
व्यक्ति विशेष -613.
दार्शनिक गोपीनाथ कविराज
गोपीनाथ कविराज भारतीय दार्शनिक, विद्वान, और संस्कृत साहित्य के प्रसिद्ध विद्वान थे. वे भारतीय दर्शन, विशेषकर तंत्र शास्त्र और कश्मीर शैव दर्शन में अपने महत्वपूर्ण योगदान के लिए जाने जाते हैं. गोपीनाथ कविराज का जन्म 7 सितंबर 1887 को बंगाल प्रेसीडेंसी के जैसोर जिले (अब बांग्लादेश में) के धामुआ गाँव में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही प्राप्त की और बाद में काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) से संस्कृत में एम.ए. किया. इसके बाद उन्होंने काशी विद्यापीठ में शोध किया.
गोपीनाथ कविराज ने अपना अधिकांश जीवन काशी में बिताया, जहाँ उन्होंने कई महत्वपूर्ण शैक्षिक और शोध कार्य किए. वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय में संस्कृत और दर्शन के प्रोफेसर बने और बाद में उन्हें काशी विद्यापीठ के प्राचार्य का पदभार भी सौंपा गया. उन्होंने ‘सारस्वत संवाद’ और ‘तंत्रिका संवादिनी’ जैसी कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का संपादन किया और तंत्र शास्त्र और भारतीय दर्शन के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण शोधपत्र प्रकाशित किए.
गोपीनाथ कविराज ने भारतीय दर्शन, तंत्र शास्त्र, और कश्मीर शैव दर्शन पर कई पुस्तकें और लेख लिखे. उनके लेखन में तंत्र शास्त्र की गहन व्याख्या और विश्लेषण मिलता है. उनके तंत्र शास्त्र पर कई महत्वपूर्ण लेख और पुस्तकें हैं, जिनमें ‘तंत्र सार’ और ‘तंत्र तत्व’ प्रमुख हैं. उन्होंने कश्मीर शैव दर्शन पर भी गहन शोध किया और इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
गोपीनाथ कविराज को उनके विद्वत्तापूर्ण कार्य के लिए कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए: – भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 1964 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया. उन्हें एक आध्यात्मिक गुरु के रूप में भी मान्यता प्राप्त थी और वे कई शिष्य और अनुयायी थे. गोपीनाथ कविराज ने भारतीय दर्शन के विभिन्न पहलुओं का गहन अध्ययन किया और उन्हें आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत किया. उनका विचार था कि तंत्र शास्त्र और कश्मीर शैव दर्शन में छिपी ज्ञान की गहराइयों को समझकर व्यक्ति आत्म-साक्षात्कार प्राप्त कर सकता है.
गोपीनाथ कविराज का निधन 12 जून 1976 को वाराणसी में हुआ. उनका जीवन और कार्य भारतीय दर्शन और तंत्र शास्त्र के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण अध्याय है. उनके विचार और शिक्षाएँ आज भी विद्यार्थियों और विद्वानों के लिए प्रेरणास्रोत हैं. उनकी कृतियाँ भारतीय दर्शन के गहरे और जटिल विषयों को सरलता से समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं.
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स्वतंत्रता सेनानी शरत चन्द्र बोस
शरत चन्द्र बोस, जिन्हें सरत चन्द्र बोस के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेताओं में से एक थे. वे नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई थे और उन्होंने भारत की आजादी के लिए अपने भाई के साथ मिलकर कई आंदोलनों में भाग लिया. शरत चन्द्र बोस का जन्म 6 सितंबर 1889 को हुआ था और उनका निधन 20 फरवरी 1950 को हुआ.
वकालत की पृष्ठभूमि रखने वाले शरत बोस ने न केवल एक राजनीतिज्ञ के रूप में, बल्कि एक समाज सुधारक के रूप में भी अपनी पहचान बनाई. वे ब्रिटिश भारत की विभाजनकारी नीतियों के खिलाफ थे और उन्होंने भारतीय समाज में एकता और सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए काम किया.
शरत बोस ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कई बार इसकी कार्यकारिणी कमेटी के सदस्य रहे. वे बंगाल प्रांतीय कांग्रेस के भी नेता रहे. उनके नेतृत्व में, कई आजादी के आंदोलनों को एक नई दिशा मिली.
उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए निरंतर संघर्ष किया और ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विभिन्न प्रदर्शनों और आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया. शरत चन्द्र बोस की विरासत भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके अदम्य साहस और समर्पण के रूप में आज भी याद की जाती है.
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फ़िल्म निर्देशक बी. आर. इशारा
बी. आर. इशारा का पूरा नाम बद्र-उल-हसन इशारा था जो भारतीय फ़िल्म निर्देशक, पटकथा लेखक, और निर्माता थे, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में अपने नवाचारी और साहसी दृष्टिकोण के लिए ख्याति प्राप्त की. वर्ष 1970 – 80 के दशकों में उनके फ़िल्में अक्सर सामाजिक मुद्दों और मानवीय संबंधों पर केंद्रित होती थीं, और उनके काम ने हिंदी सिनेमा में एक नई दिशा प्रदान की.
बी. आर. इशारा का जन्म 7 सितम्बर 1934 को ऊना, हिमाचल प्रदेश में हुआ था और उनकी मृत्यु 25 जुलाई 2012, मुंबई में हुआ. उनका कैरियर कई दशकों तक फैला रहा और उन्होंने भारतीय सिनेमा में कई यादगार फ़िल्में बनाईं. उन्होंने कई फ़िल्मों का निर्देशन किया जो अपने समय से आगे की सोच रखती थीं.
फ़िल्में: –
“चेतना” (1970): – यह फ़िल्म वेश्यावृत्ति के मुद्दे पर आधारित थी और इसे उस समय काफी सराहना मिली. रीना रॉय और अंजू महेंद्रू ने इस फ़िल्म में महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं.
“जरूरत” (1972): – यह फ़िल्म रीना रॉय की डेब्यू फ़िल्म थी और इसमें शारीरिक इच्छाओं और सामाजिक मान्यताओं के बीच के संघर्ष को दिखाया गया था.
“दोराहा” (1971): – इस फ़िल्म ने भी सामाजिक मुद्दों को उठाया और इसमें नायक-नायिका के संबंधों की जटिलताओं को दिखाया गया था.
बी. आर. इशारा ने न केवल फ़िल्मों का निर्देशन किया बल्कि कई फ़िल्मों की पटकथा भी लिखी. उनकी कहानियाँ अक्सर सामाजिक मुद्दों पर आधारित होती थीं और उनके पात्रों में गहराई और यथार्थवाद होता था. इशारा ने कई फ़िल्मों का निर्माण भी किया, जिससे वे अपने सिनेमा में अपने विचारों को पूरी स्वतंत्रता से प्रस्तुत कर सके.
इशारा ने हिंदी सिनेमा में कई नए विचार और दृष्टिकोण प्रस्तुत किए. वे सामाजिक मुद्दों को बहुत ही संवेदनशील और यथार्थवादी ढंग से प्रस्तुत करते थे. उनके पात्र अक्सर समाज के हाशिये पर रहने वाले लोग होते थे और उनकी कहानियाँ सामाजिक मान्यताओं और परंपराओं को चुनौती देती थीं. इशारा को उनके योगदान के लिए कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए. उनकी फ़िल्में समय के साथ क्लासिक मानी जाती हैं और आज भी सिनेमा प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं.
बी. आर. इशारा का सिनेमा आज भी हिंदी फ़िल्म उद्योग में एक प्रेरणा स्रोत बना हुआ है. उनकी फ़िल्में और उनके द्वारा उठाए गए मुद्दे आज भी प्रासंगिक हैं. उनके नवाचारी दृष्टिकोण और साहसी कथानक ने हिंदी सिनेमा को एक नई दिशा दी और उनकी विरासत को हमेशा सम्मान और प्रेरणा के साथ याद किया जाएगा.
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अभिनेत्री पी. भानुमति
पी. भानुमती रामकृष्ण एक अभिनेत्री, गायिका, फिल्म निर्माता, निर्देशक, संगीतकार और उपन्यासकार थीं. उनका पूरा नाम पालिवई भानुमति रामकृष्ण है वो तेलुगू सिनेमा की पहली महिला सुपरस्टार थी.
पी. भानुमती रामकृष्ण का जन्म 7 सितंबर 1925 को डोड्डावरम, प्रकाशम ज़िला, आंध्र प्रदेश में हुआ था और उनका निधन 24 दिसंबर 2005 को चेन्नई में हुआ. उन्होंने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत वर्ष 1939 में फिल्म वारा विक्रंकटम से की थी.
उन्होंने 100 से अधिक तमिल और तेलुगू फिल्मों के साथ कुछ हिंदी फिल्मों में भी अभिनय किया. भानुमती रामकृष्ण को उनकी बहुमुखी प्रतिभा के कारण ‘अष्टावधानी’ भी कहा जाता था.उन्होंने अभिनय, निर्देशन, लेखन, गायन और संगीत निर्देशन जैसे कई क्षेत्रों में काम किया.
भानुमती रामकृष्ण को तेलुगु सिनेमा की पहली महिला निर्देशक माना जाता है, जिन्होंने वर्ष 1953 में ‘चंदिरानी’ नामक फिल्म का निर्देशन किया था. भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए उन्हें वर्ष 1966 में पद्म श्री और वर्ष 2001 में पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया था.
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स्वतंत्रता सेनानी के. एम. चांडी
के. एम. चांडी केरल के एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे. के. एम. चांडी का जन्म 6 अगस्त, 1921 को केरल के कोट्टायम ज़िले के पलई नामक नगर में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने का निर्णय लिया.
के. एम. चांडी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई. उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में चलाए गए आंदोलनों में हिस्सा लिया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष किया. उन्होंने विभिन्न सत्याग्रहों और आंदोलनों में भाग लेकर देश की स्वतंत्रता के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, के. एम. चांडी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य के रूप में राजनीतिक कैरियर जारी रखा. उन्होंने केरल की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई और राज्य की विकास में योगदान दिया.
के. एम. चांडी ने समाज सेवा के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्य किए. उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक सुधारों के लिए काम किया और समाज के कमजोर वर्गों की मदद की. उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए उन्हें विभिन्न पुरस्कार और सम्मान प्रदान किए गए. उनका जीवन और कार्य आज भी लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं. के. एम. चांडी का निधन 7 सितम्बर, 1998 को हुआ. उनका जीवन स्वतंत्रता संग्राम और समाज सेवा के प्रति समर्पित था और उनके योगदान को हमेशा याद किया जाएगा.
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राजनीतिज्ञ रोमेश भंडारी
रोमेश भंडारी भारतीय राजनीतिज्ञ और भूतपूर्व राज्यपाल थे. उन्होंने त्रिपुरा, गोवा और उत्तर प्रदेश के राज्यपाल के रूप में कार्य किया था.रोमेश भंडारी का जन्म 29 मार्च 1928 में लाहौर में हुआ था.
भंडारी ने वर्ष 1950 में इन्होंने भारतीय विदेश सेवा में प्रवेश किया और न्यूयॉर्क में भारतीय कान्स्यूलेट में भारत के उपकौन्सिल नियुक्त हुए. वर्ष 1970-71 में वे मॉस्को में स्थित भारतीय दूतावास में मंत्री रहे. वर्ष 1971-74 तक वे थाईलैंड में भारत के राजदूत रहे तथा तत्कालीन ‘‘ईकेस’’ एवं ‘‘इस्कैप’’ संगठनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया. वर्ष 1974-76 तक वे इराक में भारत के राजदूत रहे.
सेवानिवृत्ति के बाद भंडारी को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (आई) के विदेश विभाग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. वर्ष 1988 को दिल्ली के उपराज्यपाल बने और उन्होंने 13 दिसम्बर, 1990 को इस पद से त्यागपत्र दे दिया.भंडारी ने भारतीय राजनीति में विभिन्न भूमिकाओं का भी निर्वाह किया है और उन्होंने अपने राज्यपाल कार्यकाल के दौरान उत्तर प्रदेश में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर काम किया. रोमेश भंडारी का निधन 7 सितंबर 2013 को नई दिल्ली में हुआ था.