
व्यक्ति विशेष -509.
नाथूराम गोडसे
नाथूराम गोडसे एक हिन्दू राष्ट्रवादी थे और उन्हें महात्मा गांधी की हत्या के लिए जाना जाता है. नाथूराम का पूरा नाम नाथूराम विनायक गोडसे था. जबकि उनका वास्तविक नाम रामप्रसाद था.
गोडसे का जन्म 19 मई 1910 को मुंबई-पुणे के बीच में एक राष्ट्रवादी हिन्दू परिवार में हुआ था. गोडसे ने 30 जनवरी 1948 को दिल्ली में गांधीजी पर गोली चलाई थी. उसे उस हत्या के लिए दोषी पाया गया और फिर उसे मृत्युदंड दिया गया था.
गोडसे ने यह कदम उठाया था क्योंकि वह गांधी की नीतियों और विशेष रूप से मुस्लिम समुदाय के प्रति उनके दृष्टिकोण से असहमत था. गोडसे का मानना था कि गांधी की नीतियाँ भारत के हित में नहीं हैं. महात्मा गाँधी की हत्या करने के कारण नाथूराम गोडसे को फ़ाँसी की सज़ा सुनाई गई थी. उन्हें 15 नवम्बर 1949 में अंबाला (हरियाणा) में फ़ाँसी दी गई थी.
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छठे राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी
नीलम संजीव रेड्डी भारत के छठे राष्ट्रपति थे, जिनका कार्यकाल वर्ष 1977 – 82 तक रहा. वे एक वरिष्ठ राजनेता थे और स्वतंत्र भारत के प्रमुख राजनीतिक व्यक्तित्वों में से एक थे. उनका जन्म 19 मई 1913 को आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले के इलुरु गाँव में हुआ था. उनका जन्म एक किसान परिवार में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में ही प्राप्त की और आगे की पढ़ाई के लिए मद्रास (अब चेन्नई) चले गए, जहाँ उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज से शिक्षा प्राप्त की.
रेड्डी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गए और स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया. उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में कई आंदोलनों में भाग लिया और जेल भी गए. वर्ष 1956 में वे आंध्र प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बने जब राज्य का पुनर्गठन हुआ. नीलम संजीव रेड्डी दो बार आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे (वर्ष 1956-60 और वर्ष 1962-64). बाद में उन्होंने केंद्र सरकार में मंत्री के रूप में भी कार्य किया और विभिन्न मंत्रालयों का भी कार्यभार संभाला. वे वर्ष 1967 – 69 तक लोकसभा के अध्यक्ष रहे. इस भूमिका में उनके कार्य को बहुत सराहा गया और उन्हें एक निष्पक्ष और सक्षम अध्यक्ष माना गया.
वर्ष 1977 में नीलम संजीव रेड्डी भारत के राष्ट्रपति चुने गए. वे बिना किसी विरोध के निर्वाचित होने वाले पहले राष्ट्रपति थे. उनके कार्यकाल के दौरान, उन्होंने संविधान की मर्यादा और लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
नीलम संजीव रेड्डी को उनके उत्कृष्ट राजनीतिक कैरियर और देश के प्रति योगदान के लिए कई सम्मान प्राप्त हुए. नीलम संजीव रेड्डी का विवाह नीलम नागरत्नम्मा से हुआ था और उनके दो बच्चे थे. नीलम संजीव रेड्डी का निधन 1 जून 1996 को हुआ. उनके निधन पर देश ने एक महान नेता को खो दिया जिसने अपनी पूरी जिंदगी देश और समाज की सेवा में समर्पित कर दी.
नीलम संजीव रेड्डी का जीवन और कैरियर भारतीय राजनीति में एक प्रेरणादायक कहानी है. उन्होंने अपने सिद्धांतों और मूल्यों पर अडिग रहते हुए देश की सेवा की और अपने कार्यकाल के दौरान लोकतांत्रिक मूल्यों को मजबूत किया.
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लेखक रस्किन बॉण्ड
रस्किन बॉण्ड एक प्रसिद्ध भारतीय-ब्रिटिश लेखक हैं, जिनका जन्म 19 मई 1934 को कसौली, हिमाचल प्रदेश में हुआ था. उन्होंने अपना अधिकांश जीवन भारत में बिताया है, और उनका साहित्यिक कार्य भारतीय परिदृश्यों और जीवन की छवियों से भरपूर है. बॉण्ड की रचनाएँ उनके द्वारा निभाई गई भूमिकाओं और उनके अनुभवों से प्रभावित हैं.
रस्किन बॉण्ड की लेखनी में विशेष रूप से बच्चों के लिए कहानियाँ, उपन्यास, निबंध और कविताएँ शामिल हैं. उन्होंने कुछ बहुत ही लोकप्रिय किताबें लिखी हैं, जैसे कि “द ब्लू अम्ब्रेला”, “रूस्टी” श्रृंखला, और “द रूम ऑन द रूफ”, जिसे उन्होंने अपनी किशोरावस्था में लिखा था और जिसके लिए उन्हें जॉन लेवेलिन रीस पुरस्कार प्राप्त हुआ था.
रस्किन बॉण्ड को उनके साहित्यिक योगदान के लिए कई सम्मान प्राप्त हुए हैं, जिनमें से प्रमुख हैं पद्म श्री (1999) और पद्म भूषण (2014). उनकी लेखनी ने न केवल बच्चों बल्कि बड़ों को भी गहराई से प्रभावित किया है, और उनकी कहानियाँ भारतीय साहित्य में एक अमूल्य योगदान मानी जाती हैं.
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कहानी लेखक, नाटककार, फ़िल्म निर्देशक और फ़िल्म अभिनेता गिरीश कर्नाड
गिरीश कर्नाड एक बहुमुखी भारतीय साहित्यकार, नाटककार, फिल्म निर्देशक और अभिनेता थे, जिन्होंने भारतीय साहित्य और सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उनका जन्म 19 मई 1938 को माथेरान, महाराष्ट्र में हुआ था और उनका निधन 10 जून 2019 को बेंगलुरु, कर्नाटक में हुआ. कर्नाड ने कन्नड़ और हिंदी सहित कई भाषाओं में काम किया और वे आधुनिक भारतीय थियेटर और सिनेमा के प्रमुख व्यक्तित्वों में से एक थे.
गिरीश कर्नाड का जन्म महाराष्ट्र के माथेरान में हुआ था और उनका बचपन कर्नाटक में बीता. उन्होंने धारवाड़ के कर्नाटक विश्वविद्यालय से गणित और सांख्यिकी में स्नातक की डिग्री प्राप्त की. इसके बाद उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र, राजनीति विज्ञान और अर्थशास्त्र में मास्टर्स किया.
गिरीश कर्नाड ने 1960 के दशक में अपने नाटकों से प्रसिद्धि पाई. उनके नाटक पारंपरिक भारतीय मिथकों और लोककथाओं पर आधारित होते थे, जिनमें आधुनिक समाज के जटिल प्रश्नों और मुद्दों को समाहित किया जाता था.
प्रमुख नाटक: –
‘ययाति’ (1961): यह उनका पहला नाटक था, जो महाभारत के ययाति चरित्र पर आधारित था.
‘तुघलक’ (1964): यह नाटक दिल्ली के सुलतान मोहम्मद बिन तुघलक की कहानी कहता है और इसे कर्नाड के सर्वश्रेष्ठ नाटकों में से एक माना जाता है.
‘हयवदन’ (1971): यह नाटक एक प्राचीन कन्नड़ लोककथा पर आधारित है और पहचान और अस्तित्व के मुद्दों को संबोधित करता है.
गिरीश कर्नाड ने फिल्म उद्योग में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. वे न केवल एक उत्कृष्ट अभिनेता थे, बल्कि एक सफल फिल्म निर्देशक और पटकथा लेखक भी थे.
अभिनय:-
‘मंथन’ (1976): श्याम बेनेगल द्वारा निर्देशित इस फिल्म में कर्नाड ने मुख्य भूमिका निभाई.
‘स्वामी’ (1977): यह फिल्म उनकी बेहतरीन अदाकारी के लिए जानी जाती है.
‘निशांत’ (1975): इस फिल्म में भी उन्होंने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
निर्देशन:-
‘वामशवृक्ष’ (1971): इस कन्नड़ फिल्म के लिए कर्नाड को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला.
‘उत्सव’ (1984): यह हिंदी फिल्म उनकी निर्देशन प्रतिभा का उत्कृष्ट उदाहरण है.
गिरीश कर्नाड को उनके साहित्यिक और फिल्मी योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कार और सम्मान मिले: – ज्ञानपीठ पुरस्कार (1998): यह भारतीय साहित्य का सर्वोच्च सम्मान है. पद्म श्री (1974) और पद्म भूषण (1992): भारतीय सरकार द्वारा दिए गए ये सम्मान उनके योगदान को मान्यता देते हैं. उन्हें फिल्म निर्देशन और पटकथा लेखन के लिए कई बार सम्मानित किया गया.
गिरीश कर्नाड का जीवन और कैरियर अद्वितीय और प्रेरणादायक था. वे अपने समाजिक और राजनीतिक दृष्टिकोण के लिए भी जाने जाते थे और कई सामाजिक मुद्दों पर खुलकर बोलते थे. गिरीश कर्नाड का योगदान भारतीय साहित्य, थियेटर और सिनेमा में अविस्मरणीय है. उनकी रचनाएँ और उनके द्वारा बनाए गए चरित्र भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेंगे.
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अभिनेता नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी
नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी एक भारतीय अभिनेता हैं, जिन्होंने अपने दमदार अभिनय और विविध भूमिकाओं के जरिए भारतीय सिनेमा में खास पहचान बनाई है. उनका जन्म 19 मई 1974 को उत्तर प्रदेश के बुढाना में हुआ था. नवाज़ ने अपनी शिक्षा नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) से पूरी की, जो भारत के प्रमुख अभिनय संस्थानों में से एक है.
नवाज़ुद्दीन ने अपने कैरियर की शुरुआत छोटे और सहायक भूमिकाओं से की थी, लेकिन उन्होंने जल्द ही अपनी प्रतिभा से खुद को मुख्य भूमिकाओं में स्थापित कर लिया. उनकी प्रमुख फिल्मों में “गैंग्स ऑफ वासेपुर”, “मांझी – द माउंटेन मैन”, “रमन राघव 2.0”, “मॉम” और “बजरंगी भाईजान” शामिल हैं. इन फिल्मों में उनके चरित्र निर्वाह ने उन्हें विशेष पहचान दिलाई और समीक्षकों की भी सराहना प्राप्त की.
नवाज़ुद्दीन की अभिनय क्षमता ने उन्हें अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी पहचान दिलाई है. उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म उत्सवों में भारतीय सिनेमा का प्रतिनिधित्व किया है. उनकी अभिनय प्रतिभा और सिनेमा के प्रति उनके समर्पण ने उन्हें न केवल दर्शकों का, बल्कि फिल्म समीक्षकों का भी दिल जीता है.
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उद्योगपति जमशेदजी नसरवानजी टाटा
जमशेदजी नसरवानजी टाटा भारतीय उद्योग जगत के एक अग्रणी पुरोधा माने जाते हैं. उनका जन्म 3 मार्च 1839 को नवसारी, गुजरात में हुआ था. टाटा ने भारतीय उद्योग क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण संस्थानों की स्थापना की, जिनमें टाटा स्टील, जो एशिया की पहली स्टील मिल थी, और टाटा पावर, जो भारत का पहला हाइड्रो-इलेक्ट्रिक प्लांट है, शामिल हैं.
जमशेदजी की दूरदृष्टि ने उन्हें औद्योगिकीकरण की ओर प्रेरित किया, जिसके फलस्वरूप उन्होंने भारत में आधुनिक उद्योगों की नींव रखी. उनका सपना था कि भारत स्वयं के संसाधनों का उपयोग करके अपने उद्योग खड़े करे, और इस दिशा में उन्होंने भारी निवेश किया. उन्होंने जमशेदपुर शहर की स्थापना की, जिसे उनके सम्मान में ‘टाटानगर’ के नाम से भी जाना जाता है.
जमशेदजी टाटा ने शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में भी योगदान दिया. उन्होंने भारतीय विज्ञान संस्थान (आईआईएससी) बंगलुरु की स्थापना के लिए धनराशि और जमीन प्रदान की, जो आज भी भारत के प्रमुख शैक्षिक संस्थानों में से एक है.
जमशेदजी टाटा की 19 मई 1904 को मृत्यु हो गई, लेकिन उनकी विरासत आज भी टाटा समूह के विशाल औद्योगिक साम्राज्य के रूप में जीवित है, जो विश्वभर में अपनी उत्कृष्टता और नैतिक मूल्यों के लिए जाना जाता है.
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लेखक आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी एक भारतीय लेखक, आलोचक, और साहित्यिक इतिहासकार थे. उनका जन्म 19 अगस्त 1907 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में हुआ था. द्विवेदी जी ने हिंदी साहित्य में अपने विशद ज्ञान और गहरी अंतर्दृष्टि के माध्यम से एक विशेष स्थान बनाया.
उनके साहित्यिक कार्यों में उपन्यास, निबंध, आलोचना और इतिहास का समावेश होता है. उनके प्रमुख उपन्यासों में “बाणभट्ट की आत्मकथा”, “चारु चंद्रलेख”, और “अनामदास का पोथा” शामिल हैं. इन कृतियों में भारतीय संस्कृति और इतिहास के प्रति उनकी गहरी समझ और प्रेम स्पष्ट दिखाई देता है.
आचार्य द्विवेदी ने भारतीय साहित्य के विभिन्न युगों और उनकी विशेषताओं को उजागर करने वाली महत्वपूर्ण आलोचनात्मक कृतियाँ भी लिखीं. उन्होंने “हिंदी साहित्य का इतिहास” नामक पुस्तक में हिंदी साहित्य के विकास को व्यापक रूप से चित्रित किया है, जिसे आज भी इस विषय पर एक आधारशिला माना जाता है.
उन्होंने कई पुरस्कारों और सम्मानों से नवाज़े गए, जिनमें पद्म भूषण (1957) और साहित्य अकादमी पुरस्कार (1973) शामिल हैं. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का निधन 19 मई 1979 को हुआ था. उनके साहित्यिक योगदान ने हिंदी साहित्य को एक नई दिशा और गहराई प्रदान की.
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रंगमंचकर्मी विजय तेंदुलकर
विजय तेंदुलकर भारतीय रंगमंच के प्रमुख हस्ताक्षरों में से एक थे. उनका जन्म 6 जनवरी 1928 को महाराष्ट्र में हुआ था. तेंदुलकर ने मराठी थियेटर को अपने बोल्ड और चुनौतीपूर्ण नाटकों के माध्यम से एक नई दिशा प्रदान की. उनके नाटकों में सामाजिक और राजनीतिक विषयों का गहराई से चित्रण किया गया, जिसने दर्शकों को न केवल मनोरंजन किया बल्कि उन्हें सोचने पर भी मजबूर किया.
उनके कुछ सबसे प्रसिद्ध नाटकों में “घाशीराम कोतवाल”, “सखाराम बाइंडर”, और “कन्यादान” शामिल हैं. इन नाटकों में उन्होंने समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर किया, जैसे कि सत्ता का दुरुपयोग, जातिगत विषमता, और महिलाओं के प्रति हिंसा. तेंदुलकर के नाटक अक्सर विवादस्पद रहे हैं, लेकिन उन्होंने समाज की गहराइयों में छिपे हुए सत्यों को उजागर करने का काम किया.
विजय तेंदुलकर को उनके योगदान के लिए कई पुरस्कार मिले, जिसमें साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्म भूषण भी शामिल हैं. उनका निधन 19 मई 2008 को हुआ, लेकिन उनके नाटक और उनकी सोच आज भी भारतीय थियेटर के लिए एक मार्गदर्शक प्रेरणा के रूप में मानी जाती हैं.