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व्यक्ति विशेष– 574.

स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता, समाज सुधारक और शिक्षक थे. उन्हें “लोकमान्य” की उपाधि से सम्मानित किया गया था, जो उनके प्रति जनता के गहरे सम्मान और विश्वास को दर्शाता है. तिलक ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उनका योगदान आज भी महत्वपूर्ण माना जाता है.

बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को ब्रिटिश भारत में वर्तमान महाराष्ट्र स्थित रत्नागिरी जिले के एक गाँव चिखली में हुआ था. उनका पूरा नाम केशव गंगाधर तिलक था. वे एक मराठी ब्राह्मण परिवार से थे और उन्होंने पुणे से अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की. तिलक ने डेक्कन कॉलेज से गणित में स्नातक किया और फिर एलएलबी की डिग्री प्राप्त की. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत एक शिक्षक के रूप में की और बाद में पत्रकारिता में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया.

तिलक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक थे. उन्होंने “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा” का नारा दिया, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख आदर्श बन गया. तिलक ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष करने के लिए लोगों को प्रेरित किया और उन्हें संगठित किया. तिलक ने दो प्रमुख समाचार पत्रों, “केसरी” (मराठी) और “मराठा” (अंग्रेजी), की स्थापना की. इन पत्रों के माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश शासन की आलोचना की और भारतीय जनता को स्वतंत्रता संग्राम के प्रति जागरूक किया.

तिलक ने समाज सुधार के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. उन्होंने गणेश उत्सव और शिवाजी उत्सव की शुरुआत की, जिससे भारतीय जनता में एकता और राष्ट्र भक्ति की भावना बढ़ी. उन्होंने भारतीय संस्कृति और परंपराओं को पुनर्जीवित करने के लिए भी कार्य किया. बाल गंगाधर तिलक का निधन 1 अगस्त 1920 को मुंबई में हुआ. उनकी मृत्यु के बाद भी उनके विचार और आदर्श भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को प्रेरित करते रहे.

बाल गंगाधर तिलक को भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महान नेता के रूप में याद किया जाता है. उनके संघर्ष, आदर्श और नेतृत्व ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी और उनकी प्रेरणा आज भी भारतीय जनता को प्रेरित करती है.

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क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद

चंद्रशेखर आज़ाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारी नेताओं में से एक थे. उनका जन्म 23 जुलाई 1906 को मध्य प्रदेश के भाभरा गाँव में हुआ था. वे ब्रिटिश राज के खिलाफ भारत की स्वतंत्रता के लिए सशस्त्र संघर्ष के समर्थक थे और हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (HRA), जो बाद में हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) में परिवर्तित हुआ, के प्रमुख सदस्यों में से एक थे.

चंद्रशेखर आज़ाद ने कई गुप्त और साहसिक क्रांतिकारी गतिविधियों में भाग लिया. उन्होंने काकोरी ट्रेन डकैती (1925), असेंबली बम कांड (1929) जैसी प्रमुख घटनाओं में योगदान दिया. आज़ाद अपने आदर्श और दृढ़ संकल्प के लिए जाने जाते थे, और उन्होंने स्वयं को ‘आज़ाद’ नाम दिया था, जिसका मतलब है ‘स्वतंत्र’. वे कभी भी ब्रिटिश पुलिस के हाथों नहीं आए और हमेशा अपनी शर्तों पर जीने की कसम खाई थी.

27 फरवरी 1931 को, इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क (अब चंद्रशेखर आज़ाद पार्क) में, जब ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें घेर लिया, तो उन्होंने खुद को गोली मार ली, ताकि वे ब्रिटिश पुलिस के हाथों में न आ सकें. उनकी मृत्यु ने भारतीय युवाओं को और अधिक प्रेरित किया और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान अमर हो गया. चंद्रशेखर आज़ाद आज भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक आदर्श और प्रेरणास्रोत के रूप में याद किए जाते हैं.

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अभिनेता मिलिंद गुनाजी

मिलिंद गुनाजी एक भारतीय मॉडल, एक्टर, टीवी होस्ट और लेखक हैं। जो हिंदी और मराठी सिनेमा में अपनी बेहतरीन अदाकारी के लिए जाने जाते हैं. उनका जन्म 23 जुलाई 1961 को मुंबई (वर्तमान मुंबई), महाराष्ट्र में हुआ था.

मिलिंद ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत वर्ष 1993 में फिल्म ‘पपीहा’ से की. उन्हें वास्तविक पहचान वर्ष 1996 की फिल्म ‘फरेब’ में इंस्पेक्टर इंद्रजीत सक्सेना की भूमिका से मिली. उन्होंने 250 से अधिक फिल्मों में काम किया है, जिनमें ‘विरासत’, ‘हजार चौरासी की मां’, ‘देवदास’, ‘फिर हेरा फेरी’, ‘द गाज़ी अटैक’, ‘भूल भुलैया 2’ और ‘दिल बेचारा’ जैसी उल्लेखनीय फिल्में शामिल हैं.

फिल्मी दुनिया के अलावा मिलिंद कई टीवी शोज में भी नजर आ चुके हैं, जिनमे ब्योमकेश बक्शी, धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान, वीर शिवाजी, हमने ली है शपथ आदि शामिल है.  अभिनय के अलावा, मिलिंद गुनाजी एक लेखक भी हैं और उन्होंने 12 किताबें लिखी हैं, जिनमें उनकी पहली पुस्तक ‘माझी मुलुखगिरी’ (1998) भी शामिल है. वह एक फोटोग्राफर भी हैं और उन्होंने कई एकल फोटो प्रदर्शनियां आयोजित की हैं.

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अभिनेता हिमेश रेशमिया

 हिमेश रेशमिया एक भारतीय गायक, संगीतकार, गीतकार, अभिनेता तथा फिल्म निर्माता हैं. उनका जन्म 23 जुलाई 1973 को मुंबई में हुआ था. हिमेश ने अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत वर्ष 2007 में फिल्म “आप का सुरूर: द रियल लव स्टोरी” से की थी. अभिनय के अलावा, हिमेश रेशमिया ने फिल्मों के लिए कहानी और पटकथा भी लिखी है, जैसे “दमादम!”, “खिलाड़ी 786”, “द एक्सपोज़”, “तेरा सुरूर” और “हैप्पी हार्डी एंड हीर”। वह टेलीविजन पर भी सक्रिय रहे हैं, कई सिंगिंग रियलिटी शो में जज और मेंटर के रूप में दिखाई दिए हैं.

फ़िल्में: – कर्ज़ (2008), रेडियो (2009), कजरारे (2010), दमादम! (2011), खिलाड़ी 786 (2012), द एक्सपोज़ (2014), तेरा सुरूर हैप्पी हार्डी एंड हीर बैडएस रवि कुमार). 

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निर्माता-निर्देशक महमूद अली

महमूद अली भारतीय सिनेमा के एक प्रमुख हास्य अभिनेता थे. उन्हें केवल “महमूद” के नाम से जाना जाता था और वह हिंदी सिनेमा के सबसे सफल और लोकप्रिय कॉमेडियन माने जाते थे. उनका कैरियर पांच दशकों तक फैला हुआ था, और उन्होंने लगभग 300 से अधिक फिल्मों में काम किया.

महमूद अली का जन्म 29 सितंबर 1932 को मुंबई में हुआ था. उनके पिता का नाम मुमताज़ अली के बेटे और चरित्र अभिनेत्री मिन्नो मुमताज़ अली के भाई थे. शुरुआत महमूद ने अपने कैरियर की शुरुआत छोटे रोल्स और सहायक भूमिकाओं से की था उनको पहला ब्रेक वर्ष 1958 की फ़िल्म ‘परवरिश’ में मिला था, जिसमें उन्होंने राज कपूर के भाई की भूमिका निभाई थी.

महमूद को वास्तविक पहचान वर्ष 1961 में फिल्म “ससुराल” से मिली थी. यह उनके कैरियर की अहम फ़िल्म थी, जिसके जरिए बतौर हास्य कलाकार स्थापित होने में उन्हें मदद मिली. 

 लोकप्रिय फिल्में: –  पड़ोसन (1968), भूत बंगला (1965), कुंवारा बाप (1974), हमजोली (1970), लव इन टोक्यो (1966).

महमूद ने कई फिल्मों का निर्देशन और निर्माण भी किया, जिनमें कुंवारा बाप एक महत्वपूर्ण फिल्म है. यह फिल्म उनके जीवन के व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित थी. महमूद की कॉमिक टाइमिंग और अदाकारी का जादू ऐसा था कि वे सहायक भूमिकाओं में भी मुख्य पात्रों जितने महत्वपूर्ण माने जाते थे.

महमूद ने अपने कैरियर में कई फिल्मफेयर अवार्ड्स और अन्य पुरस्कार जीते, जिनमें सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता के लिए कई नामांकित पुरस्कार शामिल हैं. महमूद अली का निधन 23 जुलाई, 2004 को अमेरिका में हुआ था. महमूद ने अपने समय में हास्य की दुनिया में जो स्थान बनाया, वह आज भी अमर है. उनकी फिल्मों और उनके द्वारा निभाए गए पात्रों को आज भी पसंद किया जाता है.

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स्वतंत्रता सेनानी लक्ष्मी सहगल

लक्ष्मी सहगल भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, डॉक्टर, और आजाद हिंद फौज (इंडियन नेशनल आर्मी – INA) की एक उच्चस्तरीय अधिकारी थीं. उन्हें “कैप्टन लक्ष्मी” के नाम से जाना जाता है और वह सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाली आजाद हिंद फौज की रानी झांसी रेजिमेंट की कमांडर थीं. लक्ष्मी सहगल ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और आजादी के बाद भी सामाजिक सेवा के कार्यों में सक्रिय रहीं.

लक्ष्मी सहगल का जन्म 24 अक्टूबर 1914 को मद्रास (अब चेन्नई) में हुआ था. उनका पूरा नाम लक्ष्मी स्वामीनाथन था. उनके पिता एस. स्वामीनाथन एक वकील थे और उनकी मां अम्मुकुट्टी एक सामाजिक कार्यकर्ता थीं. लक्ष्मी सहगल ने मेडिसिन (चिकित्सा) की पढ़ाई की और एक प्रशिक्षित डॉक्टर बनीं. उन्होंने मद्रास मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त की और बाद में स्त्री रोग विशेषज्ञ के रूप में काम किया.

वर्ष 1940 के दशक में लक्ष्मी सहगल सिंगापुर गईं, जहाँ उनकी मुलाकात सुभाष चंद्र बोस से हुई. बोस ने उन्हें आजाद हिंद फौज (INA) में शामिल होने के लिए प्रेरित किया, और लक्ष्मी ने बिना किसी हिचकिचाहट के इसे स्वीकार कर लिया. वर्ष 1943 में, सुभाष चंद्र बोस ने रानी झांसी रेजिमेंट की स्थापना की, जो कि आजाद हिंद फौज की महिला सैनिकों की इकाई थी. लक्ष्मी सहगल को इस रेजिमेंट की कमांडर नियुक्त किया गया, और उन्होंने “कैप्टन लक्ष्मी” के नाम से ख्याति प्राप्त की. यह रेजिमेंट अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई के लिए तैयार की गई थी, और इसकी महिला सैनिकों ने भारतीय स्वतंत्रता के लिए अदम्य साहस दिखाया.

वर्ष 1947 में भारत की आजादी के बाद, लक्ष्मी सहगल ने कानपुर में चिकित्सा सेवाओं का कार्य शुरू किया और गरीबों और शरणार्थियों के लिए चिकित्सा सेवा प्रदान की. वह राजनीति में भी सक्रिय रहीं और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) से जुड़ीं. वर्ष 2002 में, उन्होंने भारत के राष्ट्रपति पद के लिए भी चुनाव लड़ा था, जिसमें उन्होंने ए. पी. जे. अब्दुल कलाम के खिलाफ चुनाव लड़ा.

स्वतंत्रता के बाद लक्ष्मी सहगल ने चिकित्सा क्षेत्र में गरीबों और वंचितों की मदद करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. वह कानपुर में लंबे समय तक गरीबों के लिए मुफ्त चिकित्सा सेवाएँ प्रदान करती रहीं. उनकी सामाजिक सेवा और स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के लिए उन्हें कई सम्मान मिले. वर्ष 1998 में, उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया.

लक्ष्मी सहगल का 23 जुलाई 2012 को 97 वर्ष की आयु में निधन हो गया. उनकी देशभक्ति, समाज सेवा, और साहसिक जीवन के कारण वह भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और भारतीय समाज में एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व बनीं. लक्ष्मी सहगल का जीवन भारतीय महिलाओं के लिए एक मिसाल है, जो न केवल स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेती थीं बल्कि आजादी के बाद भी देश की सेवा करती रहीं.

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