
व्यक्ति विशेष -584.
वैज्ञानिक प्रफुल्ल चंद्र राय
प्रफुल्ल चंद्र राय एक भारतीय रसायनज्ञ और शिक्षाविद् थे, जिन्हें भारत में आधुनिक रसायन विज्ञान के जनक के रूप में जाना जाता है. उनका जन्म 2 अगस्त 1861 को बंगाल प्रेसीडेंसी के एक छोटे से गांव रारूली-कटिपारा में हुआ था और उनका निधन 16 जून 1944 को हुआ था. प्रफुल्ल चंद्र राय के पिता, हरिश्चंद्र राय, एक संपन्न ज़मींदार थे और उन्होंने अपने बच्चों को उच्च शिक्षा देने का महत्व समझा. प्रफुल्ल चंद्र ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गाँव में प्राप्त की और बाद में कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की. उन्होंने एडिनबर्ग विश्वविद्यालय से रसायन विज्ञान में डिग्री प्राप्त की, जहाँ उन्होंने अपनी शोध के दौरान कई महत्वपूर्ण खोजें कीं.
प्रफुल्ल चंद्र राय ने रसायन विज्ञान के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण शोध किए. उनकी सबसे प्रसिद्ध खोज मर्क्यूरस नाइट्रेट थी. उन्होंने “रसायन विज्ञान का इतिहास” नामक पुस्तक लिखी, जिसमें उन्होंने प्राचीन भारतीय रसायन विज्ञान के योगदान का वर्णन किया. उन्होंने वर्ष 1889 में प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता में रसायन विज्ञान के प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं शुरू कीं. उन्होंने अपने शिक्षण के माध्यम से कई भारतीय वैज्ञानिकों को प्रेरित किया और भारतीय विज्ञान की नींव मजबूत की.
वर्ष 1901 में उन्होंने बंगाल केमिकल एंड फार्मास्युटिकल वर्क्स की स्थापना की, जो भारत की पहली फार्मास्युटिकल कंपनी थी. इस कंपनी ने भारतीय उद्यमिता को एक नई दिशा दी और भारतीय उद्योग के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया. प्रफुल्ल चंद्र राय को उनके योगदान के लिए कई सम्मान और पुरस्कार मिले. उन्हें “नाइट” की उपाधि से भी सम्मानित किया गया था. भारतीय रसायन विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान के कारण उन्हें “फादर ऑफ इंडियन केमिस्ट्री” के रूप में भी जाना जाता है. उन्होंने अपना सारा जीवन शिक्षा और विज्ञान के प्रचार-प्रसार में समर्पित किया. वे एक साधारण जीवन जीते थे और अपने संसाधनों का उपयोग समाज की भलाई के लिए करते थे.
प्रफुल्ल चंद्र राय की वैज्ञानिक खोजों और शिक्षण के कारण उन्हें भारतीय विज्ञान में एक अद्वितीय स्थान प्राप्त है. उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए, कई संस्थानों और पुरस्कारों का नाम उनके नाम पर रखा गया है. उनकी जीवन गाथा भारतीय वैज्ञानिक इतिहास में एक प्रेरणादायक अध्याय है. उनके कार्य और योगदान आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करते रहेंगे.
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उद्योगपति गंगा प्रसाद बिड़ला
गंगा प्रसाद बिड़ला जिन्हें जी. पी. बिड़ला के नाम से भी जाना जाता है, भारत के प्रतिष्ठित उद्योगपतियों में से एक थे. उन्होंने अपने जीवनकाल में उद्योग के साथ-साथ समाज कल्याण के लिए भी बहुत योगदान दिया था. गंगा प्रसाद बिड़ला का जन्म 02 अगस्त 1922 को बनारस, ब्रिटिश भारत में हुआ था और उनकी मृत्यु 5 मार्च 2010 को कोलकाता में हुआ था. उनके पिता का नाम बृज मोहन बिड़ला था जो जी. पी. सी. के. बिड़ला समूह के प्रमुख थे. यह समूह कई क्षेत्रों में काम करता था, जैसे वाहन, बियरिंग, सीमेंट और भारी मशीनें.
गंगा प्रसाद बिड़ला ने कई बड़ी औद्योगिक इकाइयों की स्थापना की, जिनमें ओरियंट पेपर एंड इंडस्ट्रीज और हिंदुस्तान मोटर्स जैसी कंपनियाँ शामिल हैं. उन्होंने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने कई प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना की, जैसे: – बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (रांची), मॉडर्न हाई स्कूल फॉर गर्ल्स (कोलकाता). उन्होंने बी. एम. बिरला हार्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट और कलकत्ता मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट जैसे प्रमुख अस्पतालों की स्थापना की.
गंगा प्रसाद बिड़ला ने कला और संस्कृति के संरक्षण में भी गहरी रुचि दिखाई. उन्होंने हैदराबाद, जयपुर और भोपाल में सुंदर मंदिरों का निर्माण करवाया और ऐतिहासिक महत्व के स्थानों के नवीनीकरण में भी मदद की. जयपुर का प्रसिद्ध लक्ष्मी नारायण मंदिर (बिड़ला मंदिर) उन्हीं के प्रयासों से बना था. समाज और शिक्षा के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट योगदान को देखते हुए, भारत सरकार ने 2006 में उन्हें देश के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया. गंगा प्रसाद बिड़ला की उदारता और दूरदर्शिता आज भी नए उद्यमियों को प्रेरणा देती है.
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अभिकल्पक पिंगलि वेंकय्या
पिंगलि वेंकय्या एक प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, कृषि वैज्ञानिक, और डिजाइनर थे, जिन्हें भारतीय राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा) के डिजाइन के लिए जाना जाता है. पिंगलि वेंकय्या का जन्म 2 अगस्त 1876 को आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मछलीपट्टनम और मद्रास (अब चेन्नई) में पूरी की. बाद में उन्होंने कोलंबो, श्रीलंका और इंग्लैंड में भी शिक्षा प्राप्त की.
वेंकय्या ने कृषि विज्ञान में विशेषज्ञता हासिल की और किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए काम किया. उन्होंने भूगोल, भूविज्ञान, और कृषि पर कई लेख और पुस्तकों का लेखन किया. वेंकय्या महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए. वे गांधी जी के प्रमुख अनुयायियों में से एक थे और कई आंदोलनों में सक्रिय भाग लिया.
पिंगलि वेंकय्या ने भारतीय राष्ट्रीय ध्वज (तिरंगा) का डिजाइन तैयार किया. उन्होंने कई वर्षों तक विभिन्न डिजाइनों पर काम किया और अंततः उनके डिजाइन को वर्ष 1921 में अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की बैठक में प्रस्तुत किया. उनके द्वारा प्रस्तुत डिजाइन में केसरिया (साहस और बलिदान), सफेद (सत्य और शांति) और हरा (विश्वास और साहस) रंगों के साथ बीच में चरखा (स्वावलंबन का प्रतीक) था.22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने उनके डिजाइन को कुछ परिवर्तनों के साथ भारत के राष्ट्रीय ध्वज के रूप में अपनाया. चरखे की जगह अशोक चक्र को ध्वज के केंद्र में रखा गया.
स्वतंत्रता के बाद, पिंगलि वेंकय्या को उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया, लेकिन उनकी सादगी और साधारण जीवन के कारण वे गुमनामी में रहे. भारतीय डाक विभाग ने उनके सम्मान में वर्ष 2009 में एक डाक टिकट जारी किया. पिंगलि वेंकय्या का निधन 4 जुलाई 1963 को हुआ था. पिंगलि वेंकय्या का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और राष्ट्रीय ध्वज के प्रति उनका योगदान अमूल्य है. उनका नाम भारतीय इतिहास में सदा के लिए अंकित रहेगा और उनके द्वारा डिजाइन किया गया तिरंगा देशभक्ति और राष्ट्रीय गर्व का प्रतीक बना रहेगा.
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मध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल
रविशंकर शुक्ल एक प्रमुख भारतीय राजनेता और स्वतंत्रता सेनानी थे, जो मध्य प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री बने. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे और स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भागीदारी निभाई थी. रविशंकर शुक्ल का जन्म 2 अगस्त 1877 को सागर जिले की रहली तहसील के गुड़ा ग्राम में एक कान्यकुब्ज ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम पंडित जगन्नाथ शुक्ल और माता का नाम तुलसी देवी था. उनकी प्रारम्भिक शिक्षा चार वर्ष की आयु में सागर स्थित ‘सुन्दरलाल पाठशाला’ में दाखिला लिया.
रविशंकर ने माध्यमिक शिक्षा पूर्ण होने के बाद अपने पिता के साथ राजनांदगाँव चले गये और अपने भाई पंडित गजाधर शुक्ल के साथ ‘बेंगाल नागपुर कॉटन मिल’ में सहभागी हो गए. कुछ वर्ष मिल चलाने के बाद वे रायपुर चले गये. इस दौरान रविशंकर शुक्ल ने अपनी स्कूली शिक्षा रायपूर हाईस्कूल से पूर्ण की. शुक्ल ने इंटर की परीक्षा जबलपुर के ‘रॉबर्टसन कॉलेज’ से उत्तीर्ण की और फिर स्नातक की पढ़ाई नागपुर के ‘हिसलोप कॉलेज’ से पूर्ण की.
वर्ष 1898 में संपन्न हुए कांग्रेस के 13वें अधिवेशन में भाग लेने आप अपने अध्यापक के साथ अमरावती गये थे. शुक्ल ने वर्ष 1906 से रायपुर में वकालत प्रारंभ की साथ ही वे स्वतंत्रता आन्दोलनों में भी भाग लेते रहे. वर्ष 1926-37 तक आप ‘रायपुर ज़िला बोर्ड’ के सदस्य भी रहे. वर्ष 1952 में प्रथम आम चुनावों के बाद रविशंकर मुख्यमंत्री बने. रविशंकर शुक्ल की मृत्यु 31 दिसंबर 1956 को हुई. उनके योगदानों को स्मरण करने के लिए भोपाल में उनके नाम पर रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय की स्थापना की गई. उन्हें भारतीय राजनीति और मध्य प्रदेश के विकास में उनके योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा.
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चिकित्सक और व्यंग्यकार ज्ञान चतुर्वेदी
ज्ञान चतुर्वेदी एक प्रसिद्ध भारतीय चिकित्सक, व्यंग्यकार और लेखक हैं. उनका जन्म 2 अगस्त 1952 को मुरैना, मध्य प्रदेश में हुआ था. उन्होंने अपने लेखन से हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है. ज्ञान चतुर्वेदी एक कुशल चिकित्सक हैं/ उन्होंने अपनी चिकित्सा की पढ़ाई एम्स (ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज), नई दिल्ली से की है. वे भोपाल के गांधी मेडिकल कॉलेज में प्रोफेसर और वरिष्ठ चिकित्सक के रूप में कार्यरत रहे हैं. चिकित्सा के क्षेत्र में उनके अनुभव ने उनके लेखन को और अधिक प्रामाणिकता और गहराई दी है.
ज्ञान चतुर्वेदी ने व्यंग्य साहित्य में अपनी अलग पहचान बनाई है. उनकी रचनाओं में समाज की समस्याओं, राजनीतिक विडंबनाओं और जीवन के विभिन्न पहलुओं पर तीखी टिप्पणियाँ होती हैं.
उपन्यास और कृतियाँ: –
“नरक यात्रा” – यह ज्ञान चतुर्वेदी का प्रमुख व्यंग्य उपन्यास है, जिसमें उन्होंने समाज की विभिन्न समस्याओं और विडंबनाओं पर तीखा व्यंग्य किया है.
“बारामासी” – इस उपन्यास में उन्होंने भारतीय समाज की मानसिकता और सांस्कृतिक परंपराओं को व्यंग्यात्मक ढंग से प्रस्तुत किया है.
“हम न मरब” – यह उपन्यास भारतीय राजनीतिक और सामाजिक परिप्रेक्ष्य पर आधारित है और इसमें हास्य और व्यंग्य का अद्भुत मिश्रण है.
“मरीचिका” – इस उपन्यास में उन्होंने चिकित्सा क्षेत्र की समस्याओं और भ्रष्टाचार को व्यंग्यात्मक ढंग से उजागर किया है.
ज्ञान चतुर्वेदी की लेखनी की विशेषता उनकी सरल, सहज और रोचक भाषा है, जो पाठकों को बाँधने में सक्षम होती है. वे अपने व्यंग्य में हास्य और गंभीरता का संतुलन बखूबी बनाए रखते हैं, जिससे उनकी रचनाएँ समाज पर गहरा प्रभाव छोड़ती हैं. उनके योगदानों के लिए उन्हें कई साहित्यिक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है, और वे हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं.
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क्रिकेटर अरशद अयूब
अरशद अयूब एक पूर्व भारतीय क्रिकेटर हैं, जिन्होंने वर्ष 1980 के दशक के मध्य में भारतीय क्रिकेट टीम के लिए खेला. उनका जन्म 2 अगस्त 1958 को हैदराबाद, आंध्र प्रदेश (अब तेलंगाना), भारत में हुआ था. अयूब एक दाएं हाथ के ऑफ स्पिन गेंदबाज थे और उन्होंने भारतीय क्रिकेट में महत्वपूर्ण योगदान दिया.
अरशद अयूब ने भारत के लिए कुल 13 टेस्ट मैच खेले, जिनमें उन्होंने 41 विकेट लिए. उनका टेस्ट डेब्यू 1987 में वेस्टइंडीज के खिलाफ हुआ था. टेस्ट क्रिकेट में उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 6 विकेट लेकर 21 रन था वहीँ, अयूब ने भारतीय टीम के लिए 32 वनडे मैच खेले, जिनमें उन्होंने 31 विकेट लिए. वनडे में उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 4 विकेट लेकर 19 रन था.
क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद, अरशद अयूब ने कोचिंग और क्रिकेट प्रशासन में भी महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं. वे हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष भी रह चुके हैं और उन्होंने युवा खिलाड़ियों के विकास में योगदान दिया है. अरशद अयूब ने क्रिकेट के खेल को बढ़ावा देने और नई पीढ़ी के खिलाड़ियों को मार्गदर्शन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उनकी कोचिंग और प्रशासनिक कौशल ने भारतीय घरेलू क्रिकेट में कई प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को उभरने का मौका दिया.
अरशद अयूब का क्रिकेट कैरियर भले ही बहुत लंबा नहीं रहा, लेकिन उनके योगदान और उनके द्वारा किए गए प्रदर्शन को भारतीय क्रिकेट इतिहास में याद किया जाता है.
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क्रिकेटर एम. वी. श्रीधर
एम. वी. श्रीधर (मणि वेंकट श्रीधर) एक भारतीय क्रिकेटर और क्रिकेट प्रशासक थे, जिनका जन्म 02 अगस्त 1965 को हैदराबाद, तेलंगाना में हुआ था. उन्होंने वर्ष 1988 – 2000 तक घरेलू क्रिकेट में हैदराबाद के लिए खेला. श्रीधर ने हैदराबाद के लिए 97 प्रथम श्रेणी मैच खेले, जिसमें उन्होंने 46.13 की औसत से 6,701 रन बनाए। उन्होंने अपने कैरियर में 21 शतक और 27 अर्धशतक लगाए. उनका सर्वोच्च स्कोर 366 रन था, जो उन्होंने वर्ष 1993-94 के रणजी ट्रॉफी सीज़न में आंध्र के खिलाफ बनाया था. यह स्कोर रणजी ट्रॉफी के इतिहास में सर्वोच्च व्यक्तिगत स्कोर में से एक है.
क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद, एम. वी. श्रीधर ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) में विभिन्न प्रशासनिक भूमिकाएँ निभाईं. वे बीसीसीआई के जनरल मैनेजर (क्रिकेट ऑपरेशन्स) थे, जिसमें उन्होंने भारतीय क्रिकेट के संचालन और प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने बीसीसीआई के विभिन्न टूर्नामेंटों और कार्यक्रमों के आयोजन में योगदान दिया.
श्रीधर हैदराबाद क्रिकेट एसोसिएशन के सचिव भी रहे. उन्होंने स्थानीय क्रिकेट के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया. एम. वी. श्रीधर का निधन 30 अक्टूबर 2017 को 51 वर्ष की आयु में हुआ. उनके निधन से भारतीय क्रिकेट समुदाय में शोक की लहर दौड़ गई. एम. वी. श्रीधर ने भारतीय घरेलू क्रिकेट में एक उल्लेखनीय कैरियर और क्रिकेट प्रशासन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके योगदान को भारतीय क्रिकेट में हमेशा याद किया जाएगा.
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अभिनेत्री युविका चौधरी
युविका चौधरी एक भारतीय अभिनेत्री और मॉडल हैं, जो हिंदी सिनेमा और टेलीविजन में अपने काम के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म 02 अगस्त 1983 को उत्तर प्रदेश के बड़ौत में हुआ और वहीं उनकी प्रारंभिक शिक्षा हुई. युविका चौधरी ने अपने कैरियर की शुरुआत मॉडलिंग से की. उन्हें सबसे पहले वर्ष 2004 में “ज़ी सिने स्टार की खोज” में देखा गया था, जो एक टैलेंट हंट शो था. इसमें उन्होंने अपना पहला बड़ा ब्रेक हासिल किया.
युविका चौधरी ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत ज़ी टीवी के ज़ी सिने स्टार्स की खोज नामक एक वास्तविक कार्यक्रम से शुरू हुआ था लेकिन युविका को हिंदी सिनेमा में पहचान शाहरुख़ खान और दीपिका पादुकोण स्टार फिल्म ओम शांति ओम से मिली थी. युविका चौधरी ने वर्ष 2007 में फराह खान की फिल्म “ओम शांति ओम” में काम किया, जिसमें उन्होंने “डॉली” का किरदार निभाया. यह फिल्म बहुत बड़ी हिट रही और युविका को इस फिल्म से पहचान मिली.
फिल्में: – “नागिन” (2016), “सत्ते पे सत्ता” (2008), और “तो बात पक्की” (2010) जैसी फिल्मों में भी काम किया है. उन्होंने कुछ पंजाबी और कन्नड़ फिल्मों में भी अभिनय किया है, जिससे उन्होंने विभिन्न फिल्म इंडस्ट्रीज में अपनी पहचान बनाई.
युविका चौधरी ने “बिग बॉस” सीज़न 9 में हिस्सा लिया. इस शो में उनके प्रदर्शन ने उन्हें और भी लोकप्रिय बना दिया. शो के दौरान ही उनकी मुलाकात प्रिंस नरूला से हुई. युविका ने “डोली सजा के रखना” और “अस्तित्व… एक प्रेम कहानी” जैसे टीवी शो में भी काम किया है. वे रियलिटी शो “नच बलिए” में भी दिखाई दीं, जिसमें उन्होंने प्रिंस नरूला के साथ भाग लिया. युविका चौधरी ने 12 अक्टूबर 2018 को प्रिंस नरूला से शादी की. प्रिंस नरूला एक टीवी एक्टर और रियलिटी शो स्टार हैं.
युविका चौधरी ने अपने कैरियर में विभिन्न शैलियों और माध्यमों में काम किया है, जिससे उन्होंने अपनी बहुमुखी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है. उनकी सुंदरता, अभिनय कौशल, और स्टाइल ने उन्हें भारतीय मनोरंजन उद्योग में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है.
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चिकित्सक चुनीलाल बसु
चुनीलाल बसु, जिनका जन्म 13 मार्च, 1861 को कोलकाता में हुआ था, एक प्रसिद्ध रसायनज्ञ, चिकित्सक और समाज सुधारक थे. उन्होंने स्कॉटिश चर्च कॉलेज और कोलकाता मेडिकल कॉलेज से अपनी शिक्षा पूरी की थी. उनकी आर्थिक स्थिति के बावजूद वे एक महान चिकित्सक बने और “चेचक की रोकथाम” और “भारत में मधुमेह के बारे में कुछ प्रेक्षण” जैसे लेखों के जरिए अपनी विद्वता का प्रमाण दिया.
बसु ने रसायन विज्ञान, खाद्य विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया था. वे बंगाल सरकार के वर्ष 1889 -1920 तक रासायनिक परीक्षक रहे और उन्होंने ‘भारतीय विष अधिनियम’ को पारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके द्वारा विषकारक पदार्थों के मुक्त क्रय-विक्रय पर रोक लगाई गई थी. उनके इस उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें वर्ष 1898 में ब्रितानी सरकार द्वारा राय बहादुर की पदवी से सम्मानित किया गया था.
चुनीलाल बसु ने कई लेखन कृतियाँ भी प्रकाशित कीं, जिनमें ‘स्वास्थ्य पञ्चक’, ‘जल’, ‘वायु’, ‘फलित रसायन’, ‘पल्ली स्वास्थ्य’ (ग्रामीण स्वास्थ्य) और ‘शरीर स्वास्थ्य विधान’ (शरीर स्वास्थ्य के नियम) शामिल हैं. उन्होंने ‘गुरुदास बनर्जी की जीवनी’ भी लिखी, जो बांग्ला में है.
चुनीलाल बसु का जीवन और कार्य उन्हें एक अद्वितीय व्यक्तित्व बनाते हैं. उनकी चिकित्सा शिक्षा, सामाजिक सुधारों के प्रति योगदान और लेखन कृतियाँ उन्हें उनके समय से आगे का व्यक्ति दर्शाती हैं. उनकी कठिनाइयों से जूझते हुए सफलता पाने की कहानी आज भी प्रेरणादायक है. उनके द्वारा लिखित लेख “चेचक की रोकथाम” और “भारत में मधुमेह के बारे में कुछ प्रेक्षण” चिकित्सा क्षेत्र में उनकी गहरी समझ को दर्शाते हैं.
राय बहादुर की पदवी से सम्मानित होना और खाद्य एवं रसायन विज्ञान के क्षेत्र में उनके योगदान ने उन्हें एक असाधारण स्थिति प्रदान की. ग्रामीण बंगाल में स्वच्छता और स्वास्थ्य के प्रसार के लिए उनके प्रयासों ने सामाजिक स्तर पर बड़े परिवर्तन किए. चुनीलाल बसु का निधन 02 अगस्त 1930 को हुआ था.
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अभिनेता कमल कपूर
कमल कपूर भारतीय सिनेमा में एक प्रसिद्ध चरित्र अभिनेता थे, जिन्होंने वर्ष 1940 के दशक से लेकर वर्ष 1980 के दशक तक अपनी अदाकारी का लोहा मनवाया. उन्होंने हिंदी फिल्म उद्योग में विभिन्न प्रकार की भूमिकाएं निभाईं, जिसमें विलेन, सहायक भूमिकाएं और कभी-कभी मुख्य भूमिकाएं भी शामिल थीं.
कमल कपूर का जन्म 22 फ़रवरी 1920 को लाहौर, पंजाब में हुआ था. उन्होंने अपने फ़िल्मी कैरियर की शुरुआत फ़िल्म ‘दूर चलें’ से की थी. कपूर के गहरे व्यक्तित्व, प्रभावशाली आवाज और अभिनय क्षमता के लिए सराहा गया. उन्होंने कई यादगार फिल्मों में काम किया, जिनमें उनके द्वारा निभाई गई भूमिकाएं आज भी दर्शकों के दिलों में बसी हुई हैं.
प्रमुख फ़िल्में: – पाकीज़ा (1972) में नवाब जफर अली खान, डॉन (1978) में नारंग और मर्द (1985) में जनरल डायर, आग (1948) में वकील खन्ना, रेशमी रूमाल (1961) दीपक.
कमल कपूर का निधन 2 अगस्त 2010 को मुंबई, महाराष्ट्र में हुआ था. उन्होंने अपनी अदाकारी के जरिए फिल्म इंडस्ट्री में एक खास पहचान बनाई. उनका निधन हो चुका है, लेकिन उनकी फिल्मों के माध्यम से उनका काम और योगदान सिनेमा के प्रेमियों द्वारा याद किया जाता रहेगा. वे भारतीय सिनेमा के उन महान अभिनेताओं में से एक हैं, जिनकी भूमिकाओं ने फिल्मों को अमर बना दिया.