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व्यक्ति विशेष -613.

सर्वपल्ली राधाकृष्णन

सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक प्रख्यात भारतीय दार्शनिक, शिक्षाविद्, और राजनेता थे, जिन्होंने भारत के दूसरे राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया. उनका जन्म 5 सितंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुत्तनी में हुआ था और उनकी मृत्यु  17 अप्रैल 1975 को हुआ था.  उन्होंने अपनी शिक्षा मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से प्राप्त की थी.

राधाकृष्णन ने भारतीय दर्शन और विशेषकर वेदांत दर्शन के अध्ययन में गहरी दिलचस्पी रखी और उन्होंने भारतीय दर्शन को पश्चिमी दुनिया में भी प्रमुखता से प्रस्तुत किया. उनकी प्रमुख कृतियों में “इंडियन फिलॉसफी”, “द फिलॉसफी ऑफ उपनिषद्स”, और “ईस्टर्न रिलिजन्स एंड वेस्टर्न थॉट” शामिल हैं. उनके द्वारा किये गए व्याख्यानों और लेखनों ने उन्हें विश्व स्तर पर एक सम्मानित विद्वान के रूप में स्थापित किया.

राधाकृष्णन ने भारतीय संसद के उपराष्ट्रपति के रूप में भी कार्य किया और बाद में वर्ष 1962 – 67 तक भारत के राष्ट्रपति रहे. उनके जन्मदिन, 5 सितंबर को भारत में ‘शिक्षक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है, जो उनकी शिक्षा के प्रति समर्पण को सम्मानित करता है.

उन्होंने अपने जीवन और कार्यों के माध्यम से शिक्षा, दर्शन और राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया और उन्हें भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया, जो भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है.

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साहित्यकार अम्बिका प्रसाद दिव्य

अम्बिका प्रसाद दिव्य एक हिंदी साहित्यकार थे, जिन्होंने 20वीं शताब्दी के प्रारंभिक दौर में हिंदी साहित्य में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई. उन्हें विशेष रूप से उनकी कविताओं और निबंधों के लिए जाना जाता है. उनका लेखन राष्ट्रवादी भावनाओं और सामाजिक मुद्दों की प्रतिध्वनि करता है.

अम्बिका प्रसाद दिव्य का जन्म 16 मार्च 1906 को  अजयगढ़, पन्ना ज़िला (मध्य प्रदेश) के एक सुसंस्कृत कायस्थ परिवार में हुआ था. दिव्य जी ने मध्य प्रदेश शिक्षा विभाग से सेवा कार्य प्रारंभ किया, जहाँ से वे प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त हुए थे. अम्बिका प्रसाद दिव्य क निधन 5 सितम्बर1986 को हुआ था.

अम्बिका प्रसाद दिव्य की रचनाएँ उस समय की सामाजिक और राजनीतिक स्थितियों का चित्रण करती हैं और हिंदी साहित्य में उनका महत्वपूर्ण स्थान है. उनके कार्यों ने हिंदी साहित्य को नई दिशाएँ प्रदान कीं और उन्होंने साहित्यिक प्रवृत्तियों में नवीनता और मौलिकता को बढ़ावा दिया. उनके कार्यों में उनकी गहरी सोच और भावनाओं का समावेश होता है, जिसने पाठकों और समीक्षकों का गहरा ध्यान आकर्षित किया.

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अभिनेत्री मानवी गागरो

मानवी गागरो एक अभिनेत्री हैं जो मुख्य रूप से हिंदी फिल्मों और वेब सीरीज में काम करती हैं. उनका जन्म 5 सितंबर 1985 को नई दिल्ली में हुआ था. उन्होंने गार्गी कॉलेज से मनोविज्ञान में डिग्री ली और 12 साल की उम्र तक कथक नृत्य का अभ्यास किया. मानवी ने 23 फरवरी 2023 को कॉमेडियन कुमार वरुण से शादी की.

मानवी ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 2007 में डिज्नी चैनल के टीवी शो ‘धूम मचाओ धूम’ से की थी. लेकिन उन्हें सबसे ज़्यादा पहचान वेब सीरीज से मिली, खासकर ‘TVF पिचर्स’, ‘TVF ट्रिपलिंग’, ‘मेड इन हेवन’ और ‘फोर मोर शॉट्स प्लीज!’ में उनके काम के लिए.

फिल्में और वेब सीरीज: –  ‘नो वन किल्ड जेसिका’ (2011), ‘पीके’ (2014), ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’ (2020), ‘उजड़ा चमन’ (2019), ‘TVF ट्रिपलिंग’ (वेब सीरीज), ‘फोर मोर शॉट्स प्लीज!’ (वेब सीरीज).

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क्रिकेटर प्रज्ञान ओझा

प्रज्ञान ओझा एक पूर्व भारतीय क्रिकेटर हैं, जिन्होंने बाएं हाथ के स्पिन गेंदबाज के रूप में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में अपनी पहचान बनाई.

प्रज्ञान ओझा का जन्म 5 सितंबर 1986 को भुनेश्वर में हुआ था. ओझा ने वर्ष 2008 में अपना अंतर्राष्ट्रीय डेब्यू किया था. उन्होंने 24 टेस्ट, 18 वनडे और 6 टी-20 मैच खेले। टेस्ट में उनके नाम 113 विकेट, वनडे में 21 और टी-20 में 10 विकेट हैं. प्रज्ञान का आखिरी टेस्ट मैच सचिन तेंदुलकर का विदाई मैच था (नवंबर वर्ष 2013, वेस्टइंडीज के खिलाफ).  इस मैच में उन्होंने कुल 10 विकेट लेकर मैन ऑफ द मैच का खिताब जीता था। हालांकि, यह उनके कैरियर का अंतिम अंतर्राष्ट्रीय मैच साबित हुआ.

 प्रज्ञान ने  आईपीएल में डेक्कन चार्जर्स और मुंबई इंडियंस के लिए खेला. वह आईपीएल वर्ष  2010 में पर्पल कैप (सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज) जीतने वाले पहले स्पिनर थे. उस सीज़न में उन्होंने 16 मैचों में 21 विकेट लिए थे. घरेलू क्रिकेट में प्रज्ञान ने हैदराबाद और बंगाल के लिए खेला. वर्ष  2018 में, वह बिहार क्रिकेट टीम के कप्तान भी बने थे. प्रज्ञान ओझा ने फरवरी 2020 में अंतर्राष्ट्रीय और प्रथम श्रेणी क्रिकेट से संन्यास की घोषणा की थी.

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अभिनेत्री साई लोकुर

साई लोकुर एक अभिनेत्री हैं जो मुख्य रूप से मराठी और हिंदी फिल्मों में काम करती हैं. उनका जन्म 5 सितंबर 1989 को बेलगाम, कर्नाटक में हुआ था. वह फिल्म निर्देशक और निर्माता वीणा लोकुर की बेटी हैं.

लोकुर ने अपनी शुरुआती पढ़ाई बेलगाम में की और बाद में मुंबई के रूपारेल कॉलेज से स्नातक किया। उन्हें बचपन से ही अभिनय का शौक था और उन्होंने एक बाल कलाकार के रूप में कई फिल्मों और विज्ञापनों में काम किया है. साई लोकुर का विवाह 30 नवंबर 2020 को तीर्थदीप रॉय से हुआ था.

लोकुर ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत बाल कलाकार के रूप में की थी. वर्ष 2015 में उन्होंने हिंदी फिल्म “किस किसको प्यार करूँ” में कपिल शर्मा के साथ काम किया. उन्होंने रियलिटी शो “बिग बॉस मराठी 1” में एक प्रतियोगी के रूप में भाग लिया और शीर्ष 5 फाइनलिस्ट में से एक थीं.   

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रतनजी टाटा

रतनजी टाटा जमशेदजी नासरवानजी टाटा के पुत्र और टाटा समूह के संस्थापक थे. उन्होंने भारत में टाटा समूह के विकास में एक निर्णायक भूमिका निभाई थी. रतनजी टाटा का जन्म 20 जनवरी 1871 को हुआ था. रतनजी टाटा जमशेदजी टाटा के पुत्र थे. उन्होंने अपनी शिक्षा इंग्लैंड में प्राप्त की.

रतनजी टाटा ने टाटा परिवार के सदस्य के रूप में अपना कैरियर शुरू किया. उन्होंने अपनी पढ़ाई के बाद मास्टर्स इन ऑर्चिटेक्चर की डिग्री प्राप्त की और फिर व्यापार में कैरियर बनाया. टाटा ऐंड कंपनी के साझीदार होने के साथ ही ये इंडियन होस्टल्स कंपनी लिमिटेड, टाटा लिमिटेड, लंदन टाटा आयरन ऐंड स्टील वर्क्स साकची, दि टाटा हाइड्रो इलेक्ट्रिक पावर सप्लाई कंपनी लिमिटेड, इंडिया, के डाइरेक्टर भी थे रतनजी टाटा.  

टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी (TISCO): रतनजी टाटा ने TISCO को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. यह कंपनी भारत की पहली आधुनिक इस्पात कंपनी थी और इसने भारतीय उद्योग को एक नई दिशा दी. उन्होंने इस कंपनी की स्थापना करके भारत में बिजली उत्पादन के क्षेत्र में क्रांति ला दी. उन्होंने भारतीय होटल उद्योग को बढ़ावा देने के लिए टाटा इंडियन होटल्स की स्थापना की. रतनजी टाटा सिर्फ एक उद्योगपति ही नहीं थे, बल्कि एक महान परोपकारी भी थे. उन्होंने शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए.

रतनजी टाटा की विरासत आज भी टाटा समूह में देखी जा सकती है. उनकी दूरदर्शिता और उद्यमशीलता ने टाटा समूह को एक वैश्विक स्तर पर एक प्रमुख समूह बनाया. भारत के दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा का निधन 9 अक्टूबर 2024 को मुंबई में हुआ था.

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व्यंग्यकार शरद जोशी

शरद जोशी एक प्रसिद्ध भारतीय व्यंग्यकार, लेखक, और कवि थे, जिन्होंने हिंदी साहित्य में अपने व्यंग्य और हास्य से खास पहचान बनाई. उनका जन्म 21 मई 1931 को उज्जैन, मध्य प्रदेश में हुआ था और उन्होंने सागर यूनिवर्सिटी से अपनी शिक्षा प्राप्त की. शरद जोशी ने अपने लेखन कैरियर की शुरुआत एक पत्रकार के रूप में की और बाद में वे स्वतंत्र लेखन में सक्रिय हो गए.

उन्होंने कई व्यंग्य संग्रह लिखे जैसे कि “तिथि कुतिथि”, “यथासंभव”, और “परिक्रमा”.  शरद जोशी की रचनाएँ अक्सर सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर कटाक्ष करती हैं, और उन्होंने आम आदमी की समस्याओं को बड़ी सहजता और हास्य के साथ प्रस्तुत किया. उनके लेखन में गहराई और साहित्यिक गुणवत्ता के साथ-साथ मनोरंजन का तत्व भी मौजूद रहता है.

शरद जोशी ने टेलीविजन के लिए भी लिखा, जिसमें उनकी चर्चित टीवी सीरीज़ “ये जो है जिंदगी” शामिल है. उनका देहांत 5 सितंबर, 1991 को हुआ. उनके निधन के बाद भी, उनकी रचनाएँ हिंदी साहित्य में उनकी अमिट छाप छोड़ गईं और आज भी व्यंग्य के प्रेमियों द्वारा उन्हें बहुत पसंद किया जाता है.

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संगीतकार सलिल चौधरी

सलिल चौधरी भारतीय फिल्म संगीत के एक महान संगीतकार, गीतकार, और लेखक थे. उन्हें भारतीय फिल्म संगीत में एक क्रांतिकारी बदलाव लाने वाले व्यक्तियों में गिना जाता है. उनकी प्रतिभा का दायरा हिंदी, बंगाली, मलयालम, तमिल और अन्य भाषाओं में फैला हुआ था. उन्हें उनके अनोखे संगीत संयोजन और सामाजिक मुद्दों पर आधारित रचनाओं के लिए विशेष रूप से याद किया जाता है.

सलिल चौधरी का जन्म 19 नवम्बर, 1923 ई. को सोनारपुर शहर, पश्चिम बंगाल में हुआ था. उनके पिता ज्ञानेन्द्र चंद्र चौधरी असम में डॉक्टर थे. सलिल ने बचपन में ही विभिन्न प्रकार के संगीत (भारतीय लोक, पश्चिमी शास्त्रीय) के प्रति रुचि विकसित की. उनके साहित्य और संगीत में रुचि बंगाल के प्रगतिशील आंदोलन से प्रभावित थी. बचपन से ही उन्होंने संगीत को समाज के बदलाव का माध्यम माना.

उनका पहला हिंदी फिल्म प्रोजेक्ट था “दो बीघा ज़मीन” (1953). बिमल रॉय द्वारा निर्देशित यह फिल्म सलिल चौधरी के संगीत और उनके संदेशात्मक गीतों के लिए मशहूर हुई. उनके अनोखे संगीत में भारतीय और पश्चिमी शैलियों का संगम था.

लोकप्रिय गीत: –

जिंदगी कैसी है पहेली (आनंद, 1971),

ओ सजना बरखा बहार आई (परख, 1960),

मेरा गोरा अंग लेई ले (बंदिनी, 1963),

छोटी सी बात और अन्य फिल्मों के गानों में भी उनका योगदान अविस्मरणीय है.

वे बांग्ला संगीत (अधिकतर रवींद्र संगीत) में भी एक प्रमुख व्यक्तित्व थे. उनकी बांग्ला रचनाएँ आज भी बेहद लोकप्रिय हैं. वहीं, मलयालम फिल्मों में उन्होंने लोक संगीत और पश्चिमी संगीत का अनोखा मिश्रण प्रस्तुत किया.

सलिल चौधरी ने न केवल संगीत रचा, बल्कि कई गीत भी लिखे. उनके गीत सामाजिक समस्याओं, न्याय और मानवता जैसे विषयों पर आधारित थे. वे फिल्मों की पटकथा और कहानियाँ लिखने में भी निपुण थे. सलिल चौधरी को कई राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया.  भारतीय संगीत और सिनेमा के लिए उनके योगदान को अमूल्य माना जाता है.

सलिल चौधरी का निधन 5 सितंबर 1995 को हुआ था. उनका योगदान आज भी भारतीय फिल्म संगीत और साहित्य जगत में अमिट है. सलिल चौधरी एक ऐसे संगीतकार थे जिन्होंने अपने संगीत और शब्दों से सामाजिक जागरूकता पैदा की. उनकी रचनाएँ आज भी संगीत प्रेमियों के दिलों में जीवित हैं.

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समाज सेविका मदर टेरेसा

मदर टेरेसा, जिनका वास्तविक नाम एग्नेस गोंक्सा बोजाक्सीउ था, एक कैथोलिक नन और मिशनरी थीं. उन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों, बीमारों, अनाथों और बेसहारा लोगों की सेवा में समर्पित कर दिया था.

मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को स्कॉप्जे (जो अब उत्तरी मैसेडोनिया की राजधानी है) में हुआ था. 18 साल की उम्र में, वह नन बन गईं और आयरलैंड चली गईं. वर्ष 1929 में वह भारत आईं और दार्जिलिंग में लोरेटो सिस्टर्स के साथ रहीं. उन्होंने कुछ समय तक कलकत्ता (अब कोलकाता) में एक स्कूल में भी पढ़ाया.

वर्ष 1950 में, उन्होंने मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी (Missionaries of Charity) की स्थापना की. इस संस्था का मुख्य उद्देश्य उन लोगों की देखभाल करना था जिन्हें समाज ने त्याग दिया था. यह संस्था आज भी दुनिया भर में गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा कर रही है. वर्ष 1979 में, उन्हें उनके मानवीय कार्यों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उन्होंने यह पुरस्कार गरीबों के नाम पर स्वीकार किया.

वर्ष 2016 में, पोप फ्रांसिस ने उन्हें संत की उपाधि दी, जिसके बाद उन्हें सेंट टेरेसा ऑफ़ कलकत्ता के नाम से भी जाना जाने लगा. मदर टेरेसा का निधन 5 सितंबर 1997 को हुआ था. उनकी विरासत आज भी जीवित है—कोलकाता में ‘निर्मल हृदय’ जैसे संस्थान, और दुनिया भर में सेवा के कार्यक्रम उनकी प्रेरणा से चलते हैं.

मदर टेरेसा को उनके निस्वार्थ प्रेम, करुणा और सेवा के लिए हमेशा याद किया जाता है. उन्होंने दुनिया को यह सिखाया कि सबसे बड़ी दौलत दूसरों की मदद करना है.

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