
व्यक्ति विशेष -624.
महिला क्रांतिकारी नगेन्द्र बाला
नगेन्द्र बाला भारत की महिला स्वतंत्रता सेनानी और राजनेत्री थीं. वे राजस्थान के हाड़ौती क्षेत्र की पहली महिला थीं, जिन्होंने महिलाओं में राष्ट्रीय चेतना का प्रसार किया.
नगेन्द्र बाला का जन्म 13 सितंबर, 1926 को हुआ था. वे प्रसिद्ध क्रांतिकारी केसरी सिंह बारहठ की पोती और प्रताप सिंह बारहठ की भतीजी थीं, जिससे उन्हें विरासत में ही देशप्रेम और क्रांतिकारी भावना मिली. उन्होंने वर्ष 1941- 45 तक किसान आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भी बढ़-चढ़कर भाग लिया.
आजादी के बाद नगेन्द्र बाला देश में जिला प्रमुख बनने वाली पहली महिला थीं. उन्होंने वर्ष 1960 में कोटा जिले की पहली जिला प्रमुख के रूप में कार्यभार संभाला. वे दो बार विधायक के पद पर भी रहीं. इसके अलावा, उन्होंने समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष और राज्य महिला आयोग की सदस्य के रूप में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
नगेन्द्र बाला ने महिलाओं के कल्याण कार्यों के लिए निरंतर प्रयास किए और उनमें राष्ट्रीय भावना जगाने का काम किया. उनका निधन सितंबर 2010 में 84 वर्ष की आयु में हुआ था.
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शास्त्रीय संगीत गायिका प्रभा अत्रे
प्रभा अत्रे भारतीय शास्त्रीय संगीत के किराना घराने की एक प्रसिद्ध गायिका थीं. उन्होंने अपने संगीत, लेखन और शिक्षा के माध्यम से इस क्षेत्र में एक अमिट छाप छोड़ी. उनका जन्म 13 सितंबर 1932 को पुणे में हुआ था.
अत्रे ने संगीत की शिक्षा अपनी माँ से प्रेरित होकर ली और बाद में उन्होंने किराना घराने के उस्तादों सुरेशबाबू माने और हीराबाई बडोदेकर से औपचारिक प्रशिक्षण प्राप्त किया. उन्हें ख्याल, ठुमरी, दादरा, ग़ज़ल और भजन जैसी विभिन्न शैलियों में महारत हासिल थी. उन्होंने कई नए रागों का भी आविष्कार किया, जिनमें अपूर्वा कल्याण, दरबारी कौंस, पटदीप मल्हार, और तिलंग भैरवी शामिल हैं.
गायिका होने के साथ-साथ, वे एक शिक्षाविद, शोधकर्ता और लेखिका भी थीं. उन्होंने संगीत पर कई किताबें लिखीं, जिनमें ‘स्वरामयी’ और ‘स्वरंजनी’ बहुत लोकप्रिय हैं. उनके नाम एक ही मंच से 11 किताबें लॉन्च करने का विश्व रिकॉर्ड भी है.
प्रभा अत्रे को संगीत के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए भारत सरकार द्वारा तीनों प्रतिष्ठित पद्म पुरस्कारों (पद्म श्री (1990), पद्म भूषण (2002), पद्म विभूषण (2022)) सम्मान से सम्मानित किया गया था. इसके अलावा, उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और पुण्य भूषण पुरस्कार जैसे कई अन्य सम्मानों से भी नवाज़ा गया था.
प्रभा अत्रे का निधन 13 जनवरी 2024 को 91 वर्ष की आयु में हुआ, लेकिन भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा.
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अभिनेत्री महिमा चौधरी
महिमा चौधरी एक भारतीय फिल्म अभिनेत्रीं और मॉडल हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी सिनेमा में अपने अभिनय के लिए जानी जाती हैं. उनका वास्तविक नाम ऋतु चौधरी है.
महिमा चौधरी का जन्म 13 सितंबर 1973 को दार्जलिंग पश्चिम बंगाल में हुआ था. महिमा की प्रारम्भिक शिक्षा डाउन हिल स्कूल से पूरी की. इसके बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई लोरेटो कॉलेज दार्जलिंग से पूरी की. वर्ष 1990 में वे पढ़ाई छोड़कर मॉडलिंग की दुनिया में कदम रखा और उन्होंने अपने मॉडलिंग कैरियर के दौरान कई विज्ञापनों में काम किया.
महिमा चौधरी की शादी बिजनेसमैन बॉबी मुखर्जी से हुई थी. लेकिन उनकी शादी कुछ ही दिन चल सकी, और दोनों अलग हो गए. उनके एक आठ साल की बेटी भी है.
फिल्मों में आने से पहले महिमा एक वीडियो जॉकी के रूप में भी काम कर चुकी हैं. महिमा चौधरी ने वर्ष 1997 में फिल्म ‘परदेस’ से अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत की.
फ़िल्में: – ‘दाग: द फायर’ (1999), ‘धड़कन’ (2000), ‘कुरुक्षेत्र’ (2000), ‘दिल है तुम्हारा’ (2002), ‘बाग़बान’ (2003) और ‘लाज्जा’ (2001).
महिमा ने कई फिल्मों में सहायक अभिनेत्री के रूप में भी काम किया और उन्हें ‘दिल क्या करे’ (1999) और ‘धड़कन’ (2000) में अपने अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया था.
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अभिनेत्री आयशा कपूर
आयशा कपूर एक भारतीय फिल्म अभिनेत्री हैं. उन्हें हिंदी सिनेमा में फिल्म ब्लैक के लिए जाना जाता है.
आयशा कपूर का जन्म 13सितंबर 1994 को जर्मनी में हुआ था. उनके पिता का नाम दिलीप कुमार है, जो कि एक व्यवसायी हैं. उनकी माँ का नाम जैकलिन हैं. उनके एक भाई है मिलन, और दो सौतेले भाई हैं- आकाश-विकास.
आयशा कपूर ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 2005 में निर्देशक संजय लीला भंसाली की फिल्म ब्लैक से की थी. इस भूमिका के लिए उन्हें “सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री” सहित कई और पुरस्कार मिले थे. इसके बाद उन्होंने वर्ष 2009 में फिल्म ‘सिकंदर’ में काम किया.
आयशा कपूर ने लॉन्ग टाइम बॉयफ्रेंड एडम ओबेरॉय से वर्ष 2025 में विवाह किया. वह अभिनय के अलावा स्वास्थ्य और वेलनेस सेक्टर में भी सक्रिय हैं और एक इंटीग्रेटिव न्यूट्रिशन हेल्थ कोच के रूप में काम करती हैं.
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कवि श्रीधर पाठक
कवि श्रीधर पाठक एक प्रसिद्ध हिंदी कवि और साहित्यकार थे. उन्होंने भारतीय साहित्य के कई प्रमुख काव्य और निबंध रचनाओं का निर्माण किया और उनका योगदान हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण माना जाता है.
कवि श्रीधर पाठक का जन्म 11 जनवरी, 1860 को उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा गोरखपुर और वाराणसी के विभिन्न कॉलेजों से प्राप्त की और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय से मास्टर्स डिग्री प्राप्त की. कवि श्रीधर पाठक की कविताएं और लेखने उनके भावनाओं, भारतीय संस्कृति और समाज के विभिन्न पहलुओं को सुंदरता के साथ व्यक्त करती थीं. उनकी कविताओं में प्राकृतिक सौंदर्य, मानवता, और दर्शनिक विचार प्रकट होते थे.
प्रमुख कृतियाँ: –
“किरणों का उदय” – इस काव्य कृति में वे प्रकृति की सुंदरता और उसके निरंतर बदलने वाले स्वरूप को चित्रित करते हैं.
“अरुण यात्रा” – यह काव्य कृति भारतीय संस्कृति के महत्वपूर्ण पहलुओं को दर्शाती है और भारतीय दर्शन के अद्भुत प्रतिष्ठानों का वर्णन करती है.
“सरोवर पर” – इस काव्य में कवि ने प्राकृतिक सौंदर्य को और भी महत्वपूर्ण रूप से प्रस्तुत किया है.
श्रीधर पाठक का निधन 13 सितम्बर 1928 को हुआ था. कवि श्रीधर पाठक का काव्य और निबंध साहित्य में महत्वपूर्ण हैं और उनकी रचनाएँ भारतीय साहित्य के स्वर्णिम अंश में शामिल होती हैं. उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से समाज को सामाजिक और मानविक मुद्दों के प्रति जागरूक किया और भारतीय साहित्य को एक नए दिशा में ले जाने में मदद की.
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क्रांतिकारी जतीन्द्रनाथ दास
जतीन्द्रनाथ दास (जतिन दास) एक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और क्रांतिकारी थे, जिनका जन्म 27 अक्टूबर 1904 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था. उन्हें ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष में उनकी बहादुरी और त्याग के लिए जाना जाता है. जतिन दास विशेष रूप से अपने 63 दिन के भूख हड़ताल के लिए प्रसिद्ध हैं, जो उन्होंने ब्रिटिश जेलों में भारतीय कैदियों के साथ अमानवीय व्यवहार और असमानता के खिलाफ किया था.
जतिन दास ने वर्ष 1920 के दशक में भगत सिंह, सुखदेव, और राजगुरु जैसे प्रमुख क्रांतिकारियों के साथ मिलकर स्वतंत्रता संग्राम के लिए कार्य किया. वे HSRA के सदस्य बने और ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ सशक्त क्रांतिकारी गतिविधियों में संलग्न रहे.
जतिन दास को “लाहौर षड्यंत्र केस” में गिरफ्तार किया गया था. जेल में उन्हें ब्रिटिश कैदियों के मुकाबले बहुत ही खराब सुविधाएं दी गई थीं. उन्होंने इस अन्याय के खिलाफ भूख हड़ताल शुरू की, जो कुल 63 दिनों तक चली. इस दौरान वे खाने-पीने से पूरी तरह इनकार करते रहे, और उनकी हालत बिगड़ती गई. उनकी इस हड़ताल ने ब्रिटिश शासन और जेल में भारतीय कैदियों की दुर्दशा पर अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया.
13 सितंबर 1929 को, अपनी भूख हड़ताल के 63वें दिन, जतिन दास ने लाहौर जेल में अपने प्राण त्याग दिए. उनकी शहादत से पूरे देश में ब्रिटिश शासन के प्रति गहरा आक्रोश फैल गया और उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महानायक के रूप में सम्मान मिला.
जतिन दास की शहादत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रेरणा का काम किया. उनकी अंतिम यात्रा में हजारों लोग शामिल हुए थे, और उनकी कुर्बानी ने स्वतंत्रता सेनानियों में एक नई ऊर्जा का संचार किया. उनकी बहादुरी और बलिदान की कहानी आज भी भारतीय इतिहास में एक प्रेरणादायक अध्याय के रूप में मानी जाती है, और उन्हें एक वीर स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सम्मानित किया जाता है.
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गीतकार अंजान
गीतकार अंजान का असली नाम लालजी पांडे था. उनका जन्म 28 अक्टूबर 1930 को वाराणसी, उत्तर प्रदेश में हुआ था. अंजान ने वर्ष 1970 के दशक में मुंबई में फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाई और अपने अनूठे गीतों से हिंदी सिनेमा में पहचान बनाई. उनके गीतों में आमतौर पर ग्रामीण और शहरी भारतीय समाज के प्रतीक, भावनाएँ, और जीवन की सच्चाइयाँ झलकती थीं. उनका लेखन आम आदमी की भाषा में था, जो श्रोताओं के दिल को छू जाता था.
अंजान ने कई प्रसिद्ध गीत लिखे, जिनमें से कुछ सुपरहिट फिल्में हैं जैसे डॉन, लावारिस, मुकद्दर का सिकंदर, मर्द, और कूली. उनके लिखे गीत “खइके पान बनारस वाला” (डॉन), “रोते हुए आते हैं सब” (मुकद्दर का सिकंदर), “अपनी तो जैसे तैसे” (लावारिस), और “जो भी कसमें खाईं” (काला पत्थर) आज भी लोकप्रिय हैं और श्रोताओं में गूंजते हैं.
उनके पुत्र, समीर, भी एक प्रसिद्ध गीतकार हैं, जिन्होंने अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए हिंदी सिनेमा में एक सफल कैरियर बनाया. गीतकार अंजान का योगदान हिंदी फिल्म संगीत जगत में अमूल्य है. उनका देहांत 13 सितंबर 1997 को हुआ, लेकिन उनके गीतों का जादू आज भी बरकरार है.
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राजनीतिज्ञ रघुवंश प्रसाद सिंह
रघुवंश प्रसाद सिंह भारतीय राजनीति के एक प्रमुख नेता थे. वे बिहार राज्य से थे और भारतीय राजनीति में उनके योगदान के लिए उन्हें विशेष रूप से जाना जाता है. उन्होंने कई दशकों तक राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई और विभिन्न उच्च पदों पर आसीन रहे. रघुवंश प्रसाद सिंह का जन्म 6 जून 1946 को बिहार के वैशाली जिले में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बिहार में प्राप्त की और आगे चलकर उच्च शिक्षा के लिए पटना विश्वविद्यालय से गणित में मास्टर डिग्री प्राप्त की. उन्होंने पीएच.डी. की डिग्री भी प्राप्त की थी.
रघुवंश प्रसाद सिंह का राजनीतिक कैरियर बहुत लंबा और सफल रहा. वे भारतीय राजनीति के कुछ प्रमुख दलों से जुड़े रहे, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय जनता दल (RJD) था. रघुवंश प्रसाद सिंह ने कई बार बिहार के वैशाली निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा चुनाव जीता. वे वर्ष 1977, 1989, 1991, 1996, 1998, 1999, 2004, और वर्ष 2009 में लोकसभा के सदस्य चुने गए. उन्होंने मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री के रूप में कार्य किया. उनके कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण ग्रामीण विकास योजनाएं शुरू की गईं, जिनमें मनरेगा (महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम) शामिल है.
रघुवंश प्रसाद सिंह राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के प्रमुख नेता थे और पार्टी के संगठन को मजबूत करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही. हालांकि, वर्ष 2020 में उन्होंने RJD से इस्तीफा दे दिया था. रघुवंश प्रसाद सिंह को ग्रामीण विकास और सामाजिक न्याय के क्षेत्र में उनके कार्यों के लिए जाना जाता है. उन्होंने ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी ढांचे के विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के सुधार के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए.
रघुवंश प्रसाद सिंह का निधन 13 सितम्बर 2020 को नई दिल्ली के एम्स अस्पताल में हुआ. उनके निधन से भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण अध्याय का अंत हो गया. रघुवंश प्रसाद सिंह का जीवन और कार्य भारतीय राजनीति में एक प्रेरणादायक कहानी है. उनकी निष्ठा, ईमानदारी और जनता के प्रति उनकी सेवा भावना ने उन्हें एक आदर्श नेता के रूप में स्थापित किया. उनके योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा और उनकी नीतियों और विचारों से आने वाली पीढ़ियां प्रेरित होती रहेंगी.