियाँ हैं – ट्विंकल खन्ना और रिंकी खन्ना.
राजेश खन्ना का सफर वर्ष 1966 में फिल्म “आखिरी खत” से शुरू हुआ. हालांकि, उन्हें असली सफलता वर्ष 1969 में आई फिल्म “अराधना” से मिली, जिसके बाद वह “सुपरस्टार” के रूप में प्रसिद्ध हो गए.
प्रमुख फिल्में: – अराधना (1969), आनंद (1971), अमर प्रेम (1972), कटी पतंग (1971), सफर (1970), दाग (1973), हाथी मेरे साथी (1971), रोटी (1974), आवाज (1984), आ अब लौट चलें (1999).
राजेश खन्ना ने 15 लगातार हिट फिल्मों का रिकॉर्ड बनाया, जिसे अभी तक कोई नहीं तोड़ पाया. रोमांटिक हीरो के रूप में उनकी अदाकारी ने उन्हें घर-घर में लोकप्रिय बना दिया. उनके भावुक और सजीव डायलॉग डिलीवरी ने उन्हें हर आयु वर्ग में प्रिय बना दिया. “आनंद” में उनके किरदार के संवाद, जैसे “बाबू मोशाय, ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए, लंबी नहीं”, आज भी मशहूर हैं.
राजेश खन्ना को तीन बार फिल्मफेयर बेस्ट एक्टर अवार्ड, वर्ष 2005 में फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड और वर्ष 2013 में मरणोपरांत पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया. राजेश खन्ना का जीवन उतार-चढ़ाव से भरा था. 80 के दशक के बाद उनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं रहीं। बावजूद इसके, उन्होंने राजनीति में भी कदम रखा और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सांसद बने.
अंतिम समय में वह गंभीर बीमारी से जूझ रहे थे. राजेश खन्ना का निधन 18 जुलाई 2012 को मुंबई में हुआ था. राजेश खन्ना को भारतीय सिनेमा का पहला “सुपरस्टार” कहा जाता है. उनके अभिनय और स्टाइल ने हिंदी सिनेमा के रोमांटिक युग को परिभाषित किया। उनकी लोकप्रियता इतनी थी कि प्रशंसक उन्हें भगवान की तरह पूजते थे. उनके योगदान को भारतीय सिनेमा हमेशा याद रखेगा.
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अभिनेत्री ट्विंकल खन्ना
ट्विंकल खन्ना एक भारतीय अभिनेत्री, लेखिका, इंटीरियर डिजाइनर और फिल्म निर्माता हैं. उन्हें हिंदी फिल्म उद्योग में उनके अभिनय और अन्य क्षेत्रों में उनके बहुआयामी योगदान के लिए जाना जाता है. ट्विंकल खन्ना सुपरस्टार राजेश खन्ना और अभिनेत्री डिंपल कपाड़िया की बेटी हैं.
ट्विंकल खन्ना का जन्म 29 दिसंबर 1974 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था. ट्विंकल खन्ना हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार राजेश खन्ना और 70-80 के दशक की हिट एक्ट्रेस डिम्पल कपाड़िया की बेटी हैं. ट्विंकल की एक बहन भी हैं-जिनका नाम रिंकी खन्ना है. उनकी मौसी सिम्पल कपाड़िया है. ट्विंकल खन्ना का विवाह 17 जनवरी 2001 को अभिनेता अक्षय कुमार के साथ हुई थी. उनका एक बेटा, आरव और एक बेटी, नितारा है.
ट्विंकल खन्ना ने वर्ष 1995 में फिल्म “बरसात” से बॉलीवुड में डेब्यू किया. इस फिल्म के लिए उन्हें फिल्मफेयर बेस्ट डेब्यू अवार्ड मिला. हालांकि उनका अभिनय कैरियर ज्यादा लंबा नहीं रहा, लेकिन उन्होंने कई हिट फिल्में दीं.
प्रमुख फिल्में: – बरसात (1995), जब प्यार किसी से होता है (1998), बादशाह (1999), मेला (2000), लव के लिए कुछ भी करेगा (2001). वर्ष 2001 के बाद ट्विंकल ने अभिनय को अलविदा कह दिया और अन्य क्षेत्रों में अपने कैरियर को बढ़ावा दिया.
ट्विंकल खन्ना ने लेखन के क्षेत्र में असाधारण सफलता हासिल की. उनके लेखन में व्यंग्य, सामाजिक मुद्दों और व्यक्तिगत अनुभवों का अनूठा मिश्रण होता है.
प्रमुख पुस्तकें: – Mrs Funnybones (2015), The Legend of Lakshmi Prasad (2016), Pyjamas Are Forgiving (2018). उनकी किताबें बेहद लोकप्रिय हुईं और बेस्टसेलर सूची में शामिल रहीं.
ट्विंकल एक सफल इंटीरियर डिजाइनर भी हैं. उन्होंने The White Window नामक एक डिज़ाइन स्टोर की स्थापना की. उन्होंने कई फिल्मों का निर्माण किया, जिनमें “पैडमैन” (2018) प्रमुख है. यह फिल्म सामाजिक मुद्दों पर आधारित थी और बेहद सफल रही.
ट्विंकल खन्ना ने अपने कैरियर को अभिनय से लेकर लेखन और फिल्म निर्माण तक सफलतापूर्वक बदलते हुए यह साबित किया कि वह बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं. वह महिलाओं के सशक्तिकरण और सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं. उनका सफर प्रेरणादायक है और भारतीय महिलाओं के लिए एक आदर्श प्रस्तुत करता है.
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संगीतज्ञ ओंकारनाथ ठाकुर
मास्टर ओंकारनाथ ठाकुर का जन्म 24 जून 1897 को गुजरात के खंबात जिले के जहाज गांव में हुआ था. वह एक प्रमुख भारतीय संगीतज्ञ, संगीत शिक्षक, और हिंदुस्तानी शास्त्रीय गायक थे. उनका परिवार आर्थिक तंगी का सामना कर रहा था, लेकिन उनकी माता की मजबूत इच्छाशक्ति ने उन्हें कठिनाइयों के बावजूद शिक्षा और संगीत की ओर प्रेरित किया.
ओंकारनाथ ठाकुर ने अपने जीवन की शुरुआत विभिन्न छोटी-मोटी नौकरियों से की. बाद में, एक जैन धार्मिक संस्थान में काम करते हुए उन्होंने पढ़ना और लिखना सीखा. उनकी संगीत शिक्षा पंडित विष्णु दिगंबर पलुस्कर के संरक्षण में गंधर्व महाविद्यालय, मुंबई में शुरू हुई. पंडित पलुस्कर ने उन्हें ग्वालियर घराने के गायन की बारीकियों से अवगत कराया.
मास्टर ओंकारनाथ ठाकुर ने 1930 -60 तक हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में एक प्रमुख स्थान बनाए रखा. उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय संगीत सम्मेलनों में भाग लिया और अपने संगीत से न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्धि प्राप्त की. उनकी अद्वितीय गायन शैली ने उन्हें अपने समय के अन्य प्रमुख संगीतकारों से अलग स्थान दिलाया.
मास्टर ओंकारनाथ ठाकुर को 1955 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. उन्हें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और विश्व भारती विश्वविद्यालय से मानद डॉक्टरेट भी प्राप्त हुई थी. उन्होंने अपने जीवन में कई संगीत शिक्षण संस्थानों की स्थापना की और अनेक शिष्यों को प्रशिक्षित किया, जो बाद में प्रसिद्ध संगीतकार और संगीत विद्वान बने.
मास्टर ओंकारनाथ ठाकुर के जीवन में एक महत्वपूर्ण घटना उनकी पत्नी इंदिरा देवी की असामयिक मृत्यु थी, जिसने उन्हें गहरे सदमे में डाल दिया था. इस घटना के बाद उन्होंने पुनः अपने संगीत कैरियर को संवारने में संकल्प लिया और अपने संगीत में एक गहरी वेदना को शामिल किया.
ओंकारनाथ ठाकुर का निधन 29 दिसम्बर 1967 को मुम्बई में हुआ था. उनकी जीवन यात्रा और योगदान ने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया और उनके कार्यों ने आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित किया.
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वैज्ञानिक शिवराज रामशरण
शिवराज रामशरण एक प्रमुख भारतीय वैज्ञानिक थे, जिन्हें क्रिस्टलोग्राफी के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 10 अक्टूबर 1923 को मद्रास (अब चेन्नई) में हुआ था. उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से बीएससी ऑनर्स और एमएससी की डिग्री प्राप्त की, और बाद में प्रसिद्ध वैज्ञानिक सी.वी. रमन के मार्गदर्शन में पीएचडी की.
अपने कैरियर के दौरान, शिवराज रामशरण ने एक्स-रे क्रिस्टलोग्राफी में महत्वपूर्ण काम किया और राष्ट्रीय एयरोस्पेस प्रयोगशालाओं के विज्ञान विभाग में सुधार के लिए अहम भूमिका निभाई. उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान में प्रोफेसर के रूप में भी सेवाएं दीं. उन्हें वर्ष 1966 में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार और वर्ष 1985 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था.
उनकी प्रमुख पुस्तकों में “सी.वी. रमन और साइंटिफिक पेपर्स ऑफ सी.वी. रमन” शामिल है. उनका निधन 29 दिसंबर 2003 को बेंगलुरु में हुआ था.
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राजेश खन्ना ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत फिल्म “आख़री क़ुदरत” से की थीं वहीं, रामानंद सागर ने अपने कैरियर की शुरुआत फिल्म निर्देशन से की थी.
Rajesh Khanna started his acting career with the film “Aakhri Kudrat”, whereas Ramanand Sagar started his career with film direction.