
सुरेश और रीना ने मिलकर जमुना देवी पर अत्याचार करना शुरू कर दिया. उन्हें दिन भर घर के काम में जोता जाता, ठीक से खाने को नहीं दिया जाता. बूढ़ी आँखों से बहते आँसुओं की उन्हें कोई परवाह नहीं थी. वे उन्हें भद्दी-भद्दी गालियाँ देते, उनके पति के नाम पर अपशब्द कहते.
“बूढ़ी मरियल, कब तक बोझ बनी रहेगी?” रीना चिल्लाती. “सारा धन तो तेरा लाड़ला बेटा खा गया, अब क्या जान लेगी?”
सुरेश भी अपनी पत्नी से पीछे नहीं रहता. “चल हट बुढ़िया! यहाँ क्या बैठी है? जा, कुछ काम कर. मुफ्त की रोटियाँ तोड़ने आई है.”
जमुना देवी का हृदय हर पल छलनी होता रहता था. जिस घर को उन्होंने अपने हाथों से सींचा था, वही आज उनके लिए नरक बन गया था. उनके पति की यादें उन्हें और भी कचोटती थीं. काश वे आज होते, तो अपनी पत्नी की ऐसी दुर्दशा कभी न होने देते.
रमेश और उसकी पत्नी अपनी माँ की हालत देखकर दुखी होते थे, पर सुरेश के आगे उनकी कोई सुनवाई नहीं थी. सुरेश ने उन्हें भी धमका रखा था कि यदि उन्होंने बीच में आने की कोशिश की तो वे भी बुरे परिणाम भुगतेंगे.
जमुना देवी अपनी बची-खुची संपत्ति को बचाने के लिए हर संभव प्रयास करती रहीं. वे जानती थीं कि यदि यह भी चली गई तो उनका क्या होगा. पर दो लालची और निर्दयी लोगों के आगे एक अकेली बूढ़ी औरत कब तक टिक पाती?
शेष भाग अगले अंक में…,