सफला एकादशी…
सत्संग के दौरान एक भक्त ने महाराज जी पूछा कि, महाराजजी ऐसा कोई उपाय बताइए, जिससे सर्वमनोकामना पूर्ण हो, व्रत का फल मिले. वालव्यास सुमनजी महाराज कहते है कि, एक बार धर्मराज युधिष्ठिर ने भी भगवान वासुदेव से यही सवाल किया था, तब कमलनयन श्यामसुन्दर ने कहा कि, हे युधिष्ठिर! पौष महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी के नाम से जानते हैं. ये एकादशी अपने नाम के अनुसार ही मनोनुकूल फल प्रदान करता है. हे युधिष्ठिर! इस एकादशी में श्रीनारायण की विधि पूर्वक आराधना करनी चाहिए चुकिं, जिस प्रकार नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़, ग्रहों में चंद्रमा, यज्ञों में अश्वमेघ यज्ञ उसी प्रकार देवताओं में श्रेष्ठ भगवान विष्णु हैं उसी प्रकार सब व्रतों में एकादशी को श्रेष्ठ माना गया है. पद्म पुराण में एकादशी व्रत के बारे में विस्तृत चर्चा की गई है और इस पौष महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी के बारे में कहा गया है कि,अगर कोई व्यक्ति सहस्त्र वर्ष तक तपस्या करने के बाद जो फल मिलाता है वही फल सफला एकादशी करने से मिलता है. इस एकादशी को करने से कई पीढ़ियों के पाप दूर हो जाते हैं हृदय शुद्ध हो जाता है.अगर कोई भक्त सफला एकादशी का संकल्प लेता है उसे भक्तिपूर्वक नियमों का पालन करते हुए, रात्री जागरण कर निर्जला व्रत करना चाहिए.
महाराज जी कहते है कि, वर्तमान समय में आम जनमानस की एक ही समस्या प्राय: देखी जाती है वो है “रोग दोष या फिर गृह क्लेश”. महाराज जी कहते हैं कि, जो भी साधक इस समस्या से परेशान है हैं उन साधकों को सफला एकादशी का व्रत अवश्य ही करना चाहिए.
वर्ष 2024 की पहली एकादशी 07 जनवरी को मनाई जाएगी. महाराज जी कहते है कि, जो भी साधक एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें सफला एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर के पास नौ (09) मुखी दीपक जलाकर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें. महारज जी कहते हैं कि इस उपाय को करने से रोग दोष या फिर गृह क्लेश की समस्या दूर हो जाती है.
ध्यान दें: – नौ (09) मुखी दीपक में रुई की जगह लाल कलावे का प्रयोग करें.
मंत्र: –
॥ॐ सत्य-नारायणाय सिद्धाय नमः॥
पूजन सामाग्री: –
वेदी, कलश, सप्तधान, पंच पल्लव, रोली, गोपी चन्दन, गंगा जल, दूध, दही, गाय के घी का दीपक, सुपाड़ी, शहद, पंचामृत, मोगरे की अगरबत्ती, ऋतू फल, फुल, आंवला, अनार, लौंग, नारियल, नीबूं, नवैध, केला और तुलसी पत्र व मंजरी.
विशेष: – कद्दू का खीर और तुलसी पत्र व मंजरी.
व्रत विधि: –
एकादशी के पूर्व दशमी को रात्री में एक बार ही भोजन करना आवाश्यक है उसके बाद दुसरे दिन सुबह उठ कर स्नान आदि कार्यो से निवृत होने के बाद व्रत का संकल्प भगवान विष्णु के सामने संकल्प लेना चाहिए. उसके बाद भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र की स्थापना करें. भगवान विष्णु की पूजा के लिए धूप, दीप, फल और पंचामृ्त से पूजन करना चाहिए. भगवान विष्णु के स्वरूप का स्मरण करते हुए ध्यान लगायें, उसके बाद विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करके, कथा पढ़ते हुए विधिपूर्वक पूजन करें. ध्यान दें…. एकादशी की रात्री को जागरण अवश्य ही करना चाहिए, दुसरे दिन द्वादशी के दिन सुबह ब्राह्मणो को अन्न दान, जनेऊ व दक्षिणा देकर इस व्रत को संपन्न करना चाहिए.
कथा: –
चम्पावती नगरी में एक महिष्मान नाम का राजा राज्य करता था. उस राजा के चार पुत्र थे उन पुत्रों में सबसे बडा लुम्पक, नाम का पुत्र महापापी था. वह हमेशा बुरे कार्यो में लगा रहता था और पिता का धन व्यर्थ करने से भी पीछे नहीं हटता था. वह सदैव देवता, ब्राह्माण, वैष्णव आदि की निन्दा किया करता था. जब उसके पिता को अपने बड़े पुत्र के बारे में ऎसे समाचार प्राप्त हुए, तो उसने उसे अपने राज्य से निकाल दिया. तब लुम्पक ने रात्रि को पिता की नगरी में चोरी करने की ठानी. वह दिन में बाहर रहने लगा और रात को अपने पिता कि नगरी में जाकर चोरी तथा अन्य बुरे कार्य करने लगा. रात्रि में जाकर निवासियों को मारने और कष्ट देने लगा. पहरेदान उसे पकडते और राजा का पुत्र मानकर छोड देते थे. जिस वन में वह रहता था उस वन में एक बहुत पुराना पीपल का वृक्ष था जिसके नीचे, लुम्पक रहता था. पौष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी के दिन वह शीत के कारण मूर्छित हो गया. अगले दिन दोपहर में गर्मी होने पर उसे होश आया.
शरीर में कमजोरी होने के कारण वह कुछ खा भी न सकें, आसपास उसे जो फल मिलें, उसने वह सब फल पीपल कि जड के पास रख दिये. इस प्रकार अनजाने में उससे एकादशी का व्रत पूर्ण हो जाता है जब रात्रि में उसकी मूर्छा दूर होती है तो उस महापापी के इस व्रत से तथा रात्रि जागरण से भगवान अत्यन्त प्रसन्न होते हैं और उसके समस्त पाप का नाश कर देते हैं. लुम्पक ने जब अपने सभी पाप नष्ट होने का पता चलता है तो वह उस व्रत की महिमा से परिचित होता है और बहुत प्रसन्न होता है ओर अपने आचरण में सुधार लाता है व शुभ कामों को करने का प्रण लेता है. अपने पिता के पास जाकर अपनी गलितियों के लिए क्षमा याचना करता है तब उसके पिता उसे क्षमा कर अपने राज्य का भागीदार बनाते हैं.
एकादशी का फल: –
एकादशी प्राणियों के परम लक्ष्य, भगवद भक्ति, को प्राप्त करने में सहायक होती है. यह दिन प्रभु की पूर्ण श्रद्धा से सेवा करने के लिए अति शुभकारी एवं फलदायक माना गया है. इस दिन व्यक्ति इच्छाओं से मुक्त हो कर यदि शुद्ध मन से भगवान की भक्तिमयी सेवा करता है तो वह अवश्य ही प्रभु की कृपापात्र बनता है.
वालव्याससुमनजी महाराज,
महात्मा भवन,
श्रीराम जानकी मंदिर,
राम कोट, अयोध्या.
मो० – 8709142129.
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Saphala Ekadashi…
During the Satsang, a devotee asked Maharaj Ji, Maharaj Ji, please tell me some solution by which all the wishes can be fulfilled and the fast will be fruitful. Valvyas Sumanji Maharaj says that, once Dharmaraja Yudhishthir had also asked the same question to Lord Vasudev, then Kamalnayan Shyamsundar said, O Yudhishthir! Ekadashi of Krishna Paksha of Paush month is known as Saphala Ekadashi. This Ekadashi gives the desired results as per its name. Hey Yudhishthir! In this Ekadashi, Shri Narayana should be worshipped properly because, just as Sheshnag is among the snakes, Garuda is among the birds, Moon is among the planets, Ashvamedha Yagna is among the Yagyas, in the same way, Lord Vishnu is the best among the gods, similarly, Ekadashi is considered to be the best among all the fasts. There is a detailed discussion about Ekadashi fast in Padma Purana and about the Ekadashi of Krishna Paksha of this month of Paush, it has been said that, if a person gets the same results after doing penance for a thousand years, then he gets the same results by observing Safala Ekadashi. Get. By observing this Ekadashi, the sins of many generations are removed and the heart becomes pure. If a devotee takes a pledge to observe Saphala Ekadashi, he should observe Nirjala Vrat by devotionally following the rules and keeping vigil at night.
Maharaj ji says that in the present times, only one problem is often seen in the common people and that is “disease or domestic distress”. Maharaj Ji says that all the devotees who are troubled by this problem must observe the fast of Saphala Ekadashi.
The first Ekadashi of the year 2024 will be celebrated on 07 January. Maharaj Ji says that all the devotees who fast on Ekadashi should light a nine (09) Mukhi lamp near the idol or picture of Lord Vishnu and Mother Lakshmi and recite Vishnu Sahastranam on the day of Saphala Ekadashi. Maharaj ji says that by doing this remedy the problem of diseases, defects or household troubles gets removed.
Note: – Use red Kalave instead of cotton in nine (09) Mukhi lamps.
Mantra: –
॥Om Satya-Narayanay Siddhay Namah॥
Worship material: –
Vedi, Kalash, Saptadhan, Panch Pallav, Roli, Gopi sandalwood, Ganga water, milk, curd, cow ghee lamp, betel nuts, honey, Panchamrit, Mogra incense sticks, seasonal fruits, flowers, Amla, pomegranate, cloves, coconut, Lemon, sweet lime, banana and basil leaves and Manjari.
Special: – Pumpkin kheer and basil leaves and Manjari.
Fasting method: –
Before Ekadashi, it is necessary to have food only once in the night on Dashami. After that, after waking up in the morning on the next day and after taking a bath etc., the resolution of the fast should be taken in front of Lord Vishnu. After that install the idol or picture of Lord Vishnu. To worship Lord Vishnu, one should worship with incense, lamps, fruits and Panchamrit. Meditate by remembering the form of Lord Vishnu, after that worship Vishnu Sahastranam and worship him methodically while reading the story. Note… Jagran must be done on the night of Ekadashi; this fast should be completed by donating food, sacred thread and Dakshina to Brahmins on the next day on Dwadashi in the morning.
Story: –
A king named Mahishmaan ruled in Champavati city. That king had four sons, the eldest among them was a great sinner named Lumpak. He was always engaged in bad deeds and did not shy away from wasting his father’s money. He always used to criticize Gods, Brahmins, Vaishnavas etc. When his father received such news about his elder son, he expelled him from his kingdom. Then Lumpak decided to steal in his father’s city at night. He started staying outside during the day and at night he went to his father’s city and started committing theft and other bad deeds. He went at night and started killing and tormenting the residents. The guards used to catch him and release him considering him to be the king’s son. In the forest where he lived, there was a very old Peepal tree under which Lumpak lived. On the tenth day of Krishna Paksha of Pausha month, he fainted due to a cold. The next day he regained consciousness in the afternoon when it was hot.
Due to weakness in his body, he could not eat anything, whatever fruits he found nearby, he kept them near the root of the Peepal tree. In this way, he unknowingly completes his Ekadashi fast. When his unconsciousness goes away at night, then God becomes very pleased with the fast and night vigil of that great sinner and destroys all his sins. When Lumpak comes to know that all his sins have been destroyed, he becomes aware of the glory of that fast becomes very happy improves his conduct and takes a vow to do auspicious works. He goes to his father and apologizes for his mistakes, and then his father forgives him and makes him a partner in his kingdom.
Result of Ekadashi: –
Ekadashi helps achieve the ultimate goal of living beings, devotion to God. This day is considered very auspicious and fruitful for serving the Lord with full devotion. On this day, if a person becomes free from desires and does devotional service to God with a pure heart, then he becomes blessed by the Lord.
Valvyassumanji Maharaj,
Mahatma Bhawan,
Shri Ram Janaki Temple,
Ram Kot, Ayodhya.
Mob: – 8709142129.