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व्यक्ति विशेष -515.

उर्दू शायर दाग़ देहलवी…

दाग़ देहलवी, जिनका असली नाम नवाब मिर्ज़ा ख़ाँ था, उर्दू के प्रसिद्ध शायरों में से एक थे. उनका जन्म 25 मई 1831 को दिल्ली में हुआ था और उनका निधन 17 मार्च 1905 को हैदराबाद में हुआ. उनकी शायरी में इश्क़ और मोहब्बत की सच्ची तस्वीर देखने को मिलती है, जिससे वे उर्दू साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं.

दाग़ देहलवी का बचपन कठिनाइयों से भरा था. उनके पिता की मृत्यु के बाद उनकी माता ने मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फर के पुत्र मिर्ज़ा फखरू से विवाह कर लिया, जिससे दाग़ को लाल किले में रहने और शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिला. उन्होंने शेख़ इब्राहीम ज़ौक़ को अपना गुरु बनाया और उनकी शायरी में दिल्ली की तहज़ीब की झलक साफ़ दिखाई देती है.

प्रमुख रचनाएँ: – गुलज़ारे दाग़, महताबे दाग़, आफ़ताबे दाग़, यादगारे दाग़ (भाग 1 और 2).

दाग़ देहलवी की शायरी ने उर्दू भाषा को एक नया आयाम दिया. उनकी शैली ने भाषा को अधिक पारदर्शी और सहज बनाया, जिससे ग़ालिब भी प्रभावित हुए. उन्होंने उर्दू ग़ज़ल को विरह और कल्पना की उड़ानों से निकालकर प्रेम और सौंदर्य की अभिव्यक्ति का नया रूप दिया.

वर्ष 1857 के विद्रोह के बाद वे रामपुर चले गए, जहाँ नवाब कल्ब अली ख़ाँ ने उन्हें संरक्षण दिया. बाद में वे हैदराबाद चले गए, जहाँ निज़ाम ने उन्हें अपना कवितागुरु नियुक्त किया. यहीं पर उन्होंने अपने जीवन के अंतिम वर्ष बिताए और वर्ष 1905 में उनका निधन हो गया.

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रास बिहारी बोस

रास बिहारी बोस भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख क्रांतिकारी थे. उनका जन्म 25 मई 1886 को बंगाल के बर्धमान जिले में हुआ था. बोस ने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह की कई योजनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें सबसे प्रसिद्ध घटना 1912 में दिल्ली में लॉर्ड हार्डिंग पर बम हमला शामिल है.

ब्रिटिश द्वारा पकड़े जाने के खतरे के कारण, रास बिहारी बोस 1915 में जापान चले गए, जहां उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्थन और सहयोग जुटाने का काम जारी रखा. जापान में उन्होंने इंडियन इंडिपेंडेंस लीग की स्थापना की और बाद में सुभाष चंद्र बोस (जिनसे उनका कोई रिश्ता नहीं था) को इस संगठन की कमान सौंपी, जिसने अंततः आज़ाद हिन्द फौज का गठन किया.

रास बिहारी बोस ने अपनी जिंदगी के अंतिम वर्षों में जापान में ही बिताए और 21 जनवरी 1945 को उनका निधन हो गया. उनके योगदान को भारत और जापान दोनों ही देशों में सम्मानित किया जाता है.

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विद्रोही कवि काजी नजरूल इस्लाम

काजी नजरूल इस्लाम, जिन्हें अक्सर ‘विद्रोही कवि’ के नाम से जाना जाता है, बांग्ला साहित्य के एक प्रमुख कवि और संगीतकार थे. उनका जन्म 24 मई 1899 को बंगाल के बर्धमान जिले में हुआ था. नजरूल की रचनाएँ सामाजिक और राजनीतिक अन्याय के खिलाफ एक स्पष्ट आवाज उठाती हैं, जिसमें उन्होंने धार्मिक साम्प्रदायिकता और उपनिवेशवाद का विरोध किया.

नजरूल की कविता और संगीत दोनों में उनका विद्रोही स्वभाव स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है. उनकी कुछ प्रसिद्ध कविताएँ जैसे कि “बिद्रोही” (विद्रोही) और “अग्निवीणा” (अग्नि का वीणा) ने उन्हें बांग्ला साहित्य में अमरता प्रदान की है. उनका साहित्य और संगीत भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी लोगों के बीच उत्साह और प्रेरणा का स्रोत बना.

नजरूल ने अपने साहित्यिक कैरियर में न केवल कविताएँ और गीत लिखे, बल्कि उपन्यास, नाटक और निबंध भी लिखे जो सामाजिक समस्याओं और नैतिकता के मुद्दों को उठाते हैं. उनकी मृत्यु 29 अगस्त 1976 को हुई, लेकिन उनकी रचनाएँ और उनका संदेश आज भी प्रासंगिक और प्रेरणादायक बना हुआ है.

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अभिनेता, निर्देशक, निर्माता, और पटकथा लेखक करण जौहर

करण जौहर एक भारतीय फिल्म निर्माता, निर्देशक, पटकथा लेखक और टेलीविजन शो होस्ट हैं, जिन्होंने अपने विविध कैरियर में हिंदी सिनेमा को कई यादगार फिल्में दी हैं. उनका जन्म 25 मई 1972 को मुंबई में हुआ था. करण जौहर ने अपनी फिल्मी यात्रा की शुरुआत अभिनेता और सहायक निर्देशक के रूप में की थी, लेकिन जल्द ही उन्होंने अपनी निर्देशन क्षमता साबित कर दी.

उनकी पहली फिल्म “कुछ कुछ होता है” (1998) एक बड़ी सफलता थी, जिसने उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाई. इसके बाद, करण ने “कभी खुशी कभी गम” (2001), “कल हो ना हो” (2003), “माय नेम इज खान” (2010), और “ऐ दिल है मुश्किल” (2016) जैसी हिट फिल्में दीं. उनकी फिल्में अक्सर पारिवारिक मूल्यों, प्रेम और दोस्ती के थीम पर केंद्रित होती हैं और भव्य सेट, फैशनेबल पात्र और आकर्षक संगीत से भरपूर होती हैं.

करण जौहर ने न केवल निर्देशन में, बल्कि निर्माण में भी अपनी महारत दिखाई है. उनकी प्रोडक्शन कंपनी धर्मा प्रोडक्शंस ने कई सफल फिल्मों का निर्माण किया है जैसे कि “धड़क” (2018), “राज़ी” (2018), और “गुड न्यूज़” (2019)। इसके अलावा, करण टेलीविजन पर भी सक्रिय रहे हैं, जहाँ उन्होंने “कॉफ़ी विद करण” जैसे लोकप्रिय टॉक शो की मेजबानी की है.

करण जौहर का योगदान हिंदी सिनेमा को एक नई दिशा और ऊंचाई प्रदान करने में रहा है, और उन्होंने अपनी फिल्मों के माध्यम से समाज के कई महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर किया है.

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अभिनेता कुणाल खेमू

कुणाल खेमू एक प्रतिभाशाली भारतीय अभिनेता हैं जो हिंदी फिल्म उद्योग में सक्रिय हैं. उनका जन्म 25 मई 1983 को कश्मीर में हुआ था. कुणाल ने अपने कैरियर की शुरुआत बचपन में ही कर दी थी; वह बच्चों के रूप में कई फिल्मों में दिखाई दिए, जिनमें “राजा हिंदुस्तानी” (1996) और “ज़ख्म” (1998) शामिल हैं.

बड़े होने पर, कुणाल ने वयस्क भूमिकाओं में सफलतापूर्वक प्रवेश किया और उन्होंने “कलयुग” (2005) में अपनी प्रमुख भूमिका से खासा ध्यान खींचा. इस फिल्म में उनके प्रदर्शन की व्यापक प्रशंसा हुई. उसके बाद, उन्होंने “ट्रैफिक सिग्नल” (2007) और “गो गोवा गॉन” (2013) जैसी फिल्मों में काम किया, जिसमें उन्होंने अपनी विविध अभिनय क्षमताओं का प्रदर्शन किया.

कुणाल ने हाल के वर्षों में वेब सीरीज़ और ओटीटी प्लेटफार्मों पर भी ध्यान केंद्रित किया है, जहां उन्होंने “अभय” (2019) जैसी सीरीज़ में मुख्य भूमिका निभाई, जिसे दर्शकों और समीक्षकों दोनों से सराहना मिली. कुणाल खेमू की फिल्मी चयन और उनके अभिनय ने उन्हें एक विशिष्ट स्थान दिलाया है और उन्हें उनके प्रशंसकों द्वारा उनकी विविधता और प्रतिभा के लिए पसंद किया जाता है.

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सर आशुतोष मुखर्जी

सर आशुतोष मुखर्जी एक प्रमुख भारतीय शिक्षाविद, न्यायविद, और स्वतंत्रता सेनानी थे. वे अपने समय के सबसे विद्वान और प्रभावशाली व्यक्तियों में से एक थे और भारतीय शिक्षा प्रणाली के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. सर आशुतोष मुखर्जी का जन्म 29 जून 1864 को कलकत्ता, बंगाल प्रेसीडेंसी (आज़ादी पूर्व) को एक मध्यम वर्ग के बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता गंगाप्रसाद मुखर्जी भी एक प्रतिष्ठित विद्वान थे. उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से गणित और भौतिक विज्ञान में स्नातक और स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की. उन्होंने कानून की पढ़ाई भी की और बैरिस्टर बने.

सर आशुतोष मुखर्जी कलकत्ता विश्वविद्यालय के उपकुलपति (Vice-Chancellor) बने और इस पद पर दो कार्यकालों (1906-1914 और 1921-1923) में कार्य किया. उनके कार्यकाल के दौरान, विश्वविद्यालय ने कई नए विभाग और विषयों को प्रारंभ किया और अनुसंधान कार्यों को बढ़ावा दिया. उन्होंने भारतीय भाषाओं और संस्कृति के अध्ययन को बढ़ावा दिया.

सर आशुतोष मुखर्जी कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश भी रहे और अपनी न्यायिक सूझबूझ और निष्पक्षता के लिए प्रसिद्ध थे. सर आशुतोष मुखर्जी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे और स्वतंत्रता संग्राम में भी भाग लिया. उन्हें “बंगाल का बाघ” (Tiger of Bengal) कहा जाता था उनके साहस और दृढ़ संकल्प के लिए.

ब्रिटिश सरकार ने उन्हें “सर” की उपाधि से सम्मानित किया. उनकी स्मृति में कलकत्ता विश्वविद्यालय में आशुतोष कॉलेज की स्थापना की गई. उनकी शिक्षा और प्रशासनिक सुधारों का प्रभाव आज भी भारतीय शिक्षा प्रणाली में देखा जा सकता है.

सर आशुतोष मुखर्जी एक महान शिक्षाविद और न्यायविद थे जिनका भारतीय शिक्षा और न्याय प्रणाली में अमूल्य योगदान है. उनकी दूरदर्शिता और प्रतिबद्धता ने भारतीय समाज को प्रगति और विकास की दिशा में प्रेरित किया. आशुतोष मुखर्जी का निधन 25 मई 1924 को पटना, बिहार और उड़ीसा प्रांत, ब्रिटिश भारत (अब बिहार, भारत) में हुई थी.

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संगीतकार लक्ष्मीकांत

लक्ष्मीकांत भारतीय संगीत उद्योग में एक संगीतकार थे, जिन्होंने अपने संगीत साथी प्यारेलाल के साथ मिलकर लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी बनाई. यह जोड़ी भारतीय सिनेमा के सबसे सफल और लोकप्रिय संगीत निर्देशकों में से एक मानी जाती है. लक्ष्मीकांत का जन्म 3 नवंबर 1937 को हुआ और उनका निधन 25 मई 1998 को हुआ था.

लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी ने वर्ष 1960 के दशक से लेकर वर्ष 1990 के दशक तक हिंदी सिनेमा के लिए हजारों गाने बनाए, जिनमें कई अत्यधिक सफल और यादगार रचनाएं शामिल हैं. उनका संगीत अक्सर उत्सवी, भावपूर्ण और मेलोडियस होता था. इस जोड़ी ने “दोस्ती” (1964), “मिलन” (1967), “बॉबी” (1973), “रोटी कपड़ा और मकान” (1974), और “सत्यम शिवम सुंदरम” (1978) जैसी कई हिट फिल्मों के लिए संगीत दिया.

लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी ने न केवल फिल्मी गीतों में, बल्कि भजनों, ग़ज़लों और यहाँ तक कि क्लासिकल संगीत में भी अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया. उनके संगीत में विविधता और गहराई दोनों ही थी, और उन्होंने भारतीय संगीत को एक नई दिशा दी. लक्ष्मीकांत का योगदान भारतीय संगीत जगत में अमिट छाप छोड़ गया है, और उनकी धुनें आज भी लोकप्रिय हैं.

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अभिनेता एवं राजनीतिज्ञ सुनील दत्त

सुनील दत्त भारतीय सिनेमा के एक प्रसिद्ध अभिनेता, निर्माता, निर्देशक और राजनीतिज्ञ थे. उनका असली नाम बलराज दत्त था. सुनील दत्त का जन्म 6 जून, 1929 को पंजाब (पाकिस्तान) के झेलम ज़िले के खुर्दी गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उन्होंने अपने कैरियर की शुरुआत रेडियो से की थी और बाद में फिल्मों में कदम रखा.

सुनील दत्त ने वर्ष 1955 में फिल्म “रेलवे प्लेटफॉर्म” से अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत की. लेकिन उन्हें असली पहचान मिली 1957 में आई फिल्म “मदर इंडिया” से मिली, जिसमें उन्होंने बिरजू का किरदार निभाया. इस फिल्म में उनकी सह-कलाकार नरगिस थीं, जिनसे उन्होंने बाद में शादी की.

 प्रमुख फिल्में: –  मदर इंडिया (1957), साधना (1958), गुमराह (1963), वक्त (1965), मेरा साया (1966) व  रेशमा और शेरा (1971).

निर्माता और निर्देशक: –  यादें (1964) व  रेशमा और शेरा (1971).

सुनील दत्त ने वर्ष 1984 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी से जुड़कर राजनीति में कदम रखा और 1984 में पहली बार मुंबई उत्तर-पश्चिम से लोकसभा के सदस्य बने. उन्होंने कई बार चुनाव जीता और केंद्रीय मंत्री भी बने. सुनील दत्त और नरगिस की शादी वर्ष 1958 में हुई और उनके तीन बच्चे हुए: संजय दत्त, नम्रता दत्त, और प्रिया दत्त। उनके बेटे संजय दत्त भी एक प्रसिद्ध अभिनेता हैं.

सुनील दत्त को उनके फिल्मी और सामाजिक योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले, जिनमें पद्म श्री (1968) शामिल है. सुनील दत्त का निधन 25 मई 2005 को मुंबई में हुआ. उनकी विरासत आज भी भारतीय सिनेमा और राजनीति में जीवित है.

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