
व्यक्ति विशेष -625.
वैज्ञानिक ज्ञान चंद्र घोष
ज्ञानचंद्र घोष भारत के एक प्रख्यात रसायनज्ञ थे, जिन्हें भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान, औद्योगिक विकास और प्रौद्योगिकी शिक्षा के विकास में उनके अमूल्य योगदान के लिए जाना जाता है.
ज्ञान चंद्र घोष का जन्म 14 सितम्बर 1894 को पश्चिम बंगाल के पुरुलिया नामक स्थान पर हुआ था. उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज, कलकत्ता से रसायन विज्ञान में एमएससी किया और कलकत्ता विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की.
ज्ञानचंद्र घोष ने कई वर्षों तक कलकत्ता विश्वविद्यालय में पढ़ाया और छात्रों को रसायन विज्ञान के क्षेत्र में प्रेरित किया. उन्होंने रसायन विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय शोध कार्य किया. उन्होंने भारत में रासायनिक उद्योग के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे कई वैज्ञानिक संस्थाओं के संस्थापक और सदस्य रहे. उन्होंने औद्योगिक अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की.
ज्ञानचंद्र घोष का निधन 21 जनवरी, 1959 को हुआ था. ज्ञानचंद्र घोष ने भारत में विज्ञान के क्षेत्र में एक अमूल्य योगदान दिया. उनकी विरासत आज भी प्रासंगिक है और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है.
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फ़िल्म निर्देशक गोपालदास परमानंद सिप्पी
गोपालदास परमानंद सिप्पी, जिन्हें आमतौर पर जी.पी. सिप्पी के नाम से जाना जाता है, एक प्रसिद्ध भारतीय फ़िल्म निर्देशक और निर्माता थे. उनका जन्म 14 सितंबर 1914 को हुआ था और वे हिंदी सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित निर्देशकों और निर्माताओं में से एक माने जाते हैं. उन्हें बॉलीवुड में कुछ बेहद लोकप्रिय और सफल फ़िल्मों के निर्माण और निर्देशन के लिए जाना जाता है.
जी.पी. सिप्पी का सबसे बड़ा योगदान 1975 की “शोले” फ़िल्म थी, जिसे आज भी भारतीय सिनेमा की सबसे बड़ी और आइकॉनिक फ़िल्मों में से एक माना जाता है. इस फ़िल्म का निर्देशन उनके बेटे रमेश सिप्पी ने किया था, लेकिन जी.पी. सिप्पी इसके निर्माता थे. “शोले” ने भारतीय सिनेमा में एक नया मील का पत्थर स्थापित किया और इसे आज भी एक क्लासिक माना जाता है.
फ़िल्में : – साज़ और आवाज़ (1966), अंदाज़ (1971), सत्ते पे सत्ता (1982). उन्होंने अपने फ़िल्मी कैरियर में कई बेहतरीन फ़िल्मों का निर्माण किया और भारतीय सिनेमा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
रमेश सिप्पी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा से लेकर स्नातक की पढ़ाई बंबई विश्वविद्यालय से की थी. रमेश सिप्पी ने दो शादियां की हैं. उनकी दूसरी पत्नी अभिनेत्री किरण जुनेजा है, उनके दो बच्चे हैं, रोहन कपूर जो कि फ़िल्म निर्माता निर्देशक हैं. उनकी एक बेटी हैं शीना कपूर उनकी शादी शशि कपूर के बेटे कुणाल कपूर से हुई है.
रमेश सिप्पी का निधन 25 दिसम्बर 2007)को हुआ था लेकिन, उनकी विरासत और योगदान को भारतीय सिनेमा में बड़े सम्मान के साथ याद किया जाता है.
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भूतपूर्व केन्द्रीय कानून मंत्री राम जेठमलानी
राम जेठमलानी (1923-2019) एक प्रसिद्ध भारतीय वकील, राजनीतिज्ञ और भूतपूर्व केंद्रीय कानून मंत्री थे. उन्हें भारतीय न्यायिक प्रणाली में सबसे तेज-तर्रार और विवादास्पद वकीलों में से एक माना जाता था. उनका कानूनी कैरियर लगभग सात दशकों तक फैला रहा, और उन्होंने कई हाई-प्रोफाइल मामलों में अपना प्रभावशाली कौशल दिखाया.
राम जेठमलानी का जन्म 14 सितंबर 1923 को सिंध (अब पाकिस्तान) के शिकारपुर में हुआ था. उन्होंने बहुत कम उम्र में कानून की पढ़ाई पूरी की, और 17 साल की उम्र में कानून की डिग्री प्राप्त की. भारत के विभाजन के बाद जेठमलानी भारत आए और यहां उन्होंने वकालत शुरू की. वे प्रमुख आपराधिक मामलों में अपनी प्रभावशाली वकालत के लिए प्रसिद्ध हुए. उनका कानूनी कैरियर उन्हें भारत के सबसे महंगे और सफल वकीलों में से एक बन गये.
राम जेठमलानी ने कई हाई-प्रोफाइल आपराधिक मामलों में वकालत की, जिनमें राजनीतिक और सामाजिक रूप से संवेदनशील मुद्दे शामिल थे. वे भारतीय न्यायपालिका के सबसे प्रमुख और अनुभवी वकीलों में गिने जाते थे. उन्होंने कई महत्वपूर्ण मामलों में अभियुक्तों का बचाव किया, जो जनता और मीडिया में अत्यधिक चर्चा का विषय बने.
जेठमलानी न केवल एक वकील थे, बल्कि उन्होंने भारतीय राजनीति में भी अहम भूमिका निभाई. उन्होंने कई बार लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य के रूप में कार्य किया. वे भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से जुड़े रहे और कुछ समय तक अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय कानून मंत्री भी रहे. वे वर्ष 1996 और वर्ष 1998-2000 तक कानून मंत्री और शहरी विकास मंत्री रहे. जेठमलानी ने राजनीति में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया और कई बार बीजेपी और अन्य राजनीतिक दलों के साथ जुड़े रहे.
जेठमलानी अपनी बेबाकी और स्पष्टवादिता के लिए प्रसिद्ध थे. वे अक्सर अपने बयानों और विवादित विचारों के कारण सुर्खियों में रहते थे, चाहे वह राजनीतिक हों या कानूनी मुद्दे.
राम जेठमलानी का व्यक्तित्व बेहद प्रभावशाली था, और वे एक ऐसे व्यक्ति के रूप में याद किए जाते हैं, जिन्होंने अपने जीवन में बड़ी मेहनत और आत्मविश्वास से सफलता प्राप्त की.08 सितंबर 2019 को उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी कानूनी और राजनीतिक विरासत आज भी भारतीय समाज में गहरी छाप छोड़ती है.
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फिल्म निर्माता राजकुमार कोहली
राजकुमार कोहली एक भारतीय फ़िल्म निर्माता और निर्देशक हैं, जो मुख्य रूप से वर्ष 1970 – 80 के दशकों में अपनी मल्टीस्टारर और हॉरर थ्रिलर फ़िल्मों के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने बॉलीवुड में कई हिट फ़िल्में दीं, जिनमें बड़े सितारों और रोमांचक कहानियों का मिश्रण होता था. कोहली की फ़िल्में आमतौर पर बड़े पैमाने पर बनाई जाती थीं और दर्शकों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय होती थीं. उनका जन्म 14 सितंबर 1930. लाहौर , पंजाब , ब्रिटिश भारत (वर्तमान लाहौर, पाकिस्तान) में हुआ था.
प्रमुख फ़िल्में: –
नागिन (1976): – राजकुमार कोहली की यह फ़िल्म सबसे सफल और यादगार फ़िल्मों में से एक मानी जाती है. इस फ़िल्म में रीना रॉय, फिरोज़ ख़ान, सुनील दत्त, जीतेंद्र और संजय ख़ान जैसे बड़े सितारे थे. यह फ़िल्म एक इच्छाधारी नागिन की कहानी पर आधारित थी और बॉक्स ऑफिस पर बड़ी हिट साबित हुई.
जानी दुश्मन (1979): – यह एक मल्टीस्टारर हॉरर फ़िल्म थी, जिसमें कई बड़े अभिनेता जैसे संजीव कुमार, धर्मेंद्र, जीतेंद्र, सुनील दत्त और शत्रुघ्न सिन्हा थे. फ़िल्म में एक राक्षस की कहानी थी, जो शादी के दिन दुल्हनों को मार देता है. “जानी दुश्मन” अपने समय की सबसे चर्चित और लोकप्रिय फ़िल्मों में से एक रही.
बेताज बादशाह (1994): – इस फ़िल्म में रजनीकांत, जुही चावला और प्रेम चोपड़ा प्रमुख भूमिकाओं में थे. हालांकि यह फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर उतनी सफल नहीं रही, लेकिन इसे राजकुमार कोहली की उल्लेखनीय फ़िल्मों में गिना जाता है.
राज तिलक (1984): – यह एक ऐतिहासिक ड्रामा फ़िल्म थी, जिसमें धर्मेंद्र, हेमा मालिनी, राजकुमार, रीना रॉय और सुनील दत्त जैसे सितारे थे. यह भी एक मल्टीस्टारर फ़िल्म थी, जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया.
कुली नं. 1 (1991): – इस फ़िल्म में गोविंदा और करिश्मा कपूर मुख्य भूमिकाओं में थे. यह फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल रही और गोविंदा की कॉमेडी और अभिनय के लिए सराही गई.
राजकुमार कोहली को उनके द्वारा बनाई गई मल्टीस्टारर और हॉरर थ्रिलर फ़िल्मों के लिए जाना जाता है. उनकी फ़िल्में अक्सर बड़ी कास्ट, विचित्र कथानक और रहस्य से भरी होती थीं, जो दर्शकों के बीच अत्यधिक लोकप्रिय रहती थीं. कोहली की फ़िल्मों में एक खास तरह का मेलोड्रामा, सस्पेंस, और एक्शन का मिश्रण होता था, जो वर्ष 70 – 80 के दशक के सिनेमा की विशेषता थी.
राजकुमार कोहली के बेटे, अर्जुन कोहली, भी एक अभिनेता हैं, जिन्होंने अपने पिता की कुछ फ़िल्मों में काम किया. हालाँकि, अर्जुन कोहली का कैरियर उतना सफल नहीं रहा, लेकिन राजकुमार कोहली के निर्देशन और फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा.
राजकुमार कोहली का निधन 24 नवंबर 2023 को मुंबई में हुआ था. उनका योगदान हिंदी सिनेमा में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है, विशेषकर हॉरर और मल्टीस्टारर फ़िल्मों के संदर्भ में. उनकी फ़िल्में आज भी बॉलीवुड के क्लासिक दौर का हिस्सा मानी जाती हैं.
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क्रिकेटर रॉबिन सिंह
रॉबिन सिंह एक पूर्व भारतीय क्रिकेटर और वर्तमान में कोच हैं, जो अपनी बेहतरीन फील्डिंग और ऑलराउंड प्रदर्शन के लिए जाने जाते हैं. उनका पूरा नाम रॉबिन वेंकटपति सिंह है और उनका जन्म 14 सितंबर 1963 को त्रिनिदाद और टोबैगो में हुआ था. हालांकि उनका जन्म वेस्ट इंडीज में हुआ था, लेकिन उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम का प्रतिनिधित्व किया. रॉबिन सिंह का परिवार भारतीय था, लेकिन उनका जन्म त्रिनिदाद में हुआ था. उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा वहीं प्राप्त की, लेकिन बाद में भारत में स्थायी रूप से बस गए और भारत की ओर से क्रिकेट खेलने का फैसला किया.
रॉबिन सिंह ने भारतीय टीम के लिए अपना डेब्यू वर्ष1989 में वनडे क्रिकेट में किया. वह एक ऑलराउंडर खिलाड़ी थे, जो बाएं हाथ से बल्लेबाजी और दाएं हाथ से मध्यम गति की गेंदबाजी करते थे. हालांकि, उनका टेस्ट कैरियर लंबा नहीं रहा, लेकिन वनडे क्रिकेट में वे लंबे समय तक भारतीय टीम का हिस्सा रहे. रॉबिन एक महत्वपूर्ण ऑलराउंडर माने जाते थे, जो निचले क्रम पर तेजी से रन बना सकते थे और मीडियम पेस गेंदबाजी से विकेट ले सकते थे.
रॉबिन सिंह को उनकी बेहतरीन फील्डिंग के लिए जाना जाता है. वर्ष 1990 के दशक में जब भारतीय टीम के कई खिलाड़ी फील्डिंग में संघर्ष कर रहे थे, रॉबिन सिंह ने अपनी तेज़ी और चुस्ती से कई बार महत्वपूर्ण रन आउट और कैच पकड़े, जिससे मैच के परिणाम बदल गए. वह एक अच्छे फिनिशर माने जाते थे, जो वनडे मैचों के आखिरी ओवरों में आकर तेजी से रन बना सकते थे और टीम को जीत दिला सकते थे.
वनडे मैच: – रॉबिन सिंह ने भारत के लिए 136 वनडे मैच खेले, जिसमें उन्होंने 2,336 रन बनाए और 69 विकेट लिए. उनका औसत 25 के आसपास था और उनकी स्ट्राइक रेट भी अच्छी थी.
टेस्ट मैच: – उन्होंने केवल एक टेस्ट मैच खेला, जिसमें उन्हें ज्यादा सफलता नहीं मिली. इसलिए उनका कैरियर मुख्य रूप से वनडे फॉर्मेट तक ही सीमित रहा.
कोचिंग कैरियर: – रॉबिन सिंह ने क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद कोचिंग में भी कदम रखा. उन्होंने भारतीय टीम के साथ-साथ आईपीएल में भी कोच के रूप में काम किया. वे विशेष रूप से फील्डिंग कोच के रूप में अपनी भूमिका के लिए जाने जाते हैं.उन्होंने इंडियन प्रीमियर लीग (IPL) में मुंबई इंडियंस टीम के कोचिंग स्टाफ का भी हिस्सा रहे हैं और टीम को कई सफलताएँ दिलाई हैं.
रॉबिन सिंह ने भारतीय क्रिकेट को एक बेहतरीन ऑलराउंडर और फील्डर के रूप में बहुत कुछ दिया. उनके कोचिंग के योगदान से भी भारतीय क्रिकेट और आईपीएल टीमें लाभान्वित हुई हैं. उनकी मेहनत, फिटनेस और खेल के प्रति समर्पण उन्हें एक प्रेरणादायक क्रिकेटर बनाते हैं.
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अभिनेत्री इशिता चौहान
इशिता चौहान एक भारतीय अभिनेत्री और मॉडल हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी और कुछ अन्य भाषाओं की फ़िल्मों में अपने अभिनय के लिए जानी जाती हैं. इशिता ने कम उम्र में ही अभिनय की दुनिया में कदम रखा और अपनी मासूमियत और अभिनय प्रतिभा से दर्शकों का ध्यान खींचा.
इशिता चौहान का जन्म 14 सितंबर 1999 को हुआ था. उन्होंने मॉडलिंग और टेलीविज़न विज्ञापनों से अपने कैरियर की शुरुआत की, और बचपन में ही वह कई प्रमुख ब्रांड्स के लिए विज्ञापन करने लगीं. अपने शुरुआती कैरियर में इशिता ने पर्लस माईन्ट्स, हॉर्लिक्स, और डाबर जैसे ब्रांडों के लिए विज्ञापनों में काम किया.
इशिता चौहान ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत बतौर चाइल्ड एक्टर फिल्म “आप का सुरूर” से की, जिसमें उन्होंने हंसिका मोटवानी के बचपन का किरदार निभाया. उन्होंने एक और फ़िल्म “गिनि और जॉनी” में बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट काम किया.
इशिता ने साउथ इंडियन सिनेमा में भी अपने अभिनय का लोहा मनवाया, जिसमें उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई. इशिता ने बॉलीवुड में वापसी करते हुए विद्युत जामवाल की फ़िल्म “गणेश” में मुख्य भूमिका निभाई, जिसने उन्हें एक बार फिर से सुर्खियों में ला दिया. इशिता चौहान अपनी मासूमियत और खूबसूरती के कारण दर्शकों के बीच लोकप्रिय हैं. उन्होंने कम समय में फ़िल्मों और विज्ञापन उद्योग में एक पहचान बनाई है.
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बांग्ला साहित्यकार ताराशंकर बंद्योपाध्याय
बीसवीं शताब्दी के एक प्रमुख बांग्ला साहित्यकार थे ताराशंकर बंद्योपाध्याय. उन्होंने अपने उपन्यासों में बंगाल के ग्रामीण जीवन और सामाजिक परिवर्तनों को गहराई से चित्रण किया है.
ताराशंकर बंद्योपाध्याय का जन्म 23 जुलाई 1898, बंगाल के बीरभूम जिले के लाभपुर गाँव में हुई थी. उनकी शिक्षा सेंट जेवियर्स कॉलेज, कोलकाता और बाद में आशुतोष कॉलेज से पूरी की. वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय थे और वर्ष 1930 में जेल भी गए. जेल से रिहा होने के बाद उन्होंने अपना पूरा ध्यान साहित्य पर केंद्रित कर दिया.
ताराशंकर बंद्योपाध्याय ने अपने लेखन में ग्रामीण जीवन, सामाजिक बदलाव, रूढ़िवादिता और मानवीय संबंधों को यथार्थवादी ढंग से दर्शाया. उनके लेखन में स्थानीय लोककथाएं, भूतकथाएं और लोक संस्कृति का गहरा प्रभाव देखने को मिलता है. उन्होंने 65 से अधिक उपन्यास, 53 कहानी संग्रह, 12 नाटक, 4 आत्मकथाएँ और कई निबंध लिखे.
रचनाएँ: – गणदेवता, आरोग्य निकेतन, हाँसुली बाँकेर उपकथा, धत्रितबत्ता, कालिंदी, पंचग्राम, कबी, राधा और कालसागर.
ताराशंकर बंद्योपाध्याय को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया जिनमें – ज्ञानपीठ पुरस्कार (1966), साहित्य अकादमी पुरस्कार (1956), पद्म भूषण (1969), पद्म श्री (1962) और रवींद्र पुरस्कार (1955). ताराशंकर बंद्योपाध्याय का निधन 14 सितंबर 1971 को हुआ था.