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शरद पूर्णिमा…

सत्संग के दौरान वाल व्यास सुमन जी महाराज ने कहा कि, भगवान श्यामसुंदर ने जिस रात्री को रास रचाया था वो रात्री शरद पूर्णिमा की रात्री थी. महाराज जी कहते हैं कि यह बड़ी ही पवित्र और अनोखी रात्री है. कहा जाता है कि, शरद पूर्णिमा की रात्री को माता लक्ष्मी रात्री विचरण करती है और साधकों को समृद्धि प्रदान करती है. महाराज जी कहते हैं कि आश्विन महीने की पूर्णिमा को ही शरद पूर्णिमा, रास पूर्णिमा या कोजागरी (कौमुदी व्रत) पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है. ज्योतिषों के अनुसार, पुरे साल में सिर्फ शरद पूर्णिमा की रात्री को चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है. कहा जाता है कि, शरद पूर्णिमा की रात्री को चन्द्रमा की किरणों से अमृत गिरता है, इसीलिए उत्तर भारत में खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने की परम्परा है. पौराणिक ग्रंथो के अनुसार, लंकापति रावण शरद पूर्णिमा की रात्री को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर पूर्णिमा की शीतल किरणों को ग्रहण करता था,जिससे उसे पुनर्योवन की शक्ति प्राप्त होती थी.

विधि: –

महाराज जी कहते हैं कि इस दिन व्रत रख कर विधि-विधान से लक्ष्मी-नारायण का पूजा करनी चाहिए और खीर बनाकर रात में खुले आसमान के नीचे ऐसे रखें, ताकि चन्द्रमा की रोशनी खीर पर पड़े. अगले दिन स्नान करके भगवान को खीर का भोग लगाएं, और तीन ब्राह्मणों या कन्याओं को प्रसाद रूप में इस खीर को दें, साथ ही अपने परिवार में भी खीर का प्रसाद बांटे. इस खीर को खाने से अनेक प्रकार के रोगों से छुटकारा मिलता है.

कथा: –

एक नगर में साहूकार की दो बेटियाँ थी. दोनों बेटियाँ पूर्णिमा का व्रत रखती थी, लेकिन बड़ी बेटी व्रत को पूरा करती थी परन्तु छोटी बेटी व्रत अधुरा ही छोड़ देती थी. समय होने पर साहूकार ने दोनों बेटियों की शादी-व्याह कर दिया. कुछ समय पश्चात छोटी बेटी की सन्तान पैदा होते ही मर जाती थी. एक दिन छोटी बेटी ने पंडितो से पूछा तो, इसका कारण उन्होने बताया की तुम पूर्णिमा का अधूरा व्रत करती थी जिसके कारण तुम्हारी सन्तान पैदा होते ही मर जाती है. इसीलिए पूर्णिमा का पुरा विधिपुर्वक करने से तुम्हारी सन्तान जीवित रह सकती है.

पंडितों की सलाह पर उसने पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक किया, लेकिन उसे एक लड़का हुआ, परन्तु शीघ्र ही मर गया. अब उसने लडके को पीढे पर लिटाकर ऊपर से कपड़े से ढक दिया और अपनी बड़ी बहन को बुलाकर बैठने के लिए वही पीढा दे दिया. बडी बहन जब पीढे पर बैठने लगी जो उसका घाघरा बच्चे का छू गया और बच्चा रोने लगा. इस पर बड़ी बहन बोली – तू मुझ पर कलंक लगाना चाहती थी, इस पर छोटी बहन बोली कि, ये तो पहले से ही मरा हुआ था, लेकिन तेरे भाग्य से यह जीवित हो गया है. उसके बाद उसने पुर नगर में पुर्णिमा का पूरा व्रत करने का ढिंढोरा पिटवा दिया.

वाल व्यास सुमन जी महाराज,

 महात्मा भवन,

श्रीरामजानकी मंदिर,

राम कोट, अयोध्या.

Mob: – 8709142129.

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