
गंगा किनारे शहर की हलचल से थोड़ी दूर, एक पुरानी हवेली थी – ‘अनुपमा निवास’. इस हवेली ने कई पीढ़ियों को देखा था, उनके सुख-दुख, उनके बनते-बिगड़ते रिश्तों की गवाह बनी थी. आज, हवेली के आँगन में बैठी थीं दो महिलाएं – दादी माँ, जिनका नाम था सुमित्रा देवी, और उनकी पोती, अनन्या.
सुमित्रा देवी की आँखों में उम्र का अनुभव और ममता का सागर लहरा रहा था. अनन्या, इक्कीस वर्ष की एक आधुनिक युवती थी, जिसके सपनों में नए आसमान थे, लेकिन जिसकी जड़ें अभी भी अपनी दादी माँ और इस पुरानी हवेली से जुड़ी हुई थीं.
साँझ का सुनहरा प्रकाश गंगा के पानी पर नृत्य कर रहा था और हल्की हवा में चंपा के फूलों की भीनी खुशबू घुली हुई थी। अनन्या अपनी दादी माँ के बालों में धीरे-धीरे कंघी कर रही थी.
“दादी माँ,” अनन्या ने कहा, “आपको याद है, जब हम सब यहाँ इकट्ठा होते थे? ताऊ जी, ताई जी, चाचा जी, चाची जी… पूरा घर बच्चों की किलकारियों से गूंजता था.”
सुमित्रा देवी की आँखों में एक क्षण के लिए उदासी की परछाई दिखी. “हाँ बिटिया, वह भी एक जमाना था. रिश्तों की डोर कितनी मजबूत लगती थी तब… जैसे एक ही माला के फूल हों.”
“लेकिन अब… सब कुछ बदल गया है, है ना?” अनन्या ने पूछा। उसके स्वर में एक अनकहा सवाल था।
सुमित्रा देवी ने गहरी साँस ली. “बदलता तो सब है बिटिया। समय की रेत पर किसी के कदमों के निशान हमेशा नहीं रहते. रिश्ते भी ऐसे ही होते हैं – कभी गहरे, कभी हल्के, कभी उलझे हुए.”
अनन्या चुप हो गई. वह जानती थी कि उसकी दादी माँ सिर्फ पुरानी यादों की बात नहीं कर रही थीं. पिछले कुछ वर्षों में, अनुपमा निवास के रिश्तों में कई दरारें आ गई थीं. पारिवारिक व्यवसाय में हुए नुकसान ने भाइयों के बीच कड़वाहट पैदा कर दी थी. छोटी-छोटी बातों पर मनमुटाव इतना बढ़ गया था कि अब त्योहारों पर भी सब एक साथ नहीं आते थे.
अनन्या की अपनी माँ, रागिनी, जो सुमित्रा देवी की बड़ी बहू थीं, अक्सर उदास रहती थीं. उन्हें अपने भाइयों और बहनों की याद आती थी, जो शादी के बाद अलग-अलग शहरों में बस गए थे और जिनसे अब उनका मिलना-जुलना बहुत कम हो गया था.
अनन्या का एक छोटा भाई भी था, आयुष, जो अपनी ही दुनिया में खोया रहता था – वीडियो गेम्स और दोस्तों में. अनन्या को कभी-कभी लगता था कि उनके घर में सब हैं, लेकिन फिर भी एक खालीपन है.
उस शाम, गंगा किनारे बैठी दो पीढ़ियाँ रिश्तों की इसी बानगी पर मौन संवाद कर रही थीं – एक पीढ़ी ने रिश्तों की मजबूती देखी थी और दूसरी पीढ़ी उनकी नाजुकता का अनुभव कर रही थी.