
व्यक्ति विशेष -593.
संगीतज्ञ लालमणि मिश्र
लालमणि मिश्र एक प्रख्यात भारतीय संगीतज्ञ थे, जिन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जाना जाता है. उन्होंने मुख्य रूप से वीणा वादन में ख्याति प्राप्त की, लेकिन वे एक संगीतज्ञ, विद्वान, और शिक्षक भी थे. लालमणि मिश्र का जन्म 11 अगस्त, 1924 को कानपुर के कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में हुआ था. करीब पाँच वर्ष की आयु में उन्हें स्कूल भेजा गया, किन्तु 1930 में कानपुर के भीषण दंगों के कारण न केवल इनकी पढ़ाई छूटी. कोलकाता में बालक लालमणि की माँ को संगीत की शिक्षा प्रदान करने कथावाचक पण्डित गोवर्धन लाल घर आया करते थे. एक बार माँ को सिखाए गए 15 दिन के पाठ को यथावत सुना कर उन्होंने पण्डित जी को चकित कर दिया. पण्डित गोवर्धन लाल से उन्हें ध्रुपद और भजन का ज्ञान मिला तो हारमोनियम के वादक और शिक्षक विश्वनाथ प्रसाद गुप्त से हारमोनियम बजाना सीखा.
मात्र 16 वर्ष की आयु में लालमणि मिश्र मुंगेर, बिहार के एक रईस परिवार के बच्चों के संगीत-शिक्षक बन गए. वर्ष 1944 में कानपुर के कान्यकुब्ज कॉलेज में संगीत-शिक्षक नियुक्त हुए. इसी वर्ष सुप्रसिद्ध विचित्र वीणा वादक उस्ताद अब्दुल अज़ीज ख़ाँ (पटियाला) के वाद्य विचित्र वीणा से प्रभावित होकर उन्हीं से शिक्षा ग्रहण की और वर्ष 1950 में लखनऊ के ‘भातखण्डे जयन्ती समारोह’ में इस वाद्य को बजा कर विद्वानो की प्रशंसा अर्जित की. लालमणि मिश्र ने वीणा वादन में महत्वपूर्ण योगदान दिया और इसे अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए प्रयास किए. उन्होंने “मिश्रबानी” नामक एक नई वीणा शैली का विकास किया, जो उनके अद्वितीय वादन शैली को दर्शाता है.
मिश्र जी ने संगीत के विभिन्न पहलुओं पर गहन अध्ययन और शोध किया. उन्होंने कई रागों और तालों पर महत्वपूर्ण कार्य किया, जिससे भारतीय शास्त्रीय संगीत के ज्ञान में वृद्धि हुई. वे एक समर्पित शिक्षक थे और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के संगीत संकाय में लंबे समय तक पढ़ाया. उनके कई शिष्य आज भी भारतीय शास्त्रीय संगीत में अग्रणी हैं.
लालमणि मिश्र का निधन 17 जुलाई 1979 को हुआ. उन्होंने कई महत्वपूर्ण संगीत रचनाएँ कीं और अपने संगीत के माध्यम से भारतीय शास्त्रीय संगीत की विविधता और गहराई को प्रदर्शित किया. लालमणि मिश्र का योगदान भारतीय शास्त्रीय संगीत में अमूल्य है, और वे आज भी संगीत प्रेमियों और शोधकर्ताओं द्वारा सम्मानित किए जाते हैं
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फ़िल्म निर्माता-निर्देशक और पटकथा लेखक जॉन अब्राहम
जॉन अब्राहम एक भारतीय फ़िल्म निर्माता, निर्देशक, और पटकथा लेखक हैं, जिनका मुख्य कार्य हिंदी सिनेमा में है. हालांकि, उनका नाम अभिनेता जॉन अब्राहम के साथ साझा होता है, ये जॉन अब्राहम अलग व्यक्ति हैं और फ़िल्म निर्माण में उनके योगदान के लिए जाने जाते हैं. जॉन अब्राहम का जन्म 11 अगस्त 1937 को हुआ था. जॉन अब्राहम ने कई महत्वपूर्ण और समीक्षकों द्वारा सराही गई फ़िल्मों का निर्माण किया है. उनकी फ़िल्में आमतौर पर सामाजिक मुद्दों, राजनीतिक परिस्थितियों, और मानवता के जटिल पहलुओं पर केंद्रित होती हैं.
जॉन अब्राहम ने कई फ़िल्मों की पटकथाएँ लिखी हैं, जिनमें उनके लेखन का गहन और सूक्ष्म दृष्टिकोण परिलक्षित होता है. उनके कार्यों में कहानी की गहराई और पात्रों का सजीव चित्रण प्रमुख होता है. एक निर्देशक के रूप में, जॉन अब्राहम ने विभिन्न प्रकार की कहानियों को पर्दे पर उतारा है, जिसमें उनकी कला और तकनीकी दक्षता की झलक मिलती है. उनकी निर्देशन शैली विशिष्ट है और उन्हें उद्योग में एक प्रमुख आवाज के रूप में स्थापित करती है.
जॉन अब्राहम निधन 31 मई 1987 को कोझिकोड, केरल में हुआ था. उनका कार्य भारतीय सिनेमा में उल्लेखनीय है, और उनके द्वारा बनाई गई फ़िल्में सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर विचार-विमर्श की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं.
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क्रिकेटर यशपाल शर्मा
यशपाल शर्मा एक प्रसिद्ध भारतीय क्रिकेटर थे, जिन्होंने 1980 के दशक में भारतीय क्रिकेट टीम के लिए खेला. वे अपने साहसी और आक्रामक बल्लेबाजी के लिए जाने जाते थे और उन्होंने भारतीय क्रिकेट के इतिहास में कई महत्वपूर्ण योगदान दिए. यशपाल शर्मा का जन्म 11 अगस्त 1954 को लुधियाना, पंजाब में हुआ था. उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा लुधियाना में ही प्राप्त की और क्रिकेट के प्रति उनका रुझान बचपन से ही था.
यशपाल ने घरेलू क्रिकेट में पंजाब के लिए खेला और अपनी शानदार बल्लेबाजी के चलते राष्ट्रीय चयनकर्ताओं की नजर में आए. यशपाल ने वर्ष 1978 में इंग्लैंड के खिलाफ अपना वनडे डेब्यू किया और वर्ष 1979 में इंग्लैंड के खिलाफ ही टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया.
प्रमुख अंश: –
वर्ष 1983 क्रिकेट विश्व कप: – यशपाल शर्मा का प्रदर्शन 1983 के विश्व कप में बेहद महत्वपूर्ण था. उन्होंने टूर्नामेंट में कई महत्वपूर्ण पारियाँ खेलीं, जिनमें वेस्ट इंडीज के खिलाफ 89 रन की शानदार पारी शामिल है. उनकी इस पारी ने भारत को मजबूत स्थिति में पहुंचाया और अंततः भारत ने विश्व कप जीता.
टेस्ट कैरियर: – यशपाल शर्मा ने 37 टेस्ट मैचों में 1606 रन बनाए, जिसमें 2 शतक और 9 अर्धशतक शामिल हैं. उनका उच्चतम स्कोर 140 रन था.
वनडे कैरियर: – उन्होंने 42 वनडे मैचों में 883 रन बनाए, जिसमें 4 अर्धशतक शामिल हैं.
यशपाल ने रणजी ट्रॉफी में पंजाब और हरियाणा के लिए भी खेला और अपने घरेलू कैरियर में शानदार प्रदर्शन किया. यशपाल शर्मा का विवाह रेनु शर्मा से हुआ और उनके दो बच्चे हैं. क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद, वे भारतीय क्रिकेट के चयनकर्ता भी रहे और उन्होंने युवा खिलाड़ियों के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
यशपाल शर्मा का निधन 13 जुलाई 2021 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ. उनके निधन से भारतीय क्रिकेट ने एक महान खिलाड़ी और मार्गदर्शक खो दिया. यशपाल शर्मा का कैरियर और योगदान भारतीय क्रिकेट के इतिहास में हमेशा याद किया जाएगा. उनकी वर्ष 1983 विश्व कप में निभाई गई भूमिका और उनके साहसी खेल ने उन्हें क्रिकेट प्रेमियों के दिलों में अमर बना दिया है.
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क्रिकेटर एम. वी. नरसिम्हा राव
एम. वी. नरसिम्हा राव एक भारतीय क्रिकेटर और कोच थे, जिन्होंने भारतीय क्रिकेट में उल्लेखनीय योगदान दिया. वे मुख्य रूप से एक लेग स्पिनर और मध्य-क्रम के बल्लेबाज के रूप में जाने जाते थे. एम. वी. नरसिम्हा राव का जन्म 11 अगस्त 1954 को सिकंदराबाद , हैदराबाद में हुआ था. उनका पूरा नाम मदीरेड्डी वेंकट नरसिम्हा राव है.
एम. वी. नरसिम्हा राव का मुख्य क्रिकेट कैरियर घरेलू क्रिकेट में रहा, जहां उन्होंने हैदराबाद की टीम का प्रतिनिधित्व किया. उनके कैरियर की प्रमुख विशेषता उनकी लेग स्पिन गेंदबाजी और बल्लेबाजी में उनके ठोस योगदान थे. उन्होंने वर्ष1950 के दशक में भारतीय क्रिकेट टीम के लिए कुछ टेस्ट मैच खेले. हालांकि उनका अंतर्राष्ट्रीय कैरियर बहुत लंबा नहीं रहा, लेकिन वे घरेलू क्रिकेट में अपने प्रदर्शन के लिए जाने जाते थे. नरसिम्हा राव ने क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद कोचिंग में अपना कैरियर बनाया. वे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) से जुड़े और कई युवा खिलाड़ियों को प्रशिक्षित किया.
उन्होंने क्रिकेट प्रशासन में भी अपनी सेवाएँ दीं और खेल के विकास में अपना योगदान दिया. एम. वी. नरसिम्हा राव भारतीय क्रिकेट के विकास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति थे. उनका योगदान न केवल एक खिलाड़ी के रूप में था, बल्कि कोच और प्रशासक के रूप में भी था. उन्होंने कई युवा खिलाड़ियों को प्रोत्साहित किया और भारतीय क्रिकेट के भविष्य के लिए नींव रखी. एम. वी. नरसिम्हा राव का नाम भारतीय क्रिकेट के उन लोगों में शामिल है जिन्होंने मैदान के बाहर भी खेल के लिए अपना जीवन समर्पित किया. उनकी मेहनत और खेल के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को हमेशा याद किया जाएगा.
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राजनीतिज्ञ चन्द्र शेखर बेल्लाना
चंद्र शेखर बेल्लाना एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं, जो आंध्र प्रदेश से ताल्लुक रखते हैं. वे वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (YSRCP) के सदस्य हैं और लोकसभा सांसद हैं. वे आंध्र प्रदेश के अमलापुरम निर्वाचन क्षेत्र से लोकसभा के लिए चुने गए हैं. उनका जन्म 11 अगस्त 1961 को काकुलम, आंध्र प्रदेश में हुआ था.
चंद्र शेखर बेल्लाना ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत वाईएसआर कांग्रेस पार्टी के साथ की. उनकी राजनीतिक शैली और क्षेत्रीय मुद्दों पर गहरी पकड़ के कारण वे क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण राजनीतिक व्यक्ति बने हैं. वे 17वीं लोकसभा (वर्ष2019-2024) के लिए आंध्र प्रदेश के अमलापुरम निर्वाचन क्षेत्र से सांसद चुने गए. इस दौरान उन्होंने अपने क्षेत्र के विकास और आंध्र प्रदेश के मुद्दों को उठाने में सक्रिय भूमिका निभाई.
चंद्र शेखर बेल्लाना ने विशेष रूप से ग्रामीण विकास, कृषि, और आंध्र प्रदेश के विशेष राज्य दर्जे के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है, वे आंध्र प्रदेश की जनता के अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए संसद में आवाज उठाते रहे हैं. चंद्र शेखर बेल्लाना अपनी पार्टी और क्षेत्र के लिए समर्पित नेता माने जाते हैं, और उनका योगदान आंध्र प्रदेश की राजनीति में महत्वपूर्ण है.
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अभिनेता सुनील शेट्टी
सुनील शेट्टी एक प्रसिद्ध भारतीय अभिनेता, निर्माता, और उद्यमी हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी सिनेमा में अपने काम के लिए जाने जाते हैं. उनका जन्म 11 अगस्त 1961 को मैंगलोर, कर्नाटक में हुआ था. सुनील शेट्टी ने वर्ष1990 – 2000 के दशक में कई हिट फिल्मों में अभिनय किया और बॉलीवुड में एक्शन हीरो के रूप में अपनी पहचान बनाई.
सुनील शेट्टी ने 1992 में फिल्म बलवान से बॉलीवुड में डेब्यू किया. उनकी पहली फिल्म ने उन्हें एक एक्शन हीरो के रूप में स्थापित कर दिया. इसके बाद उन्होंने वक्त हमारा है (1993), मोहरा (1994), और दिलवाले (1994) जैसी हिट फिल्मों में काम किया.
वर्ष 1990 के दशक में, सुनील शेट्टी की छवि एक्शन फिल्मों में प्रमुख रूप से उभरी. उन्होंने गोपी किशन (1994), रक्षक (1996), भाई (1997), और धड़कन (2000) जैसी फिल्मों में काम किया, जो बॉक्स ऑफिस पर सफल रहीं. सुनील शेट्टी ने एक्शन फिल्मों के अलावा कॉमेडी फिल्मों में भी अपनी पहचान बनाई. हेरा फेरी (2000) और फिर हेरा फेरी (2006) जैसी कॉमेडी फिल्मों में उनका अभिनय काफी सराहा गया. अपने कैरियर में, सुनील शेट्टी ने कई पुरस्कार जीते हैं, जिनमें फिल्मफेयर अवॉर्ड्स भी शामिल हैं. उन्हें विशेष रूप से धड़कन फिल्म में उनके अभिनय के लिए काफी प्रशंसा मिली.
सुनील शेट्टी ने अपने प्रोडक्शन हाउस ‘पॉपकॉर्न एंटरटेनमेंट’ के माध्यम से कई फिल्मों का निर्माण भी किया है. उन्होंने खेल (2003), भागम भाग (2006), और मिशन इस्तांबुल (2008) जैसी फिल्मों का निर्माण किया. सुनील शेट्टी एक सफल उद्यमी भी हैं. उन्होंने रेस्टोरेंट, बुटीक, और फिटनेस सेंटर जैसे विभिन्न व्यावसायिक उपक्रमों में निवेश किया है. वे होटल और फिटनेस इंडस्ट्री में भी सक्रिय रूप से शामिल हैं. सुनील शेट्टी की शादी माना शेट्टी से हुई है, और उनके दो बच्चे हैं—अहान शेट्टी और अथिया शेट्टी. उनकी बेटी अथिया शेट्टी भी एक अभिनेत्री हैं, जबकि उनके बेटे अहान शेट्टी ने भी फिल्मी दुनिया में कदम रखा है. सुनील शेट्टी का बॉलीवुड में लंबा और सफल कैरियर रहा है, और वे आज भी एक सम्मानित अभिनेता और उद्यमी के रूप में जाने जाते हैं.
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क्रिकेटर अंजू जैन
अंजू जैन एक पूर्व भारतीय महिला क्रिकेटर हैं, जिन्हें भारतीय महिला क्रिकेट टीम की प्रमुख विकेट कीपर-बल्लेबाज के रूप में जाना जाता है. उन्होंने वर्ष 1990 – 2000 के दशक में भारतीय टीम के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अपनी उत्कृष्ट विकेट कीपिंग और बल्लेबाजी से टीम की कई जीत में योगदान दिया. अंजू जैन का जन्म 11 अगस्त 1974 को दिल्ली में हुआ था. उन्होंने वर्ष 1995 में न्यूजीलैंड के खिलाफ अपना वनडे डेब्यू किया. इसके बाद उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में भी भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व किया. अंजू जैन भारतीय टीम की प्रमुख विकेट कीपर थीं. उन्होंने अपनी तेज़ और सटीक विकेट कीपिंग से कई मैचों में टीम को जीत दिलाने में मदद की. उनके विकेट कीपिंग के आंकड़े और तकनीक ने उन्हें भारतीय महिला क्रिकेट में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बना दिया.
बल्लेबाजी में भी अंजू जैन ने अपनी छाप छोड़ी. उन्होंने कई महत्वपूर्ण पारियां खेलीं, खासकर वनडे क्रिकेट में. वे टीम के लिए एक भरोसेमंद बल्लेबाज साबित हुईं, जिन्होंने निचले क्रम में कई बार टीम को मजबूत स्थिति में पहुंचाया. अंजू जैन ने भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्तानी भी की. उनके नेतृत्व में टीम ने कई महत्वपूर्ण मुकाबले खेले और वे एक प्रेरणादायक कप्तान के रूप में जानी गईं.
क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद, अंजू जैन ने कोचिंग में भी हाथ आजमाया. उन्होंने कई युवा खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दिया और भारतीय महिला क्रिकेट के विकास में योगदान दिया. उन्हें विभिन्न क्रिकेट संगठनों में भी शामिल किया गया, जहाँ उन्होंने महिला क्रिकेट को बढ़ावा देने के लिए काम किया. अंजू जैन के योगदान को भारतीय क्रिकेट में काफी सराहा गया. उन्हें कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया है, जिनमें विशेष रूप से उनकी विकेट कीपिंग के लिए दिए गए पुरस्कार शामिल हैं.
अंजू जैन भारतीय महिला क्रिकेट के इतिहास में एक महत्वपूर्ण नाम हैं. उनकी विकेट कीपिंग और बल्लेबाजी में उत्कृष्टता ने उन्हें भारतीय क्रिकेट में एक विशेष स्थान दिलाया है. उनके खेल और उनके द्वारा निभाई गई भूमिकाओं को महिला क्रिकेट में उनकी एक आदर्श खिलाड़ी के रूप में याद किया जाता है.
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अभिनेत्री जैकलीन फर्नांडीज
जैकलीन फर्नांडीज एक लोकप्रिय भारतीय फिल्म अभिनेत्री और मॉडल हैं, जो मुख्य रूप से हिंदी सिनेमा (बॉलीवुड) में काम करती हैं. उनका जन्म 11 अगस्त 1985 को बहरीन में हुआ था. वे श्रीलंकाई और मलेशियाई मूल की हैं और मिस श्रीलंका यूनिवर्स वर्ष2006 का खिताब भी जीत चुकी हैं. जैकलीन ने अपने अभिनय, डांसिंग स्किल्स और ग्लैमरस व्यक्तित्व के कारण बॉलीवुड में अपनी एक अलग पहचान बनाई है.
जैकलीन का जन्म बहरीन में हुआ और उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा वहीं से प्राप्त की. इसके बाद उन्होंने सिडनी विश्वविद्यालय, ऑस्ट्रेलिया से मास कम्युनिकेशन में स्नातक की डिग्री हासिल की. वर्ष 2006 में, उन्होंने मिस श्रीलंका यूनिवर्स का खिताब जीता और इसके बाद उन्होंने मॉडलिंग और अभिनय में कैरियर बनाने का निर्णय लिया.
जैकलीन फर्नांडीज ने 2009 में सुजॉय घोष की फिल्म अलादीन से बॉलीवुड में डेब्यू किया. इस फिल्म में उन्होंने रितेश देशमुख के साथ काम किया. हालांकि, फिल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं रही, लेकिन जैकलीन के अभिनय को नोटिस किया गया. वर्ष 2011 में, जैकलीन को महेश भट्ट की फिल्म मर्डर 2 में प्रमुख भूमिका मिली, जो उनके कैरियर का टर्निंग पॉइंट साबित हुई. इस फिल्म में उनके अभिनय और ग्लैमरस अवतार को सराहा गया और इसके बाद उन्हें बॉलीवुड में बड़ी पहचान मिली. इसके बाद उन्होंने हाउसफुल 2 (2012), रेस 2 (2013), किक (2014), जुड़वा 2 (2017), और बागी 2 (2018) जैसी हिट फिल्मों में काम किया. फिल्म किक में सलमान खान के साथ उनकी जोड़ी को काफी पसंद किया गया और इस फिल्म ने उन्हें बॉलीवुड के शीर्ष अभिनेत्रियों में शामिल कर दिया.
जैकलीन को उनके डांसिंग स्किल्स के लिए भी जाना जाता है. उन्होंने कई फिल्मों में हिट आइटम नंबर किए हैं, जिनमें चिट्टियां कलाइयां (रॉय), जुम्मे की रात (किक), और लत लग गई (रेस 2) शामिल हैं. उनके डांस नंबरों ने उन्हें दर्शकों के बीच बेहद लोकप्रिय बना दिया है.
जैकलीन फर्नांडीज ने कई चैरिटी और सामाजिक कार्यों में भाग लिया है. वे जानवरों के अधिकारों के लिए काम करने वाली संस्था PETA (People for the Ethical Treatment of Animals) के साथ जुड़ी हुई हैं. वे कई प्रसिद्ध ब्रांड्स की ब्रांड एंबेसडर भी हैं और उन्होंने फैशन और ब्यूटी इंडस्ट्री में भी अपनी पहचान बनाई है. जैकलीन के जीवन में उनकी फिटनेस और हेल्दी लाइफस्टाइल को भी महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. वे योग और फिटनेस के लिए जानी जाती हैं और अक्सर सोशल मीडिया पर अपने फिटनेस रूटीन को शेयर करती हैं.
जैकलीन फर्नांडीज ने बॉलीवुड में अपनी मेहनत और टैलेंट से जगह बनाई है. वे अपनी ग्लैमरस छवि, बेहतरीन डांसिंग और अभिनय कौशल के कारण बॉलीवुड में एक लोकप्रिय अभिनेत्री के रूप में जानी जाती हैं. उनके कैरियर में कई हिट फिल्में शामिल हैं, और वे बॉलीवुड की प्रमुख हस्तियों में से एक हैं.
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क्रांतिकारी खुदीराम बोस
खुदीराम बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे कम उम्र के क्रांतिकारियों में से एक थे. वे बंगाल के मिदनापुर जिले में जन्मे थे और ब्रिटिश शासन के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष में शामिल हुए. खुदीराम बोस का नाम भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में साहस और बलिदान का प्रतीक बन गया है. खुदीराम बोस का जन्म वर्ष 03 दिसंबर, 1889 ई. को बंगाल में मिदनापुर ज़िले के हबीबपुर गाँव में त्रैलोक्य नाथ बोस के यहाँ हुआ था. उनके माता-पिता का निधन कम उम्र में ही हो गया था, जिसके बाद उनकी बड़ी बहन ने उनका पालन-पोषण किया. कम उम्र से ही खुदीराम में देशभक्ति की भावना जाग गई थी. वे भारतीय समाज के भीतर ब्रिटिश शासन के अन्याय और अत्याचारों के खिलाफ उठ खड़े हुए.
किशोरावस्था में ही खुदीराम बोस ने क्रांतिकारी गतिविधियों में हिस्सा लेना शुरू कर दिया. उन्होंने अपने क्षेत्र में ब्रिटिश विरोधी पर्चे बांटने और स्थानीय लोगों को जागरूक करने का काम किया. वर्ष 1905 में बंगाल विभाजन के बाद, खुदीराम बोस और भी अधिक सक्रिय हो गए. उन्होंने अनुशीलन समिति जैसी क्रांतिकारी संगठनों के साथ जुड़कर ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष तेज कर दिया.
30 अप्रैल 1908 को, खुदीराम बोस और उनके साथी प्रफुल्ल चाकी ने मुजफ्फरपुर (बिहार) में किंग्सफोर्ड नामक ब्रिटिश न्यायाधीश पर बम फेंका. हालांकि, इस हमले में किंग्सफोर्ड तो बच गया, लेकिन एक ब्रिटिश महिला और उसकी बेटी की मौत हो गई. हमले के बाद खुदीराम को गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि प्रफुल्ल चाकी ने खुद को गोली मारकर अपनी जान दे दी. खुदीराम पर मुजफ्फरपुर सत्र न्यायालय में मुकदमा चलाया गया, और 13 जून 1908 को उन्हें मृत्युदंड की सजा सुनाई गई.
11 अगस्त 1908 को, खुदीराम बोस को केवल 18 साल की उम्र में फांसी दे दी गई. उनकी शहादत के समय वे केवल 18 वर्ष, 7 महीने, और 11 दिन के थे, जिससे वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे कम उम्र के शहीदों में से एक बन गए. उनकी मृत्यु के बाद, खुदीराम बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए एक प्रेरणा स्रोत बन गए. उनका साहस और बलिदान भारतीय युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत रहा है.
खुदीराम बोस की शहादत के बाद, उन्हें पूरे देश में एक राष्ट्रीय नायक के रूप में सम्मानित किया गया. कई शहरों और कस्बों में उनके नाम पर सड़कों, स्कूलों, और संस्थानों का नाम रखा गया है. उनका जीवन और बलिदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अमर गाथाओं में से एक है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा.
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अंग्रेज़ी साहित्यकार वी. एस. नायपॉल
वी. एस. नायपॉल एक अंग्रेज़ी साहित्यकार थे, जिनका जन्म 17 अगस्त 1932 को त्रिनिदाद और टोबैगो में हुआ था. भारतीय मूल के नायपॉल ने अपने साहित्यिक कैरियर में उपन्यास, नॉन-फिक्शन, यात्रा वृतांत और आलोचनात्मक निबंध लिखे. उन्हें 2001 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
नायपॉल के सबसे चर्चित उपन्यासों में “A House for Mr. Biswas” (1961), “In a Free State” (1971), “A Bend in the River” (1979), और “The Enigma of Arrival” (1987) शामिल हैं. ये उपन्यास उनके भारतीय प्रवासी जीवन के अनुभवों और औपनिवेशिक प्रभावों को दर्शाते हैं. उनके नॉन-फिक्शन कार्यों में “An Area of Darkness” (1964), “India: A Wounded Civilization” (1977), और “Among the Believers: An Islamic Journey” (1981) शामिल हैं. इन रचनाओं में उन्होंने भारत, इस्लाम, और औपनिवेशिकता के प्रभावों पर अपनी विचारधारा प्रस्तुत की. नायपॉल की आत्मकथा “The Enigma of Arrival” एक महत्वपूर्ण कृति मानी जाती है, जिसमें उन्होंने अपने जीवन के विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण किया है.
नायपॉल की लेखनी में उपनिवेशवाद, प्रवास, पहचान और समाज की जटिलताओं का गहन विश्लेषण मिलता है. उनका दृष्टिकोण अक्सर आलोचनात्मक और विवादास्पद रहा, खासकर जब उन्होंने भारतीय समाज और इस्लाम के बारे में लिखा. नायपॉल की भाषा शैली सरल, लेकिन प्रभावशाली है, और उन्होंने अपने पात्रों और उनके संघर्षों को गहराई से चित्रित किया.
वी. एस. नायपॉल को 1971 में बुकर प्राइज़ (“In a Free State” के लिए) से सम्मानित किया गया. वर्ष 2001 में नोबेल साहित्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया. वर्ष 1989 में नाइटहुड की उपाधि भी दी गई थी, जिससे वह सर वी. एस. नायपॉल के नाम से भी जाने जाते हैं वी. एस. नायपॉल का निधन 11 अगस्त 2018 को लंदन, इंग्लैंड में हुआ था. वो एक विवादास्पद लेकिन सम्मानित साहित्यकार थे, जिन्होंने अपने लेखन के माध्यम से औपनिवेशिक और पोस्ट-औपनिवेशिक समाजों पर गहरा प्रभाव डाला है.
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शायर और गीतकार राहत इंदौरी
राहत इंदौरी एक मशहूर भारतीय शायर, गीतकार, और उर्दू साहित्य के प्रमुख हस्ती थे. वे अपनी अनूठी शैली, शक्तिशाली आवाज़, और प्रभावशाली शायरी के लिए जाने जाते थे. राहत इंदौरी ने न सिर्फ उर्दू शायरी को एक नई ऊंचाई दी, बल्कि हिंदी फिल्मों के लिए भी कई यादगार गीत लिखे. राहत इंदौरी का जन्म 1 जनवरी 1950 को इंदौर, मध्य प्रदेश में हुआ था. उनका असली नाम राहत कुरैशी था. वे एक साधारण परिवार से थे, और उनके पिता एक कपड़ा मिल में काम करते थे.
राहत इंदौरी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में पूरी की. उन्होंने इंदौर के इस्लामिया करीमिया कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की और बाद में उर्दू साहित्य में एम.ए. किया. इसके अलावा, उन्होंने भोपाल विश्वविद्यालय से उर्दू साहित्य में पीएचडी की डिग्री हासिल की. राहत इंदौरी ने अपने शायरी के सफर की शुरुआत किशोरावस्था में ही कर दी थी. उन्होंने देश भर में विभिन्न मुशायरों में हिस्सा लेना शुरू किया और बहुत जल्द ही अपनी अनूठी शैली और पंक्तियों के कारण लोकप्रिय हो गए.
राहत इंदौरी की शायरी में एक अद्वितीय जोश और ऊर्जा थी. उनकी पंक्तियों में समाज की समस्याओं, राजनीतिक मुद्दों, और मानवीय भावनाओं का प्रतिबिंब मिलता था. उनकी शायरी में एक बगावती और स्वतंत्र सोच थी, जिसने उन्हें श्रोताओं के बीच बेहद लोकप्रिय बना दिया. राहत इंदौरी के कई शेर आम लोगों की जुबान पर हैं, जैसे: –
” सभी का ख़ून है शामिल यहाँ की मिट्टी में, किसी के बाप का हिन्दोस्तान थोड़ी है.”
” मैं मर जाऊँ तो मेरी एक अलग पहचान लिख देना, लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना.”
राहत इंदौरी ने कई हिंदी फिल्मों के लिए भी गीत लिखे. वर्ष 1990 के दशक में, वे एक प्रमुख गीतकार के रूप में उभरे और उनकी लिखी गई गीतों ने फिल्मों की सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
फिल्मों के गीत: –
मुन्ना भाई एमबीबीएस (2003) – “मामूली चीज़ें मत पूछा कर, हम बड़े लोग हैं!”
इश्क (1997) – “नींद चुराई मेरी किसने ओ सनम”
कर्मा (1986) – “दिल दुवाओं का रोग है”
राहत इंदौरी ने अपने शायरी और साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त किए. वे देश के सबसे प्रतिष्ठित कवि सम्मेलनों और मुशायरों में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित होते थे.
राहत इंदौरी का निधन 11 अगस्त 2020 को दिल का दौरा पड़ने से हुआ. उनके निधन से साहित्य और शायरी जगत में शोक की लहर दौड़ गई. वे एक ऐसा नाम थे जिन्होंने अपनी कला से न केवल उर्दू साहित्य को समृद्ध किया, बल्कि भारतीय साहित्य के परिदृश्य को भी सजाया. राहत इंदौरी की शायरी आज भी लोगों के दिलों में जीवित है. वे अपनी बगावती शैली, सामाजिक मुद्दों पर बेबाक टिप्पणियों, और गहरी संवेदनशीलता के लिए हमेशा याद किए जाएंगे. उनकी शायरी और गीत भारतीय संस्कृति का एक अनमोल हिस्सा बन चुके हैं.