
काशीपुर के छोटे से गाँव में, जहाँ गंगा नदी शांत बहती थी, दो मित्र रहते थे: रमन और करण. रमन, एक गरीब किसान का बेटा, अपनी बुद्धिमत्ता और त्वरित सोच के लिए जाना जाता था. करण, गाँव के जमींदार का पुत्र, अपनी शक्ति और दृढ़ संकल्प के लिए प्रसिद्ध था. दोनों में एक बात समान थी: उन्हें शतरंज खेलना बहुत पसंद था.
गाँव के पुराने पीपल के पेड़ के नीचे, वे घंटों शतरंज खेलते थे. रमन, अपनी सीमित संसाधनों के बावजूद, हमेशा करण को कड़ी टक्कर देता था. उसकी चालें अप्रत्याशित होती थीं, अक्सर सीधे आक्रमण के बजाय बचाव और धैर्य पर आधारित होती थीं. गाँव के लोग इसे “रंकनीति” कहते थे – एक गरीब आदमी की रणनीति, जो सीमित साधनों में भी जीत हासिल करने का रास्ता खोज लेती है.
करण की रणनीति इसके विपरीत थी. वह हमेशा आक्रामक शुरुआत करता, अपने मोहरों को तेजी से आगे बढ़ाता और अपने प्रतिद्वंद्वी पर दबाव बनाता. उसकी रणनीति उसकी शक्ति और आत्मविश्वास को दर्शाती थी.
एक दोपहर, जब वे खेल रहे थे, गाँव के एक बुजुर्ग ने कहा, “रमन की चालें रंकनीति का उदाहरण हैं. वह जानता है कि उसके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है, इसलिए वह जोखिम लेने से नहीं डरता. वहीं, करण की रणनीति उसकी संपत्ति और शक्ति को दर्शाती है. वह सोचता है कि वह अपनी ताकत से ही जीत जाएगा.”
रमन ने मुस्कुराकर कहा, “शतरंज जीवन की तरह है, दादाजी. कभी-कभी आपके पास बहुत कुछ होता है, और कभी-कभी बहुत कम. महत्वपूर्ण यह है कि आप अपने पास जो कुछ भी है, उसका सबसे अच्छा उपयोग कैसे करते हैं.”
करण ने सहमति में सिर हिलाया, हालांकि उसके मन में रमन की बातें कहीं न कहीं खटक रही थीं. वह हमेशा मानता था कि शक्ति ही सफलता की कुंजी है.
शेष भाग अगले अंक में…,