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अंतर्द्वंद्व के साये…

अवनि की कहानी

यह एक उपन्यास है. अवनि नामक युवती की कहानी है जो अपने ही परिवार के सदस्यों के व्यवहार से गहरी पीड़ा में है. बाहरी दुनिया के लिए उनका परिवार एक आदर्श परिवार की तरह दिखता है, लेकिन भीतर ही भीतर, अवनि घुटन और अकेलेपन का अनुभव करती है. उसकी माँ, जो हमेशा दूसरों की राय को महत्व देती हैं, अक्सर अवनि की भावनाओं को अनदेखा कर देती हैं. उसके बड़े भाई, जो हमेशा अपनी महत्वाकांक्षाओं में खोए रहते हैं, उसकी ज़रूरतों पर ध्यान नहीं देते. और उसके पिता, जो शांति बनाए रखने के नाम पर हर अन्याय को चुपचाप सह लेते हैं, अवनि के लिए एक भावनात्मक सहारा बनने में विफल रहते हैं.

अवनि अपनी इस व्यथा को किसी से कह भी नहीं पाती, क्योंकि उसे डर है कि लोग उसे ही गलत समझेंगे. वह भीतर ही भीतर घुटती रहती है, अपनी भावनाओं से लड़ती हुई कैसे अवनि धीरे-धीरे अपनी इस भावनात्मक कैद से बाहर निकलने का प्रयास करती है. वह अपने भीतर की आवाज़ को सुनने की कोशिश करती है, उन लोगों से दूरी बनाने का प्रयास करती है जो उसे दुख पहुँचाते हैं, और अपने आत्म-सम्मान को वापस पाने के लिए संघर्ष करती है.

कहानी में एक मोड़ तब आता है जब अवनि को एक बाहरी व्यक्ति से भावनात्मक समर्थन मिलता है, जो उसे यह समझने में मदद करता है कि उसकी भावनाएँ जायज़ हैं और उसे अपनी खुशी के लिए लड़ने का हक है. यह उपन्यास रिश्तों की जटिलताओं, उपेक्षाओं के बोझ, और आत्म-खोज की यात्रा पर प्रकाश डालता है. यह दिखाता है कि कैसे कभी-कभी हमारे अपने ही हमें सबसे ज़्यादा दुख पहुँचाते हैं, और उस पीड़ा से उबरकर अपनी पहचान बनाना कितना महत्वपूर्ण होता है…

शेष भाग अगले अंक में…,

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