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व्यक्ति विशेष– 524.

साहित्यकार बालकृष्ण भट्ट

बालकृष्ण भट्ट एक प्रसिद्ध हिन्दी साहित्यकार थे. उन्होंने 19वीं शताब्दी में अपना लेखन कार्य शुरू किया था. बालकृष्ण भट्ट का जन्म 3 जून 1826 को  हुआ था और उनका देहांत 20 जुलाई, 1914 को हुआ. वे अपने लेखनी के माध्यम से हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

भट्ट जी ने अनेक उपन्यास, कविता और नाटक लिखे जो उस समय के सामाजिक और राजनीतिक परिवेश को दर्शाते हैं. उनकी लेखनी में भावनात्मकता के साथ-साथ विचारशीलता भी प्रमुख थी.

बालकृष्ण भट्ट के कार्यों में उनके द्वारा समाज में व्याप्त विसंगतियों और अन्याय के विरुद्ध स्वर भी मिलता है, जिसे उन्होंने अपने साहित्यिक कौशल के जरिए उजागर किया. उन्होंने हिंदी भाषा के उन्नयन और उसे सम्मानित स्थान दिलाने के लिए भी कार्य किया था. उनका योगदान हिन्दी साहित्य में अद्वितीय माना जाता है.

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राजनीतिज्ञ हरविलास शारदा

हरविलास शारदा एक भारतीय शिक्षाविद, न्यायाधीश, राजनेता और समाज सुधारक थे. उन्हें मुख्यतः बाल विवाह के खिलाफ अपने अथक प्रयासों और ‘शारदा एक्ट’ के निर्माण के लिए जाना जाता है. हरविलास शारदा का जन्म 3 जून, 1867 ई. को अजमेर, राजस्थान में हुआ था. अपने पिता से महाभारत और रामायण की कहानियाँ सुनकर उनके अंदर हिंदुत्व के संस्कार पुष्ट हुआ. उन्होंने आगरा कॉलेज से अंग्रेजी ऑनर्स में स्नातक की उपाधि प्राप्त की.

शारदा आर्य समाज के कट्टर अनुयायी थे और उन्होंने समाज के कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया. उन्होंने बाल विवाह को एक सामाजिक बुराई मानते हुए इसके खिलाफ आवाज उठाई. उनके प्रयासों के फलस्वरूप ही वर्ष 1929 में ‘शारदा एक्ट’ पारित हुआ, जिसने भारत में बाल विवाह को गैरकानूनी बना दिया. उन्होंने महिलाओं के अधिकारों, शिक्षा और सामाजिक स्थिति में सुधार के लिए भी काम किया.

हरविलास शारदा अजमेर-मारवाड़ से केंद्रीय विधानसभा के सदस्य रहे. उन्होंने राजनीति को एक माध्यम बनाया समाज में सुधार लाने का. उन्होंने कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें हिंदू श्रेष्ठता, अजमेर: ऐतिहासिक और वर्णनात्मक, महाराणा कुंभा, महाराणा सांगा और रणथंभौर के महाराजा हम्मीर शामिल हैं.

हरविलास शारदा का निधन  20 जनवरी 1955 को हुआ था. हरविलास शारदा एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने समाज के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया. उन्होंने बाल विवाह जैसी कुरीति के खिलाफ लड़ाई लड़ी और समाज में सुधार लाने के लिए अथक प्रयास किए. उनकी विरासत आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है.

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राजनीतिज्ञ एम. करुणानिधि

एम. करुणानिधि, जिनका पूरा नाम मुथुवेल करुणानिधि है, भारतीय राजनीति में एक अत्यंत प्रभावशाली व्यक्तित्व थे. वे तमिलनाडु के पांच बार मुख्यमंत्री रहे और द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) पार्टी के लंबे समय तक नेता भी रहे. करुणानिधि का जन्म 3 जून 1924 को हुआ था और उनका निधन 7 अगस्त 2018 को हुआ.

करुणानिधि की राजनीतिक यात्रा कई दशकों तक फैली हुई थी, जिसमें उन्होंने तमिलनाडु और भारतीय राजनीति में गहरी छाप छोड़ी. वे एक कुशल राजनीतिज्ञ के साथ-साथ एक प्रखर लेखक भी थे, जिन्होंने तमिल साहित्य में भी बड़ा योगदान दिया. उन्होंने नाटक, कविताएँ, उपन्यास, सिनेमा पटकथाएँ और अनेक स्तंभ लिखे।

करुणानिधि का राजनीतिक दर्शन द्रविड़ आंदोलन से प्रभावित था, जिसमें सामाजिक न्याय, जाति उन्मूलन और तमिल भाषा और संस्कृति के प्रचार-प्रसार पर जोर दिया गया. उनके नेतृत्व में, डीएमके ने कई सामाजिक और आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाया जो तमिलनाडु के विकास में महत्वपूर्ण साबित हुए.

करुणानिधि की विरासत तमिलनाडु में आज भी महसूस की जाती है, और उनके निधन पर उन्हें एक विशाल जनसमूह ने श्रद्धांजलि दी थी. उनका जीवन और कार्य तमिलनाडु के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में देखा जाता है.

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राजनीतिज्ञ चिमनभाई पटेल

चिमनभाई पटेल एक भारतीय राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में दो बार कार्य किया। उनका पहला कार्यकाल वर्ष 1973 – 74 तक था और दूसरा कार्यकाल वर्ष 1990 – 94 तक था. उनका जन्म 3 जून 1929 को हुआ था और उनका निधन 17 फरवरी 1994 को हुआ था.

चिमनभाई पटेल का पहला कार्यकाल विवादास्पद रहा था, विशेषकर नव निर्माण आंदोलन के दौरान, जो छात्रों और शिक्षकों द्वारा गुजरात में शुरू किया गया था. यह आंदोलन भ्रष्टाचार, महंगाई और खराब प्रशासन के खिलाफ था, और इसने चिमनभाई पटेल को उनके पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया.

उनका दूसरा कार्यकाल अधिक स्थिर रहा और इस दौरान उन्होंने गुजरात के आर्थिक विकास और औद्योगिकीकरण पर ध्यान केंद्रित किया. चिमनभाई पटेल ने विभिन्न सामाजिक और आर्थिक परियोजनाओं को लागू किया जो गुजरात की जनता के लिए लाभकारी सिद्ध हुईं.

चिमनभाई पटेल के नेतृत्व में गुजरात ने विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति की, और वे एक ऐसे नेता के रूप में याद किए जाते हैं जिन्होंने विकास और प्रगति के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया.

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जॉर्ज फ़र्नांडिस

जॉर्ज फ़र्नांडिस एक प्रमुख भारतीय राजनेता थे जो भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थीं. उनका पूरा नाम जॉर्ज माथेव फ़र्नांडिस था. वे 3 जून 1930 को मंगलुरु, कर्नाटका में पैदा हुए थे और 29 जनवरी 2019 को दिल्ली में निधन हुआ था.

जॉर्ज फ़र्नांडिस का राजनीतिक कैरियर बहुत लम्बा और विविध था. वे सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य थे और विभिन्न समयों पर विभिन्न सरकारों में मंत्री मंत्रिमंडल में भाग लिया. वर्ष 1989 -90 में भारतीय जनता पार्टी के साथ मिलकर जनता पार्टी की सरकार में उन्होंने बड़ी भूमिका निभाई और रेलवे मंत्री बने.

उन्होंने रेलवे मंत्री के रूप में रेलवे सेवाओं को सुधारने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए. उन्होंने रेलवे में कर्मचारियों के हकों की सुरक्षा के लिए कई उपाय किए और रेलवे के सुधारों के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाएं शुरू की.

जॉर्ज फ़र्नांडिस के नाम भारतीय समाज में सोशलिस्ट और ट्रेड यूनियनों के प्रति उनकी संवेदनाओं के लिए भी जाने जाते हैं. उन्होंने भारतीय समाजवाद पार्टी के सदस्य के रूप में भी अपने राजनैतिक कैरियर को जारी रखा और विभिन्न समयों पर सरकारों में भाग लिया.

जॉर्ज फ़र्नांडिस के पूर्ण जीवन और राजनैतिक कैरियर में विभिन्न महत्वपूर्ण घटनाएं थीं, और वे भारतीय राजनीति के महत्वपूर्ण व्यक्तित्व माने जाते हैं.

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अभनेत्री सारिका

सारिका एक भारतीय अभिनेत्री हैं, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में अपने विविध प्रदर्शनों के माध्यम से खास पहचान बनाई है. उनका जन्म 03 जून 1962 को हुआ था. सारिका ने बहुत ही कम उम्र में फिल्म उद्योग में अपना कैरियर शुरू किया और मूल रूप से एक बाल कलाकार के रूप में काम किया।

वर्ष 1970 – 80 के दशक में सारिका ने अपने अभिनय कैरियर को एक प्रमुख अभिनेत्री के रूप में स्थापित किया. उन्होंने कई सफल फिल्मों में काम किया जैसे कि “गीत गाता चल” (1975), “जानी दुश्मन” (1979), और “सत्ते पे सत्ता” (1982). उनकी अभिनय क्षमता और विविधता ने उन्हें उद्योग में विशेष स्थान दिलाया.

सारिका ने अपने कैरियर में कई प्रकार के रोल निभाए हैं, जिसमें उन्होंने न केवल मुख्य नायिका की भूमिका निभाई बल्कि कई चरित्र भूमिकाओं में भी अभिनय किया. उन्होंने वर्ष 1980 के दशक के अंत में अभिनय से कुछ समय के लिए ब्रेक लिया था, लेकिन वर्ष 2000 के दशक में वे फिर से सक्रिय रूप से फिल्मों में लौट आईं और “परजानिया” (2005) और “मांझी: द माउंटेन मैन” (2015) जैसी फिल्मों में उल्लेखनीय भूमिकाएं निभाईं.

सारिका का निजी जीवन भी चर्चा में रहा है, विशेषकर उनकी शादी और तलाक कमल हासन के साथ, जिनसे उन्हें दो बेटियां हैं, श्रुति और अक्षरा हासन, जो खुद भी फिल्म उद्योग में सक्रिय हैं. सारिका ने अपने लंबे और विविध कैरियर के दौरान फिल्म उद्योग में अपनी मजबूत पहचान बनाई है.

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अभिनेत्री मौली दवे

मौली दवे एक भारतीय अभिनेत्री, गायिका, और टेलीविजन प्रस्तोता हैं, जिन्होंने भारतीय मनोरंजन उद्योग में अपनी विशेष पहचान बनाई है. वह मूल रूप से अहमदाबाद, गुजरात से हैं और उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत टेलीविजन पर विभिन्न रियलिटी शोज़ में भाग लेकर की थी. मौली दवे का जन्म 3 जून 1987 को अहमदाबाद गुजरात  में हुआ था.

मौली दवे को विशेष रूप से उनके भागीदारी के लिए जाना जाता है “सा रे गा मा पा” में, जो एक प्रसिद्ध भारतीय संगीत रियलिटी शो है. इस शो में उनकी गायन प्रतिभा को बहुत सराहना मिली थी. उन्होंने कई अन्य टीवी शोज़ में भी भाग लिया, जैसे कि “कॉमेडी सर्कस”, “झलक दिखला जा”, और “नच बलिए”.

उन्होंने फिल्मों में भी काम किया है, जहां उन्होंने कई यादगार भूमिकाएँ निभाई हैं. मौली दवे ने अपने गायन कैरियर में भी कई सफल गाने गाए हैं और उन्हें एक प्रतिभाशाली प्लेबैक सिंगर के रूप में भी पहचाना जाता है.

उनकी प्रतिभा और विविध कौशल ने उन्हें मनोरंजन उद्योग में एक विशिष्ट स्थान दिलाया है, और वह युवा कलाकारों के लिए एक प्रेरणा के रूप में सेवा करती हैं.

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अभिनेत्री रिंकू राजगुरु

रिंकू राजगुरु एक प्रतिभाशाली भारतीय अभिनेत्री हैं, जिन्होंने मराठी फिल्म उद्योग में अपनी विशेष पहचान बनाई है. वह सबसे ज्यादा अपनी डेब्यू फिल्म “सैराट” के लिए जानी जाती हैं, जिसमें उन्होंने आर्ची का किरदार निभाया था. “सैराट” 2016 में रिलीज हुई और यह एक बड़ी हिट साबित हुई, जिसने न केवल मराठी सिनेमा में बल्कि समग्र भारतीय सिनेमा में भी एक नई लहर ला दी.

रिंकू ने अपनी भूमिका के लिए व्यापक प्रशंसा प्राप्त की और उन्हें कई पुरस्कारों से नवाज़ा गया, जिसमें नेशनल फिल्म अवार्ड्स में ‘स्पेशल ज्यूरी अवार्ड’ भी शामिल है. उनकी अभिनय प्रतिभा और उनके किरदार की गहराई ने उन्हें एक उभरती हुई स्टार बना दिया.

फिल्म “सैराट” की सफलता के बाद, रिंकू ने कई अन्य मराठी फिल्मों में काम किया. वह न केवल एक अभिनेत्री के रूप में, बल्कि एक विविध कलाकार के रूप में भी अपनी पहचान बना रही हैं, जो विभिन्न प्रकार के रोल करने में सक्षम हैं. उनका कैरियर युवा उम्र से ही उल्लेखनीय रहा है, और वह भारतीय सिनेमा में एक महत्वपूर्ण आवाज के रूप में उभर रही हैं.

रिंकू राजगुरु का जन्म 03 जून 2001 को अकलुज महाराष्ट्र में हुआ था. रिंकू जल्द ही हिंदी फिल्म झुण्ड से बॉलीवुड सिनेमा में डेब्यू करने जा रहीं हैं.

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स्वतंत्रता सेनानी कृष्ण बल्लभ सहाय

कृष्ण बल्लभ सहाय एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ थे, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. वे बिहार के मुख्यमंत्री भी रहे और उनका कार्यकाल वर्ष 1963 – 67 तक था. उनका जन्म 31 दिसम्बर, 1898 को पटना ज़िले के  शेखपुरा नामक गांव में हुआ था और उनका निधन  3 जून, 1974, को हजारीबाग, झारखण्ड में हुआ.

स्वतंत्रता संग्राम में उनकी सक्रियता के दौरान, कृष्ण बल्लभ सहाय ने कई बार जेल यात्रा की. वे एक कुशल वकील थे और उन्होंने अपनी विधिक योग्यता का उपयोग करते हुए राष्ट्रीय आंदोलन की सेवा की. उन्होंने कांग्रेस पार्टी के एक सक्रिय सदस्य के रूप में काम किया और विभिन्न स्तरों पर पार्टी की नीतियों और कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

मुख्यमंत्री के रूप में उनका कार्यकाल विकासोन्मुखी और सुधारात्मक नीतियों से भरा था. उन्होंने बिहार में शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में कई पहल कीं. उनकी नीतियों ने राज्य के समाजिक और आर्थिक ढांचे में सुधार किया.

कृष्ण बल्लभ सहाय की विरासत एक प्रेरणादायक नेता के रूप में याद की जाती है, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता और बिहार के विकास के लिए अपना जीवन समर्पित किया. उनका जीवन और कार्य आज भी कई लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं.

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अनुसंधान और अनुवादक मुनि जिनविजय

मुनि जिनविजय एक ऐसे विद्वान थे जिन्होंने भारतीय ज्ञान और साहित्य को पुनर्जीवित करने में अहम भूमिका निभाई. वे एक अनुसंधानकर्ता, अनुवादक और प्राचीन ग्रंथों के संपादक थे. मुनि जिनविजय का जन्म 27 जनवरी, 1889 को भीलवाड़ा ज़िले के रूपाहेली गांव में हुआ था. इनका वास्तविक नाम किशन सिंह था. वह आज़ादी के आंदोलन की एक प्रवृत्ति के रूप में भारतीय ज्ञान और साहित्य की पहचान और पुनरुत्थान की महात्मा गाँधी की मुहिम में जुटे प्रकांड विद्वानों में से एक थे. मुनि जिनविजय ने अपने जीवन काल में अनेक अमूल्य ग्रंथों का अध्ययन, संपादन तथा प्रकाशन किया। उन्होंने साहित्य तथा संस्कृति के प्रोत्साहन हेतु कई शोध संस्थानों का संस्थापन तथा संचालन किया.

मुनि जिनविजय ने ज्ञानार्जन के लिए कई रूप और वेश धारण किए. उन्होंने प्राचीन ग्रंथों का गहन अध्ययन किया और उन्हें संपादित किया. उन्होंने अपनी खोजों को ‘सिंघी जैन ग्रंथ माला’, ‘राजस्थान पुरातन ग्रंथ माला’ आदि में प्रकाशित किया. वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम से भी जुड़े रहे और भारतीय ज्ञान को राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ा. उन्होंने साहित्य और संस्कृति के प्रोत्साहन के लिए कई शोध संस्थानों की स्थापना की.

मुनि जिनविजय ने प्राचीन ग्रंथों को नष्ट होने से बचाया और उन्हें आने वाली पीढ़ियों के लिए संरक्षित किया. उनके अन्वेषित साहित्य ने हिंदी भाषा और साहित्य की प्रवृत्तियों की बुनियाद को मजबूत किया. उन्होंने भारतीय ज्ञान को एक सूत्र में पिरोकर राष्ट्रीय एकता को मजबूत किया. उन्होंने भारत के विभिन्न कोनों में यात्रा की और प्राचीन ग्रंथों की खोज की.

मुनि जिनविजय की मृत्यु 3 जून, 1976 को हुई थी. वो एक ऐसे विद्वान थे जिन्होंने भारतीय ज्ञान को संरक्षित और प्रचारित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया.

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