
विक्रम की ईमानदारी और शांत स्वभाव ने धीरे-धीरे आसपास के व्यापारियों का दिल जीत लिया था. उन्हें रमेश की दादागिरी पसंद नहीं थी और वे विक्रम के साथ सहानुभूति रखते थे. उन्होंने विक्रम को आर्थिक रूप से मदद करने की पेशकश की और उसकी दुकान को फिर से व्यवस्थित करने में सहायता की.
सबसे अप्रत्याशित मदद उसे गोविंद से मिली. गोविंद उसी गली का एक पुराना और सम्मानित व्यापारी था. उसने कभी किसी के झगड़े में दखल नहीं दिया था, लेकिन विक्रम के साथ हुई नाइंसाफी देखकर वह चुप नहीं रह सका. गोविंद ने न केवल विक्रम को आर्थिक सहायता दी, बल्कि रमेश को भी सीधे तौर पर चेतावनी दी कि अगर उसने फिर से विक्रम को परेशान किया तो वह चुप नहीं बैठेगा.
गोविंद का हस्तक्षेप रमेश के लिए एक बड़ा झटका था. वह जानता था कि गोविंद का इलाके में अच्छा खासा प्रभाव है और उससे दुश्मनी मोल लेना महंगा पड़ सकता है. रमेश पहली बार अपनी रणनीति पर संदेह करने लगा. उसकी सीधी और ताकतवर नीति यहाँ काम नहीं आ रही थी.
विक्रम ने गोविंद का आभार व्यक्त किया, लेकिन वह जानता था कि यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है. रमेश एक जिद्दी इंसान था और वह आसानी से हार नहीं मानेगा. विक्रम को अपनी ‘रंकनीति’ को और भी सूक्ष्म और प्रभावी बनाना होगा. उसे न केवल अपनी दुकान बचानी थी, बल्कि रमेश की अन्यायपूर्ण हरकतों का भी मुकाबला करना था.
शेष भाग अगले अंक में…,