
माँ की चुप्पी अवनि के लिए एक अनिश्चितता भरी स्थिति थी. न तो उन्होंने उसकी बातों को नकारा था और न ही कोई सहानुभूति दिखाई थी. कुछ दिनों तक घर का माहौल थोड़ा तनाव पूर्ण रहा. अवनि ने महसूस किया कि उसकी माँ उसे पहले से ज़्यादा ध्यान से देख रही हैं, उनकी आँखों में एक अजीब सी बेचैनी झलकती थी.
एक शाम, जब अवनि अपने कमरे में पढ़ रही थी, उसकी माँ दरवाज़े पर आईं. उनके हाथ में एक कप चाय थी.
“अवनि, क्या मैं अंदर आ सकती हूँ?” उनकी आवाज़ में हमेशा वाली कठोरता नहीं थी, बल्कि एक नरम लहजा था.
अवनि थोड़ा चौंकी, लेकिन उसने हाँ में सिर हिलाया. माँ कमरे में आईं और चाय का कप मेज़ पर रख दिया.
“तुम्हारी तबीयत ठीक है?” माँ ने पूछा, उनकी नज़रें अवनि से नहीं मिल रही थीं.
“हाँ, माँ,” अवनि ने संक्षिप्त जवाब दिया.
कमरे में कुछ देर के लिए खामोशी छा गई. फिर, माँ ने धीरे से कहा, “तुमने उस दिन जो बातें कहीं… मैंने उनके बारे में सोचा.”
अवनि ने अपनी किताब बंद कर दी और माँ की ओर देखा.
“मुझे एहसास हुआ कि… शायद मैंने हमेशा दूसरों की खुशी को तुम्हारी खुशी से ज़्यादा महत्व दिया,” माँ ने आगे कहा, उनकी आवाज़ थोड़ी काँप रही थी. “तुम्हारे पिता… वह हमेशा यही चाहते थे कि सब ठीक रहें, और मैंने भी उसी राह पर चलने की कोशिश की. लेकिन शायद इस कोशिश में… मैंने तुम्हें कहीं पीछे छोड़ दिया.”
अवनि को अपनी कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था. क्या यह सच में उसकी माँ बोल रही थीं?
“माँ…” अवनि कुछ कहना चाहती थी, लेकिन उसके गले में जैसे कुछ अटक गया था.
“मुझे माफ़ कर दो, अवनि,” माँ ने कहा, उनकी आँखों में आँसू थे. “मुझे नहीं पता था कि तुम इतनी दुखी हो. मैंने कभी ध्यान ही नहीं दिया.”
यह सुनकर अवनि की भी आँखें भर आईं. बरसों से वह इसी पल का इंतज़ार कर रही थी, जब उसकी माँ उसकी भावनाओं को समझें.
“कोई बात नहीं, माँ,” अवनि ने कहा, उसकी आवाज़ भीगी हुई थी. “अब आप जानती हैं, यही काफ़ी है.”
उस दिन के बाद, अवनि और उसकी माँ के बीच एक नई तरह का रिश्ता शुरू हुआ. माँ अब उसकी बातों को ध्यान से सुनती थीं, उसकी राय को महत्व देती थीं. यह बदलाव अवनि के लिए एक सपने जैसा था.
उसके भाई के व्यवहार में तुरंत कोई बड़ा बदलाव नहीं आया, लेकिन अब जब माँ अवनि का साथ देती थीं, तो उसे भाई की उपेक्षा उतनी ज़्यादा नहीं खलती थी.
आर्यन का साथ अवनि के लिए एक मजबूत सहारा बना रहा. वह अक्सर उससे मिलती थी, और दोनों घंटों तक बातें करते थे. आर्यन ने कभी भी अवनि पर कोई दबाव नहीं डाला, बस उसे यह महसूस कराया कि वह अकेली नहीं है और उसकी अपनी एक पहचान है.
एक दिन, आर्यन ने अवनि को एक पार्क में बुलाया. मौसम बहुत सुहावना था. फूलों की खुशबू और पक्षियों की चहचहाहट से माहौल खुशनुमा था.
“अवनि,” आर्यन ने कहा, उसकी आँखों में एक अलग चमक थी. “तुम जानती हो, जब से मैंने तुम्हें जाना है, मैंने हमेशा तुम्हारी हिम्मत और तुम्हारी संवेदनशीलता की प्रशंसा की है.”
अवनि ने उसकी ओर देखा, उसके दिल की धड़कन तेज़ हो गई थी.
“तुम… तुम एक अद्भुत इंसान हो, अवनि। और मुझे…” आर्यन थोड़ा झिझका, फिर उसने अवनि का हाथ अपने हाथों में लिया. “मुझे लगता है कि मैं तुमसे प्यार करने लगा हूँ.”
अवनि के चेहरे पर एक हल्की मुस्कान आ गई. आर्यन के शब्दों ने उसके भीतर एक नई भावना जगाई थी. उसने कभी सोचा भी नहीं था कि उसे इस तरह किसी का प्यार मिलेगा.
“मुझे भी…” अवनि ने धीरे से कहा, उसकी आँखें नम थीं. “मुझे भी ऐसा ही लगता है, आर्यन.”
उस पल, अवनि को लगा जैसे उसकी ज़िंदगी का एक नया अध्याय शुरू हो रहा है. अपनों से मिली व्यथा धीरे-धीरे कम हो रही थी, और एक नए रिश्ते की गर्माहट उसे सुकून दे रही थी.
क्या अवनि और आर्यन का यह रिश्ता उसकी ज़िंदगी को पूरी तरह से बदल देगा? क्या वह अपने परिवार के साथ अपने रिश्तों को और बेहतर बना पाएगी?
शेष भाग अगले अंक में…,