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रिश्तों की बानगी

उम्मीद की किरण

अनन्या ने फैसला किया कि वह चुपचाप बैठकर सब कुछ बिखरते हुए नहीं देख सकती. उसने अपनी माँ से बात की और उन्हें समझाया कि उन्हें अपने भाइयों और बहनों से फिर से जुड़ने की कोशिश करनी चाहिए. रागिनी पहले हिचकिचाईं, लेकिन अनन्या के आग्रह और अपनी पुरानी यादों के कारण वह मान गईं.

अनन्या ने अपनी मौसी, सीमा, को फोन किया जो दिल्ली में रहती थीं. बरसों बाद अपनी बहन की आवाज सुनकर सीमा भावुक हो गईं. अनन्या ने उन्हें उरई आने का न्योता दिया और सीमा ने खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया.

कुछ दिनों बाद, सीमा अनुपमा निवास आईं. उन्हें देखकर सुमित्रा देवी की आँखों में आँसू आ गए और रागिनी ने अपनी बहन को गले लगा लिया. बरसों बाद दो बहनों का मिलन देखकर अनन्या को उम्मीद की एक किरण दिखाई दी.

सीमा के आने से घर का माहौल थोड़ा बदला. पुरानी यादें ताजा हुईं, हँसी-मजाक हुआ और कुछ दिनों के लिए ही सही, अनुपमा निवास फिर से गुलजार हो उठा. अनन्या ने इस मौके का फायदा उठाकर अपने पिता और चाचा के बीच भी बातचीत शुरू कराने की कोशिश की.

यह आसान नहीं था. दोनों भाई अपनी-अपनी बातों पर अड़े रहे और पुरानी शिकायतों को दोहराते रहे. लेकिन अनन्या ने हार नहीं मानी. उसने उन्हें समझाया कि उनके बच्चों को उनके रिश्ते की कीमत चुकानी पड़ रही है और उन्हें कम से कम उनके लिए तो अपने मतभेद भुला देने चाहिए.

एक शाम, अनन्या अपने दादा जी की पुरानी डायरी पढ़ रही थी. उसमें उन्होंने रिश्तों के महत्व और परिवार की एकता पर कई बातें लिखी थीं. एक जगह उन्होंने लिखा था, “परिवार एक बरगद के पेड़ की तरह होता है, जिसकी जड़ें जितनी गहरी होती हैं, वह उतना ही मजबूत होता है. भले ही उसकी शाखाएं अलग-अलग दिशाओं में फैल जाएं, लेकिन वह हमेशा एक ही मिट्टी से जुड़ा रहता है.”

अनन्या को लगा कि उसके दादा जी के ये शब्द आज भी उतने ही सच हैं. उसने वह डायरी अपने पिता और चाचा को दिखाई. दादा जी की बातें पढ़कर दोनों भाई कुछ देर के लिए शांत हो गए.

शेष भाग अगले अंक में…,

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