
बिहार में आजकल अजीबोगरीब संगम दिख रहा है. एक तरफ सावन की पवित्र बयार बह रही है, हर-हर महादेव के जयकारे गूँज रहे हैं, और कांवरियों का रेला सड़कों पर उमड़ पड़ा है. दूसरी तरफ, चुनावी सरगर्मी भी धीरे-धीरे परवान चढ़ रही है. यानी, एक साथ भक्ति का रंग और कुर्सी की जंग, दोनों का अद्भुत नजारा!
सवेरे-सवेरे मंदिरों में शंखनाद और घंटियों की मधुर ध्वनि सुनाई देती है, और थोड़ी देर बाद चौक-चौराहों पर नेताओं के जोशीले भाषणों के लाऊडस्पीकर कान फोड़ने लगते हैं. कांवरियों की कांधे पर जल भरी कांवड़ है, तो नेताओं की जुबान पर विकास के वादों का बोझ. महादेव के दर पर शांति और सौहार्द की कामना हो रही है, वहीं चुनावी रणभूमि में आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है.
इस बार का सावन कुछ खास है. जैसे ही कांवरियों का जत्था बाबा धाम की ओर निकला, वैसे ही पार्टियों के नेता भी अपनी-अपनी “कांवड़ यात्रा” पर निकल पड़े. किसी की कांवड़ में मुफ्त बिजली का जल है, तो किसी की में नौकरी के वादों का अमृत. हर कोई महादेव से अपनी “कुर्सी यात्रा” सफल बनाने की मन्नत मांग रहा है.
एक तरफ शिव भक्त सड़कों पर भजन-कीर्तन करते हुए दिखते हैं, तो दूसरी तरफ राजनीतिक पंडित टीवी चैनलों पर एक-दूसरे के कपड़े फाड़ते हुए. महादेव को दूध-जल चढ़ाया जा रहा है, और नेताओं को जनता की भावनाओं का चढ़ावा. दिलचस्प बात यह है कि इस सब में बिहार की जनता बेचारी पिस रही है. उसे समझ नहीं आ रहा कि “हर-हर महादेव” के जयकारे पर ध्यान दे या “अगली सरकार किसकी” के शोर पर.
कुछ दिनों पहले तक जो नेता गर्मी की दुहाई देकर घरों में दुबके थे, वे अब सावन की फुहारों में भीगते हुए रैलियां कर रहे हैं. जैसे कांवरियों का लक्ष्य बाबा धाम है, वैसे ही इन नेताओं का लक्ष्य विधान सभा की सीढ़ी. और इस लक्ष्य को पाने के लिए साम-दाम-दंड-भेद, सब जायज है.
तो बिहार में फिलहाल यही माहौल है – भक्ति और राजनीति का अटूट गठबंधन. हर-हर महादेव का उद्घोष और कुर्सी के लिए मारामारी, दोनों एक साथ चल रहे हैं. अब देखना यह है कि इस डबल धमाके में जनता किसे अपना आशीर्वाद देती है – महादेव को, या कुर्सी के दावेदारों को!
ई० हेमंत कुमार.