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व्यक्ति विशेष -613.

दादा भाई नौरोजी

दादाभाई नौरोजी जिन्हें “ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया” के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख नेता और विद्वान थे. उनका जन्म 4 सितंबर 1825 को मुंबई में एक पारसी परिवार में हुआ था. नौरोजी भारतीय राजनीति के पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीयों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति में सुधार लाने के लिए ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज उठाई.

नौरोजी ने एल्फिंस्टन कॉलेज, मुंबई से अपनी शिक्षा प्राप्त की और बाद में इस कॉलेज में गणित के प्रोफेसर बने. वे पहले भारतीय थे जिन्हें इस कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया था. दादाभाई नौरोजी ने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को समर्पित किया.

प्रमुख योगदान: –

ब्रिटिश संसद सदस्य: – नौरोजी वर्ष 1892 में ब्रिटिश संसद के सदस्य बने और वे पहले भारतीय थे जिन्होंने यह पद हासिल किया. उन्होंने लिबरल पार्टी के टिकट पर फिन्सबरी सेंट्रल सीट से चुनाव जीता. संसद में रहते हुए, उन्होंने भारतीयों के अधिकारों और समस्याओं को उठाया.

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस: – नौरोजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे. वे तीन बार (वर्ष 1886, वर्ष 1893, और वर्ष 1906) कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए. उन्होंने कांग्रेस के माध्यम से भारतीयों की आवाज को ब्रिटिश सरकार तक पहुंचाने का कार्य किया.

द्रेन थ्योरी: – नौरोजी ने “द्रेन थ्योरी” की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसके अनुसार ब्रिटिश शासन के दौरान भारत से आर्थिक संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा ब्रिटेन में चला जाता था. उन्होंने अपनी पुस्तक “पॉवर्टी एंड अन-ब्रिटिश रूल इन इंडिया” में इस सिद्धांत को विस्तार से समझाया और यह बताया कि ब्रिटिश शासन के कारण भारत की आर्थिक स्थिति कैसे खराब हो रही थी.

शिक्षा और सामाजिक सुधार: – नौरोजी ने भारतीय शिक्षा और समाज सुधार के लिए भी काम किया. वे महिलाओं की शिक्षा के प्रबल समर्थक थे और उन्होंने बाल विवाह और जाति प्रथा के खिलाफ भी आवाज उठाई.

दादाभाई नौरोजी को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले. उन्हें “ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ इंडिया” की उपाधि दी गई, जो उनके संघर्ष और समर्पण को दर्शाती है.

दादाभाई नौरोजी का निधन 30 जून 1917 को हुआ था. उनकी विरासत आज भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान रखती है और उनके द्वारा किए गए कार्यों को हमेशा याद किया जाता है. दादाभाई नौरोजी का जीवन और कार्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण अध्याय है. उनके द्वारा किए गए संघर्ष और समर्पण ने भारतीयों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने की प्रेरणा दी.

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स्वतंत्रता सेनानी भूपेंद्रनाथ दत्त

भूपेंद्रनाथ दत्त भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक विलक्षण क्रांतिकारी, विचारक और समाजशास्त्री थे. वे स्वामी विवेकानंद के छोटे भाई थे, लेकिन उन्होंने अपनी अलग पहचान एक क्रांतिकारी और विद्वान के रूप में बनाई।

भूपेंद्रनाथ दत्त का जन्म 4 सितंबर, 1880 ई. को कोलकाता में हुआ था. वे छात्र जीवन से ही राजनीतिक गतिविधियों में शामिल हो गए थे. उन्होंने वर्ष 1906 में उन्होंने ‘युगांतर’ नामक क्रांतिकारी पत्रिका का संपादन शुरू किया. इस पत्रिका के माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों का खुलकर विरोध किया और युवाओं में राष्ट्रवाद की भावना जगाई. उनके लेख इतने प्रभावी थे कि वर्ष 1907 में उन्हें राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और एक साल की कठोर कारावास की सजा सुनाई गई.

वर्ष 1902 में वह प्रमथनाथ मित्र द्वारा स्थापित अनुशीलन समिति से जुड़े।  यह एक गुप्त क्रांतिकारी संगठन था, जिसने ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र क्रांति की योजना बनाई. वर्ष 1908 में जेल से रिहा होने के बाद, अंग्रेजों के बढ़ते दमन-चक्र के कारण वह अमेरिका चले गए. वहाँ वे ग़दर पार्टी से जुड़े, जो विदेशों में रह रहे भारतीयों द्वारा भारत की आजादी के लिए काम कर रही थी. प्रथम विश्व युद्ध के दौरान, उन्होंने जर्मनी में ‘इंडियन इंडिपेंडेंस कमेटी’ का गठन किया. इस समिति का उद्देश्य भारत की स्वतंत्रता के लिए जर्मनी का सहयोग लेना था.

भूपेंद्रनाथ दत्त सिर्फ एक क्रांतिकारी ही नहीं थे, बल्कि एक समाज सुधारक भी थे। उन्होंने जाति-पाति, छुआछूत और महिलाओं के प्रति भेदभाव का पुरजोर विरोध किया. उनका निधन 25 दिसंबर 1961 को कोलकाता में हुआ था.

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वैज्ञानिक ज्ञान चंद्र घोष

ज्ञानचंद्र घोष भारत के एक प्रख्यात रसायनज्ञ थे, जिन्हें भारत में वैज्ञानिक अनुसंधान, औद्योगिक विकास और प्रौद्योगिकी शिक्षा के विकास में उनके अमूल्य योगदान के लिए जाना जाता है. ज्ञान चंद्र घोष का जन्म 14 सितम्बर 1894 को पश्चिम बंगाल के पुरुलिया नामक स्थान पर हुआ था. उन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज, कलकत्ता से रसायन विज्ञान में एम.एस.सी किया और कलकत्ता विश्वविद्यालय से डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की.

ज्ञानचंद्र घोष ने कई वर्षों तक कलकत्ता विश्वविद्यालय में पढ़ाया और छात्रों को रसायन विज्ञान के क्षेत्र में प्रेरित किया. उन्होंने रसायन विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में उल्लेखनीय शोध कार्य किया. उन्होंने भारत में रासायनिक उद्योग के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे कई वैज्ञानिक संस्थाओं के संस्थापक और सदस्य रहे. उन्होंने औद्योगिक अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की.

ज्ञानचंद्र घोष का निधन  21 जनवरी, 1959 को हुआ था. ज्ञानचंद्र घोष ने भारत में विज्ञान के क्षेत्र में एक अमूल्य योगदान दिया. उनकी विरासत आज भी प्रासंगिक है और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है.

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साहित्यकार सियारामशरण गुप्त

 सियारामशरण गुप्त भारतीय हिंदी साहित्य के एक प्रसिद्ध कवि थे. उनका जन्म 4 सितम्बर 1895 में उत्तर प्रदेश के चिरगांव में हुआ था. गुप्त जी का निधन 29 मार्च 1963 को हुआ. उनके साहित्य में देशभक्ति, प्रकृति, सामाजिक और आध्यात्मिक विचारों का सुंदर मिश्रण मिलता है. उन्होंने छंदबद्ध कविता को नया आयाम दिया और हिंदी साहित्य में उनकी रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं.

सियारामशरण गुप्त की प्रसिद्ध कृतियों में ‘आर्द्रा, ‘दुर्वादल, ‘विषाद, ‘बापू तथा ‘गोपिका आदि शामिल हैं. उनकी पहली रचना ‘मौर्य विजय’ थी. इसके अतिरिक्त इन्होंने ‘गोद, ‘नारी, ‘अंतिम आकांक्षा (उपन्यास), ‘मानुषी (कहानी संग्रह), नाटक, निबंध आदि लगभग 50 ग्रंथ रचे थे.

 गुप्त की भाषा-शैली पर घर के वैष्णव संस्कारों और गांधीवाद का प्रभाव था.  हिंदी में शुद्ध सात्विक भावोद्गारों के लिए गुप्त जी की रचनाएँ स्मरणीय रहेंगी. हिंदी की गांधीवादी राष्ट्रीय धारा के वह प्रतिनिधि कवि हैं सियारामशरण गुप्त. उनका साहित्यिक योगदान हिंदी साहित्य को एक नई दिशा और दृष्टिकोण प्रदान करता है.

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साहित्यकार व आलोचक नंद दुलारे वाजपेयी

नंद दुलारे वाजपेयी हिन्दी के प्रसिद्ध पत्रकार, समीक्षक, साहित्यकार, आलोचक तथा सम्पादक थे. उन्हें विशेष रूप से छायावादी कविता के शीर्षस्थ आलोचक के रूप में जाना जाता है. नंददुलारे वाजपेयी का जन्म 4 सितंबर, 1906 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के मगरायर गाँव में हुआ था. उनकी शिक्षा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से हुई, जहाँ उन्होंने एम.ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की.

नंद दुलारे ने अपने कैरियर की शुरुआत पत्रकारिता से की और दो वर्षों से अधिक समय तक ‘भारत’ नामक पत्र के संपादक रहे. बाद में उन्होंने विभिन्न शैक्षणिक पदों पर काम किया, जिसमें बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष के पद शामिल हैं. अंत में, उन्होंने उज्जैन के विक्रम विश्वविद्यालय के उपकुलपति का पद भी संभाला.

नंद दुलारे का सबसे बड़ा योगदान हिंदी आलोचना के क्षेत्र में है. उन्होंने आचार्य रामचंद्र शुक्ल के बाद की आलोचना को एक नई दिशा दी. जहाँ शुक्ल जी ने छायावाद को उतनी सहानुभूति नहीं दी, वहीं वाजपेयी जी ने छायावादी कवियों जैसे जयशंकर प्रसाद, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और सुमित्रानंदन पंत को हिंदी साहित्य में स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई.

कृतियाँ : – हिंदी साहित्य: बीसवीं शताब्दी (1940), जयशंकर प्रसाद (1940), आधुनिक साहित्य (1950), नया साहित्य: नये प्रश्न (1955), महाकवि सूरदास, कवि निराला, रस सिद्धांत: नए संदर्भ, हिंदी साहित्य का संक्षिप्त इतिहास.

इसके अलावा, उन्होंने ‘सूरसागर’ और ‘रामचरितमानस’ जैसे ग्रंथों का संपादन भी किया, जो मध्यकालीन भक्ति काव्य के प्रति उनके गहरे अध्ययन को दर्शाता है. नंद दुलारे वाजपेयी का निधन 11 अगस्त 1967 को हुआ था.

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राजनीतिज्ञ सुशील कुमार शिंदे

सुशील कुमार शिंदे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक वरिष्ठ और अनुभवी नेता हैं. उनका लंबा राजनीतिक जीवन रहा है, जिसमें उन्होंने महाराष्ट्र और केंद्र सरकार दोनों में महत्वपूर्ण पदों पर काम किया है.

शिंदे का जन्म 4 सितंबर 1941 को महाराष्ट्र के सोलापुर में हुआ था. उनका शुरुआती जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहा. उन्होंने पुलिस विभाग में सब-इंस्पेक्टर के रूप में भी काम किया. बाद में, वे राजनीति में आए और वर्ष 1971 में कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए. उन्होंने महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्य के रूप में कई बार चुनाव जीता और राज्य में वित्त मंत्री के रूप में लगातार नौ बार बजट प्रस्तुत किया.

सुशील कुमार शिंदे ने वर्ष 2003 – 2004 तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया. वे इस पद पर पहुँचने वाले पहले दलित नेता थे. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में, उन्होंने वर्ष 2012-14 तक भारत के गृह मंत्री के रूप में कार्य किया. यह उनके कैरियर का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था. गृह मंत्री बनने से पहले, वे वर्ष 2006- 12 तक केंद्रीय ऊर्जा मंत्री रहे. वर्ष 2004 में मुख्यमंत्री का पद छोड़ने के बाद, उन्हें आंध्र प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया था.

सुशील कुमार शिंदे ने हाल ही में सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा की और अपनी राजनीतिक विरासत अपनी बेटी प्रणिती शिंदे को सौंपी, जो खुद एक विधायक और अब लोकसभा सांसद हैं.

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अभिनेता ऋषि कपूर

ऋषि कपूर, भारतीय सिनेमा के प्रमुख अभिनेता और कपूर खानदान के सदस्य थे. उनका जन्म 4 सितंबर 1952 को मुंबई में हुआ था. ऋषि कपूर ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत बाल कलाकार के रूप में 1970 में फिल्म “मेरा नाम जोकर” से की थी. इसके बाद, उन्होंने वर्ष 1973 में फिल्म “बॉबी” से अपनी पहली फिल्म में मुख्य भूमिका निभाई और इस फिल्म ने उन्हें एक स्टार बना दिया.

ऋषि कपूर ने अपने लगभग पांच दशकों के कैरियर में सैकड़ों फिल्मों में काम किया और विभिन्न प्रकार की भूमिकाएँ निभाईं. उनकी प्रमुख फिल्मों में “अमर अकबर एंथनी”, “कर्ज”, “सागर”, “चांदनी”, और “दीवाना” शामिल हैं. उन्होंने अपनी अभिनय क्षमता के द्वारा हर तरह के किरदार को जीवंत किया.

ऋषि कपूर को उनके चार्मिंग पर्सनालिटी और नैचुरल अभिनय के लिए जाना जाता था. वे न केवल एक उत्कृष्ट अभिनेता थे बल्कि उन्होंने अपने जीवन काल में भारतीय सिनेमा को विभिन्न योगदान दिए. उनका निधन 30 अप्रैल 2020 को हुआ, जिसने फिल्म जगत और उनके प्रशंसकों को गहरा दुख पहुंचाया. उनकी फिल्में और उनका योगदान भारतीय सिनेमा की धरोहर के रूप में हमेशा याद किए जाएंगे.

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क्रिकेटर किरण मोरे

किरण मोरे का पूरा नाम किरण शंकर मोरे है जो एक पूर्व भारतीय क्रिकेटर हैं, जिन्होंने वर्ष 1980 और वर्ष 1990 के दशक में भारतीय टीम के लिए विकेटकीपर-बल्लेबाज के रूप में खेला था.

किरण मोरे का जन्म 4 सितंबर 1962 को वडोदरा, गुजरात में हुआ था. उन्होंने वर्ष 1984 -93 तक भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया. किरण मोरे ने वर्ष 1984 में इंग्लैंड के खिलाफ वनडे में और वर्ष 1986 में इंग्लैंड के खिलाफ ही टेस्ट में डेब्यू किया था. वो विकेटकीपर-बल्लेबाज के रूप में जाने जाते थे और उनकी विकेट कीपिंग बहुत अच्छी मानी जाती थी.

मोरे ने 49 टेस्ट मैच और 94 वनडे मैच खेले. जिनमें टेस्ट मैचों में उन्होंने 1285 रन बनाए, जिसमें 7 अर्धशतक शामिल हैं जबकि,  वनडे में उन्होंने 563 रन बनाए. विकेट कीपर के रूप में उन्होंने टेस्ट में 110 कैच और 20 स्टंपिंग की, जबकि वनडे में 63 कैच और 27 स्टंपिंग की.

 किरण मोरे को वर्ष 1993 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद, उन्होंने क्रिकेट प्रशासन में भी अपनी भूमिका निभाई. वर्ष 2002- 2006 तक भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) की चयन समिति के अध्यक्ष थे. बाद में, उन्हें यूनाइटेड स्टेट्स क्रिकेट टीम का अंतरिम कोच भी नियुक्त किया गया था.

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पूर्व मुख्यमंत्री भोला पासवान शास्त्री

भोला पासवान शास्त्री बिहार के एक प्रमुख राजनीतिक नेता थे, जिन्होंने तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया. उनका जन्म 21 सितंबर 1914 को बिहार के पूर्णिया जिले के बयासी गांव में हुआ था. वे समाजवादी और दलित समुदाय के नेता के रूप में जाने जाते थे, और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी.

भोला पासवान शास्त्री का राजनीतिक जीवन भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण माना जाता है, खासकर बिहार की राजनीति में. उन्होंने पहली बार वर्ष 1968 में मुख्यमंत्री का पद संभाला, और उसके बाद वर्ष 1969 और वर्ष 1971 में भी मुख्यमंत्री बने. शास्त्री जी को उनकी सादगी, ईमानदारी, और गरीबों तथा वंचित वर्गों के उत्थान के प्रति समर्पण के लिए जाना जाता है.

उनकी नीतियाँ और निर्णय समाज के पिछड़े और गरीब तबकों को सशक्त बनाने पर केंद्रित थे। भोला पासवान शास्त्री की सरकार ने कृषि, शिक्षा, और सामाजिक सुधारों पर ध्यान दिया. उन्होंने शिक्षा के प्रसार और समाज में समानता की भावना को बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण कार्य किए.

भोला पासवान शास्त्री का निधन 9 सितंबर 1984 को दिल्ली में हुआ था. भोला पासवान शास्त्री के राजनीतिक जीवन और उनकी उपलब्धियों को भारतीय राजनीति में हमेशा सम्मानपूर्वक याद किया जाता है.

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भूतपूर्व मुख्यमंत्री सत्येन्द्र नारायण सिन्हा

बिहार में “छोटे साहब” के नाम से लोकप्रिय थे सत्येन्द्र नारायण सिन्हा. वे एक स्वतंत्रता सेनानी, सांसद, शिक्षा मंत्री और जेपी आंदोलन के एक प्रमुख स्तंभ भी थे. उन्होंने बिहार के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

सत्येन्द्र नारायण सिन्हा का जन्म 12 सितम्बर 1917 को मगध मंडल, बिहार में हुआ था और उनका निधन 4 सितंबर  2006 को पटना, बिहार में हुआ. उनका प्रारंभिक विद्यार्थी जीवन इलाहाबाद में लाल बहादुर शास्त्री जी के सानिध्य में बीता था. सत्येंद्र नारायण सिन्हा की पत्नी किशोरी सिन्हा वैशाली की पहली महिला सांसद थी तथा वर्ष 1980 में जनता पार्टी व वर्ष 1984 में कांग्रेस पार्टी से सांसद बनी थी.

सत्येन्द्र नारायण सिन्हा ने वर्ष 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हुए थे. स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी के बाद देश की आज़ादी के समय राष्ट्रीय राजनीति में इनका नाम वज़नदार हो चुका था. उन्होंने छठे और सातवें दशक में बिहार की राजनीति में निर्णायक भूमिका निभायी थी.

सत्येन्द्र नारायण सिन्हा वर्ष 1961 में बिहार के शिक्षा मंत्री बने और उप मुख्यमंत्री के रूप में भी कार्य किया. उनके कार्यकाल में मगध विश्वविद्यालय की स्थापना हुई, जो उनकी एक बड़ी उपलब्धि मानी जाती है. वे वर्ष 1989-90 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे. उन्होंने औरंगाबाद लोकसभा क्षेत्र से सात बार चुनाव जीता. उनके क्षेत्र को “मिनी चित्तौड़गढ़” के नाम से भी जाना जाता था. उन्होंने वर्ष 1972 में उत्तरी कोयल परियोजना नहर का शिलान्यास किया. उन्हीं के अथक प्रयासों के बाद पटना में तारामंडल का निर्माण हुआ.

सत्येन्द्र नारायण सिन्हा को अपनी सैद्धांतिक राजनीति और युवाओं को प्रेरित करने के लिए जाना जाता था. उन्होंने हमेशा शिक्षा और विकास को प्राथमिकता दी, जिससे बिहार की प्रगति में एक नई दिशा मिली.

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