
व्यक्ति विशेष -606.
‘राधा स्वामी सत्संग’ के संस्थापक शिव दयाल साहब
शिव दयाल साहब, जिन्हें स्वामी जी महाराज के नाम से भी जाना जाता है, राधा स्वामी सत्संग के संस्थापक थे. उनका जन्म 25 अगस्त 1818 को आगरा में हुआ था. बचपन से ही वे आध्यात्मिक चिंतन और शब्द योग के अभ्यास में लीन रहते थे. उन्होंने किसी को गुरु नहीं बनाया और अपने स्वयं के अनुभवों के आधार पर संतमत की शिक्षा दी.
शिव दयाल साहब ने वर्ष 1861 में वसंत पंचमी के दिन अपने शिष्य राय बहादुर सालिग राम जी महाराज के अनुरोध पर इस मत को आम जनता के लिए प्रस्तुत किया। इससे पहले, यह केवल कुछ विशेष शिष्यों तक ही सीमित था. उनका मत संतमत की परंपरा से जुड़ा हुआ था, जिसे पहले कबीर, नानक, रैदास, दादू साहब जैसे संतों ने प्रचारित किया था.
शिव दयाल साहब ने हिन्दी, उर्दू, फारसी, संस्कृत, अरबी और गुरुमुखी भाषाओं का ज्ञान प्राप्त किया था. उन्होंने सांसारिक उपलब्धियों को त्यागकर अपना पूरा जीवन आध्यात्मिक साधना और सत्संग में समर्पित कर दिया. उनकी शिक्षाओं का मूल आधार सुरत शब्द योग था, जो ध्यान और आत्मिक उन्नति पर केंद्रित था. उन्होंने दो प्रमुख ग्रंथ लिखे – सार वचन (गद्य और छंद में) -जो उनके आध्यात्मिक विचारों और शिक्षाओं का संकलन हैं. इन ग्रंथों में आत्मा, परमात्मा और सृष्टि की रचना के गूढ़ रहस्यों को समझाया गया है.
शिव दयाल साहब का 15 जून 1878 को आगरा में निधन हुआ. उनकी समाधि स्वामीबाग, आगरा में स्थित है, जो संगमरमर की उत्कृष्ट नक्काशी और पच्चीकारी का अद्भुत उदाहरण है. वर्तमान समय में राधा स्वामी सत्संग की कई शाखाएँ भारत और विदेशों में फैली हुई हैं.
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स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर खेर
बाल गंगाधर खेर, जिन्हें बी. जी. खेर के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख सेनानी थे. वे मुख्यतः महाराष्ट्र में सक्रिय थे और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे. खेर को उनके प्रशासनिक कौशल और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान के लिए भी याद किया जाता है.
बाल गंगाधर खेर का जन्म 24 अगस्त 1888 को रत्नागिरि में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उनका निधन 8 मार्च 1957 को पुणे में हुआ था. वे महाराष्ट्र के पहले मुख्यमंत्री भी बने थे और उन्होंने राज्य में कई सामाजिक और शैक्षिक सुधार किए. खेर ने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और उन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ कई प्रदर्शन और आंदोलनों में भाग लिया था.
बी. जी. खेर ने भारतीय समाज के विकास और प्रगति में अपने विचारों और कामों के माध्यम से एक अमिट छाप छोड़ी. उनके योगदान को भारत में उच्च सम्मानित किया जाता है और उन्हें एक महान स्वतंत्रता सेनानी के रूप में याद किया जाता है.
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अमर शहीद शिवराम राजगुरु…
शिवराम हरि राजगुरु, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांतिकारी थे, जो भगत सिंह और सुखदेव के साथी के रूप में जाने जाते हैं. उन्होंने ब्रिटिश राज के खिलाफ संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया. शिवराम हरि राजगुरु का जन्म 24 अगस्त 1908 को पुणे जिले के खेड़ (वर्तमान में राजगुरुनगर) नामक गाँव में हुआ था. उनके पिता का नाम हरि नारायण और माता का नाम पार्वती बाई था. बहुत कम उम्र में ही उनके पिता का निधन हो गया था, जिसके बाद उनका लालन-पालन उनकी माँ और बड़े भाई दिनकर ने किया.
राजगुरु ने अपनी शिक्षा पुणे में ली, जहाँ वे संस्कृत और वैदिक साहित्य के अध्ययन में रुचि रखते थे. हालाँकि, उनके मन में ब्रिटिश शासन के प्रति गहरा आक्रोश था और वे देश को आजाद कराने के लिए कुछ करना चाहते थे. इसी भावना के कारण वे हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) के सदस्य बन गए, जो एक प्रमुख क्रांतिकारी संगठन था.
राजगुरु के क्रांतिकारी जीवन का सबसे महत्वपूर्ण मोड़ 17 दिसंबर 1928 को आया. इस दिन उन्होंने भगत सिंह और सुखदेव के साथ मिलकर लाहौर में ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की हत्या की. यह घटना लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेने के लिए की गई थी, जिनकी मौत साइमन कमीशन का विरोध करते समय पुलिस लाठीचार्ज में हुई थी. इस घटना के बाद तीनों क्रांतिकारी भूमिगत हो गए.
सांडर्स की हत्या के बाद, ब्रिटिश सरकार ने उन्हें पकड़ने के लिए जोरदार अभियान चलाया. राजगुरु को 30 सितंबर 1929 को पुणे में एक ट्रेन स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया, जब वे अपने पैतृक गाँव की तरफ जा रहे थे. लाहौर षड्यंत्र मामले के तहत उन पर मुकदमा चलाया गया. अदालत ने भगत सिंह और सुखदेव के साथ उन्हें भी दोषी ठहराया और 23 मार्च 1931 को फाँसी की सजा सुनाई. इस दिन, तीनों क्रांतिकारियों को लाहौर सेंट्रल जेल में फाँसी दे दी गई. इस दिन को आज भी शहीद दिवस के रूप में याद किया जाता है.
शिवराम राजगुरु की शहादत ने भारतीय युवाओं में देशभक्ति की भावना को और मजबूत किया. उनका बलिदान देश के लिए प्रेरणा का स्रोत बना और स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ गया.
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चौथे राष्ट्रपति वी.वी. गिरी
वी.वी. गिरी (वराहगिरी वेंकट गिरी) भारत के चौथे राष्ट्रपति थे. उनका पूरा नाम वराहगिरी वेंकट गिरी था और उनका जन्म 10 अगस्त 1894 को वर्तमान आंध्र प्रदेश के बेरहमपुर (अब ओडिशा) में हुआ था. वे भारतीय राजनीति और श्रमिक आंदोलनों में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे. उनका कार्यकाल राष्ट्रपति के रूप में 24 अगस्त 1969 से 24 अगस्त 1974 तक रहा.
वी.वी. गिरी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मद्रास (अब चेन्नई) में प्राप्त की और बाद में आयरलैंड के डबलिन विश्वविद्यालय में कानून की पढ़ाई की. वे स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए. वी.वी. गिरी एक प्रमुख श्रमिक नेता थे और उन्होंने श्रमिकों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। वे अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) के अध्यक्ष रहे और भारतीय मजदूर संघ (INTUC) के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
वी.वी. गिरी ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाई और महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन में भाग लिया. स्वतंत्रता के बाद, वे केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हुए और उन्होंने श्रम और रोजगार मंत्री के रूप में कार्य किया. वे उत्तर प्रदेश, केरल, और कर्नाटक के राज्यपाल भी रहे. वी.वी. गिरी वर्ष 1967 में भारत के उप राष्ट्रपति बने. वर्ष 1969 में राष्ट्रपति ज़ाकिर हुसैन के निधन के बाद वी.वी. गिरी को कार्यवाहक राष्ट्रपति नियुक्त किया गया और बाद में उन्होंने राष्ट्रपति पद का चुनाव स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में लड़ा. उन्हें प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का समर्थन प्राप्त हुआ और वे राष्ट्रपति पद के लिए निर्वाचित हुए.
वी.वी. गिरी ने श्रमिकों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया और विभिन्न कानूनों और नीतियों के माध्यम से उनकी स्थिति को सुधारने का प्रयास किया. उन्होंने शिक्षा और सामाजिक सुधार के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. वी.वी. गिरी को 1975 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान, भारत रत्न, से सम्मानित किया गया. वी.वी. गिरी का निधन 24 जून 1980 को चेन्नई में हुआ. उनका जीवन और कार्यभार भारतीय राजनीति और समाज के विभिन्न क्षेत्रों में एक महत्वपूर्ण योगदान के रूप में माना जाता है. वी.वी. गिरी का जीवन संघर्ष, सेवा, और समर्पण का प्रतीक है. उनके योगदान को भारतीय इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा.
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अभिनेत्री अदिति शर्मा
अदिति शर्मा एक भारतीय अभिनेत्री हैं जो जो फिल्मों, टेलीविजन और विज्ञापनों में अपने अभिनय के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म 24 अगस्त 1983 को लखनऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था.
अदिति ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 2004 में टैलेंट हंट शो ‘इंडियाज बेस्ट सिनेस्टार्स की खोज’ की विजेता थीं. उन्होंने हिंदी, पंजाबी और तेलुगु फिल्मों में काम किया है.
फिल्में: – मौसम (2011), लेडीज वर्सेस रिक्की बहल (2011), इक्कीस तोपों की सलामी (2014), अंगरेज (2015, पंजाबी), गोलक बगुनी बैंक ते बटुआ (2018, पंजाबी).
टेलीविजन: – गंगा (2015-2017), सिलसिला बदलते रिश्तों का (2018-2019), ये जादू है जिन्न का (2019-2020), कथा अनकही (2022-2023).
विज्ञापन: – अदिति ने कई बड़े ब्रांड्स जैसे टाटा स्काई, डोमिनोज़ पिज्जा, कोलगेट, फेयर एंड लवली, पैराशूट ऑयल, बैंक ऑफ इंडिया, स्टेफ्री, तनिष्क, मूव्ह और डाबर के लिए विज्ञापन भी किए हैं.
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समाज सुधारक रामकृष्ण गोपाल भंडारकर
रामकृष्ण गोपाल भंडारकर भारत के एक प्रमुख समाज सुधारक, इतिहासकार, और संस्कृत विद्वान थे. उन्हें भारतीय समाज सुधार आंदोलन में उनके योगदान के लिए जाना जाता है. वे अपने समय के सबसे प्रमुख विद्वानों में से एक थे और उनका काम भारतीय समाज के पुनर्जागरण में महत्वपूर्ण था.
रामकृष्ण गोपाल भण्डारकर का जन्म 6 जुलाई, 1837 ई. को महाराष्ट्र के रत्नागिरी ज़िले के मालवण नामक स्थान में एक साधारण परिवार में हुआ था और उनकी मृत्यु 24 अगस्त 1925 को हुआ. रत्नागिरी में अपनी प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद, रामकृष्ण ने वर्ष 1853 में बॉम्बे के एलफिंस्टन इंस्टीट्यूट में दाखिला लिया.
भंडारकर संस्कृत, प्राकृत, और अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं के विद्वान थे. उन्होंने प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति पर व्यापक शोध किया. उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय (अब मुंबई विश्वविद्यालय) में भी अध्यापन किया और अपनी विद्वता से कई छात्रों को प्रेरित किया. भंडारकर समाज सुधार आंदोलन के एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे. उन्होंने ब्राह्मण समाज की कठोर सामाजिक और धार्मिक प्रथाओं के खिलाफ आवाज उठाई और सुधारों की वकालत की. उन्होंने विधवा पुनर्विवाह, महिला शिक्षा, और जाति व्यवस्था के उन्मूलन जैसे मुद्दों पर जोर दिया.
भंडारकर एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बॉम्बे के एक प्रमुख सदस्य थे और उन्होंने इसके विभिन्न शोध कार्यों में सक्रिय भूमिका निभाई. उनके नेतृत्व में इस सोसाइटी ने भारतीय इतिहास और संस्कृति के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने भारतीय पुरातत्व और प्राचीन इतिहास के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण कार्य किया. उनके शोध कार्यों ने भारतीय पुरातत्वविदों और इतिहासकारों को प्राचीन भारत के अध्ययन में नई दिशा दी. पुणे में स्थित भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट उनकी स्मृति में स्थापित किया गया था. यह संस्थान भारतीय विद्या और संस्कृत के अध्ययन और शोध के लिए प्रसिद्ध है.
रामकृष्ण गोपाल भंडारकर का जीवन और उनके कार्य भारतीय समाज और शिक्षा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं. उनके सुधारवादी दृष्टिकोण और विद्वता ने भारतीय समाज को आधुनिकता की दिशा में अग्रसर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
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संगीतकार कल्याणजी
कल्याणजी वीरजी शाह जिन्हें आमतौर पर कल्याणजी के नाम से जाना जाता है, भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध संगीतकारों में से एक थे. उनका जन्म 30 जून 1928 को हुआ था. वे हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में “कल्याणजी-आनंदजी” नामक संगीतकार जोड़ी का हिस्सा थे, जिसमें उनके भाई आनंदजी वीरजी शाह भी शामिल थे. इस जोड़ी ने वर्ष 1950 – 80 के दशक के बीच कई सुपरहिट फिल्मों के लिए संगीत तैयार किया.
कल्याणजी-आनंदजी की जोड़ी ने अपने संगीत के माध्यम से भारतीय सिनेमा में एक नई ध्वनि और ऊर्जा का संचार किया.
प्रसिद्ध गाने: – “मेरे देश की धरती” – उपकार (1967), “जीना यहाँ, मरना यहाँ” – मेरा नाम जोकर (1970), “जिंदगी का सफर” – सफर (1970), “अपलम चपलम” – आजाद (1978) और “पल-पल दिल के पास” – ब्लैकमेल (1973).
कल्याणजी-आनंदजी ने अनेक सुपरहिट फिल्मों में भी संगीत दिया.
प्रमुख फिल्में: – डॉन (1978), सफर (1970), कुर्बानी (1980), धर्मात्मा (1975) और चोर मचाए शोर (1974).
कल्याणजी-आनंदजी की जोड़ी को उनके उत्कृष्ट संगीत के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार, राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और कई अन्य सम्मानों से सम्मानित किया गया.
कल्याणजी के संगीत में भारतीय शास्त्रीय संगीत की गहरी समझ और पश्चिमी संगीत का समावेश था, जिससे उनके गाने और भी मधुर और यादगार बनते थे.24 अगस्त 2000 को कल्याणजी का निधन हो गया, लेकिन उनके द्वारा रचे गए संगीत आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं और भारतीय सिनेमा की धरोहर बने हुए हैं.
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भूतपूर्व राज्यपाल ए. आर. किदवई
ए. आर. किदवई भारत के एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक, शिक्षाविद् और राजनेता थे. उनका पूरा नाम अख़लाक़ उर रहमान किदवई था. किदवई का जीवन सेवा, ज्ञान और नेतृत्व का प्रतीक रहा. उन्होंने विज्ञान और अनुसंधान पर 40 से अधिक पुस्तकें लिखीं। किदवई को वर्ष 2011 में भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म विभूषण, से सम्मानित किया गया था.
ए. आर. किदवई का जन्म 1 जुलाई 1921 को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में हुआ था. किदवई ने अपनी शिक्षा जामिया मिलिया इस्लामिया, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) और संयुक्त राज्य अमेरिका की कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से पूरी की. उन्होंने रसायन विज्ञान में विशेषज्ञता हासिल की और एक अकादमिक के रूप में अपना कैरियर शुरू किया. वह लंबे समय तक अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के कुलपति रहे, जहाँ उन्होंने शिक्षा और अनुसंधान के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
ए. आर. किदवई बिहार, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, और राजस्थान के राज्यपाल रहे.
बिहार: – दो बार (वर्ष 1979-85 और वर्ष 1993-98).
पश्चिम बंगाल: – वर्ष 1998-99.
राजस्थान: – वर्ष 2007-2009.
हरियाणा: – वर्ष 2004-2009.
किदवई ने अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने शिक्षा, ग्रामीण विकास और सामाजिक कल्याण के लिए कई पहल कीं. उन्होंने भारत के योजना आयोग के सदस्य के रूप में भी कार्य किया, जहाँ उन्होंने देश की आर्थिक नीतियों को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
ए. आर. किदवई का निधन 24 अगस्त 2016 को नई दिल्ली में हुआ. उनकी विरासत में शिक्षा के प्रति उनका गहरा लगाव, नैतिक मूल्यों का पालन, और राष्ट्र निर्माण के प्रति उनकी अटूट प्रतिबद्धता शामिल है.
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राजनीतिज्ञ अरुण जेटली
अरुण जेटली एक प्रसिद्ध भारतीय वकील और राजनेता थे जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रमुख नेता के रूप में अपनी पहचान बनाई. जिनका योगदान विधि, वित्त और सार्वजनिक नीति के क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण रहा.
अरुण जेटली का जन्म 28 दिसंबर 1952 को नई दिल्ली में हुआ था. उन्होंने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत छात्र जीवन से की थी. वे दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष भी रहे और आपातकाल के दौरान 19 महीने जेल में भी रहे थे. वर्ष 1980 में अरुण जेटली भाजपा में शामिल होकर सक्रिय राजनीति शुरू की.
अरुण जेटली ने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में और बाद में नरेंद्र मोदी सरकार में कई महत्वपूर्ण मंत्रालयों का कार्यभार संभाला. वे वित्त, रक्षा, कॉर्पोरेट मामले, वाणिज्य और उद्योग, और कानून एवं न्याय जैसे प्रमुख कैबिनेट विभागों के मंत्री रहे. वे वर्ष 2014- 19 तक भारत के वित्त मंत्री और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्री रहे. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में वे अमृतसर सीट से हार गए थे, लेकिन उनके अनुभव और विशेषज्ञता को देखते हुए उन्हें राज्यसभा के माध्यम से कैबिनेट मंत्री बनाया गया था.
अरुण जेटली का 24 अगस्त 2019 को 66 वर्ष की आयु में निधन हो गया. उनकी स्पष्टवादिता, आर्थिक समझ और संसदीय वाद-विवाद की कला के लिए याद किया जाता है.