
व्यक्ति विशेष -602.
कवि त्रिलोचन शास्त्री
त्रिलोचन शास्त्री को हिन्दी साहित्य की प्रगतिशील काव्य धारा का प्रमुख हस्ताक्षर माना जाता है. वे आधुनिक हिन्दी कविता की प्रगतिशील ‘त्रयी’ के तीन स्तंभों में से एक थे. उन्होंने अपनी रचनाओं में आम आदमी के जीवन, उनकी पीड़ा, संघर्ष और सपनों को बड़ी ही सहजता और यथार्थता के साथ प्रस्तुत किया.
त्रिलोचन शास्त्री का जन्म 20 अगस्त 1917 को उत्तर प्रदेश में सुल्तानपुर ज़िले के कठघरा चिरानी पट्टी नामक स्थान पर हुआ था. इनका मूल नाम वासुदेव सिंह था. त्रिलोचन शास्त्री ने ‘काशी हिन्दू विश्वविद्यालय’ से एम.ए. अंग्रेज़ी की एवं लाहौर से संस्कृत में ‘शास्त्री’ की डिग्री प्राप्त की थी. वो एक कुशल पत्रकार भी थे. उन्होंने ‘प्रभाकर’, ‘वानर’, ‘हंस’, ‘आज’ और ‘समाज’ जैसी कई पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया
त्रिलोचन को ‘हिंदी सॉनेट’ का जनक माना जाता है. उन्होंने इस पश्चिमी छंद को भारतीय परिवेश और जन-जीवन के अनुकूल बनाया और लगभग 550 सॉनेट लिखे. उनकी कविताओं में लोक भाषा, मुहावरों और बिंबों का अद्भुत समन्वय मिलता है, जो उन्हें एक विशिष्ट पहचान देता है. उनकी कविताएं जनसाधारण के दुखों और संघर्षों को दर्शाती हैं, जैसे कि उनकी प्रसिद्ध कविता ‘चंपा काले-काले अच्छर नहीं चीन्हती’ में देखने को मिलता है. उन्होंने कविता के अलावा कहानी और आलोचना के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनका कहानी संग्रह ‘देशकाल’ और आलोचनात्मक कृति ‘काव्य और अर्थ बोध’ उल्लेखनीय हैं.
प्रमुख काव्य संग्रह: – धरती (1945), गुलाब और बुलबुल (1956), दिंगत (1957), ताप के ताए हुए दिन (1980), शब्द (1980), उस जनपद का कवि हूँ (1981), तुम्हें सौंपता हूँ (1985), अमोला (1990).
त्रिलोचन शास्त्री को उनके साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें कई सम्मानों से सम्मानित किया गया. जिनमें प्रमुख हैं – साहित्य अकादमी पुरस्कार और श्लाका सम्मान. त्रिलोचन शास्त्री का निधन 9 दिसंबर 2007 को हुआ.उनकी कविताएं आज भी अपनी सादगी, यथार्थ और जन-सरोकारों के कारण प्रासंगिक बनी हुई हैं.
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राजनीतिज्ञ राजीव गांधी
राजीव गांधी भारत के छठे प्रधानमंत्री थे और उन्होंने वर्ष 1984 – 89 तक इस पद पर कार्य किया। उनका जन्म 20 अगस्त 1944 को मुंबई में हुआ था, और वे नेहरू-गांधी परिवार से संबंध रखते थे. उनकी माँ, इंदिरा गांधी, भारत की प्रधानमंत्री थीं, और उनके दादा, जवाहरलाल नेहरू, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे.
राजीव गांधी ने अपने कार्यकाल में भारत में तकनीकी और संचार क्रांति की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए. उन्होंने देश में टेलीकम्युनिकेशन और कंप्यूटर तकनीकों के विकास को प्रोत्साहित किया, जिससे भारतीय इकोनॉमी में लंबी अवधि में सुधार हुआ.
उन्होंने अपनी विदेश नीति में भी कई सकारात्मक पहल की, जैसे कि श्रीलंका में तमिल नागरिकों की सुरक्षा के लिए हस्तक्षेप करना, जिससे भारत और श्रीलंका के बीच संबंधों में कठिनाइयां भी आईं. हालांकि, उनका कार्यकाल विवादों से भरा रहा, जिसमें बोफोर्स घोटाला सबसे प्रमुख था. यह घोटाला वर्ष 1980 के दशक के अंत में उनकी सरकार के दौरान सामने आया और इसने उनकी छवि को काफी प्रभावित किया.
राजीव गांधी का दुखद निधन 21 मई 1991 को एक बम विस्फोट में हो गया, जब वे तमिलनाडु में एक चुनावी रैली में भाग ले रहे थे. यह घटना लिट्टे द्वारा अंजाम दी गई थी. उनकी मृत्यु के बाद उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया, जो भारत का सबसे ऊंचा नागरिक सम्मान है.
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अभिनेत्री कुमारी नाज़
कुमारी नाज़ हिंदी सिनेमा की एक प्रतिभाशाली बाल कलाकार और अभिनेत्री थीं, जिनका जन्म 20 अगस्त 1944 को हुआ था. उनका असली नाम सलमा बेग था. जिन्होंने वर्ष 1950 – 60 के दशक में कई फिल्मों में यादगार भूमिकाएँ निभाईं. उन्हें बॉलीवुड में मुख्य रूप से एक बाल कलाकार के रूप में पहचान मिली, लेकिन उन्होंने बाद में युवा अभिनेत्री के रूप में भी अपनी जगह बनाई.
कुमारी नाज़ ने वर्ष 1950 के दशक में बाल कलाकार के रूप में फिल्मों में काम करना शुरू किया. उन्हें उनकी मासूमियत और सहज अभिनय के कारण फिल्म निर्माताओं द्वारा काफी पसंद किया गया. उनकी शुरुआती भूमिकाएँ इतनी प्रभावशाली थीं कि वे जल्दी ही फिल्म उद्योग में एक जानी-मानी बाल कलाकार बन गईं.
प्रमुख फ़िल्में: –
“श्री 420” (1955): – इस राज कपूर और नरगिस की प्रसिद्ध फ़िल्म में कुमारी नाज़ ने एक छोटी लेकिन प्रभावशाली भूमिका निभाई, जिसने दर्शकों का ध्यान आकर्षित किया.
“बूट पॉलिश” (1954): – यह फ़िल्म एक क्लासिक फ़िल्म मानी जाती है, जिसमें नाज़ की भूमिका को बहुत सराहा गया. फ़िल्म एक भाई-बहन की कहानी पर आधारित थी जो अपनी आजीविका के लिए संघर्ष करते हैं. नाज़ की मासूमियत और अभिनय ने सभी का दिल जीत लिया.
कुमारी नाज़ ने किशोरावस्था और युवा अभिनेत्री के रूप में भी काम किया. हालांकि बाल कलाकार के रूप में उन्हें ज्यादा सफलता मिली, लेकिन उन्होंने अपने अभिनय से लोगों के दिलों में एक खास जगह बनाई. कुमारी नाज़ के बारे में अधिक जानकारी नहीं मिलती, लेकिन उनके फ़िल्मी सफर को उनके समय के बाल कलाकारों में सबसे प्रतिभाशाली माना जाता है. उन्होंने अपने अभिनय के जरिए बाल कलाकारों की श्रेणी में एक अलग पहचान बनाई.
कुमारी नाज़ की मृत्यु 19 अक्टूबर, 1995 को हुई थी. उनकी अभिनय शैली सरल, स्वाभाविक और हृदयस्पर्शी थी. उनकी मासूमियत और स्क्रीन पर उनकी सहजता ने उन्हें फिल्म निर्माताओं और दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय बना दिया. उनकी भूमिकाएँ अक्सर सामाजिक संदेशों और भावनात्मक मुद्दों पर आधारित होती थीं, जिनसे दर्शक जुड़ाव महसूस करते थे.
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साहित्यकार गोपीनाथ मोहंती
गोपीनाथ मोहंती एक भारतीय लेखक थे जिन्होंने मुख्य रूप से ओडिया भाषा में साहित्य सृजन किया. उनका जन्म 20 अप्रैल 1914 को हुआ था और उनका निधन 20 अगस्त 1991 को हुआ था. मोहंती को उनके गहन और यथार्थपरक लेखन शैली के लिए जाना जाता है, जिसमें उन्होंने ओडिशा के ग्रामीण और आदिवासी समाज के जीवन को बहुत ही सूक्ष्मता से चित्रित किया है.
उनकी प्रसिद्ध कृतियों में ‘पराजा’ और ‘अमृतर संतान’ शामिल हैं. ‘पराजा’ उनकी सबसे चर्चित कृति है, जिसमें उन्होंने ओडिशा के ग्रामीण जीवन और सामाजिक ढांचे की गहराई में जाकर वर्णन किया है. उनके लेखन में पात्रों की मानवीय संवेदनाओं का बहुत ही बारीकी से चित्रण किया गया है, और उनकी कहानियां अक्सर समाज के उन पहलुओं को उजागर करती हैं जो अन्यथा अदृश्य रह जाते हैं.
गोपीनाथ मोहंती को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिसमें साहित्य अकादमी पुरस्कार और ज्ञानपीठ पुरस्कार भी शामिल हैं. उनका कार्य न केवल ओडिया साहित्य के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि भारतीय साहित्य के विशाल कैनवास में भी एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है.