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तोरई…

तोरी या तुराई एक लता है जिसका प्रयोग सब्जी बनाने व आयुर्वेदिक चिकित्सा में किया जाता है. इसका वानस्पतिक नाम Luffa acutangula है. तुराई को भारत के कुछ राज्यों में “झिंग्गी” या “झींगा” के नाम से भी जानते हैं. इसे भारतीय उपमहाद्वीप में उगाई जाती है. इसका पौधा बेल ( लता ) के रूप में फैलता है, जिस पर पीले रंग के फूल खिलते हैं. इसके फूलों में नर और मादा पुष्प अलग अलग समय पर खिलते हैं.

यह मुलायम गाढ़े हरे रंग की होती है और पकने पर खाने योग्य नही रहती किन्तु कठोर फाइबर के कारण इसका उपयोग रगड़कर बर्तनों आदि की सफाई में उपयोग में लाया जाता है. कच्ची हरी तोरई में विटामिन्स की भरपूर मात्रा होती है, इसके अधिक सुपाच्य होने के कारण हर आयु के मनुष्य व रोगी इसे पौष्टिक आहार के रूप में प्रयोग में लाते हैं. पोषक तत्वों के अनुसार इसकी तुलना नेनुए से की जा सकती है. इसमें विटामिन सी, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, पोटेशियम, फोलेट, विटामिन ए और फाइबर पाया जाता है. तुराई की प्रकृति ठंडी होती है. तोरई की खेती मुख्य रूप से तो बारिश के मौसम में की जाती है. लेकिन इसको खरीफ की फसल के साथ भी लगाया जा सकता हैं. इसके पौधे को विकास करने के लिए समशीतोष्ण जलवायु उपयुक्त होती है. तोरई की खेती के लिए कार्बनिक पदार्थों से भरपूर उपजाऊ भूमि की जरूरत होती है. लेकिन अधिक पैदावार लेने के लिए इसकी खेती उचित जल निकासी वाली दोमट मिट्टी में करनी चाहिए.

तोरई का पौधा समशीतोष्ण जलवायु का माना जाता है. इसके पौधे शुष्क और आद्र मौसम में अच्छे से विकास करते हैं. इसके पौधे सर्दी के मौसम को सहन नही कर पाते. और गर्मी के मौसम में आसानी से विकास करते हैं. इसके पौधों को बारिश की जरूरत शुरुआत में ही होती है.

आयुर्वेदिक चिकित्सा: –

  1. तोरई सब्जी खाने से कब्ज की समस्या दूर हो जाती है.
  2. तोरई सब्जी खाने से बवासीर ठीक हो जाती है.
  3. तोरई सब्जी खाने से पेशाब की बीमारी को दूर करने में सहायक होती है.
  4. तोरई की बेल और गाय के दूध या ठंडे पानी में घिसकर रोज सुबह 03 दिनों तक पीने से पथरी गलकर खत्म होने लगती है.
  5. तोरई की बेल गाय के मक्खन में घिसकर 02 से 03 बार चकत्ते पर लगाने से चकत्ते ठीक होने लगते हैं.
  6. तुरई के टुकड़ों को छाया में सुखाने के बाद कूटकर नारियल के तेल में मिलाएं, 04 दिनों तक रखे और फिर इसे उबालें और छानकर बोतल में भर लें.
  7. इस तेल को बालों पर लगाने और इससे सिर की मालिश करने से बाल काले होने लगते है.
  8. कड़वी तोरई को उबाल कर उसके पानी में बैंगन को पका लें और बैंगन को घी में भूनकर गुड़ के साथ भर पेट खाने से दर्द तथा पीड़ा युक्त मस्से झड़ जाते हैं.
  9. कड़वी तोरई के रस में दही का खट्टा पानी मिलाकर पीने से योनिकंद के रोग में लाभ मिलता हैं.
  10. तोरई के पत्तों को पीसकर लेप बना लें और इस लेप को कुष्ठ पर लगाने से लाभ मिलता है.
  11. पालक, मेथी, तोरई, टिण्डा, परवल आदि सब्जियों का सेवन करने से घुटने का दर्द दूर होता है.

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Ridge gourd…

Zucchini or ridge gourd is a vine which is used in making vegetables and in Ayurvedic medicine. Its botanical name is Luffa acutangula. Bitter gourd is also known as “Jhinggi” or “Jhinga” in some states of India. It is grown in the Indian subcontinent. Its plant spreads in the form of a vine (creeper), on which yellow flowers bloom. In its flowers, male and female flowers bloom at different times.

It is of soft dark green color and is not edible when ripe, but due to its hard fiber, it is used for rubbing and cleaning utensils etc. Raw green ridge gourd is rich in vitamins, due to it being highly digestible, people and patients of all ages use it as a nutritious food. According to nutrients it can be compared with Nenue. Vitamin C, carbohydrate, protein, potassium, folate, vitamin A and fiber are found in it. The nature of ridge gourd is cold. Luffa is cultivated mainly during the rainy season. But it can also be planted with Kharif crop. Temperate climate is suitable for the growth of this plant. For ridge gourd cultivation, fertile land rich in organic matter is required. But to get higher yield, it should be cultivated in loamy soil with proper drainage.

Luffa plant is considered to be of temperate climate. Its plants grow well in dry and humid weather. Its plants cannot tolerate the winter season. And grow easily in summer season. Its plants need rain in the beginning itself.

Ayurvedic medicine: –

  1. Eating ridge gourd vegetable relieves the problem of constipation.
  2. Eating ridge gourd vegetable cures piles.
  3. Eating ridge gourd vegetable is helpful in curing urinary diseases.
  4. By rubbing ridge gourd vine and cow’s milk or cold water and drinking it every morning for 3 days, the stones start melting and disappearing.
  5. By rubbing ridge gourd in cow butter and applying it on the rashes 2 to 03 times, the rashes start getting cured.
  6. After drying the ridge gourd pieces in shade, grind them and mix them in coconut oil, keep it for 4 days and then boil it, filter it and fill it in a bottle.
  7. By applying this oil on the hair and massaging the head with it, the hair starts turning black.
  8. Boil the bitter ridge gourd and cook the brinjal in its water and fry the brinjal in ghee and eat it on full stomach with jaggery to get rid of painful and painful warts.
  9. Drinking bitter ridge gourd juice mixed with sour water of curd provides relief in the disease of vagina and vulva.
  10. Make a paste by grinding ridge gourd leaves and applying this paste on leprosy is beneficial.
  11. Consuming vegetables like spinach, fenugreek, ridge gourd, tinda, parwal etc. relieves knee pain.
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