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व्यक्ति विशेष– 578.

क्रांतिकारी कल्पना दत्त

कल्पना दत्त एक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की क्रांतिकारी थीं. वह चटगांव शस्त्रागार छापे में शामिल थीं, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख घटनाओं में से एक था. कल्पना का जन्म 27 जुलाई 1913 को बंगाल के श्रीपुर गांव में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अपने गांव में प्राप्त की और बाद में आगे की पढ़ाई के लिए कलकत्ता (अब कोलकाता) गईं. वहां उन्होंने बेथ्यून कॉलेज में दाखिला लिया.

कल्पना वर्ष 1930 के दशक की शुरुआत में मास्टरदा सूर्य सेन के नेतृत्व में क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गईं. वह चटगांव शस्त्रागार छापे की योजना में शामिल थीं, जो वर्ष 1930 में हुआ. इस छापे का उद्देश्य अंग्रेजी सरकार की प्रशासनिक और सैन्य शक्ति को कमजोर करना था. छापे के बाद कल्पना को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. हालांकि, वर्ष 1939 में उन्हें रिहा कर दिया गया.

रिहाई के बाद कल्पना ने भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के साथ काम किया और स्वतंत्रता संग्राम के बाद सामाजिक और राजनीतिक कार्यों में सक्रिय रहीं. उन्होंने पत्रकारिता में भी काम किया और कई लेख और पुस्तकें लिखीं. कल्पना दत्त की बहादुरी और योगदान को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. उनके जीवन और कार्यों पर कई किताबें और फिल्में भी बनाई गई हैं. कल्पना दत्त का निधन 8 फरवरी 1995 को कलकत्ता (अब कोलकाता), पश्चिम बंगाल में हुआ था.  उनका जीवन और उनकी क्रांतिकारी गतिविधियाँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणादायक कहानियों में से एक है, जिसने कई लोगों को स्वतंत्रता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया.

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लेखिका भारती मुखर्जी

भारती मुखर्जी एक भारतीय-अमेरिकी लेखिका थीं, जो अपने उपन्यासों और कहानियों के माध्यम से भारतीय प्रवासियों के अनुभवों और सांस्कृतिक संघर्षों को चित्रित करने के लिए जानी जाती हैं. उनका जन्म 27 जुलाई 1940 को कोलकाता, भारत में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा भारत में प्राप्त की और बाद में उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड और अमेरिका चली गईं. उन्होंने कैलगरी विश्वविद्यालय से बीए की डिग्री प्राप्त की और आयोवा राइटर्स’ वर्कशॉप से एमएफए और पीएचडी की डिग्री प्राप्त की. मुखर्जी ने अपने साहित्यिक कैरियर में कई उपन्यास, कहानियां और निबंध लिखे.

टाइगर‘स डॉटर (1971): – यह उपन्यास एक युवा भारतीय महिला की कहानी है जो अमेरिका में रहने के बाद भारत लौटती है और अपने बदलते हुए देश और स्वयं के बीच के संघर्ष का सामना करती है.

जैस्मिन (1989): – इस उपन्यास में एक भारतीय महिला की कहानी है जो अपने पति की मौत के बाद अमेरिका चली जाती है और वहां नई पहचान बनाती है.

द मिडनाइट्स चिल्ड्रन (1981): – यह उनका सबसे प्रसिद्ध और विवादास्पद उपन्यास है, जिसमें भारत के स्वतंत्रता के समय और उसके बाद की कहानी है.

मुखर्जी का विवाह कनाडाई लेखक क्लार्क ब्लेज़ से हुआ था और उनके दो बेटे थे. उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय अमेरिका में बिताया और वहीं पर उन्होंने अपने साहित्यिक कैरियर को विकसित किया. भारती मुखर्जी को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए. उन्होंने अपने कार्यों के माध्यम से भारतीय प्रवासी अनुभवों को विश्व पटल पर लाने का महत्वपूर्ण काम किया.

भारती मुखर्जी का निधन 28 जनवरी 2017 को न्यूयॉर्क, अमेरिका में हुआ. उनकी लेखन शैली और विषय वस्तु ने कई पाठकों और लेखकों को प्रभावित किया और उनकी साहित्यिक धरोहर आज भी जीवित है. भारती मुखर्जी का जीवन और कार्य भारतीय और अमेरिकी साहित्य के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में याद किया जाता है, और उनकी कहानियाँ प्रवासियों के अनुभवों को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन हैं.

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राजनीतिज्ञ उद्धव ठाकरे

उद्धव ठाकरे एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ हैं, जो महाराष्ट्र राज्य में शिवसेना पार्टी के प्रमुख के रूप में जाने जाते हैं. वे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं. उद्धव ठाकरे का जन्म 27 जुलाई 1960 को हुआ था. वे शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे के बेटे हैं.

उद्धव ठाकरे की शिक्षा सरदार वल्लभभाई पटेल विद्या मंदिर से प्राप्त की और बाद में उन्होंने जेजे स्कूल ऑफ आर्ट्स से वाणिज्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की. उद्धव ठाकरे का राजनीतिक कैरियर वर्ष 1990 के दशक में शुरू हुआ जब उन्होंने शिवसेना के प्रचार विभाग की जिम्मेदारी संभाली। उनके नेतृत्व में, शिवसेना ने कई चुनावों में सफलता हासिल की और महाराष्ट्र की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बनी.

वर्ष 2003 में, उद्धव ठाकरे को शिवसेना का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया. वर्ष 2012 में, उनके पिता बाल ठाकरे की मृत्यु के बाद, उद्धव ठाकरे को शिवसेना का प्रमुख बना दिया गया. वर्ष 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के बाद, उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ गठबंधन कर सरकार बनाई और 28 नवंबर 2019 को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने. उनके कार्यकाल के दौरान, उन्होंने राज्य में कई महत्वपूर्ण नीतियों और योजनाओं को लागू किया, जिनमें कृषि और स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार शामिल हैं.

उद्धव ठाकरे का विवाह रश्मि ठाकरे से हुआ है और उनके दो बेटे हैं, आदित्य ठाकरे और तेजस ठाकरे. आदित्य ठाकरे भी राजनीति में सक्रिय हैं और महाराष्ट्र सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं. उद्धव ठाकरे को फोटोग्राफी का भी शौक है और उन्होंने कई फोटोग्राफी पुस्तकें भी प्रकाशित की हैं. इसके अलावा, उन्हें पर्यावरण संरक्षण और वन्यजीव संरक्षण में भी रुचि है.

उद्धव ठाकरे वर्तमान में शिवसेना के प्रमुख के रूप में कार्यरत हैं और महाराष्ट्र की राजनीति में एक प्रमुख नेता के रूप में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है. उनके नेतृत्व में, शिवसेना ने राज्य और देश की राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया है. उद्धव ठाकरे का राजनीतिक जीवन उनके नेतृत्व और संगठनात्मक क्षमताओं का उदाहरण है, और उन्होंने महाराष्ट्र की राजनीति में एक महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है.

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गायिका के. एस. चित्रा

के. एस. चित्रा एक भारतीय पार्श्व गायिका हैं, जिन्हें उनके मधुर और सुमधुर आवाज़ के लिए जाना जाता है. उनका पूरा नाम कृष्णन नायर शांता कुमारी चित्रा है. चित्रा का जन्म 27 जुलाई 1963 को तिरुवनंतपुरम, केरल, भारत में हुआ था. उन्होंने कई भारतीय भाषाओं में गाने गाए हैं, जिनमें तमिल, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, हिंदी और उर्दू शामिल हैं.

चित्रा ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने पिता से प्राप्त की, जो खुद एक महान गायक और संगीतकार थे. उन्होंने संगीत में एमए की डिग्री केरल विश्वविद्यालय से प्राप्त की. चित्रा की आवाज़ की सुंदरता और उनके गायन की प्रतिभा को जल्द ही पहचान मिली और उन्होंने कम उम्र में ही संगीत की दुनिया में कदम रखा.

चित्रा ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1979 में की थी और जल्द ही वे एक सफल पार्श्व गायिका बन गईं. उन्होंने अपने कैरियर में कई प्रमुख संगीतकारों के साथ काम किया, जिनमें इलैयाराजा, ए. आर. रहमान, एम. एस. विश्वनाथन और कई अन्य शामिल हैं.

गाने: – “कन्नलाने” (फिल्म: बॉम्बे), “कुचि कुचि रकमा” (फिल्म: बॉम्बे),  “केसरिया बालम” (फिल्म: फिल्मफेयर अवार्ड जीतने वाला गाना).

चित्रा को उनके संगीत योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान मिले हैं, जिनमें निम्नलिखित प्रमुख हैं: – 6 राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, 8 फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड्स साउथ, 36 केरल राज्य फिल्म पुरस्कार, 10 तमिलनाडु राज्य फिल्म पुरस्कार.

चित्रा का विवाह विजयशंकर से हुआ है और उनकी एक बेटी थी, नंदना, जिसका निधन वर्ष 2011 में हो गया. चित्रा ने कई सामाजिक और परोपकारी कार्यों में भी भाग लिया है. वे विभिन्न चैरिटी और सामुदायिक सेवाओं में सक्रिय रूप से भाग लेती हैं और संगीत के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश करती हैं.

के. एस. चित्रा का संगीत कैरियर और उनका योगदान भारतीय संगीत जगत में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है. उनकी मधुर आवाज़ और संगीत के प्रति उनकी समर्पण भावना ने उन्हें भारतीय संगीत प्रेमियों के दिलों में एक विशेष स्थान दिलाया है. वे आज भी सक्रिय हैं और संगीत की दुनिया में अपनी छाप छोड़ रही हैं.

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अभिनेता और टीवी कलाकार आसिफ़ बसरा

आसिफ़ बसरा एक भारतीय अभिनेता और टीवी कलाकार थे, जिन्हें उनके विभिन्न किरदारों और अभिनय की गहराई के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 27 जुलाई 1967 को अमरावती, महाराष्ट्र, भारत में हुआ था. उन्होंने बॉलीवुड फिल्मों के अलावा थिएटर और टीवी शो में भी अपने अभिनय का लोहा मनवाया.

आसिफ़ बसरा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अमरावती में प्राप्त की और बाद में मुंबई चले गए. उन्होंने मुंबई के रिजवी कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्राप्त की. बसरा ने अपने कैरियर की शुरुआत थिएटर से की थी और उन्होंने कई महत्वपूर्ण नाटकों में अभिनय किया. उनका बॉलीवुड कैरियर वर्ष 1998 में फिल्म “वो” से शुरू हुआ.

फिल्में: –

ब्लैक फ्राइडे (2004): – अनुराग कश्यप द्वारा निर्देशित इस फिल्म में बसरा ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

परजानिया (2007): – इस फिल्म में उन्होंने एक पारसी व्यक्ति की भूमिका निभाई थी, जिसकी फिल्म को काफी प्रशंसा मिली.

आउटसोर्स्ड (2006): – इस अमेरिकी फिल्म में उन्होंने एक महत्वपूर्ण किरदार निभाया था.

जब वी मेट (2007): – इस लोकप्रिय फिल्म में उन्होंने करीना कपूर के साथ एक छोटी लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

काई पो छे! (2013): – इस फिल्म में उन्होंने अमित साध के पिता का किरदार निभाया था.

आसिफ़ बसरा ने कई टीवी शो में भी काम किया, जिनमें ‘वो हुआ ना हमारा’ और ‘हम ने ली है शपथ’ शामिल हैं. आसिफ़ बसरा का निजी जीवन काफी निजी रहा और उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन को मीडिया से दूर रखा.

आसिफ़ बसरा का निधन 12 नवंबर 2020 को धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश में हुआ. उनकी मौत को आत्महत्या माना गया. उनके निधन से बॉलीवुड और उनके प्रशंसकों को गहरा सदमा लगा.

आसिफ़ बसरा का अभिनय कैरियर और उनके द्वारा निभाए गए विभिन्न किरदार उन्हें एक बहुमुखी कलाकार के रूप में स्थापित करते हैं. उनकी अभिनय प्रतिभा और समर्पण ने उन्हें भारतीय सिनेमा और टीवी जगत में एक विशेष स्थान दिलाया. उनके निधन से भारतीय सिनेमा ने एक प्रतिभाशाली अभिनेता को खो दिया, लेकिन उनके अभिनय की धरोहर आज भी जीवित है.

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एथलीट सीमा पुनिया

सीमा पुनिया एक भारतीय डिस्कस थ्रोअर (चक्का फेंकने वाली) एथलीट हैं, जिन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का प्रतिनिधित्व किया है. उनका जन्म 27 जुलाई 1983 को सोनीपत, हरियाणा, भारत में हुआ था. उन्होंने अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए कई पुरस्कार और पदक जीते हैं और भारतीय एथलेटिक्स में एक महत्वपूर्ण स्थान हासिल किया है.

सीमा पुनिया का जन्म और पालन-पोषण हरियाणा में हुआ. उन्होंने खेलों में अपनी रुचि और प्रतिभा को पहचानते हुए बहुत छोटी उम्र में ही एथलेटिक्स की दुनिया में कदम रखा. उनकी शिक्षा और प्रशिक्षण हरियाणा में ही हुआ. सीमा पुनिया ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1999 में राष्ट्रीय खेलों में भाग लेकर की थी. उन्होंने अपने पहले ही प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक जीता और अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया.

एशियन गेम्स: – सीमा ने वर्ष 2002, 2006, 2014 और वर्ष 2018 के एशियाई खेलों में भाग लिया है. वर्ष 2014 के इंचियोन एशियाई खेलों में उन्होंने स्वर्ण पदक जीता.

कॉमनवेल्थ गेम्स: – सीमा ने वर्ष 2006, 2010, 2014 और वर्ष  2018 के कॉमनवेल्थ गेम्स में भाग लिया. उन्होंने वर्ष 2014 में रजत पदक और 2018 में कांस्य पदक जीता.

एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप: – उन्होंने कई एशियाई एथलेटिक्स चैंपियनशिप में भाग लिया और पदक जीते.

सीमा पुनिया को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए हैं. उन्हें वर्ष  2018 में अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया, जो भारतीय खेलों में उत्कृष्टता के लिए दिया जाने वाला एक प्रमुख पुरस्कार है. सीमा पुनिया का निजी जीवन बहुत ही अनुशासित और समर्पित है. उन्होंने अपने खेल कैरियर को आगे बढ़ाने के लिए कठिन परिश्रम और दृढ़ संकल्प का परिचय दिया है.

सीमा पुनिया का कैरियर और उनकी उपलब्धियाँ भारतीय एथलेटिक्स के लिए प्रेरणादायक हैं. उनके समर्पण और कठिन परिश्रम ने उन्हें भारतीय खेल जगत में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया है. उनकी कहानी युवाओं को खेलों में उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है.

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अभिनेता अमजद ख़ान

अमजद ख़ान एक प्रसिद्ध भारतीय फिल्म अभिनेता और निर्देशक थे, जिन्हें हिंदी सिनेमा में उनके अद्वितीय अभिनय कौशल और खासकर खलनायक की भूमिकाओं के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 12 नवंबर 1940 को पेशावर (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. अमजद ख़ान ने अपने कैरियर में कई महत्वपूर्ण और यादगार भूमिकाएँ निभाईं, जिनमें से सबसे प्रसिद्ध उनकी “शोले” फिल्म में निभाई गई ‘गब्बर सिंह’ की भूमिका है.

अमजद ख़ान का जन्म एक फिल्मी परिवार में हुआ था. उनके पिता जयंत भी एक जाने-माने अभिनेता थे. उन्होंने अपनी शिक्षा सेंट एंड्रयूज हाई स्कूल, बांद्रा और आर. डी. नेशनल कॉलेज, बांद्रा, मुंबई से प्राप्त की. अमजद ख़ान का फिल्मी कैरियर वर्ष 1957 में “अब दिल्ली दूर नहीं” फिल्म से बाल कलाकार के रूप में शुरू हुआ. उन्होंने वर्ष 1970 के दशक में अपने कैरियर की शुरुआत की, लेकिन उन्हें असली पहचान वर्ष 1975 में आई फिल्म “शोले” से मिली.

फिल्म शोले (1975) में अमजद ख़ान ने ‘गब्बर सिंह’ नामक एक खलनायक की भूमिका निभाई, जिसने उन्हें रातों-रात स्टार बना दिया. गब्बर सिंह का किरदार और उसके संवाद भारतीय सिनेमा में आज भी अमर हैं.

मुकद्दर का सिकंदर (1978): – इस फिल्म में भी अमजद ख़ान ने एक महत्वपूर्ण खलनायक की भूमिका निभाई थी.

लावारिस (1981): – इस फिल्म में भी उन्होंने अपनी अभिनय प्रतिभा का परिचय दिया और दर्शकों का दिल जीता.

सत्ते पे सत्ता (1982): – इस फिल्म में भी उन्होंने यादगार अभिनय किया.

अमजद ख़ान ने अपने कैरियर में कुछ फिल्मों का निर्देशन भी किया. इनमें “चोर पुलिस” (1983) और “अमीर आदमी गरीब आदमी” (1985) शामिल हैं.

अमजद ख़ान का विवाह शेहला ख़ान से हुआ था और उनके तीन बच्चे हैं – शादाब ख़ान, सीमा सोबती, और अहलम ख़ान. शादाब ख़ान ने भी फिल्मों में काम किया है. अमजद ख़ान का स्वास्थ्य वर्ष 1986 में एक कार दुर्घटना के बाद बिगड़ गया, जिससे उनके शरीर पर गहरी चोटें आईं. उनका स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ता गया और 27 जुलाई 1992 को मुंबई में हृदयाघात के कारण उनका निधन हो गया.

अमजद ख़ान का योगदान भारतीय सिनेमा में अविस्मरणीय है. उनकी भूमिकाएं, खासकर ‘गब्बर सिंह’, हिंदी फिल्मों के इतिहास में हमेशा याद रखी जाएंगी. उन्होंने अपने अभिनय से न केवल खलनायकों को नया आयाम दिया, बल्कि अपनी बहुआयामी प्रतिभा से भी सिनेमा प्रेमियों का दिल जीता. उनके संवाद और अभिनय शैली आज भी सिने प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं और उनकी फिल्में हिंदी सिनेमा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती हैं.

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भूतपूर्व उपराष्ट्रपति कृष्णकान्त

कृष्णकांत एक भारतीय राजनेता थे जिन्होंने भारत के उपराष्ट्रपति के रूप में सेवा की. उनका पूरा नाम कृष्णकांत था और वे वर्ष 1997 – 2002 तक इस पद पर आसीन थे. कृष्णकांत का जन्म 28 फरवरी, 1927 को हुआ था और उनका निधन 27 जुलाई, 2002 को हुआ था.

कृष्णकांत ने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत इंडियन नेशनल कांग्रेस से की थी और वे कई बार सांसद भी रहे. वे भारतीय राजनीति में एक सम्मानित व्यक्तित्व थे और उन्हें विशेष रूप से उनके विनम्र स्वभाव और सामाजिक न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिए जाना जाता था.

कृष्णकांत ने भारतीय राजनीति में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर काम किया और उन्होंने देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनके उपराष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान, वे राज्यसभा के सभापति के रूप में भी कार्य करते थे, जो उपराष्ट्रपति का एक पारंपरिक कार्य है. उनकी मृत्यु के बाद, उन्हें उनकी सेवाओं और योगदानों के लिए व्यापक रूप से श्रद्धांजलि दी गई.

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कवि शिवदीन राम जोशी

शिवदीन राम जोशी एक प्रसिद्ध हिंदी कवि थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं के माध्यम से हिंदी साहित्य को समृद्ध किया. उनके काव्य में देशप्रेम, सामाजिक जागरूकता और मानवीय भावनाओं की झलक मिलती है. शिवदीन राम जोशी का जन्म 10 जून, 1921 ई. को राजस्थान के सीकर ज़िले में खंडेला नामक स्थान पर हुआ था और उनका निधन 27 जुलाई 2006 को हुआ. उनका अधिकांश जीवन हिंदी साहित्य की सेवा में व्यतीत हुआ. वे एक समर्पित साहित्यकार थे, जिन्होंने हिंदी कविता को नए आयाम दिए.

शिवदीन राम जोशी ने कई कविताएँ और गद्य रचनाएँ लिखीं. उनकी रचनाएँ समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करती हैं और आम जनता के जीवन से गहराई से जुड़ी हुई हैं. उनके काव्य संग्रहों में प्रेम, समाजिक न्याय, और देशभक्ति की कविताएँ शामिल हैं. जोशी के कई कविता संग्रह प्रकाशित हुए, जिनमें उन्होंने विविध विषयों पर लिखा. उनकी कविताएँ समाज में व्याप्त अन्याय और भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाती हैं. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान और उसके बाद, उनकी रचनाएँ देशप्रेम और राष्ट्रवाद की भावना से ओतप्रोत थीं.

शिवदीन राम जोशी की काव्य शैली सरल और प्रभावी थी. वे अपने विचारों को स्पष्ट और सशक्त भाषा में व्यक्त करते थे, जिससे उनकी कविताएँ पाठकों के हृदय में गहरी छाप छोड़ती थीं. उनकी कविताओं में सांस्कृतिक और परंपरागत तत्वों का समावेश भी देखने को मिलता है. उनके साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाजा गया. उनके कार्यों ने हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया और वे आज भी प्रेरणा के स्रोत बने हुए हैं.

शिवदीन राम जोशी के योगदान को हिंदी साहित्य और समाज में हमेशा सराहा जाएगा. उनकी कविताएँ आज भी लोगों के दिलों में जीवित हैं और उनकी लेखनी का प्रभाव अद्वितीय है.

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पूर्व राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम

डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम एक प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक और भारत के 11वें राष्ट्रपति थे. उन्हें “मिसाइल मैन ऑफ इंडिया” के नाम से भी जाना जाता है. उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान और मिसाइल विकास कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण योगदान दिया और अपने जीवन में शिक्षा, विज्ञान, और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किए.

अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को रामेश्वरम, तमिलनाडु में एक मध्यमवर्गीय मुस्लिम परिवार में हुआ था. उनके पिता जैनुलाब्दीन एक नाविक थे और उनकी माता आशियम्मा एक गृहिणी थीं. परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, इसलिए कलाम ने अपनी शिक्षा के साथ-साथ अपने परिवार की आर्थिक मदद के लिए छोटे-मोटे काम भी किए.

उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा रामनाथपुरम श्वार्ट्ज मैट्रिकुलेशन स्कूल में प्राप्त की और बाद में तिरुचिरापल्ली के सेंट जोसेफ कॉलेज से भौतिकी में स्नातक किया. इसके बाद उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में स्नातक की उपाधि प्राप्त की. डॉ. कलाम ने अपने कैरियर की शुरुआत रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) में की और बाद में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में शामिल हुए.

ISRO: – कलाम ने SLV-III परियोजना का नेतृत्व किया, जो भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण यान था और 1980 में सफलतापूर्वक रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया.

DRDO: – डॉ. कलाम ने भारत के मिसाइल विकास कार्यक्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उन्होंने अग्नि और पृथ्वी मिसाइलों के विकास में प्रमुख भूमिका निभाई, जिससे भारत की रक्षा क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई.

पोखरण-II: – वर्ष 1998 में, डॉ. कलाम ने पोखरण-II परमाणु परीक्षण में एक प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार के रूप में कार्य किया, जिससे भारत को एक परमाणु संपन्न राष्ट्र के रूप में स्थापित किया गया.

डॉ. कलाम 2002 में भारत के 11वें राष्ट्रपति बने और 2007 तक इस पद पर बने रहे. उन्होंने राष्ट्रपति पद को एक नई ऊंचाई दी और जन साधारण के बीच “जनता के राष्ट्रपति” के रूप में लोकप्रिय हुए. उन्होंने शिक्षा और युवाओं के प्रेरणा स्रोत बनने के लिए कई पहल कीं. डॉ. कलाम को उनके वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में योगदान के लिए कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए, जिनमें प्रमुख हैं: –  भारत रत्न (1997), पद्म विभूषण (1990) और पद्म भूषण (1981).

डॉ. कलाम एक प्रसिद्ध लेखक भी थे. उन्होंने कई किताबें लिखीं, जिनमें प्रमुख हैं: – विंग्स ऑफ फायर (आत्मकथा),  इंडिया 2020, इग्नाइटेड माइंड्स और टर्निंग पॉइंट्स. डॉ. अब्दुल कलाम का निधन 27 जुलाई 2015 को शिलॉन्ग, मेघालय में एक व्याख्यान के दौरान हृदयाघात के कारण हुआ. उनकी मृत्यु से भारत ने एक महान वैज्ञानिक, प्रेरक नेता और एक समर्पित शिक्षक को खो दिया.

डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम का जीवन और कार्य भारतीय विज्ञान, प्रौद्योगिकी, और शिक्षा के क्षेत्र में एक प्रेरणास्रोत है. उन्होंने अपने जीवन को देश सेवा के लिए समर्पित कर दिया और उनकी विरासत आज भी युवा पीढ़ी को प्रेरित करती है. उनके आदर्श, दृष्टिकोण, और योगदान हमेशा भारतीय समाज में एक प्रेरणादायक प्रकाश स्तंभ के रूप में जीवित रहेंगे.

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तबला वादक लच्छू महाराज

लच्छू महाराज भारत के प्रसिद्ध तबला वादक थे, जिन्हें उनके अद्वितीय तबला वादन और लयकारी के लिए पहचाना जाता था. उनका असली नाम लक्ष्मण सिंह था, लेकिन उन्हें प्यार से “लच्छू महाराज” कहा जाता था. वे बनारस घराने के प्रतिष्ठित तबला वादक थे और भारतीय शास्त्रीय संगीत में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है.

लच्छू महाराज का जन्म 16अक्टूबर 1944 को बनारस ( उत्तर प्रदेश ) में हुआ था. इनके पिता का नाम वासुदेव महाराज था. लच्छू महाराज ने बचपन से ही तबला सीखना शुरू किया. उनकी तबला वादन शैली में बनारस घराने की परंपरा और अपनी खुद की रचनात्मकता का समन्वय था. उनके वादन में ठेके की मजबूती और गहराई के साथ-साथ अत्यधिक गति और सूक्ष्मता भी शामिल थी.

लच्छू महाराज ने न केवल शास्त्रीय संगीत में अपनी पहचान बनाई, बल्कि वे फिल्मी संगीत में भी सक्रिय रहे. उन्होंने कई प्रतिष्ठित संगीत समारोहों में प्रदर्शन किया और देश-विदेश में अपनी कला का प्रसार किया. उनकी सादगी और संगीत के प्रति समर्पण ने उन्हें संगीत प्रेमियों के बीच आदर और सम्मान दिलाया. लच्छू महाराज का निधन 27 जुलाई, 2016 को हुआ था. उनके निधन के बाद भी लच्छू महाराज का नाम तबला वादन की दुनिया में अमर है, और उनके शिष्य और प्रशंसक आज भी उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं.

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