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व्यक्ति विशेष -521.

नूर जहाँ जहाँगीर

नूर जहाँ जिनका वास्तविक नाम मेहरून्निसा था. और वो मुग़ल सम्राट जहाँगीर की पत्नी थीं. उनका जन्म 31 मई 1577 को हुआ था और उनके पिता का नाम मिर्ज़ा ग़ियास बेग था, जो बाद में अब्दुल हसन अंसारी के नाम से भी जाने गए.

मेहरून्निसा का विवाह पहले शेर अफ़ग़ान खान से हुआ था, लेकिन शेर अफ़ग़ान की मृत्यु के बाद, वर्ष 1611 में, उनकी मुलाकात जहाँगीर से हुई और उन्होंने विवाह किया. विवाह के बाद, जहाँगीर ने उन्हें ‘नूर जहाँ’ (अर्थात् ‘दुनिया का प्रकाश’) का खिताब दिया.

नूर जहाँ एक अत्यंत प्रभावशाली महिला थीं. वह न केवल एक रानी थीं, बल्कि एक कुशल राजनीतिज्ञ, रणनीतिकार, और कलाकार भी थीं. उन्होंने मुग़ल दरबार में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए और कई बार सम्राट जहाँगीर के स्थान पर शासन भी किया. उनके कार्यों और नीतियों ने मुग़ल साम्राज्य को स्थिरता और समृद्धि प्रदान की.

नूर जहाँ ने कई वास्तुकला परियोजनाओं को भी प्रोत्साहित किया और उनके समय में कई सुंदर बाग़-बग़ीचे और इमारतें बनाई गईं. उनकी कला और संस्कृति के प्रति गहरी रुचि थी और उन्होंने मुग़ल कला को समृद्ध किया. नूर जहाँ की मृत्यु 17 दिसम्बर 1645 को हुई थी.

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वीरांगना अहिल्याबाई होल्कर

अहिल्याबाई होल्कर भारतीय इतिहास की एक महान योद्धा, समाज सुधारक और मराठा साम्राज्य की एक प्रभावशाली शासिका थीं. वह मालवा क्षेत्र में होल्कर राजवंश की महारानी थीं और उन्हें उनके न्यायप्रिय शासन, धार्मिक सहिष्णुता, और लोक कल्याणकारी कार्यों के लिए सम्मानित किया जाता है. अहिल्याबाई का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र राज्य के चौंढी नामक गांव (जामखेड़ा, अहमदनगर) के एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम मनकोजी शिंदे था. वह अत्यंत धार्मिक और धर्मपरायण परिवार से थीं.

अहिल्याबाई की शादी 1733 में खंडेराव होल्कर से हुई, जो इंदौर के होल्कर परिवार के उत्तराधिकारी थे. शादी के बाद उन्हें इंदौर की महारानी का दर्जा मिला. उनके पति खंडेराव का 1754 में कुंभेर की लड़ाई में निधन हो गया. खंडेराव की मृत्यु के बाद, उनके ससुर मल्हारराव होल्कर ने उन्हें शासन में शामिल किया. वर्ष 1767 में मल्हारराव की मृत्यु के बाद, अहिल्याबाई ने मराठा साम्राज्य के मालवा क्षेत्र का शासन संभाला. उनके शासनकाल को न्याय, धर्म, और विकास के लिए जाना जाता है.

अहिल्याबाई ने अपनी प्रजा की भलाई के लिए कई कदम उठाए. वह एक कुशल प्रशासक थीं और उन्होंने कानून व्यवस्था को बनाए रखा, किसानों की स्थिति सुधारी, और राज्य में समृद्धि लाई. वह अपनी प्रजा की समस्याओं को सुनती थीं और न्यायपूर्ण निर्णय करती थीं. अहिल्याबाई ने पूरे भारत में कई धार्मिक और सामाजिक स्थलों का निर्माण कराया. उन्होंने काशी में विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया, सोमनाथ, गया, अयोध्या, मथुरा, और हरिद्वार में भी महत्वपूर्ण निर्माण कार्य किए. उनके कार्यों ने उन्हें पूरे देश में धार्मिक और समाज सुधारक के रूप में ख्याति दिलाई. अहिल्याबाई ने अपने शासनकाल में कला, साहित्य और संस्कृति को भी प्रोत्साहित किया. उनके दरबार में विद्वानों और कलाकारों को स्थान मिला और उन्होंने अपनी सेना को भी मजबूत किया.

अहिल्याबाई होल्कर का निधन 13 अगस्त 1795 को हुआ. उनके बाद उनके पुत्र तुलजा भाऊ ने गद्दी संभाली. अहिल्याबाई को उनकी धार्मिकता, न्यायप्रियता, और लोक कल्याण के कार्यों के लिए आज भी सम्मानित किया जाता है. उन्हें भारतीय इतिहास की सबसे महान महिला शासकों में से एक माना जाता है. उनके नाम पर कई संस्थानों, मार्गों और स्थलों का नाम रखा गया है. उनके शासनकाल को एक स्वर्णिम युग के रूप में याद किया जाता है.

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लाला जगत नारायन

लाला जगत नारायण एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, पत्रकार, और राजनीतिज्ञ थे. उनका जन्म 31 मई 1899 को हुआ था और उनका जीवन स्वतंत्रता संग्राम, पत्रकारिता और समाज सेवा को समर्पित रहा.

लाला जगत नारायण का जन्म पंजाब के एक साधारण परिवार में हुआ था. उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लिया. वह महात्मा गांधी और कांग्रेस पार्टी के आदर्शों से प्रेरित थे और उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया. स्वतंत्रता के बाद, लाला जगत नारायण ने पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा और वर्ष 1948 में ‘हिन्द समाचार’ नामक एक समाचार पत्र की स्थापना की. हिन्द समाचार ने जल्द ही अपनी विश्वसनीयता और पत्रकारिता के उच्च मानकों के कारण लोकप्रियता हासिल की.

लाला जगत नारायण न केवल एक सफल पत्रकार थे, बल्कि उन्होंने राजनीति में भी सक्रिय भूमिका निभाई. वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे और उन्होंने विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर अपने विचार प्रकट किए. उन्होंने समाज सेवा के माध्यम से भी जनता की सेवा की और उनके अधिकारों की रक्षा के लिए संघर्ष किया.

लाला जगत नारायण का निधन 9 सितंबर 1981 को हुआ. उनकी हत्या कर दी गई थी, जो एक बड़ा आघात था. उनकी हत्या के बाद उनके बेटे रमेश चंद्र ने ‘हिन्द समाचार’ समूह की बागडोर संभाली और इसे आगे बढ़ाया. लाला जगत नारायण का जीवन स्वतंत्रता, सत्य और न्याय के लिए संघर्ष का प्रतीक था. उन्होंने अपने लेखन, पत्रकारिता, और सामाजिक कार्यों के माध्यम से समाज पर अमिट छाप छोड़ी. उनके योगदान को भारतीय इतिहास में हमेशा याद रखा जाएगा.

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निर्देशक राज खोसला

राज खोसला भारतीय सिनेमा के एक प्रमुख निर्देशक और निर्माता थे, जिन्होंने 1950 से 1980 के दशक के बीच कई सफल और यादगार फिल्में बनाईं. उनका जन्म 31 मई 1925 को पंजाब, ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान में) में हुआ था. राज खोसला अपनी विशिष्ट फिल्म निर्माण शैली और विभिन्न फिल्म शैलियों में काम करने के लिए जाने जाते हैं.

राज खोसला का प्रारंभिक जीवन पंजाब में बीता. उन्होंने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत गुरुदत्त के सहायक निर्देशक के रूप में की. राज खोसला ने अपने निर्देशन कैरियर की शुरुआत वर्ष 1955 में फिल्म “मिलाप” से की. इसके बाद उन्होंने कई हिट फिल्में दीं जो आज भी दर्शकों के दिलों में बसी हुई हैं.

प्रमुख फिल्में: –

सी.आई.डी. (1956): इस फिल्म ने उन्हें निर्देशकीय रूप से स्थापित किया फिल्म में देव आनंद और शकीला ने प्रमुख भूमिकाएं निभाईं.

वो कौन थी? (1964): यह एक सस्पेंस थ्रिलर थी जिसमें साधना और मनोज कुमार ने अभिनय किया। इसके गाने “लग जा गले” और “नैना बरसे” आज भी लोकप्रिय हैं।

मेरा साया (1966): इस फिल्म में सुनील दत्त और साधना ने अभिनय किया और इसका गाना “झुमका गिरा रे” बेहद मशहूर हुआ.

दो रास्ते (1969): यह एक पारिवारिक ड्रामा फिल्म थी जिसमें राजेश खन्ना और मुमताज ने मुख्य भूमिकाएं निभाईं.

दो बदन (1966): इस रोमांटिक ड्रामा फिल्म में आशा पारेख और मनोज कुमार ने अभिनय किया.

मेरा गांव मेरा देश (1971): इस फिल्म में धर्मेंद्र और आशा पारेख ने मुख्य भूमिकाएं निभाईं और फिल्म का गाना “हाए शरमाएं” लोकप्रिय हुआ.

मैं तुलसी तेरे आंगन की (1978): यह एक पारिवारिक ड्रामा फिल्म थी जिसमें नूतन और विनोद खन्ना ने मुख्य भूमिकाएं निभाईं.

राज खोसला अपनी फिल्मों में सस्पेंस, थ्रिलर और म्यूजिकल रोमांस के अनूठे मिश्रण के लिए जाने जाते थे. उनकी फिल्मों में कहानी की गहराई और संगीत की महत्वपूर्ण भूमिका होती थी. वे अपने निर्देशन में विभिन्न शैलियों का उपयोग करने में निपुण थे, चाहे वह सस्पेंस थ्रिलर हो, म्यूजिकल रोमांस हो या पारिवारिक ड्रामा हो.

राज खोसला को उनके उत्कृष्ट निर्देशन के लिए कई पुरस्कार मिले. उन्हें फिल्मफेयर पुरस्कार भी प्राप्त हुए और भारतीय सिनेमा में उनके योगदान को व्यापक रूप से सराहा गया.

राज खोसला का निधन 9 जून 1991 को हुआ. उनकी फिल्मों ने उन्हें भारतीय सिनेमा में एक महत्वपूर्ण स्थान दिलाया और उनके निर्देशन का अंदाज आज भी नई पीढ़ी के निर्देशकों के लिए प्रेरणा स्रोत बना हुआ है. राज खोसला ने भारतीय सिनेमा को कई उत्कृष्ट फिल्में दीं और उनकी विशिष्ट शैली ने उन्हें एक महान निर्देशक के रूप में स्थापित किया. उनकी फिल्मों की धुनें, कहानियाँ और निर्देशन आज भी दर्शकों के बीच प्रिय हैं.

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संगीत निर्देशक वनराज भाटिया

वनराज भाटिया एक भारतीय संगीत निर्देशक और संगीतकार थे, जिन्होंने भारतीय फिल्म, टेलीविजन, और थिएटर में अपने योगदान के लिए ख्याति पाई. उनका जन्म 31 मई 1927 को मुंबई में हुआ था और उनकी शिक्षा मुंबई और लंदन में हुई थी. भाटिया ने मुंबई विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की डिग्री प्राप्त की और इसके बाद लंदन के रॉयल एकेडमी ऑफ म्यूजिक से संगीत में डिग्री हासिल की. उन्होंने पेरिस में प्रसिद्ध संगीतकार नादिया बुलांजे के साथ भी अध्ययन किया.

भाटिया का कैरियर शुरुआत में विज्ञापन फिल्मों और रेडियो जिंगल्स से हुआ. उन्होंने 7000 से अधिक जिंगल्स के लिए संगीत तैयार किया, जिनमें से कई आज भी लोकप्रिय हैं. भाटिया ने भारतीय सिनेमा के समानांतर और कला फिल्मों में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनकी प्रमुख फिल्मों में “अंकुर,” “भूमिका,” “मंथन,” “जाने भी दो यारों,” और “तमस” शामिल हैं. उनके संगीत ने इन फिल्मों को विशेष और यादगार बनाया. वह श्याम बेनेगल और गोविंद निहलानी जैसे प्रसिद्ध फिल्मकारों के साथ अक्सर काम करते थे.

भाटिया ने टेलीविजन धारावाहिकों के लिए भी संगीत तैयार किया, जिनमें “यात्रा,” “भारत एक खोज,” और “मालगुडी डेज़” शामिल हैं. उन्होंने कई नाटकों के लिए भी संगीत रचना की और उन्हें थिएटर के क्षेत्र में भी सराहा गया. भाटिया को कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, और पद्म श्री शामिल हैं. उनके योगदान को भारतीय संगीत और कला जगत में अत्यधिक सराहा गया.

वनराज भाटिया का निधन 7 मई 2021 को हुआ. उनकी संगीत यात्रा और योगदान को भारतीय कला और सिनेमा में हमेशा याद किया जाएगा. वनराज भाटिया ने अपने अद्वितीय संगीत और रचनात्मकता के माध्यम से भारतीय संगीत को एक नई दिशा दी और उनके कार्यों ने कई पीढ़ियों को प्रेरित किया.

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पत्रकार विनोद मेहता

विनोद मेहता एक भारतीय पत्रकार, संपादक और लेखक थे, जिन्होंने भारतीय मीडिया में अपने निष्पक्ष और निर्भीक दृष्टिकोण के लिए ख्याति प्राप्त की. उनका जन्म 31 मई 1941 को रावलपिंडी (अब पाकिस्तान) में हुआ था. विभाजन के बाद, उनका परिवार भारत आकर बस गया.

विनोद मेहता की प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ में हुई. उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त की। पत्रकारिता के प्रति उनका रुझान उन्हें इस क्षेत्र में खींच लाया. विनोद मेहता का पत्रकारिता कैरियर बहुत ही शानदार और विविधतापूर्ण था. उन्होंने कई प्रमुख भारतीय समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं.

उनके कैरियर की प्रमुख उपलब्धियाँ: –

डेबोनायर (Debonair):  – विनोद मेहता ने अपने कैरियर की शुरुआत ‘डेबोनायर’ पत्रिका से की. यह एक मशहूर अंग्रेजी मासिक पत्रिका थी.

पायनियर (The Pioneer):  – उन्होंने ‘पायनियर’ समाचार पत्र के संपादक के रूप में भी कार्य किया.

संडे ऑब्जर्वर (Sunday Observer):  – विनोद मेहता ने ‘संडे ऑब्जर्वर’ की भी स्थापना की और इसे संपादित किया.

आउटलुक (Outlook):  – विनोद मेहता को ‘आउटलुक’ पत्रिका का संस्थापक संपादक बनने का गौरव प्राप्त है. उनके नेतृत्व में ‘आउटलुक’ ने निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता के लिए ख्याति प्राप्त की.

विनोद मेहता ने कई किताबें भी लिखी हैं, जिनमें उनकी आत्मकथा ‘लखनऊ बॉय: ए मेमॉयर’ और ‘एडिटर अनप्लग्ड’ शामिल हैं. उनकी लेखन शैली सरल और सटीक थी, और उन्होंने अपने लेखन में भारतीय राजनीति, समाज और मीडिया पर महत्वपूर्ण दृष्टिकोण प्रस्तुत किए. मेहता को उनके योगदान के लिए कई सम्मान और पुरस्कार प्राप्त हुए. उनकी पत्रकारिता ने भारतीय मीडिया में उच्च मानक स्थापित किए और उन्हें एक आदर्श पत्रकार के रूप में मान्यता मिली.

विनोद मेहता का निधन 8 मार्च 2015 को हुआ. उनके निधन से भारतीय पत्रकारिता ने एक निर्भीक और ईमानदार आवाज खो दी. मेहता को उनकी निडर पत्रकारिता, संपादकीय उत्कृष्टता, और स्पष्ट दृष्टिकोण के लिए हमेशा याद किया जाएगा. उनके योगदान ने भारतीय मीडिया को समृद्ध और प्रबुद्ध बनाया है.

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फ़िल्म निर्माता-निर्देशक और पटकथा लेखक जॉन अब्राहम

जॉन अब्राहम एक भारतीय फ़िल्म निर्माता, निर्देशक, और पटकथा लेखक हैं, जिनका मुख्य कार्य हिंदी सिनेमा में है. हालांकि, उनका नाम अभिनेता जॉन अब्राहम के साथ साझा होता है, ये जॉन अब्राहम अलग व्यक्ति हैं और फ़िल्म निर्माण में उनके योगदान के लिए जाने जाते हैं. जॉन अब्राहम का जन्म 11 अगस्त 1937 को हुआ था.

जॉन अब्राहम ने कई महत्वपूर्ण और समीक्षकों द्वारा सराही गई फ़िल्मों का निर्माण किया है. उनकी फ़िल्में आमतौर पर सामाजिक मुद्दों, राजनीतिक परिस्थितियों, और मानवता के जटिल पहलुओं पर केंद्रित होती हैं.

जॉन अब्राहम ने कई फ़िल्मों की पटकथाएँ लिखी हैं, जिनमें उनके लेखन का गहन और सूक्ष्म दृष्टिकोण परिलक्षित होता है. उनके कार्यों में कहानी की गहराई और पात्रों का सजीव चित्रण प्रमुख होता है. एक निर्देशक के रूप में, जॉन अब्राहम ने विभिन्न प्रकार की कहानियों को पर्दे पर उतारा है, जिसमें उनकी कला और तकनीकी दक्षता की झलक मिलती है. उनकी निर्देशन शैली विशिष्ट है और उन्हें उद्योग में एक प्रमुख आवाज के रूप में स्थापित करती है.

जॉन अब्राहम  निधन 31 मई 1987 को कोझिकोड, केरल में हुआ था. उनका कार्य भारतीय सिनेमा में उल्लेखनीय है, और उनके द्वारा बनाई गई फ़िल्में सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर विचार-विमर्श की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं.

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मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्रा

द्वारका प्रसाद मिश्रा मध्य प्रदेश के एक प्रमुख राजनीतिज्ञ थे और उन्होंने दो बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा की. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे और स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय रहे. द्वारका प्रसाद मिश्रा का जन्म 5 अगस्त 1901 को उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़िले में पढरी नामक ग्राम में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. इनके पिता का नाम पण्डित अयोध्या प्रसाद और माता का नाम रमा देवी था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद उच्च शिक्षा के लिए इलाहाबाद विश्वविद्यालय से जुड़े, जहाँ से उन्होंने कानून की डिग्री प्राप्त की.

वर्ष 1920 में द्वारका प्रसाद मिश्रा महात्मा गाँधी के आह्वान पर स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े. उन्होंने कई आंदोलनों में भाग लिया और कई बार जेल भी गए. स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद, द्वारका प्रसाद मिश्रा भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में सक्रिय हो गए. वे वर्ष 1963 – 67 और फिर वर्ष 1969 – 72 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे. अपने मुख्यमंत्री कार्यकाल के दौरान, उन्होंने शिक्षा, कृषि, और औद्योगिक विकास पर ध्यान केंद्रित किया। उनके नेतृत्व में मध्य प्रदेश में कई विकास कार्य और नीतियाँ लागू की गईं.

वर्ष 1942 में जेल में रहते हुए द्वारका प्रसाद मिश्रा जी ने ‘कृष्णायन’ महाकाव्य की रचना की थी. द्वारका प्रसाद मिश्रा ने वर्ष 1954-64 तक ‘सागर विश्वविद्यालय’ के कुलपति के रूप में व्यतीत किया. वर्ष 1971 में राजनीति से अवकाश लेकर उन्होंने सारा समय साहित्य को समर्पित कर दिया था. द्वारका प्रसाद मिश्रा का निधन 31 मई 1988 को हुआ था. उनके योगदान के लिए हमेशा याद किया जाएगा और भारतीय राजनीति में उनके योगदान को सम्मानित किया जाता है.

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संगीतकार अनिल बिस्वास

अनिल बिस्वास भारतीय सिनेमा के एक प्रतिष्ठित संगीतकार और गायक थे. उनका जन्म 7 जुलाई 1914 को बारीसाल (अब बांग्लादेश में) में हुआ था. वे हिंदी सिनेमा में वर्ष 1940 – 50 के दशक के प्रमुख संगीत निर्देशकों में से एक थे और उनके द्वारा रचित संगीत ने उस समय के भारतीय फिल्म संगीत को नई दिशा दी. बिस्वास ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1930 के दशक में की. वे हिंदी सिनेमा के पहले संगीतकारों में से थे जिन्होंने फिल्म संगीत में ऑर्केस्ट्रा और विविधता लाने की पहल की. उनके संगीत में शास्त्रीय और लोक संगीत का समन्वय था.

प्रमुख फिल्में: –

किस्मत (1943): – इस फिल्म का संगीत अत्यंत लोकप्रिय हुआ, खासकर “दो हंसों का जोड़ा” गीत.

आरजू (1950): – इस फिल्म का संगीत भी बहुत सराहा गया.

तराना (1951): – मधुबाला और दिलीप कुमार अभिनीत इस फिल्म के गाने भी काफी प्रसिद्ध हुए.

अनारकली (1953): – इस फिल्म का संगीत भी बहुत ही लोकप्रिय रहा.

अनिल बिस्वास ने फिल्मी संगीत में अनेक प्रयोग किए और उसे एक नई ऊँचाई तक पहुँचाया. उनके संगीत में भारतीय शास्त्रीय संगीत, लोक संगीत और आधुनिक संगीत का संगम होता था. उन्होंने कई गायकों को फिल्म उद्योग में स्थापित किया, जिनमें लता मंगेशकर, किशोर कुमार और मोहम्मद रफी शामिल हैं.

अनिल बिस्वास का योगदान भारतीय फिल्म संगीत में अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है. उन्होंने संगीत निर्देशन में नई तकनीकों और साज-सज्जा का प्रयोग किया और हिंदी फिल्म संगीत को एक नया आयाम दिया. उनके योगदान के कारण ही वे “भजन सम्राट” के नाम से भी जाने जाते हैं. अनिल बिस्वास का निधन 31 मई 2003 को नई दिल्ली में हुआ था. उनकी संगीत यात्रा और योगदान को भारतीय सिनेमा में हमेशा याद किया जाएगा. अनिल बिस्वास की संगीत यात्रा ने भारतीय फिल्म संगीत को समृद्ध किया और उनके योगदान को सदैव सराहा जाएगा.

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