
स्वतंत्र प्रेस समाज और राष्ट्र का आईना: प्रो. गौरी शंकर
“पत्रकारिता का धर्म है सच कहना, चाहे कितनी भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े। सच की आवाज को दबाया जा सकता है, पर मिटाया नहीं”
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विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राजकीय महिला डिग्री कॉलेज जमुई में “समाज और लोकतंत्र के विकास में स्वतंत्र प्रेस की भूमिका” विषय पर एक परिचर्चा आयोजित की गई, जिसकी अध्यक्षता अर्थशास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ. गौरी शंकर पासवान ने की.
अपने अध्यक्षीय प्रबोधन में अर्थशास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ. (प्रो.) गौरी शंकर पासवान ने कहा कि प्रत्येक वर्ष 3 मई को विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है. स्वतंत्र प्रेस की लाभ और खूबियों के मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र की आम सभा ने वर्ष 1993 में आज ही के दिन 3 मई को स्वतंत्र प्रेस दिवस मनाने की घोषणा की थी. उन्होंने कहा कि, स्वतंत्रता किसी भी देश की आत्मा होती है. स्वतंत्रता निष्पक्षता और निर्भीकता प्रेस की प्राण हैं. यदि प्रेस स्वतंत्रता नहीं होता, तो लोकतंत्र एक मात्र दिखावा भर रह जाता. इसलिए हम सभी का प्रेस जैसे लोकतंत्र के चौथे पिलर को सुरक्षित रखना दायित्व बनता है. स्वतंत्र प्रेस समाज और देश का आईना है, जो सत्ता के चेहरे से नकाब हटाता है. प्रेस की स्वतंत्रता ही जनता की स्वतंत्रता की गारंटी है. पत्रकारिता का धर्म है सच कहना चाहे कितनी भी कीमत क्यों चुकानी पड़े. चुकि सच की आवाज को दबाया जा सकता है लेकिन मिटाया नहीं. प्रेस स्वतंत्रता दिवस प्रेस स्वतंत्रता के महत्व को रेखांकित करता है, जो किसी लोकतंत्र की रीढ़ होती है. प्रेस वह कला है जो ताकतवरों से सवाल करना सिखाती है और आम जनों को आवाज देती है. कहते हैं कि जब देश की संसद सोती है, तो कलम जागती है. एक स्वतंत्र पत्रकार सत्ता के झूठ का पर्दाफाश करता है और आम जनता को सच से जोड़ता है. किसी ने ठीक ही कहा है कि “जमीं लूट लेंगे जहां लूट लेंगे, मुर्दे के सिर का कफन लूट लेंगे. कलम के सिपाही अगर सो गए, तो वतन के ये नेता वतन लूट लेंगे. उन्होंने कहा कि महर्षि नारद सूचना के पहले वाहक, संवाददाता और पत्रकार थे. क्योंकि नारद देवलोक, पृथ्वीलोक व पाताललोक में होने वाली घटनाओं की जानकारी और सूचना ग्रहण कर ब्रह्मा, विष्णु और अन्य देवताओं को आदान-प्रदान करते थे. वैदिक काल के हिंदू धर्म ग्रंथो में देव और असूरों के बीच संवाद का सेतु, सच्चाई के वाहक और ज्ञान के प्रचारक के रूप में माना गया है. नारद का अर्थ ही होता है ज्ञान दाता या ज्ञान प्रसारक.
राजनीतिक विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. देवेंद्र कुमार गोयल ने कहा कि प्रेस लोक तंत्र का प्रहरी होता है. इसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी कहते हैं. भारत में संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a ) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दी गई है, जिसमें प्रेस की स्वतंत्रता भी निहित है. हाल के वर्षों में भारत की रैंकिंग विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में गिरना न केवल खबर पालिका बल्कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका तथा समाज के लिए भी चेतावनी व चिंताजनक है. प्रेस की भूमिका समाज और राष्ट्र के निर्माण में महत्वपूर्ण है.
गणित विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ उदय नारायण घोष ने कहा कि पत्रकारों को कानूनी सुरक्षा दी जानी चाहिए. कहते हैं कि जब पत्रकार की कलम झुकती है, तो लोकतंत्र गिरता है. जहां कलम कैद और प्रतिबंधित हैं, वहां विचार मृतप्राय हैं. जहां कलम स्वतंत्र है, वहां विचार जीवंत हैं.
मनोविज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रो. रणविजय सिंह ने कहा कि भारतीय प्रेस देश की धरोहर है. भारत में प्रेस पर सरकार का सीधा नियंत्रण है. इसलिए भारत में दूसरे देशों की अपेक्षा प्रेस को अधिक आजादी है. लेकिन चीन, जर्मनी, जापान, पाकिस्तान जैसे देशों में प्रेस को पूर्णत: आजादी नहीं है. प्रेस की स्वतंत्रता को नागरिकों के मूल अधिकार का दर्जा दिया गया है. यह दिवस उन मीडिया कर्मियों और पत्रकारों में सुरक्षा की भावना भरता है और उनसे सही सूचना छापने की गुहार लगाता है.
इतिहास के विभागाध्यक्ष डॉ सत्यार्थ प्रकाश ने कहा कि स्वतंत्र प्रेस दिवस एक जन चेतना दिवस है, जो यह बताता है कि छपाई खेल नहीं, बल्कि सच्चाई के निहितार्थ सूचना है, जो ज्ञान और विकास की नींव है. इतिहास गवाह है की मीडिया की भूमिका आजादी की लड़ाई से लेकर स्वतंत्र भारत में महत्वपूर्ण रही है.
भौतिक विज्ञान के विभागाध्यक्ष डॉ विनीता मोंडल ने कहा प्रेस या मीडिया केवल सूचना प्रदाता ही नहीं बल्कि जनमत का निर्माता है. प्रिंट मीडिया हो या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया देश निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है. जूलॉजी के विभागाध्यक्ष डॉ. दीपक कुमार ने कहा कि मीडिया लोकतंत्र का एक मजबूत स्तंभ है. मीडिया का राष्ट्र निर्माण में योगदान और विकास सराहनीय है. मीडिया जनता की आवाज को उठती है. इसे नीर-क्षीर विवेकी कहा जाता है. अतः उसे स्वतंत्रता, निष्पक्षता पूर्वक कार्य करना चाहिए.
इस मौके पर असिस्टेंट प्रोफेसर सफे दानिश ने प्रेस स्वतंत्रता को मीडिया का विशेष अधिकार बताया. प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया यदि नहीं होते तो भ्रटाचार, हवाला व घोटालों का पर्दाफाश नहीं होते और सच दफन हो जाते.
प्रभाकर कुमार(जमुई).