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व्यक्ति विशेष -613.

साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चंद्र

भारतेन्दु हरिश्चंद्र हिंदी साहित्य के एक प्रमुख स्तंभ हैं. उन्हें आधुनिक हिंदी साहित्य का जनक और भारतीय नवजागरण का अग्रदूत माना जाता है. उनका जीवनकाल सिर्फ 35 वर्ष का रहा , लेकिन इस छोटी सी अवधि में उन्होंने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा दी.

भारतेन्दु हरिश्चंद्र का जन्म 9 सितंबर 1850 को वाराणसी के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था. उनके पिता गोपालचंद्र भी एक प्रसिद्ध कवि थे, जो ‘गिरधरदास’ उपनाम से कविता लिखते थे. बचपन में ही माता-पिता का निधन हो जाने के बाद भी, उन्होंने अपनी प्रतिभा और स्वाध्याय से हिंदी, उर्दू, फारसी, बांग्ला और अंग्रेजी जैसी भाषाओं में महारत हासिल की.

भारतेन्दु ने न सिर्फ कविताएं और नाटक लिखे, बल्कि हिंदी गद्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे हिंदी गद्य के वास्तविक जनक माने जाते हैं. उन्होंने बोलचाल की खड़ी बोली को साहित्य की भाषा के रूप में स्थापित किया. उन्होंने हिंदी नाटक को आधुनिक रूप दिया और उसे समाज की समस्याओं से जोड़ा. उनके नाटकों में देशभक्ति, सामाजिक कुरीतियां, और राजनीतिक चेतना का चित्रण मिलता है. ‘भारत दुर्दशा’, ‘अंधेर नगरी’, और ‘सत्य हरिश्चंद्र’ उनके कुछ प्रमुख नाटक हैं.

भारतेन्दु ने हिंदी पत्रकारिता की नींव रखी. उन्होंने ‘कविवचनसुधा’, ‘हरिश्चंद्र मैगजीन’, और ‘बाला बोधिनी’ जैसी पत्रिकाओं का संपादन और प्रकाशन किया. इन पत्रिकाओं के माध्यम से उन्होंने सामाजिक और राष्ट्रीय विचारों को लोगों तक पहुंचाया. उन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त अंधविश्वासों, रूढ़ियों और कुरीतियों पर तीखा व्यंग्य कियासाथ ही  समाज सुधार और राष्ट्रीय भावना को जगाने का भी काम किया, इसलिए उन्हें भारतीय नवजागरण का अग्रदूत भी कहा जाता है.

रचनाएं: –

मौलिक नाटक: –वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति’, ‘विषस्य विषमौषधम्’, ‘भारत दुर्दशा’, ‘अंधेर नगरी’, ‘नीलदेवी’, ‘प्रेमजोगिनी’.

अनूदित नाटक: – ‘विद्यासुन्दर’, ‘सत्य हरिश्चंद्र’, ‘मुद्राराक्षस’, ‘दुर्लभ बंधु’.

काव्य-कृतियां: – ‘प्रेम मालिका’, ‘प्रेम सरोवर’, ‘प्रेम तरंग’, ‘होली’, ‘मधु मुकुल’, ‘विनय प्रेम पचासा’, ‘फूलों का गुच्छा’.

निबंध: – ‘भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है’, ‘कश्मीर कुसुम’, ‘नाटक’.

 भारतेन्दु का साहित्य आधुनिक हिंदी साहित्य की नींव है. उन्होंने अपनी छोटी सी उम्र में जो काम किया, वह हिंदी साहित्य के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ. उनका निधन 6 जनवरी 1885 को हुआ था.

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साहित्यकार गोपाल चंद्र प्रहराज

गोपाल चंद्र प्रहराज उड़िया भाषा के प्रसिद्ध साहित्यकार भाषाविद् और व्यंग्य लेखक थे. उनके द्वारा संकलित विशाल ओड़िया शब्दकोश, ‘पूर्णचंद्र ओड़िआ भाषाकोष’ के लिए भी उन्हें जाना जाता है. गोपाल चंद्र प्रहराज का जन्म 9 सितम्बर 1874 ई. में उड़ीसा के कटक ज़िले में सिद्धेखरपुर नामक गाँव में एक ज़मींदार ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उन्होंने क़ानून की शिक्षा ‘कोलकाता विश्वविद्यालय’ से प्राप्त की थी। इसके बाद वे वर्ष 1902 में वकील बने.

प्रहराज ने अपने लेखन में व्यंग्य का कुशलतापूर्वक इस्तेमाल किया. वे सामाजिक कुरीतियों, अंधविश्वासों और असमानताओं पर तीखे व्यंग्य करते थे. उनकी भाषा सरल और प्रभावी थी, जो सीधे पाठकों के मन को छूती थी.

रचनाएँ: – 

पूर्णचंद्र ओड़िआ भाषाकोष: यह उनका सबसे महत्वपूर्ण और गौरवशाली काम है. यह सात खंडों में प्रकाशित एक विशाल शब्दकोश है, जिसमें लगभग 1,84,000 शब्द शामिल हैं. इस शब्दकोश को तैयार करने में उन्हें लगभग 30 साल लगे. यह ओड़िया भाषा का एक अनमोल खजाना माना जाता है.

भागवत तुंगीरे संध्या, बै महंती पंजी और अमर घारा हलचल. उनके हास्य-व्यंग्यात्मक निबंधों का संग्रह है.

गोपाल चंद्र प्रहराज का निधन 16 मई 1945 को हुआ था. प्रहराज को आधुनिक ओड़िया गद्य साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. उनकी रचनाओं ने ओड़िया समाज में जागरूकता लाने और सुधार लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

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अभिनेत्री लीला चिटनिस

लीला चिटनिस भारतीय सिनेमा की अभिनेत्री थीं, जिन्होंने वर्ष 1930 – 40 के दशक में अपने अभिनय के लिए पहचान बनाई. वे हिंदी सिनेमा की पहली कुछ अभिनेत्रियों में से एक थीं, जिन्होंने अपने अभिनय कौशल और सुंदरता से दर्शकों का दिल जीता.

लीला चिटनिस का जन्म 9 सितंबर 1909 को महाराष्ट्र के धारवाड़ में हुआ था. उनका परिवार शिक्षित और प्रतिष्ठित था, जो उनके जीवन और कैरियर में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई में पूरी की. चिटनिस ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1930 के दशक में की. उन्होंने अपने समय की कई प्रमुख फिल्मों में अभिनय किया और जल्द ही हिंदी सिनेमा की प्रमुख अभिनेत्रियों में से एक बन गईं.

फिल्में: –

“जेजीबाई” (1933): – इस फिल्म से लीला चिटनिस ने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत की.

“बांबे टॉकीज” (1934): – इसमें उनके अभिनय ने उन्हें व्यापक पहचान दिलाई.

“कुंवारा बाप” (1942): – इस फिल्म में उनके अभिनय को काफी सराहा गया.

“शहीद” (1948): – इस फिल्म में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

“आनंद” (1971): – उन्होंने इस फिल्म में सहायक भूमिका निभाई और उनका किरदार बहुत ही प्रभावशाली था.

लीला चिटनिस ने अपने कैरियर के उत्तरार्ध में कई फिल्मों में मां के किरदार निभाए, जिनमें उनकी भूमिकाएँ बहुत ही प्रभावशाली थीं. उन्हें हिंदी सिनेमा की पहली ‘मदर इंडिया’ के रूप में भी माना जाता है. लीला चिटनिस का अभिनय स्वाभाविक और सजीव था. उन्होंने अपने किरदारों में गहराई और संवेदनशीलता लाई, जिससे उनके अभिनय में एक विशेष चमक आई.

लीला चिटनिस का व्यक्तिगत जीवन सादगी और समर्पण का प्रतीक था. उन्होंने अपने परिवार और कैरियर के बीच संतुलन बनाए रखा. उनके जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण और उनके संघर्षों ने उन्हें एक मजबूत और प्रेरणादायक महिला के रूप में स्थापित किया. लीला चिटनिस को उनके उत्कृष्ट अभिनय और भारतीय सिनेमा में उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए. उन्हें हिंदी सिनेमा की प्रतिष्ठित अभिनेत्रियों में से एक माना जाता है.

लीला चिटनिस का निधन 14 जुलाई 2003 को अमेरिका में हुआ. उनके निधन से भारतीय सिनेमा ने एक महान अभिनेत्री और सशक्त महिला को खो दिया. लीला चिटनिस का जीवन और कैरियर उनके अभिनय के प्रति समर्पण और कला के प्रति उनके प्रेम की गवाही देते हैं. उनके द्वारा निभाए गए किरदार और उनके योगदान भारतीय सिनेमा के इतिहास में हमेशा जीवित रहेंगे. उनकी प्रतिभा और व्यक्तित्व ने उन्हें एक प्रतिष्ठित स्थान दिलाया और वे आज भी कई लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं.

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निर्माता-निर्देशक महबूब ख़ान

महबूब ख़ान भारतीय सिनेमा के एक निर्माता-निर्देशक थे, जिनका वास्तविक नाम महबूब ख़ान रमज़ान ख़ान था. उनका जन्म 9 सितंबर 1907 को गुजरात के बिलिमोरा में हुआ था. वे भारतीय फिल्म उद्योग में अपने अनूठे दृष्टिकोण और सामाजिक संदेशों के लिए प्रसिद्ध थे. उनका सबसे चर्चित और प्रतिष्ठित कार्य फ़िल्म “मदर इंडिया” है, जिसे भारतीय सिनेमा के महानतम कृतियों में से एक माना जाता है.

महबूब ख़ान का जन्म एक गरीब मुस्लिम परिवार में हुआ था. उन्होंने प्रारंभिक जीवन में संघर्ष किया और किशोरावस्था में ही मुंबई चले गए, जहाँ उन्होंने फिल्म उद्योग में काम की तलाश शुरू की. उन्होंने छोटी भूमिकाओं से शुरुआत की और धीरे-धीरे फिल्म निर्माण और निर्देशन की ओर बढ़े.महबूब ख़ान ने अपने कैरियर में कई महत्वपूर्ण फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया.

फ़िल्में:  – 

रोटी (1942): – यह फिल्म भारतीय समाज की समस्याओं और संघर्षों को दर्शाती है. फिल्म में गरीबों की समस्याओं और उनके संघर्षों को प्रमुखता से दिखाया गया है.

अनमोल घड़ी (1946): – यह एक संगीत प्रधान फिल्म थी, जिसमें नूरजहाँ, सुरेंद्र, और सुरैया जैसे कलाकार थे. इस फिल्म के गाने बेहद लोकप्रिय हुए थे.

अंदाज़ (1949):  – यह फिल्म हिंदी सिनेमा की पहली त्रिकोणीय प्रेम कहानी थी, जिसमें दिलीप कुमार, नरगिस और राज कपूर ने मुख्य भूमिकाएँ निभाईं. फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर बड़ी सफलता हासिल की.

आन (1952):  – महबूब ख़ान की पहली टेक्नीकलर फिल्म थी, जिसमें दिलीप कुमार और निम्मी ने मुख्य भूमिकाएँ निभाईं. फिल्म भारतीय सिनेमा की पहली पूर्ण रंगीन फिल्म थी और इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रदर्शित किया गया.

महबूब ख़ान की सबसे प्रसिद्ध फिल्म “मदर इंडिया” है, जो वर्ष 1957 में रिलीज़ हुई थी. यह फिल्म भारतीय सिनेमा की सबसे महत्वपूर्ण और प्रतिष्ठित फिल्मों में से एक मानी जाती है. इसमें नरगिस, सुनील दत्त, राज कुमार और राजेंद्र कुमार ने मुख्य भूमिकाएँ निभाईं थी. “मदर इंडिया” को कई पुरस्कार मिले और यह ऑस्कर के लिए नामांकित होने वाली पहली भारतीय फिल्म बनी थी.

महबूब ख़ान को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले. उन्हें वर्ष 1964 में दादासाहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान है. महबूब ख़ान का निधन 28 मई 1964 को हुआ था. उनका योगदान भारतीय सिनेमा में अमूल्य है और उनकी फिल्में आज भी प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं. महबूब ख़ान का जीवन और कार्य भारतीय सिनेमा के विकास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है. उनकी फिल्में सामाजिक मुद्दों को प्रमुखता से उठाती हैं और उन्होंने भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डाला है.

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अभिनेता अक्षय कुमार

अक्षय कुमार जिनका असली नाम राजीव हरिओम भाटिया है, एक मशहूर फिल्म अभिनेता होने के साथ साथ वे निर्माता और मार्शल आर्टस में भी पारंगत हैं. प्यार से लोग उन्हें ‘अक्की’ भी कहते हैं. अक्षय कुमार ने 125 से ऊपर फिल्मों में काम किया है. उन्हें कई बार उनकी फिल्मों के लिए फिल्मफेयर अवार्डस में नामांकित किया गया है जिसमें से दो बार उन्होंने यह पुरस्कार जीता हैै. हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री में वह लंबे समय से काम कर रहे हैं और अपने अनुशासित स्वभाव और दिनचर्या के लिए भी जाने जाते हैं. ‘खिलाडि़यों के खिलाड़ी’ नाम से मशहूर अक्षय अपनी फिल्मों में ज्यादातर स्टंट स्वयं ही करते हैं.

अक्षय कुमार का जन्म 9 सितंबर 1967 को अमृतसर, पंजाब में हुआ था. उनके पिता एक आर्मी ऑफिसर थे. बचपन से ही उनकी दिलचस्पी मार्शल आर्ट्स में थी. उन्होंने बैंकॉक में मार्शल आर्ट्स की ट्रेनिंग ली और वहाँ एक शेफ और वेटर के रूप में भी काम किया. बाद में, मुंबई लौटकर उन्होंने मार्शल आर्ट्स सिखाना शुरू किया. यहीं पर एक छात्र के पिता ने उन्हें मॉडलिंग करने की सलाह दी, जिसके बाद उन्होंने फिल्मों में एंट्री की.

अक्षय कुमार ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत वर्ष 1991 में फिल्म ‘सौगंध’ से की थी. उनकी पहली बड़ी हिट फिल्म ‘खिलाड़ी’ थी, जिसने उन्हें एक एक्शन हीरो के रूप में पहचान दिलाई. इसके बाद उन्होंने कई सफल एक्शन फिल्में कीं, जिससे उन्हें ‘खिलाड़ी कुमार’ का टैग मिला.

फिल्में: –

एक्शन:  –खिलाड़ी’ (1992), ‘मोहरा’ (1994), ‘मैं खिलाड़ी तू अनाड़ी’ (1994)

कॉमेडी: ‘हेरा फेरी’ (2000), ‘वेलकम’ (2007), ‘सिंह इज़ किंग’ (2008)

थ्रिलर/ड्रामा: ‘अजनबी’ (2001), ‘रुस्तम’ (2016), ‘एयरलिफ्ट’ (2016)

सामाजिक मुद्दे: ‘टॉयलेट: एक प्रेम कथा’ (2017), ‘पैड मैन’ (2018).

अक्षय कुमार को उनके अभिनय के लिए कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें शामिल हैं: –

राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार: – वर्ष 2017 में फिल्म ‘रुस्तम’ के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार.

फिल्मफेयर पुरस्कार: –  ‘अजनबी’ (बेस्ट विलेन), ‘गरम मसाला’ (बेस्ट कॉमेडियन) जैसी फिल्मों के लिए कई पुरस्कार.

पद्म श्री: – वर्ष 2009 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया, जो भारत का चौथा सर्वोच्च नागरिक सम्मान है.

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शायर अकबर इलाहबादी

अकबर इलाहाबादी उर्दू के शायर थे, जिनका असली नाम सैयद अकबर हुसैन था.. उनका जन्म 16 नवम्बर 1846 को  इलाहाबाद के निकट बारा में हुआ था. अकबर इलाहाबादी अपनी हास्य-विनोद, व्यंग्य और गहरी सामाजिक टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं. उनकी शायरी में उस समय की राजनीति, संस्कृति और समाज का सजीव चित्रण मिलता है.

अकबर इलाहाबादी की शायरी का प्रमुख तत्व व्यंग्य है. उन्होंने समाज और ब्रिटिश शासन की विसंगतियों पर तीखे तंज किए. उनकी गजलें, नजम, रुबाई या क़ित हो उनका अपना ही एक अलग अन्दाज़ था.

” हम आह भी करते हैं तो हो जाते हैं बदनाम,

वो क़त्ल भी करते हैं तो चर्चा नहीं होती.”

अकबर ने अंग्रेज़ी शिक्षा और पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण पर तीखे व्यंग्य करते हुए…

इल्म का शौक़ है तो पढ़ो फ़र्ज़ान को,

इंजीनियर बनो या बैरिस्टर बन जाओ.

उनकी शायरी में भाषा सरल और मौलिक होती थी. आम बोलचाल की भाषा में उन्होंने गहरी बातें कही. अकबर इलाहाबादी परंपरागत भारतीय मूल्यों को बनाए रखने के पक्षधर थे और आधुनिकता को आवश्यकता से अधिक अपनाने के खिलाफ़ थे. उनकी ग़ज़लें और शेर आम जनता से लेकर विद्वानों तक में प्रसिद्ध हैं. उनकी शायरी में दिलचस्प भाषा और गहरे विचारों का अनूठा मेल देखने को मिलता है.

अकबर इलाहाबादी ने अपनी शायरी के माध्यम से समाज को एक नई दिशा देने का प्रयास किया. उनका निधन 9 सितम्बर 1921 को इलाहाबाद में हुआ था. आज भी उनकी रचनाएँ आज भी पढ़ी और सराही जाती हैं.

शेर: –

दुनिया में हूं, दुनिया का तलबगार नहीं हूं,

बाज़ार से गुज़रा हूं, ख़रीदार नहीं हूं.

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साहित्यकार रामवृक्ष बेनीपुरी

रामवृक्ष बेनीपुरी हिन्दी साहित्य के प्रमुख साहित्यकारों में से एक थे. वे एक उत्कृष्ट लेखक, पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी और समाज सुधारक थे. उनकी लेखनी में राष्ट्रीयता, समाजवाद, मानवीयता और ग्रामीण भारत की माटी की महक स्पष्ट रूप से झलकती है.

रामवृक्ष बेनीपुरी का जन्म 23 दिसंबर 1899 को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बेनीपुर गाँव में हुआ था. वे ग्रामीण परिवेश में पले-बढ़े और उनकी शिक्षा-दीक्षा भी सामान्य रही, लेकिन स्वाध्याय और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी के कारण वे गहरे विचारक और लेखक बने. बेनीपुरी जी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय सदस्य थे. उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन और सत्याग्रह में भाग लिया. इस कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा. जेल के दिनों ने उनकी लेखनी को और अधिक संवेदनशील और प्रखर बनाया.

रामवृक्ष बेनीपुरी का साहित्य बहुआयामी है. उन्होंने नाटक, कहानी, उपन्यास, निबंध और पत्रकारिता में योगदान दिया. उनकी रचनाओं में राष्ट्रीयता, सामाजिक बदलाव और मानवीय मूल्य प्रमुखता से दिखाई देते हैं.

प्रमुख कृतियाँ: –

अम्बपाली: – प्राचीन भारत की प्रसिद्ध नर्तकी अम्बपाली पर आधारित यह नाटक उनकी सबसे प्रसिद्ध कृतियों में से एक है.

जयंती:  – देशभक्ति और समाज सुधार की भावना से प्रेरित.

माटी की मूरतें: – ग्रामीण भारत की साधारण लेकिन संघर्षशील जिंदगी का चित्रण.

ग्राम्य जीवन: – ग्रामीण संस्कृति और समाज का जीवंत वर्णन.

पगली: – समाज की हृदयहीनता पर आधारित मार्मिक कहानी.

मेरा जीवन संघर्ष: – उनके जीवन के संघर्षों और विचारधारा का जीवंत चित्रण.

रामवृक्ष बेनीपुरी की भाषा सरल, सहज और प्रवाहमयी थी. उन्होंने अपनी लेखनी में हिंदी को ग्रामीण और शहरी दोनों स्वरूपों में प्रस्तुत किया. उनकी शैली में भावनाओं की गहराई और विचारों की स्पष्टता होती थी. बेनीपुरी ने पत्रकारिता में भी बड़ा योगदान दिया. उन्होंने ‘जनता’ नामक पत्रिका का संपादन किया और समाज के महत्वपूर्ण मुद्दों पर लेख लिखे. उनकी पत्रकारिता में समाज सुधार और राष्ट्रीयता की भावना स्पष्ट रूप से दिखाई देती है.

रामवृक्ष बेनीपुरी को हिन्दी साहित्य में उनके योगदान के लिए हमेशा याद किया जाता है. उनका साहित्य आज भी समाज और साहित्य प्रेमियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है. उनके नाम पर कई संस्थाएँ और पुरस्कार स्थापित किए गए हैं. रामवृक्ष बेनीपुरी का निधन 07 सितंबर 1968 को हुआ. उनके विचार और रचनाएँ आज भी प्रासंगिक हैं और हिन्दी साहित्य में एक अनमोल धरोहर के रूप में जीवित हैं.

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लाला जगत नारायन

लाला जगत नारायण एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, और राजनीतिज्ञ थे. उनका जन्म 31 मई 1899 को हुआ था और उनका जीवन स्वतंत्रता संग्राम, पत्रकारिता और समाज सेवा को समर्पित रहा.

लाला जगत नारायण का जन्म पंजाब के एक साधारण परिवार में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लिया. वह महात्मा गांधी और कांग्रेस पार्टी के आदर्शों से प्रेरित थे और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया. स्वतंत्रता के बाद, लाला जगत नारायण ने पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा और वर्ष 1948 में ‘हिन्द समाचार’ नामक एक समाचार पत्र की स्थापना की. हिन्द समाचार ने जल्द ही अपनी विश्वसनीयता और पत्रकारिता के उच्च मानकों के कारण लोकप्रियता हासिल की.

लाला जगत नारायण न केवल एक सफल पत्रकार थे, बल्कि उन्होंने राजनीति में भी सक्रिय भूमिका निभाई. वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे और उन्होंने विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपने विचार प्रकट किए. उन्होंने समाज सेवा के माध्यम से भी जनता की सेवा की और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष किया.

लाला जगत नारायण का निधन 9 सितंबर 1981 को हुआ. उनकी हत्या कर दी गई थी, जो एक बड़ा आघात था. उनकी हत्या के बाद उनके बेटे रमेश चंद्र ने ‘हिन्द समाचार’ समूह की बागडोर संभाली और इसे आगे बढ़ाया.

लाला जगत नारायण का जीवन स्वतंत्रता, सत्य और न्याय के लिए संघर्ष का प्रतीक था. उन्होंने अपने लेखन, पत्रकारिता, और सामाजिक कार्यों के माध्यम से समाज पर अमिट छाप छोड़ी. उनके योगदान को भारतीय इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा.

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राजनीतिज्ञ सदाशिव त्रिपाठी

सदाशिव त्रिपाठी भारतीय राजनीति के प्रमुख व्यक्तित्वों में से एक थे. वे ओडिशा के एक अनुभवी कांग्रेसी नेता थे और ओडिशा के मुख्यमंत्री भी रहे. सदाशिव त्रिपाठी का कार्यकाल मुख्यतः वर्ष 1966 -67 तक रहा. उनकी सरकार की अवधि भले ही छोटी थी, लेकिन उन्होंने राज्य में कई महत्वपूर्ण नीतियाँ और योजनाएँ लागू कीं. सदाशिव त्रिपाठी का जन्म 21 अप्रॅल 1910 को नवरंगपुर, उड़ीसा में हुआ था

सदाशिव त्रिपाठी की राजनीतिक यात्रा में वे विभिन्न पदों पर आसीन रहे, जिसमें कैबिनेट मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल भी शामिल है. वे एक प्रभावी वक्ता और कुशल प्रशासक माने जाते थे. उनकी नेतृत्व क्षमता और समर्पण ने उन्हें ओडिशा की राजनीति में एक विशेष स्थान दिलाया.

सदाशिव त्रिपाठी का निधन  9 सितम्बर 1980 को कटक में हुआ. उनकी नीतियों और पहलों ने राज्य में सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया और वे आज भी ओडिशा में एक सम्मानित नेता के रूप में याद किए जाते हैं.

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