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व्यक्ति विशेष -623.

साहित्यकार बलदेव प्रसाद मिश्र

हिंदी साहित्य के एक प्रसिद्ध साहित्यकार थे बलदेव प्रसाद मिश्र. जिन्हें कविता, निबंध और आलोचना के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जाना जाता है. वे विशेष रूप से अपनी राष्ट्रीय भावनाओं और आध्यात्मिक विचारों के लिए प्रसिद्ध थे.

बलदेव प्रसाद मिश्र का जन्म 12 सितम्बर 1898 को राजनांदगांव में हुआ था. उनके पिता पं. नारायण प्रसाद मिश्र एवं माता जानकी देवी थीं. उन्होंने वर्ष 1914 में स्टेट स्कूल से मैट्रिक, वर्ष 1918 में हिस्लाप कॉलेज, नागपुर से बी.ए., वर्ष 1920 में एम.ए. मनोविज्ञान से, वर्ष 1921 में एल.एल.बी. तथा वर्ष 1939 में शोध प्रबंध ‘तुलसी दर्शन’ पर डी. लिट् की उपाधि अर्जित की.

 कुछ समय तक रायपुर में वकालत करने के बाद बलदेव प्रसाद मिश्र रायगढ़ रियासत के राजा चक्रधर सिंह के आमंत्रण पर वहाँ चले गए. वर्ष 1923- 40 तक उन्होंने रायगढ़ रियासत के न्यायाधीश, नायब दीवान और दीवान के पद पर अपनी सेवाएं दी.

बलदेव प्रसाद मिश्र की कविताओं में देशभक्ति, प्रकृति प्रेम और दार्शनिक चिंतन का गहरा प्रभाव दिखता है. उनकी प्रमुख काव्य-रचनाओं में ‘साकेत-संत’ और ‘जीवन-संगीत’ शामिल हैं. इन रचनाओं में उन्होंने भारतीय संस्कृति और मूल्यों को उजागर किया. उन्होंने विभिन्न साहित्यिक और सामाजिक विषयों पर निबंध लिखे. उनकी आलोचनात्मक शैली में निष्पक्षता और गहराई थी. उन्होंने हिंदी साहित्य के कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डाला.

मिश्र की रचनाओं में आध्यात्मिकता और जीवन के गूढ़ रहस्यों पर गहन विचार मिलते हैं. वे एक दार्शनिक भी थे, जिन्होंने अपने लेखन के माध्यम से जीवन के सत्य को समझने का प्रयास किया. बलदेव प्रसाद मिश्र का निधन 4 सितम्बर 1975 को राजनांदगांव में हुआ था.

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स्वतंत्रता सेनानी फ़ीरोज़ गाँधी

फ़िरोज़ गांधी एक स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ और पत्रकार थे. वह भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के पति और राजीव गांधी और संजय गांधी के पिता थे.

फ़ीरोज़ गाँधी का जन्म 12 सितम्बर 1912 को मुम्बई के एक अस्पताल में पारसी परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम जहाँगीर एवं माता का नाम रतिमाई था. उनकी प्रारंभिक शिक्षा -दीक्षा इलाहाबाद में हुई. वह बहुत कम उम्र में ही महात्मा गांधी से प्रभावित होकर भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गए थे. उन्होंने कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे कई महत्वपूर्ण आंदोलनों में भाग लिया और कई बार जेल भी गए.

आज़ादी के बाद, फ़ीरोज़ एक सफल राजनीतिज्ञ बने. वो वर्ष 1952 में रायबरेली से लोकसभा सांसद चुने गए और वर्ष 1957 में दोबारा इसी सीट से जीते। उन्होंने संसद में एक प्रभावशाली सदस्य के रूप में अपनी पहचान बनाई. वह भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी मुखर आवाज़ के लिए जाने जाते थे. 

फ़िरोज़ गांधी ने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने द नेशनल हेराल्ड और द नवजीवन जैसे अख़बारों का प्रकाशन किया और उन्हें चलाने में भी मदद की.

फ़ीरोज़ ने वर्ष 1942 में इंदिरा नेहरू से शादी की, जो बाद में इंदिरा गांधी बनीं. उनके दो बेटे थे, राजीव गांधी और संजय गांधी. फ़िरोज़ गांधी का निधन 8 सितंबर, 1960 को 48 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से हुआ था.

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अभिनेत्री अमाला अक्की्नेनी

अमाला अक्की्नेनी एक बहुआयामी भारतीय अभिनेत्री, भरतनाट्यम नृत्यांगना और सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जिनका जीवन कला, करुणा और संस्कृति की गहराइयों से जुड़ा है.

अमाला का जन्म 12 सितम्बर 1968 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल के एक बंगाली पिता व एक आयरिश माँ के यहां हुआ था. अमाला ने ललित कला के कलाक्षेत्र कॉलेज से “बैचलर ऑफ़ फाइन आर्ट्स इन भरतनाटयम” की डिग्री में स्नातक किया हैं.

अमाला की शादी तेलुगु अभिनेता अक्किनेनी नागार्जुन से हुआ और उनका एक पुत्र भी जिनका नाम अक्किनेनी अखिल हैं.अखिल अक्कीनेनी, जो एक अभिनेता भी है. नागार्जुन के पहले विवाह से उनका एक सौतेला बेटा भी है, नागा चैतन्य, जो भी एक अभिनेता है.

अमाला ने अभिनय कैरियर की शुरुआत वर्ष 1986 में तमिल फिल्म ‘मैथिली एननाई काथली’ से की थी. उन्होंने कई सफल तमिल, तेलुगु, मलयालम और हिंदी फिल्मों में अभिनय किया है. उनकी कुछ प्रमुख फिल्मों में ‘शिवा’, ‘पुष्पक’, ‘उल्लादक्कम’, ‘डेवन’ और ‘करवाँ’ शामिल हैं.

अभिनय के अलावा, वह एक पशु कल्याण कार्यकर्ता भी हैं. उन्होंने हैदराबाद में ‘ब्लू क्रॉस ऑफ हैदराबाद’ नामक एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) की सह-स्थापना की है, जो जानवरों के कल्याण और अधिकारों के लिए काम करता है.

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अभिनेत्री रसिका जोशी

रसिका जोशी एक अभिनेत्री थीं, जिन्होंने मराठी और हिंदी सिनेमा के साथ-साथ थिएटर और टेलीविजन में भी काम किया. वह अपनी हास्य और संजीदा भूमिकाओं के लिए जानी जाती थीं.

रसिका जोशी का जन्म 12 सितंबर 1972 को मुंबई में हुआ था और उनका निधन 07 जुलाई 2011 को मुंबई में हुआ. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत थिएटर से की थी.

रसिका ने कई मराठी और हिंदी टीवी शो में काम किया. “घडल बिघडल”, “प्रपंच”, “बंदिनी” जैसे शो में उनकी भूमिकाएं काफी लोकप्रिय हुईं.

फिल्में: – भूल भुलैया, गायक, मालामाल वीकली, खलबली, बिल्लू, भूत अंकल.

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साहित्यकार चन्द्रधर शर्मा गुलेरी

चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ हिंदी साहित्य के लेखक, आलोचक और निबंधकार थे. उनका जन्म 7 जुलाई 1883 को जयपुर, राजस्थान में हुआ था. वे अपनी कहानियों और निबंधों के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं. उनका लेखन हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखता है. गुलेरी जी ने संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी भाषाओं में गहरी शिक्षा प्राप्त की थी. वे पेशे से प्रोफेसर थे और उन्होंने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य किया. इसके अलावा, वे एक प्रभावशाली वक्ता और विचारक भी थे.

प्रमुख कृतियाँ: –

उसने कहा था: – यह उनकी सबसे प्रसिद्ध कहानी है, जिसे हिंदी साहित्य की सबसे उत्कृष्ट कहानियों में से एक माना जाता है. इस कहानी में प्रेम, त्याग और बलिदान के विषयों को बहुत ही संवेदनशीलता के साथ प्रस्तुत किया गया है.

सुखमय जीवन: – यह एक निबंध संग्रह है जिसमें गुलेरी जी ने जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार प्रकट किए हैं.

चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ ने हिंदी साहित्य में अपनी सशक्त लेखनी से महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनकी कहानियों और निबंधों में समाज के विविध पहलुओं, मानवीय भावनाओं और संस्कृति की झलक मिलती है. उनकी लेखनी में सरलता और प्रवाह था, जो पाठकों को सीधे प्रभावित करता था.

चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ का निधन 12 सितंबर 1922 को हुआ था. वे मात्र 39 वर्ष की आयु में इस दुनिया से विदा हो गए, लेकिन अपने छोटे से जीवनकाल में ही उन्होंने हिंदी साहित्य को अमूल्य रचनाएँ दीं. चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ की साहित्यिक धरोहर आज भी हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान रखती है और उनकी रचनाएँ आज भी पाठकों को प्रेरित करती हैं.

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साहित्यकार रांगेय राघव

रांगेय राघव एक भारतीय साहित्यकार और कवि थे, जो अपनी रचनाओं में भारतीय साहित्य और संस्कृति को महत्वपूर्ण भूमिका देने के लिए प्रसिद्ध थे. उनका जन्म 17 जनवरी 1923, आगरा में हुआ था और उनका निधन 12 सितम्बर 1962 को आगरा में हुआ था. 

रांगेय राघव का साहित्यिक कार्य प्राचीन भारतीय साहित्य और संस्कृति के प्रति उनके गहरे रुझान को प्रकट करता था. उन्होंने कविता, कहानी, नाटक, और निबंध लिखे और उनके काव्य में धार्मिक और आध्यात्मिक तत्वों को महत्व दिया. रांगेय राघव का काव्य और साहित्य कृतियों में संस्कृत भाषा का बहुत अद्वितीय और सुंदर उपयोग था, जो उनके रचनाओं को विशेष बनाता था. उन्होंने भारतीय संस्कृति के अनेक पहलुओं को उनके लेखों में प्रकट किया, जैसे कि धार्मिकता, भक्ति, और मानवता.

रांगेय राघव के लेखन का मुख्य उद्देश्य भारतीय संस्कृति को उनकी कविता और निबंधों के माध्यम से बढ़ावा देना और भारतीय समाज को संवेदनशील बनाना था. उनका साहित्य भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण हिस्से में शामिल है और उन्हें उनके योगदान के लिए सम्मानित किया जाता है.

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संगीतकार जयकिशन

जयकिशन दयाभाई पंकल, जो शंकर-जयकिशन की जोड़ी में प्रसिद्ध थे, भारतीय सिनेमा के महान संगीतकारों में से एक माने जाते हैं. शंकर-जयकिशन की यह जोड़ी वर्ष 1950 – 60 के दशकों में हिंदी फिल्म संगीत पर राज करती थी. जयकिशन का जन्म 4 नवम्बर  1932 को गुजरात के वलसाड़ ज़िले के बासंदा गाँव के लकड़ी का सामान बनाने वाले परिवार में हुआ था.और  उनकी मृत्यु 12 सितंबर 1971 को हुई.

जयकिशन ने अपने साथी शंकर के साथ मिलकर कई मशहूर गीतों की रचना की, जो आज भी लोकप्रिय हैं. उनके गीतों में धुनों का अनूठा संगम, गायकों की आवाज़ का सटीक उपयोग, और विभिन्न संगीत वाद्यों का उत्कृष्ट संयोजन देखने को मिलता है. शंकर-जयकिशन की जोड़ी ने राज कपूर, शैलेंद्र, और हसरत जयपुरी जैसे दिग्गजों के साथ काम किया और संगीत को एक नई ऊंचाई दी. उनके द्वारा दिए गए कुछ अविस्मरणीय गीतों में “जीना यहाँ, मरना यहाँ,” “तुम जो मिल गए हो,” “सूरज”, “चोरी-चोरी” और “आवारा हूँ” शामिल हैं. उनकी जोड़ी को चार बार फिल्मफेयर अवार्ड से नवाजा गया और उन्होंने भारतीय फिल्म संगीत में एक अलग पहचान बनाई.

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महन्त अवैद्यनाथ

महंत अवैद्यनाथ एक राजनीतिज्ञ तथा गोरखनाथ मठ के भूतपूर्व पीठाधीश्वर थे. वे गोरखपुर लोकसभा से चौथी लोकसभा के लिये निर्वाचित हुए थे. महंत अवैद्यनाथ का वास्तविक नाम कृपाल सिंह बिष्ट था. उनका जन्म 28 मई, 1921 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में हुआ था.

महंत अवैद्यनाथ ने अपना जीवन हिंदू धर्म की सेवा और भारतीय राजनीति में हिंदू हितों को बढ़ावा देने के लिए समर्पित किया. वे न केवल एक आध्यात्मिक नेता थे, बल्कि एक सक्रिय राजनेता भी थे. वो गोरखनाथ मठ के पीठाधीश्वर थे और उन्होंने अपने गुरु महंत दिग्विजयनाथ के बाद यह पद संभाला. उनके निधन के बाद उनके शिष्य योगी आदित्यनाथ ने इस पद को ग्रहण किया.

महंत अवैद्यनाथ ने अपने राजनीतिक जीवन में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं. वे चार बार सांसद (गोरखपुर से) और पाँच बार विधायक (मानीराम से) चुने गए. वे राम जन्मभूमि आंदोलन के एक प्रमुख नेता थे और उन्होंने इस आंदोलन को गति देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

महंत अवैद्यनाथ ने हिंदू समाज में फैली हुई छुआछूत और अन्य कुरीतियों को दूर करने के लिए भी काम किया. उन्होंने विभिन्न आयोजनों के माध्यम से सामाजिक एकता को बढ़ावा देने का प्रयास किया. उनका निधन 12 सितंबर 2014 को 93 वर्ष की आयु में गोरखपुर में हुआ.

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