रमा एकादशी…
एक भक्त ने महाराज जी के चरणों में निवेदन करते हुए कहा कि, महाराज जी कोई ऐसा उपाय बताइए की जिससे बड़े-बड़े पापों का शमन हो जाय. वाल व्यास सुमनजी महाराज कहते हैं कि, कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी जिसे रंभा या रमा एकादशी कहते हैं. महाराज जी कहते हैं कि, भारतीय संस्कृति में समय की गणना की पद्धति चंद्रमा की गति पर आधारित है जबकि, पश्चमी देशों में समय की गणना सौर गति से होती है. कार्तिक का महीना बड़ा ही पावन और पवित्र महीना होता है. हिन्दू पंचांग के अनुसार, वर्ष का आठवां महीना होता है. इस महीने का वर्णन स्कंद पुराण, नारद पुराण और पद्म पुराण में भी मिलता है. कार्तिक के महीने को ‘दामोदर मास’ भी कहा जाता है.
वाल व्यास सुमनजी महाराज कहते हैं कि, इस महीने में वृंदा ( तुलसी ) की पूजा का भी बड़ा ही महत्व होता है. कार्तिक के इस पावन और पवित्र महीने को मानव का मोक्ष ‘द्वार’ भी कहा जाता है. महाराजजी कहते है कि, एक बार ‘श्यामसुंदर’ से ‘राजा युधिष्ठिर’ ने यही सवाल पूछा था, तब यशोदानंदन ने कहा कि, हे युधिष्ठिर कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को ‘रंभा एकादशी’ कहते हैं, जो बड़े-बड़े पापों को नाश करने वाली है, इस रंभा एकादशी का व्रत पूरी निष्ठा से की जाय तो पापों का ही नाश हो जाता है.
महाराजजी कहते हैं कि, कार्तिक महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी जिसे रंभा या रमा एकादशी कहते हैं, इस एकादशी को करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं. इस एकादशी का कथा सुनने से वाजपेय यज्ञ के समान फल प्राप्त होता है. वर्तमान समय में मानव भौतिक सुखों के लिए दुखी: रहता है, जिन व्यक्तियों को भौतिक सुख की प्रबल इच्छा होती है, उन्हें रंभा एकादशी का व्रत अवश्य ही करना चाहिए. महाराजजी कहते हैं कि, कमलनयन श्यामसुन्दर ने स्वंय ही कहा है कि, जो मनुष्य श्रद्धा-भाव से एकादशी के दिन मेरी पूजा करता है, उस पर मेरी कृपा सदैव बरसती है.
पूजन सामाग्री : –
बेदी, कलश, सप्तधान, पंच पल्लव, रोली, गोपी चन्दन, गंगा जल, दूध, दही, गाय के घी का दीपक, सुपाड़ी, शहद, पंचामृत, मोगरे की अगरबत्ती, ऋतू फल, फुल, आंवला, अनार, लौंग, नारियल, नीबूं, नवैध, केला और तुलसी पत्र व मंजरी.
एकादशी व्रतविधि: –
अगर आपको एकादशी व्रत करना हो तो आपको, एकादशी व्रत के नियम का पालन दशमी तिथि से ही करना चाहिए. दशमी के दिन स्नान-ध्यान, भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद भोजन करना चाहिए, लेकिन भोजन शुद्ध व शाकाहारी होना चाहिए, ”ध्यान रखें कि लहसुन, प्याज और तामसिक भोजन का त्याग करना चाहिए”. एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठें, स्नान आदि से निवृत होकर भगवान विष्णु की पूजा फल, फूल, धुप-दीप, अक्षत, दूर्वा और पंचामृत से करें. व्रत के दिन निराहार उपवास रखे, तथा संध्या में आरती करने के बाद फलाहार करें, साथ ही रात्री में जागरण अवश्य करें. दुसरे दिन द्वादशी के दिन स्नान आदि से निवृत होकर पूजा-अर्चना करें, उसके बाद अपने सामर्थ्य अनुसार ब्राह्मणों को भोजन करवाए और दान दें, उसके बाद व्रती को भोजन करना चाहिए.
अवश्य त्याग करें: –
मधुर स्वर के लिए गुड़ का, दीर्घायु अथवा पुत्र-पौत्रादि की प्राप्ति के लिए तेल का, शत्रुनाशादि के लिए कड़वे तेल का, सौभाग्य के लिए मीठे तेल का, स्वर्ग प्राप्ति के लिए पुष्पादि भोगों का, प्रभु शयन के दिनों में सभी प्रकार के मांगलिक कार्य जहाँ तक हो सके नहीं करना चाहिए. पलंग पर सोना, पत्नी का संग करना, झूठ बोलना, मांस, शहद और दूसरे का दिया दही-भात आदि, भोजन करना, मूली, पटोल एवं बैंगन आदि का भी त्याग कर देना चाहिए.
कथा: –
प्राचीन काल में मुकुंद नामक एक धर्मात्मा और दानी राजा थे, प्रजा उन्हें भगवान के तुल्य मानती थी. राजा मुकुंद वैष्णव सम्प्रदाय को मानते थे, और नियमित श्रद्धा-पूर्वक भगवान विष्णु जी का पूजन किया करते थे. राजा के भक्ति से प्रभावित होकर प्रजा भी एकादशी का व्रत करने लगी. कुछ समय पश्चात राजा के घर एक पुत्री का जन्म हुआ, जो अत्यंत शील और गुणवान थी. राजा ने अपनी पुत्री का नाम चन्द्रभागा रखा, धीरे-धीरे समय के साथ चन्द्रभागा बड़ी हो गई, उसके बाद राजा ने चन्द्रभागा का विवाह राजा चंद्रसेन के पुत्र शोभन से कर दी. चन्द्रभागा अपने पति के साथ ससुराल में रहने लगी. विवाह के पश्चात प्रथम एकादशी को चन्द्रभागा अपने पति को भी एकादशी व्रत करने को कहती है. शोभन की अति हठ के परिणाम स्वरूप शोभन भी एकादशी व्रत का उपवास करता है, परन्तु एकादशी तिथि के मध्य काल में शोभन को भूख लग जाती है, और शोभन भूख से व्याकुल हो तड़पने लगता है, कुछ समय बाद ही शोभन की मृत्यु हो जाती है.
मृत्यु के बाद शोभन मंदराचल पर्वत पर स्थित देवनगरी राज का राजा बनता है. देवनगरी में राजा शोभन की सेवा हेतु अनेक अप्सराएं उपस्थित रहती थी. चन्द्रभागा अपने पति की मृत्यु के बाद भी एकादशी व्रत को श्रद्धा-पूर्वक करती रही. एक दिन राजा मुकुंद अपने सैनिको के साथ देवनगरी भ्रमण को जाते है, और देवनगरी में शोभन को देखकर राजा मुकुंद अति प्रसन्न होते है. देवनागरी से लौटने के पश्चात राजा मुकुंद अपनी पुत्री और रानी को राजा शोभन के बारें में सारी बात बताते है. चन्द्रभागा पति का समाचार सुनकर मंदराचल पर्वत पर स्थित देवनगरी जाकर अपने पति के साथ सुख पूर्वक रहने लगती है.
प्राणियों के परम लक्ष्य, भगवद भक्ति, को प्राप्त करने में सहायक होती है एकादशी. इस दिन प्रभु की पूर्ण श्रद्धा- भक्ति से सेवा करनी करनी चाहिए. इस दिन व्यक्ति इच्छाओं से मुक्त हो कर यदि शुद्ध मन से भगवान की भक्तिमयी सेवा करता है तो वह अवश्य ही कमलनयन श्यामसुन्दर मुरली-मनोहर का कृपापात्र बनता है.
ध्यान दें…. एकादशी की रात्री को जागरण अवश्य ही करना चाहिए, दुसरे दिन द्वादशी के दिन सुबह ब्राह्मणों को अन्न दान व दक्षिणा देकर इस व्रत को संपन्न करना चाहिए.
एकादशी का फल: –
एकादशी प्राणियों के परम लक्ष्य, भगवद भक्ति, को प्राप्त करने में सहायक होती है. यह दिन प्रभु की पूर्ण श्रद्धा से सेवा करने के लिए अति शुभकारी एवं फलदायक माना गया है. इस दिन व्यक्ति इच्छाओं से मुक्त हो कर यदि शुद्ध मन से भगवान की भक्तिमयी सेवा करता है तो वह अवश्य ही प्रभु की कृपापात्र बनता है.
वाल व्यास सुमनजी महाराज,
महात्मा भवन, श्रीराम-जानकी मंदिर,
राम कोट, अयोध्या. 8709142129.