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व्यक्ति विशेष -514.

क्रांतिकारी करतार सिंह सराभा

क्रांतिकारी करतार सिंह सराभा भारत के स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रमुख और युवा क्रांतिकारी थे. उनका जन्म 24 मई 1896 को लुधियाना जिले के सराभा गाँव के एक जाट सिख परिवार में हुआ था और उन्हें 16 नवंबर 1915 को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दी गई, उस समय वे केवल 19 वर्ष के थे.

करतार सिंह सराभा के पिता का नाम सरदार मंगल सिंह था और उनकी माता का नाम साहिब कौर था. बचपन में ही उनके पिता का निधन हो गया था, जिसके बाद उनका पालन-पोषण उनके दादाजी ने किया। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में प्राप्त की और फिर लुधियाना के मालवा खालसा हाई स्कूल में पढ़े। उच्च शिक्षा के लिए वे अमेरिका गए.

अमेरिका में रहने के दौरान, करतार सिंह सराभा भारतीय आप्रवासियों के बीच व्याप्त नस्लीय भेदभाव और अपने देश की पराधीनता से बहुत दुखी हुए और वे गदर पार्टी के संपर्क में आए, जो भारत को ब्रिटिश शासन से मुक्त कराने के उद्देश्य से स्थापित एक क्रांतिकारी संगठन था. वे जल्द ही पार्टी के एक सक्रिय और प्रमुख सदस्य बन गए.

गदर पार्टी ने भारत में सशस्त्र क्रांति करने की योजना बनाई थी. करतार सिंह सराभा इस योजना को साकार करने के लिए वर्ष 1914 में भारत लौटे. उन्होंने ब्रिटिश भारतीय सेना के सैनिकों को विद्रोह के लिए संगठित करने का प्रयास किया और पंजाब में क्रांति की ज्वाला जलाने की कोशिश की. दुर्भाग्य से, गदर पार्टी की योजना विफल रही और कई क्रांतिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया उनमें करतार सिंह सराभा भी थे. उन क्रांतिकारियों पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया और फांसी की सजा सुनाई गई.

करतार सिंह सराभा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में एक अमर शहीद के रूप में याद किए जाते हैं. उनकी युवावस्था में दिखाई गई देशभक्ति और बलिदान की भावना आज भी भारतीयों के लिए प्रेरणा का स्रोत है.

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पूर्व ‘भारतीय विदेश सचिव’ रंजन मथाई

रंजन मथाई भारत के पूर्व विदेश सचिव रह चुके हैं. उन्होंने इस पद पर अगस्त 2011 से दिसंबर 2013 तक कार्य किया. रंजन मथाई भारतीय विदेश सेवा के अनुभवी अधिकारी थे और उन्होंने अपने कैरियर में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया. वे भारत के दूत के रूप में इज़राइल, कतर, यूनाइटेड किंगडम, और भूटान में तैनात रहे.

रंजन मथाई के कार्यकाल के दौरान, विदेश नीति में कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर कार्य किया गया, जिसमें भारत के विदेशी संबंधों को सुदृढ़ करना और अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की उपस्थिति को मजबूत करना शामिल था. उनका योगदान भारतीय विदेश सेवा में काफी सराहा गया.

रंजन मथाई का जन्म 24 मई, 1952 को तिरुवला (केरल) में हुआ था.  मथाई ने ‘पूना विश्‍वविद्यालय’ से राजनीति शास्‍त्र में स्‍नात्‍कोत्‍तर पास किया और 1974 में ‘भारतीय विदेश सेवा’ में सम्मिलित हुए.

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पर्वतारोही बछेंद्री पाल

बछेंद्री पाल एक प्रेरणादायक भारतीय पर्वतारोही हैं जिन्होंने 23 मई 1984 को माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करके इतिहास रच दिया था. वह माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला और दुनिया की पांचवीं महिला बनीं। बछेंद्री पाल का जन्म 24 मई 1954 को उत्तराखंड के नाकुरी गांव में हुआ था.

उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा उत्तराखंड से प्राप्त की और बाद में खेलकूद में अपनी रुचि के चलते उन्होंने पर्वतारोहण की ओर रुख किया। उन्होंने नेहरू पर्वतारोहण संस्थान, उत्तरकाशी से प्रशिक्षण प्राप्त किया। उनकी इस उपलब्धि ने न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में महिला पर्वतारोहियों के लिए नई प्रेरणा का सृजन किया.

बछेंद्री पाल को उनकी उपलब्धियों के लिए 1984 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था. उनकी यात्रा और उपलब्धियां आज भी कई लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं.

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संगीतकार राजेश रोशन

राजेश रोशन एक प्रसिद्ध भारतीय संगीतकार हैं, जिन्होंने हिंदी सिनेमा में कई सफल फिल्मों के लिए यादगार संगीत दिया है. वे प्रसिद्ध निर्देशक और निर्माता रोशनलाल नागरथ के पुत्र हैं और अभिनेता ऋतिक रोशन के चाचा हैं. राजेश रोशन का जन्म 24 मई 1955 को हुआ था.

राजेश रोशन का संगीत कैरियर 1970 के दशक में शुरू हुआ और उन्होंने “कुछ ना कहो”, “चुरा लिया है तुमने”, और “परदेसिया” जैसे कई हिट गानों की रचना की. उन्होंने खास तौर पर 1980 – 90 के दशक में अपने संगीत के माध्यम से बॉलीवुड में अपनी एक अलग पहचान बनाई.

उनके कुछ प्रसिद्ध फिल्म स्कोर में “कहो ना प्यार है”, “कोई मिल गया”, और “क्रिश” शामिल हैं, जिन्होंने उन्हें नई पीढ़ी के दर्शकों के बीच भी लोकप्रिय बनाया. राजेश रोशन का संगीत हमेशा उनकी मेलोडिक समझ और आधुनिकता के साथ पारंपरिक तत्वों के मिश्रण के लिए पहचाना गया है.

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निर्माता शिरिश कुंदर

शिरिश कुंदर एक भारतीय फिल्म निर्माता, निर्देशक, और संपादक हैं. उनका जन्म 24 मई 1973 को मैंगलोर, कर्नाटक में हुआ था. शिरिश कुंदर ने बॉलीवुड में अपने कैरियर की शुरुआत फिल्म संपादन के क्षेत्र में की थी. शिरिश ने अपने कैरियर में कई प्रसिद्ध फिल्मों का संपादन किया, जैसे कि “मैं हूँ ना” और “ओम शांति ओम”.

उन्होंने वर्ष 2006 में फिल्म “जान-ए-मन” के साथ निर्देशन में कदम रखा. इस फिल्म में सलमान खान, अक्षय कुमार और प्रीति जिंटा मुख्य भूमिकाओं में थे. हालांकि फिल्म बॉक्स ऑफिस पर उतनी सफल नहीं रही, फिर भी इसने शिरिश को एक निर्देशक के रूप में पहचान दिलाई.

इसके बाद, उन्होंने वर्ष 2012 में “जोकर” नामक एक विज्ञान-फांतसी फिल्म निर्देशित की, जिसमें अक्षय कुमार और सोनाक्षी सिन्हा ने अभिनय किया. इस फिल्म को भी मिश्रित समीक्षाएँ मिलीं और यह व्यावसायिक रूप से सफल नहीं रही.

शिरिश कुंदर ने डिजिटल प्लेटफॉर्म के लिए भी काम किया है, जैसे कि उनकी शॉर्ट फिल्म “कृति” जो ऑनलाइन बहुत प्रसिद्ध हुई. उनका काम उनकी रचनात्मकता और विविधता को दर्शाता है, जो उन्हें फिल्म जगत में एक पहचान दिलाती है.

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प्रतापचंद्र मज़ूमदार

प्रतापचंद्र मज़ूमदार एक प्रसिद्ध भारतीय राष्ट्रवादी थे, जिन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनका जन्म 02 अक्टूबर 1840 को  बंगाल के हुगली ज़िले में  हुआ था, और वे बंगाल के प्रमुख व्यक्तित्वों में से एक थे. मज़ूमदार ब्रह्म समाज से भी जुड़े हुए थे, जो एक समाज सुधारक आंदोलन था, जिसने भारतीय समाज में धार्मिक और सामाजिक सुधारों की वकालत की.

उनका कार्य धार्मिक सुधारों से परे, भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के विकास में भी महत्वपूर्ण रहा है. वे एक वकील भी थे और उन्होंने अपने कानूनी ज्ञान का इस्तेमाल राष्ट्रीय आंदोलन को संगठित करने और उसे मजबूत बनाने में किया. मज़ूमदार की विचारधारा और उनके कार्यों ने भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन को प्रेरित किया और भविष्य के नेताओं के लिए एक आदर्श स्थापित किया.

प्रतापचंद्र मज़ूमदार का निधन 24 मई1905 को कलकत्ता में हुआ था. उनकी लेखनी और भाषणों में उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता के लिए एक दृढ़ संकल्प व्यक्त किया, जिससे उन्हें उस समय के प्रमुख भारतीय नेताओं के रूप में सम्मान प्राप्त हुआ. उनकी उपलब्धियां और योगदान आज भी भारतीय इतिहास में सराहे जाते हैं.

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कुश्ती प्रशिक्षक गुरु हनुमान

गुरु हनुमान एक भारतीय कुश्ती प्रशिक्षक थे, जिन्होंने भारतीय पहलवानी को नई पहचान दिलाई. उनका वास्तविक नाम विजय पाल सिंह था, लेकिन वे गुरु हनुमान के नाम से अधिक प्रसिद्ध हुए. उनका जन्म 24 अप्रैल, 1901 को राजस्थान में हुआ था.

गुरु हनुमान ने अपनी कुश्ती अकादमी दिल्ली में स्थापित की, जो जल्द ही देश के सर्वश्रेष्ठ पहलवानों को तैयार करने के लिए प्रसिद्ध हो गई. उन्होंने अपने जीवनकाल में सैकड़ों पहलवानों को प्रशिक्षित किया, जिनमें से कई ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीते

उनकी अकादमी से निकले प्रमुख पहलवानों में सतपाल सिंह, करतार सिंह, और योगेश्वर दत्त जैसे नाम शामिल हैं. गुरु हनुमान की प्रशिक्षण पद्धतियां और उनकी सख्त दिनचर्या ने कई पहलवानों को उनकी असीम क्षमता का एहसास कराया और उन्हें उच्चतम स्तर पर प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार किया.

उनके योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान से नवाजा गया, जिसमें द्रोणाचार्य पुरस्कार भी शामिल है, जो भारतीय खेलों में एक प्रशिक्षक के लिए सर्वोच्च सम्मान माना जाता है. गुरु हनुमान का निधन 15 मार्च 1999 को हुआ था, लेकिन उनकी विरासत आज भी भारतीय कुश्ती में जीवित है.

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राजनीतिज्ञ के.एस. हेगडे

के.एस. हेगड़े (कोनकट्टी सदानंद हेगड़े) एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ, न्यायविद और समाजसेवी थे. वे भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं और अपने कार्यकाल में उन्होंने कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया. के.एस. हेगड़े का जन्म 11 जून 1909, कोनकट्टी, कर्नाटक में हुआ था.  हेगड़े ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कर्नाटक में पूरी की और फिर वे कानून की पढ़ाई के लिए मुंबई गए. उन्होंने मुंबई विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की और एक सफल वकील बने. हेगड़े ने अपने कैरियर की शुरुआत एक वकील के रूप में की. वे बाद में कर्नाटक हाई कोर्ट के न्यायाधीश बने और अपनी निष्पक्षता और न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध हुए.

हेगड़े भारतीय लोकसभा के सदस्य रहे. वे उडुपी निर्वाचन क्षेत्र से सांसद चुने गए थे. उन्होंने भारतीय राजनीति में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर अपनी आवाज बुलंद की. के.एस. हेगड़े वर्ष 1977 – 80 तक भारतीय लोकसभा के अध्यक्ष रहे. इस पद पर रहते हुए उन्होंने संसद की कार्यवाही को सुचारू रूप से संचालित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

हेगड़े संविधान सभा के सदस्य भी रहे, जिन्होंने भारतीय संविधान के निर्माण में योगदान दिया. के.एस. हेगड़े ने कई सामाजिक कार्यों में भी योगदान दिया. वे शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में सक्रिय रहे. उनके सामाजिक कार्यों के कारण वे समाज में बेहद सम्मानित थे. के.एस. हेगड़े का निधन 24 मई 1990 को हुआ. उनकी याद में कई संस्थाएँ और संगठन आज भी उनके नाम पर कार्यरत हैं, जो उनके आदर्शों और सिद्धांतों को आगे बढ़ा रही हैं.

के.एस. हेगड़े का जीवन और कार्य भारतीय राजनीति और समाज के लिए प्रेरणास्रोत है. उनके द्वारा किए गए कार्य और उनके सिद्धांत आज भी नई पीढ़ी के नेताओं के लिए मार्गदर्शक बने हुए हैं.

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गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी

मजरूह सुल्तानपुरी हिंदी सिनेमा के सबसे प्रतिष्ठित और लोकप्रिय गीतकारों में से एक थे. उनका असली नाम असरार-उल-हसन खान था, लेकिन फिल्मी दुनिया में वे मजरूह सुल्तानपुरी के नाम से प्रसिद्ध हुए. उनका जन्म 1 अक्टूबर 1919 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में हुआ था, और उन्होंने प्रारंभिक जीवन में यूनानी चिकित्सा की पढ़ाई की थी. हालांकि, कविता और शायरी के प्रति उनके प्रेम ने उन्हें साहित्य और गीत लेखन की ओर मोड़ा.

मजरूह सुल्तानपुरी ने उर्दू शायरी से अपने कैरियर की शुरुआत की, और बहुत जल्द वे प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़ गए. उनकी शायरी में सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर तीखा व्यंग्य और सामाजिक जागरूकता का पुट देखने को मिलता था.

मजरूह सुल्तानपुरी का फिल्मी कैरियर वर्ष 1946 में फिल्म “शाहजहां” से शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने “जब दिल ही टूट गया” गाना लिखा था. इस गीत ने उन्हें रातों-रात लोकप्रिय बना दिया. इसके बाद उन्होंने भारतीय सिनेमा में लगभग पाँच दशकों तक एक से बढ़कर एक हिट गाने दिए.

उनके लिखे गाने अपनी भावपूर्ण शायरी, सरल भाषा, और गहरे अर्थों के लिए प्रसिद्ध हैं. उन्होंने संगीतकार एस. डी. बर्मन, नौशाद, आर. डी. बर्मन, और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल जैसे दिग्गजों के साथ काम किया। उनके लिखे कई गाने आज भी बेहद लोकप्रिय हैं, जैसे: –

चाहूंगा मैं तुझे साँझ सवेरे  (फिल्म दोस्ती, 1964),

ये रात ये चाँदनी फिर कहाँ (फिल्म जिद्दी, 1948),

प्यार किया तो डरना क्या (फिल्म मुगल-ए-आज़म, 1960),

चुरा लिया है तुमने जो दिल को (फिल्म यादों की बारात, 1973),

पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा ( फिल्म क़यामत से क़यामत तक, 1988).

मजरूह सुल्तानपुरी को एक प्रगतिशील सोच वाला गीतकार माना जाता था. वे उस दौर के कवियों में से एक थे जो स्वतंत्रता, समानता, और सामाजिक न्याय की बात करते थे. उनके गीतों में प्रेम, समाज, और जीवन के विभिन्न पहलुओं का जिक्र मिलता है.

वर्ष 1950 के दशक में उन्हें कम्युनिस्ट विचारधारा से जुड़े होने के कारण जेल भी जाना पड़ा था, लेकिन इससे उनकी लेखनी की धार और तेज हो गई. मजरूह सुल्तानपुरी को उनके अमूल्य योगदान के लिए कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें प्रमुख हैं: –  वर्ष 1993 में दादासाहेब फाल्के पुरस्कार, जो भारतीय सिनेमा का सर्वोच्च सम्मान है. उन्हें कई बार फिल्मफेयर पुरस्कार से भी नवाज़े गए.

मजरूह सुल्तानपुरी ने अपने पांच दशकों के कैरियर में सैकड़ों गीत लिखे, जो आज भी लोगों के दिलों में बसे हुए हैं. वे अपनी सादगी, गहरे भाव और समाजिक चेतना के लिए हमेशा याद किए जाएंगे। उनकी शायरी और गीतों ने भारतीय सिनेमा और साहित्य को एक नई दिशा दी. मजरूह सुल्तानपुरी का निधन 24 मई 2000 को हुआ, लेकिन उनके गीत आज भी लोगों के दिलों में गूंजते हैं.

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