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इतिहास से संबंधित-172.

·         मौर्य विघटन के बाद लम्बे समय तक भारत विभिन्न राजवंशों के अधीन रहा. इस काल में कोई ऐसा राजवंश नहीं हुआ जो भारत को एक शासन के सूत्र में बांध सके.

·         कुषाणों तथा सातवाहनों ने युद्ध में काफी हद तक स्थिरता लेन का प्रयत्न किया. किन्तु वे असफल रहे.

·         कुषाणों के पतन के बाद से लेकर गुप्तों के उदय के पूर्व का काल राजनैतिक दृष्टि से विकेंद्रीकरण तथा विभाजन का काल माना जाता है.

·         इस राजनीतिक संक्रमण को दूर करने के लिए भारत के तीनों कोने से तीन नए राजवंश का उदय हुआ. मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग में नाग शक्ति, दक्कन में वाकाटक तथा पूर्वी भारत में गुप्त वंश के शासक उदित हुए

·         कालांतर में तीनों राजवंश वैवाहिक सम्बन्ध में बांध गए. आपसी द्वंद से अपनीशक्तियों का दमन करके इनोहोने गुप्तों के नेतृत्व में भारत को एक शक्तिशाली शासन प्रदान किया.

·         कुषाणों के उपरांत मध्य भारत का बड़ा हिस्सा मुकुण्डों के आधिपत्य में आया और उन्होंने 250 ई. तक राज्य किया, तत्पश्चात गुप्त शासन का अंत हुआ.

·         ऐतिहासिक अवलोकन के बाद ऐसा प्रतीत होता है की गुप्त लोग कुषाणों के सामंत थे.

·         गुप्त लोगों के जन्म और निवास के बारे में कुछ कहना संभव नहीं है. प्राम्भ में वे भूस्वामी थे और मगध के कुछ हिस्सों पर उनका राजनीतिक अधिकार था.

·         संभवतः गुप्त शासकों के लिए बिहार की अपेक्षा उत्तर प्रदेश अधिक महत्व वाला प्रांत था, क्योंकि आरंभिक गुप्त मुद्राएं और अभिलेख मुख्यतः उत्तर-प्रदेश में पाए जाते हैं.

·         कीर्तिकौमुदी नाटक में लिच्छवियों के मलेच्छ तथा चांदसेन (चन्द्रगुप्त प्रथम) को ‘फारस्कर’ कहा गया है.

·         चंद्र्गोमिन के ‘व्याकरण’ नामक ग्रंथ में युद्धों को जर्ट अर्थात जाट कहा गया है.

·         गुप्तवंशीय लोग धारण गोत्र के थे. इसका उल्लेख चन्द्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त के पूना ताम्रपत्र में मिलता है. उसका पति रुद्रसेन द्वितीय वाकाटक वंश का था, जो वस्तुवृद्धि गोत्र का ब्राह्मण था.

·         स्मृतियों में युद्ध शब्द को वैश्यों से जोड़ा गया है.

·         अभिलेखीय साक्ष्योँ के आधार पर गुप्तों के आदि पुरुष का नाम श्रीगुप्त था. गुप्त वंश का संस्थापक श्रीगुप्त को ही माना जाता है.

·         250 ई०पू० के आसपास श्री गुप्त ने अपने पुत्र घटोत्कच को अपना उत्तराधिकारी बनाया. घटोत्कच ने महाराज की उपाधि धारण की.

·         गुप्त वंशावली मेँ गुप्त वंश के पहले शासक का नाम चंद्रगुप्त प्रथम मिलता है. चंद्रगुप्त प्रथम ने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी.

गुप्त वंश के महत्वपूर्ण शासक

चंद्रगुप्त प्रथम

Ø  चंद्रगुप्त प्रथम को गुप्त वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है.

Ø  गुप्त वंश का महत्वपूर्ण शासक जिसने गुप्त वंश को साम्राज्य की प्रतिष्ठा प्रदान की.

Ø  चन्द्रगुप्त प्रथम का शासन मगध और पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुछ क्षेत्रों (साकेत और प्रयाग) तक सीमित था.

Ø  चांदी के सिक्कोँ का प्रचलन गुप्त वंश मेँ हुआ था.

समुद्रगुप्त

Ø  समुद्रगुप्त गुप्त वंश का सबसे महत्वपूर्ण शासक और यह चन्द्रगुप्त प्रथम का पुत्र था. एक महान साम्राज्य निर्माता भी था. इसने गुप्त साम्राज्य का विस्तार किया.

Ø  आम तौर पर यह माना जाता है की उसने सम्पूर्ण उत्तर भारत पर (आर्यावर्त) प्रत्यक्ष शासन किया.

Ø  समुद्रगुप्त की सामरिक विजयों का विवरण हरिषेण के प्रयाग प्रशस्ति लेख में मिलता है.

Ø  उत्तर भारत के जिन नौ शासकों को समुद्रगुप्त ने पराजित किया था, उनमे अहिच्छत्र के अच्युत, चम्पावती के नागसेन तथा विदिशा के गणपति के नाम प्रमुख हैं.

Ø  समुद्रगुप्त ने दक्षिण  भारत के 12 शासकों को पराजित किया.

Ø  समुद्रगुप्त के समकालीन बांकानरेश मेघवजे ने उसके पर उपहारों सहित एक दूत मंडल भेजा था तथा गया में एक गढ़ बनवाने की अनुमति मांगी थी.

Ø  समुद्रगुप्त विजेता के साथ-साथ कवि, संगीतज्ञ और विद्या का संरक्षक भी था. उसने महान बौद्ध विद्वान् वसुबंधु को संरक्षण भी प्रदान किया था.

Ø  समुद्रगुप्त संगीत प्रेमी था. उसके सिक्कों पर उसे वीणा बजाते भी दिखाया गया है.

Ø  प्रयाग प्रशस्ति के अनुसार समुद्रगुप्त की दिग्विजय का उद्देश्य ‘धरणिबन्ध’ था. उसके द्वारा उत्तर भारत में अपनाई गयी नीति को प्रसभोद्धरण तथा दक्षिणापाठ में ग्रहणमोक्षानुग्रह कहा गया है.

चन्द्रगुप्त द्वितीय ‘विक्रमादित्य’

Ø  समुद्रगुप्त के पश्चात उसका पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय गुप्त साम्राज्य का शासक बना. परन्तु विशाखदत्त कृत देवीचंद्र्गुप्त नामक नाटक में समुद्रगुप्त और चन्द्रगुप्त द्वितीय के बीच एक दुर्बल रामगुप्त शासक के अस्तित्व का भी पता चलता है.

Ø  देवीचंद्र्गुप्त नाटक के अनुसार चन्द्रगुप्त द्वितीय समुद्रगुप्त को पदच्युत करके साम्राज्य के शासन पर बैठा.

Ø  चन्द्रगुप्त द्वितीय ने शकों पर विजय के पश्चात् विक्रमादित्य की उपाधि धारण की. उसकी अन्य उपलब्धियां विक्रमांक और परम्परागत थीं.

Ø  चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य को भारत के महानतम सम्राटों में से एक माना जाता है, उसने अपने साम्राज्य का विस्तार वैवाहिक संबंधों और विजय दोनों से किया.

Ø  दिल्ली स्थित महरौली से प्राप्त लौह स्तंभ से जिस पर ‘चन्द्र’ का उल्लेख मिलता है, चन्द्रगुप्त द्वितीय से सम्बंधित बताया जाता है.

Ø  चन्द्रगुप्त द्वितीय का शासन उसकी विजयों के कारण नहीं बल्कि कला और साहित्य के प्रति उसके अनुराग के कारण विख्यात है.

Ø  चन्द्रगुप्त द्वितीय कला और साहित्य का महँ संरक्षक था. उसके दरबार में विद्वानों की मंडली रहती थी, जिसे नवरत्न कहा जाता था.

Ø  चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय में पाटलिपुत्र और उज्जयिनी विद्या के प्रमुख केंद्र थे. उज्जयिनी विक्रमादित्य की दूसरी राजधानी थी.

Ø  चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में चीनी यात्री फाह्यान भारत आया था. उसने अपने यात्रा वृतान्त में मध्य प्रदेश को ब्राह्मणों का देश कहा है.

Ø  फाह्यान के यात्रा विवरण से चन्द्रगुप्त द्वितीय के काल में शांति पूर्ण और सुखी जीवन की झांकी मिलती है. फाह्यान के अनुसार अतिथि पराजय और दान पराजय हैं. लोगों में धार्मिक सहिष्णुता विद्यमान थी. राज्य की ओर से उनमे किसी प्रकार का हस्तेक्षप नहीं किया जाता था.

Ø  चन्द्रगुप्त द्वितीय का शासन काल कला संस्कृति और धर्म के लिए उन्नति का काल था.

Ø  साहित्यिक विकास की दृष्टि में चन्द्रगुप्त द्वितीय अत्यंत समृद्ध था. कालिदास, अमरसिंह और धनवंत आदि उसके समकालीन थे, जिन्होंने महत्वपूर्ण रचनाओं का सृजन किया. कालिदास, धनवंत, अपसक, अमरसिंह, शंकु, वेताल, भट्ट, घटकपट, वराहमिहिर, वररूचि जैसे विद्वान नवरत्नों में शामिल थे.

कुमारगुप्त 

Ø  चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के बाद कुमारगुप्त साम्राज्य की गद्दी पर बैठा.

Ø  परन्तु कुमारगुप्त से पूर्व एक और शासक का नाम आता है. वह शासक ध्रुवदेवी (रामगुप्त की पत्नी) का पुत्र गोविन्द गुप्त था.

Ø  गुप्त वंशावली के आधार पर अधिकांश इतिहासकार इस मत से सहमत हैं की समुद्रगुप्त के उपरांत कुमारगुप्त की गुप्त वंश का शासक बना.

Ø  कुमारगुप्त के शासनकाल में मध्य काल में मध्य एशिया के देशों की एक शाखा ने बैक्ट्रिया को जीत लिया और उसके बाद हिन्दुकुश के पहाड़ों से हूणों के आक्रमण का खतरा मंडराने लगा. लेकिन उसके शासन काल में गुप्त सम्राज्य हूणों के खतरे से दूर ही रहा.

Ø  स्कंदगुप्त के भीतरी अभिलेखों से पता चलता है की कुमारगुप्त के अंतिम दिनों में गुप्त साम्राज्य पर पुश्य्मित्रों का आक्रमण हुआ. लेकिन उसने अपने पुत्र स्कंदगुप्त की सहायता से साम्राज्य को पुष्यमित्रों से बचा लिया.

Ø  कुमारगुप्त के सिक्कों से पता चलता है कि उसने अश्वमेघ यज्ञ किया. सुव्यवस्थित शासन का वर्णन उसके मंदसौर अभिलेख से मिलता है.

Ø  कुमारगुप्त ने महेंद्रादित्य, श्रीमहेन्द्र और महेंद्र कल्प की उपाधियाँ धारण की थी.

स्कंदगुप्त 

Ø  कुमारगुप्त की मृत्यु के उपरांत उसका पुत्र स्कंदगुप्त गुप्त साम्राज्य का शासक बना.

Ø  स्कंदगुप्त गुप्तवंश का अंतिम महत्वपूर्ण शासक था. वह एक वीर और पराक्रमी योद्धा था.

Ø  इसके शासनकाल में हूणों (मलेच्छों) का आक्रमण हुआ, लेकिन उसने अपने पराक्रम से हूणों को पराजित कर साम्राज्य की प्रतिष्ठा स्थापित की.

Ø  हूणों पर स्कंदगुप्त की सफलता का उल्लेख जूनागढ़ अभिलेख से मिलता है.

Ø  स्कंदगुप्त का साम्राज्य कठियावाड़ से बंगाल तक सम्पूर्ण उत्तरी भारत में फैला हुआ था। पश्चिम में सौराष्ट्र, कैम्बे, गुजरात तथा मालवा के भाग सम्मिलित थे.

Ø  स्कंदगुप्त एक योग्य सैन्य संचालक होने के साथ ही एक कुशल प्रशासक भी था. उसने 466 ई. में चीनी सम्राट के दरबार में एक राजदूत भेजा. इसके उसके सुदूर चीन के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों का भी पता चलता है.

Ø  इसने सौ राजाओं के स्वामी की भी उपाधि धारण की.

Ø  प्रशासनिक सुविधा को ध्यान में रखते हुए उसने अपनी राजधानी को अयोध्या स्थनान्तरित किया.

Ø  इसके शासन काल में आन्तरिक समस्याएं गठित होने लगीं. सामंत अपने अधिकारों के प्रति जागरूक हो गए थे. फिर भी वह गुप्त साम्राज्य की शक्ति और प्रतिष्ठा कायम रखने में सफल रहा.

Ø  स्कंदगुप्त को कहौम स्तंभ लेख में ‘शक्रादित्य’ आर्यगंजु श्री मूल कल्प में ‘देवरॉय’ तथा जूनागढ़ अभिलेख में ‘श्री परिक्षिपृवआ’ कहा गया है.

Ø  स्कंदगुप्त ने सुदर्श झील के पुनरुद्धार का कार्य सौराष्ट्र के गवर्नर पर्यदत्त के पुत्र पत्रपालित को सौंपा था.

Ø  स्कंदगुप्त गुप्त साम्राज्य का अंतिम महत्वपूर्ण शासक था. इसकी मृत्यु के बाद अनेक शासकों ने शासन किया लेकिन उसमे सबसे अधिक शक्तिशाली शासक बुद्धगुप्त हुआ.

Ø  परवर्ती शासकों की कमजोरी का लाभ उठाकर एक ओर सामंतों ने सर उठाना शुरू किया, दूसरी ओर हूणों के आक्रमण ने गुप्तों की शक्ति को इतना कम कर दिया की स्कंदगुप्त के बाद गुप्त साम्राज्य को कायम नहीं रखा जा सका.

राजनीतिक व्यवस्था

o   गुप्तों का शासन राजतंत्रात्मक व्यवस्था पर आधारित था. शासन का सर्वोच्च अधिकारी सम्राट था.

o   सम्राट व्यवस्थापिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका तीनों का प्रमुख था.

o   गुप्त काल में दैवीय उत्पत्ति का सिद्धांत मान्य था, परन्तु यह पूर्वकाल की तरह लोकप्रिय नहीं रह गया था.

o   राजपद वंशानुगत था, परन्तु राजकीय सत्ता ज्येष्ठाधिकार की प्रथा के आभाव के कारण सीमित थी.

o   गुप्तों की शासन व्यवस्था पूर्णतया मौलिक नहीं थी. उसमें मौर्यों, सातवाहनों, शकों तथा कुषाणों के प्रशासन की विधियों का समावेश था.

केन्द्रीय प्रशासन 

o   केन्द्रीय प्रशासन का जो नियंत्रण मौर्य काल में देखने को मिलता है, वह गुप्त काल में नहीं मिलता है.

o   राजा की सहायता के लिए केन्द्रीय स्तर पर मंत्री और अमात्य होते थे.

o   मंत्रियों का चयन उनकी योग्यता के आधार पर किया जाता था.

o   कामन्दक और कालिदास दोनों ने मंत्रिमंडल या मंत्रिपरिषद का उल्लेख किया है.

o   कामन्दक नीतिसार में मंत्रियों और अमात्यों के बीच के अंतर को स्पष्ट किया गया है.

o   कात्यायन स्मृति में इस बात पर जोर दिया गया है कि अमात्यों की नियुक्ति ब्राह्मण वर्ग में होनी चाहिए.

o   गुप्त साम्राज्य के सबसे बड़े अधिकारी कुमारामात्य होते थे.

o   सम्राट द्वारा जो क्षेत्र स्वयं शासित होता था. उसकी सबसे बड़ी प्रादेशिक इकाई देश थी. देश के प्रशासक को ‘गोप्ता’ कहा जाता था. जूनागढ़ अभिलेख में में सौराष्ट्र को एक ‘देश’ कहा गया है.

o   साम्राज्य का केन्द्रीय प्रशासन अनेक विभागों में विभक्त था, जिसका उत्तरदायित्व विभिन्न अधिकारीयों को सौंपा गया था.

o   केन्द्रीय शासन के विविध विभागों को ‘अधिकरण’ कहा जाता था. प्रत्येक अधिकरण की अपनी मुद्रा होती थी. केन्द्रीय अधिकारियों को नकद वेतन दिया जाता था.

प्रांतीय शासन

o   शासन की सुविधा के लिए गुप्त साम्राज्य को विभिन्न प्रान्तों में विभाजित किया गया था, जिन्हें ‘मुक्ति’ कहा जाता था.

o   प्रांतीय शासकों की नियुक्ति सम्राट द्वारा की जाती थी, जिन्हें उपरिक, गोप्ता, मोगपति तथा राजस्थानीय कहा जाता था.

o   प्रांतीय शासन के समस्त कार्यों का उत्तरदायित्व प्रांतीय शासक पर होता था. उनके उत्तरदायित्व केंद्र के शासकीय पदाधिकारियों के सामानांतर थे.

o   उप्रिकों की नियुक्ति सम्राट द्वारा की जाती थी. इस पद पर राजदुल के कुमारों की नियुक्ति की जाती थी.

o   प्रांतीय शासन के कई अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों का भी उल्लेख मिलता है.‘बलाधिक- राजिक’ सैनिक कोष का अधिकारी था.

o   ‘विनयस्थिति स्थापक’ विधि एवं व्यवस्था मंत्री था. ‘अटाश्वपति’ पैदल और घुडसवार सेना का अधिपति था. जबकि ‘महापिल्लुपति’ हाथी सेना का अधिकारी था

 

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