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व्यक्ति विशेष -603.

स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण देवधर

गोपाल कृष्ण देवधर एक प्रसिद्ध भारतीय समाज सेवक और स्वतंत्रता सेनानी थे. उनका जन्म 21 अगस्त 1871 को पुणे, महाराष्ट्र में हुआ था और उनका निधन 17 नवंबर 1935 को हुआ था.  महात्मा गाँधी द्वारा स्थापित ‘अखिल भारतीय अस्पृश्यता निवारण संघ’ के प्रादेशिक अध्यक्ष का पद गोपाल कृष्ण जी ने आजीवन सम्भाला था. ‘सेवा सदन’ की स्थापना में भी उन्होंने रमाबाई रानाडे को अपना पूरा सहयोग दिया था.

 गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा वर्ष 1905 में स्थापित ‘भारत सेवक समाज’ (Servants of India Society) के शुरुआती और प्रमुख सदस्यों में से एक थे गोपाल कृष्ण देवधर. इस संस्था का उद्देश्य ऐसे समर्पित व्यक्तियों को तैयार करना था जो निस्वार्थ भाव से देश की सेवा कर सकें. गोपाल कृष्ण देवधर, रमाबाई रानाडे द्वारा स्थापित ‘पुणे सेवा सदन सोसाइटी’ के प्रमुख शिल्पकारों में से एक थे. उन्होंने इस संस्था को आगे बढ़ाने और महिलाओं के सर्वांगीण विकास के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया.

गोपाल कृष्ण देवधर ने पुणे में प्लेग महामारी के दौरान पीड़ितों की सेवा की. उन्होंने जरूरतमंदों की मदद करने और समाज में फैली कुरीतियों को दूर करने के लिए अथक प्रयास किए. महात्मा गांधी के ‘अखिल भारतीय अस्पृश्यता निवारण संघ’ के प्रांतीय अध्यक्ष के रूप में भी उन्होंने काम किया. वे सहकारी आंदोलन के समर्थक थे और उन्होंने ‘बॉम्बे को-ऑपरेटिव इंस्टीट्यूट’ की स्थापना भी की थी. इसके अलावा, उन्होंने कुछ पत्रिकाओं का संपादन भी किया, जिनमें ‘ज्ञानप्रकाश’ और ‘शेती आणि शेतकरी’ (खेती और किसान) शामिल हैं. गोपाल कृष्ण देवधर एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने अपना जीवन निस्वार्थ भाव से समाज की सेवा में समर्पित कर दिया था.

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साहित्यकार इस्मत चुग़ताई

इस्मत चुग़ताई को उर्दू साहित्य के चार स्तंभों में से एक माना जाता है, जिनमें सआदत हसन मंटो, कृष्ण चंदर और राजेन्दर सिंह बेदी भी शामिल हैं. उन्होंने अपने लेखन से महिलाओं के मुद्दों को बेबाकी से उठाया, जिसके कारण उन्हें अक्सर आलोचना और मुक़दमों का सामना करना पड़ा.

इस्मत चुग़ताई का जन्म 21 अगस्त 1915 को उत्तर प्रदेश के बदायूं में हुआ था. वह अपने 10 भाई-बहनों में नौवीं संतान थीं. उनके पिता एक सिविल सेवक थे, जिसके कारण उनका परिवार अक्सर एक शहर से दूसरे शहर जाता रहता था. इस माहौल ने उनके व्यक्तित्व को बहुत प्रभावित किया. बचपन से ही वह रूढ़िवादी परंपराओं के खिलाफ थीं और लड़कों की तरह गुल्ली-डंडा, फुटबॉल और घुड़सवारी जैसे खेल खेलती थीं. उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त की और बाद में एक शिक्षिका के रूप में भी काम किया. इस्मत चुग़ताई ने अपने लेखन में निम्न-मध्यमवर्गीय मुस्लिम तबके की महिलाओं की जिंदगी और उनकी दबी हुई इच्छाओं को पूरी सच्चाई के साथ दिखाया.

उपन्यास: – ‘टेढ़ी लकीर’ उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है, जिसे उनकी खुद की जिंदगी का आईना माना जाता है. अन्य उपन्यासों में ‘ज़िद्दी’, ‘एक कतरा-ए-खून’, ‘मासूमा’, और ‘दिल की दुनिया’ शामिल हैं.

कहानी संग्रह:  – उनका सबसे चर्चित कहानी संग्रह ‘लिहाफ’ है, जिसके कारण उन पर अश्लीलता का आरोप लगा और उन पर मुक़दमा भी चला. यह कहानी महिलाओं के बीच समलैंगिकता पर आधारित थी, जो उस समय एक बहुत ही साहसिक कदम था. उनके अन्य कहानी संग्रहों में ‘चोटें’, ‘छुईमुई’, ‘एक बात’, ‘कलियां’ आदि प्रमुख हैं.

आत्मकथा: – उन्होंने अपनी आत्मकथा ‘कागज़ी हैं पैरहन’ लिखी.

इस्मत चुग़ताई ने फिल्मों के लिए पटकथा और संवाद भी लिखे. वर्ष  1973 में आई फिल्म ‘गर्म हवा’ की पटकथा लिखने के लिए उन्हें कई पुरस्कार मिले थे.

इस्मत चुग़ताई को उनके साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें कई महत्वपूर्ण पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. जिनमें पद्म श्री (1976), गालिब अवार्ड (1974) और फिल्मफेयर पुरस्कार (1975).  इस्मत चुग़ताई को उर्दू साहित्य की एक प्रसिद्ध और विवादास्पद लेखिका थीं. उन्हें “इस्मत आपा” के नाम से भी जाना जाता है. इस्मत चुग़ताई का निधन 24 अक्टूबर 1991 को मुंबई में हुआ था.

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अभिनेत्री भूमिका चावला

भूमिका चावला एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जिन्होंने हिंदी, तेलुगु, तमिल, कन्नड़, मलयालम, पंजाबी और भोजपुरी फिल्मों में काम किया है. उन्होंने वर्ष 2000 के दशक में कई सफल फिल्मों में अभिनय किया और अपनी सादगी व दमदार अभिनय के लिए दर्शकों के बीच काफी लोकप्रिय हुईं. उनका जन्म 21 अगस्त 1978 को नई दिल्ली में हुआ था. उनका असली नाम रचना चावला है, और उन्हें प्यार से “गुड़िया” कहा जाता है.

भूमिका चावला ने उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत तेलुगु फिल्म युवाकुडु (2000) से की थी. लेकिन उन्हें असली पहचान 2001 की ब्लॉकबस्टर फिल्म खुशी से मिली. इस फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिला. हिंदी सिनेमा में उन्हें सबसे ज़्यादा पहचान मिली तेरे नाम (2003) में सलमान खान के साथ “निर्जरा” की भूमिका से. इसके बाद उन्होंने कई और हिंदी फिल्मों में काम किया, जैसे रन और दिल ने जिसे अपना कहा. उन्होंने तमिल, मलयालम, कन्नड़, भोजपुरी और पंजाबी भाषाओं की फिल्मों में भी काम किया है, जिससे यह साबित होता है कि वह एक बहुमुखी प्रतिभा वाली अभिनेत्री हैं.

भूमिका चावला ने वर्ष  2007 में योग गुरु भरत ठाकुर से शादी की और उनका एक बेटा है. शादी के बाद उन्होंने फिल्मों से कुछ समय के लिए दूरी बना ली थी, लेकिन बाद में उन्होंने सहायक भूमिकाओं में वापसी की. हाल के वर्षों में, भूमिका ने कुछ सफल फिल्मों में सहायक भूमिकाएं निभाई हैं, जैसे – एम.एस. धोनी: द अनटोल्ड स्टोरी (2016) और सिटाडेल (2024).

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अभिनेत्री सना खान

सना खान एक भारतीय पूर्व अभिनेत्री, मॉडल और नर्तकी हैं. उन्होंने मुख्य रूप से हिंदी, तमिल और तेलुगु फिल्मों में काम किया है. उनका जन्म 21 अगस्त 1987 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था.

सना ने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग से की और बाद में कई विज्ञापनों, फिल्मों और टीवी शोज़ में अभिनय किया. उन्होंने 5 भाषाओं में 14 से अधिक फिल्मों में अभिनय किया है और 50 से अधिक विज्ञापनों में भी काम किया लेकिन, उन्हें सबसे ज्यादा प्रसिद्धि ‘बिग बॉस’ से मिली थी.

 प्रमुख फिल्मों: –  जय हो, वजह तुम हो, सिलम्बट्टम और टॉयलेट: एक प्रेम कथा शामिल हैं.

वर्ष 2020 में सना खान ने फिल्म इंडस्ट्री को अलविदा कहकर इस्लाम धर्म के अनुसार जीवन जीने का निर्णय लिया. उन्होंने 21 नवंबर 2020 को, उन्होंने इस्लामिक विद्वान मुफ्ती अनस सैयद से शादी की.

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शास्त्रीय गायक विष्णु दिगम्बर पलुस्कर

विष्णु दिगम्बर पलुस्कर भारतीय शास्त्रीय संगीत के एक महान गायक और गुरु थे. उन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और शास्त्रीय संगीत को जनता तक पहुँचाने के लिए बहुत से प्रयास किए.

विष्णु दिगम्बर पलुस्कर का जन्म 18 अगस्त, 1872 को अंग्रेज़ी शासन वाले बंबई प्रेसीडेंसी के कुरूंदवाड़ (बेलगाँव) में हुआ था और उनकी मृत्यु 21 अगस्त 1931 को हुआ. पलुस्कर को घर में संगीत का माहौल मिला था. विष्णु दिगम्बर पलुस्कर ने अपने संगीत की शिक्षा को ग्वालियर के प्रसिद्ध संगीतज्ञों से प्राप्त किया. उन्हें संगीत का गहन ज्ञान था और उन्होंने इसे एक मिशन के रूप में अपनाया. वर्ष 1901 में, उन्होंने लाहौर (अब पाकिस्तान में) में “गांधर्व महाविद्यालय” की स्थापना की, जो भारतीय शास्त्रीय संगीत की शिक्षा देने वाला एक प्रमुख संस्थान बन गया. यह महाविद्यालय उनके शास्त्रीय संगीत के प्रसार के संकल्प का एक बड़ा उदाहरण है.

पलुस्कर ने भारतीय शास्त्रीय संगीत को सामान्य जनता के लिए सुलभ बनाने का प्रयास किया. उन्होंने संगीत को धार्मिक अनुष्ठानों और दरबारों से निकालकर आम लोगों तक पहुँचाया. उन्होंने संगीत में एक नयी दृष्टि दी, जहाँ संगीत को एक साधना और भक्ति का माध्यम माना गया. पलुस्कर ने कई भजनों और देशभक्ति गीतों की रचना की. उनके द्वारा गाए गए भजन और गीते आज भी भारतीय संगीत में विशेष स्थान रखते हैं. उनका “रघुपति राघव राजा राम” भजन महात्मा गांधी के आंदोलनों के दौरान विशेष रूप से लोकप्रिय हुआ. उन्होंने संगीत शिक्षा के लिए कई पुस्तकें भी लिखीं, जो शास्त्रीय संगीत के सिद्धांतों और प्रैक्टिस पर आधारित थीं. विष्णु दिगम्बर पलुस्कर के शिष्य भारतीय शास्त्रीय संगीत में उच्च स्थान रखते हैं. उनके शिष्यों में पंडित ओंकारनाथ ठाकुर, विनायक राव पटवर्धन, और अन्य प्रमुख संगीतज्ञ शामिल हैं जिन्होंने भारतीय शास्त्रीय संगीत को और आगे बढ़ाया.

विष्णु दिगम्बर पलुस्कर का योगदान भारतीय शास्त्रीय संगीत में अमूल्य है. उन्होंने न केवल शास्त्रीय संगीत को पुनर्जीवित किया बल्कि इसे जनसाधारण तक पहुँचाया. उनके द्वारा स्थापित संगीत की परंपरा आज भी भारतीय शास्त्रीय संगीत में जीवित है, और उनके योगदान को संगीत प्रेमियों द्वारा सम्मानपूर्वक याद किया जाता है.

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स्वतंत्रता सेनानी वामनराव बलिराम लाखे

वामनराव बलिराम लाखे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख सेनानी थे. वे महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र से आते थे और ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. लाखे का योगदान विशेष रूप से विदर्भ और मध्य भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण माना जाता है. वामनराव बलिराम लाखे का जन्म  17 सितम्बर, 1872 को रायपुर, छत्तीसगढ़ में हुआ था.

उन्होंने अपनी शिक्षा नागपुर में पूरी की और वहीं से राष्ट्रवादी विचारधारा से प्रेरित हुए. वामनराव लाखे का संबंध महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन से था, और वे इन आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लेते रहे. लाखे ने क्षेत्र में ब्रिटिश विरोधी गतिविधियों को संगठित करने और जन-जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

स्वतंत्रता संग्राम के अलावा, वामनराव लाखे एक सामाजिक सुधारक भी थे. उन्होंने सामाजिक असमानताओं के खिलाफ आवाज उठाई और दलितों व वंचित वर्गों के उत्थान के लिए कार्य किया. उनके नेतृत्व ने विदर्भ क्षेत्र में राष्ट्रीय आंदोलन को व्यापक जनसमर्थन दिलाने में मदद की.

वामनराव बलिराम लाखे का निधन 21 अगस्त, 1948 को हुआ था. आज भी लाखे को विदर्भ और महाराष्ट्र के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक प्रमुख व्यक्ति के रूप में याद किया जाता है, जिन्होंने अपने साहस और निष्ठा से भारत की आज़ादी के संघर्ष में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

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ऑलराउंडर वीनू मांकड़

वीनू मांकड़ भारतीय क्रिकेट के सबसे प्रतिष्ठित ऑलराउंडरों में से एक थे.  उनका जन्म 12 अप्रैल 1917 को हुआ था. उनका पूरा नाम मुलवंत राय मांकड़ था, लेकिन वे वीनू मांकड़ के नाम से अधिक प्रसिद्ध हैं. उन्होंने बाएं हाथ के बल्लेबाज के रूप में और धीमे बाएं हाथ के गेंदबाज के रूप में भारत के लिए अपनी सेवाएँ प्रदान कीं.

मांकड़ ने वर्ष 1946 – 59 तक भारतीय टेस्ट क्रिकेट टीम के लिए 44 टेस्ट मैच खेले, जिसमें उन्होंने बल्लेबाजी में 2109 रन बनाए और 162 विकेट लिए. उनका सर्वोच्च स्कोर 231 रन था, जो उन्होंने वर्ष 1952 में मद्रास (अब चेन्नई) में न्यूज़ीलैंड के खिलाफ बनाया था. इस प्रदर्शन के साथ, वे और पंकज रॉय ने उस समय के लिए टेस्ट क्रिकेट में पहले विकेट के लिए सर्वोच्च साझेदारी (413 रन) की रिकॉर्ड स्थापित किया था, जो लंबे समय तक नहीं टूटा.

वीनू मांकड़ का नाम एक विशेष क्रिकेट नियम, ‘मांकड़िंग’ से भी जुड़ा है. यह तब होता है जब नॉन-स्ट्राइकर एंड पर खड़ा बल्लेबाज गेंदबाज के गेंद फेंकने से पहले ही क्रीज छोड़ देता है, और गेंदबाज उसे रन आउट कर देता है. इसे ‘मांकड़’ कहा जाता है क्योंकि मांकड़ ने वर्ष 1947-48 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ इसी तरह से बिल ब्राउन को आउट किया था.

वीनू मांकड़ का निधन 21 अगस्त 1978 को हुआ था. उनका  क्रिकेट कैरियर उनके बहुमुखी प्रतिभा और क्रिकेट के प्रति उनकी समर्पण भावना का प्रतीक है. उनके योगदान को क्रिकेट इतिहास में उच्च सम्मान के साथ याद किया जाता है.

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खगोल शास्त्री सुब्रमण्यम चंद्रशेखर

सुब्रमण्यम चंद्रशेखर एक प्रसिद्ध भारतीय-अमेरिकी खगोल शास्त्री थे, जिनका काम खगोल भौतिकी में अत्यधिक महत्वपूर्ण माना जाता है. उनका जन्म 19 अक्टूबर 1910 को लाहौर (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. चंद्रशेखर ने खगोल विज्ञान में कई अहम योगदान दिए, जिनमें सबसे प्रसिद्ध है “चंद्रशेखर सीमा” (Chandrasekhar Limit) की खोज, जो सितारों के विकास और उनके अंत की भविष्यवाणी करने में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है.

चंद्रशेखर सीमा किसी भी तारे के द्रव्यमान की अधिकतम सीमा का वर्णन करती है, जो इसके सफेद बौना बनने के बाद ध्वस्त होने से पहले होती है. यदि किसी तारे का द्रव्यमान 1.4 सौर द्रव्यमान से अधिक होता है, तो वह सफेद बौना के रूप में स्थिर नहीं रह सकता. इसके बजाय, वह या तो न्यूट्रॉन तारे या ब्लैक होल में परिवर्तित हो जाता है. यह सिद्धांत खगोल भौतिकी में तारे के जीवन चक्र की समझ में एक महत्वपूर्ण आधार बना.

चंद्रशेखर ने तारों की संरचना और उनके अंत की प्रक्रियाओं का गहन अध्ययन किया. उन्होंने बताया कि एक तारा कैसे जन्म लेता है, विकास करता है, और अंत में अपने जीवन के अंत में क्या रूप धारण करता है (सफेद बौना, न्यूट्रॉन तारा, या ब्लैक होल). उन्होंने सापेक्षता (रिलेटिविटी) और ब्लैक होल सिद्धांतों पर भी काम किया. चंद्रशेखर ने आइनस्टाइन के सापेक्षता सिद्धांत के विभिन्न पहलुओं को भौतिकी और खगोल भौतिकी में लागू करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

सुब्रमण्यम चंद्रशेखर को उनके शोध कार्यों के लिए वर्ष 1983 में भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया. उन्होंने यह पुरस्कार ब्लैक होल और तारों की संरचना पर अपने कार्य के लिए जीता. इसके अलावा, उन्हें कई अन्य प्रतिष्ठित वैज्ञानिक सम्मान भी मिले. चंद्रशेखर ने लंबे समय तक शिकागो विश्वविद्यालय में खगोल भौतिकी के प्रोफेसर के रूप में काम किया और कई शिष्यों को मार्गदर्शन दिया. उन्होंने अपने जीवनकाल में कई महत्वपूर्ण वैज्ञानिक पुस्तकें भी लिखीं, जिनमें से कई खगोल भौतिकी और गणितीय सिद्धांतों पर आधारित थीं.

चंद्रशेखर का परिवार शिक्षा और विज्ञान से गहराई से जुड़ा था. उनके चाचा सी. वी. रमन भी भौतिकी में नोबेल पुरस्कार विजेता थे. चंद्रशेखर ने अपना शेष जीवन संयुक्त राज्य अमेरिका में बिताया, लेकिन भारतीय विज्ञान और खगोल भौतिकी के क्षेत्र में उनका योगदान हमेशा स्मरणीय रहेगा. सुब्रमण्यम चंद्रशेखर का निधन 21 अगस्त 1995 को हुआ, लेकिन उनकी वैज्ञानिक उपलब्धियाँ और योगदान आज भी खगोल विज्ञान के क्षेत्र में एक मील का पत्थर माने जाते हैं. उनके नाम पर “चंद्रा एक्स-रे ऑब्ज़र्वेटरी” नामक एक अंतरिक्ष वेधशाला भी है, जो नासा द्वारा संचालित है और उनके सम्मान में नामित की गई है.

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शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्ला ख़ान

उस्ताद बिस्मिल्ला खान एक प्रसिद्ध भारतीय शहनाई वादक थे, जिन्होंने शहनाई के संगीत को विश्वभर में प्रसिद्ध किया. वे 21 मार्च 1916 को बिहार के डुमरांव में जन्मे थे और उन्होंने शहनाई वादन में ऐसी उल्लेखनीय महारत हासिल की कि, उन्हें ‘शहनाई का जादूगर’ भी कहा जाता था. उनका संगीत कैरियर लगभग आठ दशकों तक फैला रहा और उन्होंने भारत और दुनिया भर में कई महत्वपूर्ण संगीत समारोहों में प्रस्तुतियाँ दीं.

उस्ताद बिस्मिल्ला खान को उनकी असाधारण कला और संगीत के प्रति अपनी गहरी प्रतिबद्धता के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया, जिनमें भारत रत्न (2001), पद्म विभूषण (1980), पद्म भूषण (1968), और पद्म श्री (1961) शामिल हैं. उन्होंने शहनाई के माध्यम से भारतीय संगीत की एक अनूठी शैली को प्रस्तुत किया, जिसने लोगों के दिलों को छू लिया और उन्हें विश्व स्तर पर प्रसिद्धि दिलाई.

उस्ताद बिस्मिल्ला खान का निधन 21 अगस्त 2006 को हुआ था, लेकिन उनकी संगीत विरासत आज भी जीवित है और उनके शिष्यों और शहनाई संगीत प्रेमियों द्वारा दुनिया भर में सराही जाती है. उनका संगीत न केवल भारतीय संगीत की एक अमूल्य धरोहर है, बल्कि यह विश्व संगीत के इतिहास में भी एक उल्लेखनीय योगदान है.

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राजनीतिज्ञ कल्याण सिंह

कल्याण सिंह भारत के एक प्रमुख राजनीतिज्ञ और उत्तर प्रदेश के दो बार मुख्यमंत्री रहे. वे भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता और हिंदुत्व आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक थे. अपने राजनीतिक जीवन में उन्होंने उत्तर प्रदेश और भारत की राजनीति पर गहरा प्रभाव डाला. वे राजस्थान और हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल भी रहे.

कल्याण सिंह का जन्म 5 जनवरी 1932 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले के मादोली गांव में एक किसान परिवार में हुआ था. शिक्षा की समाप्ति के बाद वे शिक्षक बने, लेकिन बाद में, समाज सेवा और राजनीति में उनकी रुचि के कारण वे सक्रिय राजनीति में आ गए. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत जनसंघ से की थी.

कल्याण सिंह भारतीय जनसंघ से जुड़े और जल्द ही पार्टी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगे. वर्ष 1977 में जनता पार्टी की सरकार में मंत्री रहे. वर्ष 1980 में भाजपा की स्थापना के बाद वे पार्टी के प्रमुख नेताओं में शामिल हुए. उन्होंने उत्तर प्रदेश में पार्टी को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वर्ष 1991 में भाजपा के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में पहली बार उनकी सरकार बनी. उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस (6 दिसंबर 1992) हुआ. इसके बाद उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया गया. उन्होंने दोबारा मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया, लेकिन पार्टी में आंतरिक कलह के कारण उन्हें पद छोड़ना पड़ा. वर्ष 2014 – 19 तक वे राजस्थान के राज्यपाल रहे. वर्ष 2015 में वे कुछ समय के लिए हिमाचल प्रदेश के कार्यवाहक राज्यपाल भी रहे.

कल्याण सिंह राम जन्मभूमि आंदोलन के प्रमुख चेहरों में से एक थे. उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए अपने समर्थन और योगदान के कारण हिंदू समर्थकों के बीच लोकप्रियता अर्जित की. बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उन्होंने नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया. कल्याण सिंह अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने शिक्षा और स्वास्थ्य में सुधार की दिशा में कई प्रयास किए. पिछड़े वर्गों और गरीबों के कल्याण के लिए योजनाएं लागू कीं. वर्ष 1999 में भाजपा के साथ मतभेदों के कारण उन्होंने पार्टी छोड़ दी और अपनी पार्टी राष्ट्रीय क्रांति पार्टी बनाई. वर्ष 2004 में वे भाजपा में वापस लौट आए.

हिंदुत्व और राम मंदिर आंदोलन के लिए उनका नाम हमेशा याद किया जाएगा. उन्होंने राजनीति में नैतिकता और आदर्शों पर जोर दिया, जिसे उनके समर्थक सराहते थे. 21 अगस्त 2021 को लंबी बीमारी के बाद लखनऊ में कल्याण सिंह का निधन हो गया. उनके निधन पर राष्ट्रीय स्तर पर शोक व्यक्त किया गया, और उन्हें “रामभक्त और जन नेता” के रूप में श्रद्धांजलि दी गई. कल्याण सिंह का राजनीतिक जीवन भारतीय राजनीति के एक महत्वपूर्ण अध्याय का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें उन्होंने अपनी विचारधारा और नीतियों के माध्यम से समाज को प्रभावित किया.

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