
व्यक्ति विशेष -500.
संगीतकार पंकज मलिक
पंकज मलिक, जिन्हें अक्सर पंकज मुल्लिक के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय संगीत के उन चुनिंदा संगीतकारों में से एक थे जिन्होंने 20वीं सदी के पहले आधे भाग में भारतीय सिनेमा और संगीत को नई दिशा प्रदान की. उनका जन्म 10 मई 1905 को हुआ था और उनका निधन 19 फरवरी 1978 को हुआ. पंकज मलिक ने अपने संगीत करियर के दौरान अनेक यादगार गीतों और धुनों की रचना की, जो आज भी संगीत प्रेमियों के बीच लोकप्रिय हैं.
पंकज मलिक ने अपने संगीत में शास्त्रीय संगीत की गहराई को बरकरार रखते हुए आधुनिकता का स्पर्श जोड़ा. वे उन पहले संगीतकारों में से थे जिन्होंने भारतीय फिल्मों में पाश्चात्य संगीत के तत्वों को सफलतापूर्वक शामिल किया. उनकी संगीत शैली में नवीनता और पारंपरिकता का एक अद्वितीय मिश्रण था, जिसने उन्हें उस समय के अन्य संगीतकारों से अलग किया.
पंकज मलिक ने रवीन्द्र संगीत के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया और रवींद्रनाथ टैगोर के साथ निकटता से काम किया. उन्होंने अनेक रवीन्द्र संगीत गाये और उन्हें अपनी अनूठी शैली में पेश किया.
फिल्म संगीत के अलावा, पंकज मलिक ने रेडियो पर भी काम किया और उनके द्वारा रचित और प्रस्तुत किए गए कार्यक्रम बेहद लोकप्रिय हुए. उनकी आवाज और संगीत शैली ने उन्हें उस समय के सबसे प्रशंसित संगीतकारों में से एक बना दिया.
पंकज मलिक की विरासत उनके गीतों, धुनों और संगीतमय प्रस्तुतियों के माध्यम से आज भी जीवित है, जो संगीत के प्रति उनके अनूठे दृष्टिकोण और योगदान को दर्शाती है.
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पुस्तकालयाध्यक्ष बी. एस. के सवन
बी. एस. के सवन भारतीय पुस्तकालय विज्ञान के एक प्रमुख हस्ती थे और उन्हें विशेष रूप से उनकी भूमिका के लिए जाना जाता है जब वे भारतीय राष्ट्रीय पुस्तकालय के प्रथम पुस्तकालयाध्यक्ष बने. उनका कार्यकाल वर्ष 1948 – 63 तक रहा. उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय पुस्तकालय को एक मजबूत संस्थान बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया और इसे व्यवस्थित तरीके से चलाने के लिए कई पहल की.
बी. एस. केसवन का जन्म 10 मई, 1909 को मायलापोरा मद्रास, भारत में हुआ था. उन्होंने अपने शुरुआती अधिकांश वर्ष मद्रास (वर्तमान चैन्नई) में बिताए, जहां उन्होंने अपनी मैट्रिक पास की.उन्होंने वर्ष 1936 में लंदन विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी साहित्य में एमए किया. अपने ऑनर्स कोर्स के दौरान बी. एस. के. सवन ने लंदन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ लाइब्रेरियनशिप में लाइब्रेरियनशिप में डिप्लोमा भी हासिल किया.
बी. एस. केसवन स्वतंत्रता के बाद वर्ष 1947-62 में राष्ट्रीय पुस्तकालय, कलकत्ता के पहले पुस्तकालयाध्यक्ष और वर्ष 1963-69 में भारतीय राष्ट्रीय वैज्ञानिक दस्तावेजीकरण केंद्र (आईएनएसडीओसी), नई दिल्ली के पहले निदेशक थे. उनके दूरदर्शी विचारों और नवीन पुस्तकालय प्रबंधन तकनीकों के लिए पहचाना जाता है. उन्होंने भारत में पुस्तकालय विज्ञान की शिक्षा और प्रशिक्षण पर भी जोर दिया और पुस्तकालय विज्ञान के विकास में उनकी भूमिका को बहुत सराहा जाता है.
बी. एस. केसवन का कार्य आज भी भारतीय पुस्तकालय समुदाय में प्रेरणास्रोत के रूप में देखा जाता है, और उन्होंने इस क्षेत्र में कई युवा पेशेवरों को प्रेरित किया है. बी. एस. केसवन का निधन 16 फ़रवरी 2000 को हुआ था.
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रामेश्वर नाथ काव
रामेश्वर नाथ काव एक प्रमुख भारतीय खुफिया अधिकारी थे, जिन्होंने भारतीय खुफिया ब्यूरो (IB) और रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (R&AW) में अपनी सेवाएं दीं. उन्होंने वर्ष 1987 – 90 तक R&AW के प्रमुख के रूप में कार्य किया. उनका कार्यकाल विशेष रूप से भारतीय खुफिया प्रणाली में उनकी स्थापना और नवाचार के लिए जाना जाता है. उनका जन्म 10 मई, 1918 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था.
रामेश्वर नाथ काव ने खुफिया और सुरक्षा क्षेत्र में अपनी गहरी समझ और कुशल नेतृत्व क्षमता के लिए प्रशंसा प्राप्त की. उनके नेतृत्व में, R&AW ने कई अंतर्राष्ट्रीय मिशनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे भारत की सुरक्षा और विदेश नीति को मजबूती मिली.
काव का निधन 20 जनवरी 2002 को हुआ था, लेकिन उनकी विरासत और योगदान आज भी भारतीय खुफिया और सुरक्षा सेवाओं में सराहा जाता है. उन्होंने भारतीय खुफिया समुदाय में नई पीढ़ी के लिए एक मानक स्थापित किया और उनका योगदान इस क्षेत्र के विकास में मान्यता प्राप्त है.
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सुभाष कश्यप
सुभाष कश्यप भारतीय संविधान और राजनीतिक विज्ञान के प्रमुख विद्वान माने जाते हैं. उन्होंने भारतीय संसद और इसकी कार्यप्रणाली पर गहराई से शोध किया है और इस विषय पर कई पुस्तकें लिखी हैं. कश्यप कई वर्षों तक भारतीय संसद के सचिवालय में काम किया करते थे और उनका अनुभव और ज्ञान उनकी लेखनी में स्पष्ट रूप से झलकता है.
सुभाष कश्यप का जन्म 10 मई 1929 को चाँदपुर, बिजनौर, उत्तर प्रदेश में हुआ था. उनकी सबसे चर्चित पुस्तकें में “Our Constitution”, “Our Parliament”, और “Our Political System” शामिल हैं, जो संविधान और भारतीय राजनीतिक व्यवस्था को समझने के लिए महत्वपूर्ण संदर्भ सामग्री मानी जाती हैं. उनके लेखन में भारतीय राजनीतिक ढांचे की गहराई और विस्तार से विश्लेषण की गई है, जो पाठकों को संसदीय प्रक्रियाओं और संवैधानिक प्रावधानों की बेहतर समझ प्रदान करता है.
सुभाष कश्यप की विशेषज्ञता और व्याख्यानों का उपयोग अकादमिक और सरकारी संस्थानों में किया जाता है, और उनका योगदान भारतीय राजनीतिक विद्या और संविधानिक अध्ययन के क्षेत्र में बहुत मूल्यवान है.
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26वें थल सेनाध्यक्ष वी. के. सिंह
वी. के. सिंह, जिनका पूरा नाम विजय कुमार सिंह है, एक पूर्व भारतीय सेना अधिकारी और वर्तमान राजनीतिज्ञ हैं. उन्होंने 31 मार्च 2010 से 31 मई 2012 तक भारतीय थल सेना के 26वें सेनाध्यक्ष के रूप में सेवा की. वी. के. सिंह का सेना में कैरियर बेहद विशिष्ट रहा है और उन्होंने कई उच्च पदों पर काम किया है.
विजय कुमार सिंह का जन्म 10 मई 1951 को हरियाणा के भिवानी जिले के बापोरा गांव में हुआ था. वह अपने परिवार की तीसरी पीढ़ी के सेना अधिकारी रहे हैं. उनके पिता सेना में एक कर्नल और दादा जूनियर कमीशंड ऑफिसर (जेसीओ) थे. उनकी प्रारंभिक शिक्षा पिलानी, राजस्थान के बिड़ला पब्लिक स्कूल में हुई थी. वी. के. सिंह को राजपूत रेजीमेंट (काली चिंदी) की दूसरी बटालियन में 17 जून, 1970 को कमीशन दिया गया था.
सेना से सेवानिवृत्ति के बाद, वी. के. सिंह ने राजनीति में प्रवेश किया और वे भारतीय जनता पार्टी के सदस्य बने. वे वर्ष 2014 में गाजियाबाद से लोकसभा सांसद के रूप में चुने गए और उसके बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल में विकास, विदेश राज्य मंत्री के रूप में और फिर रोड ट्रांसपोर्ट और हाईवे राज्य मंत्री के रूप में कार्य किया.
उनके सेना के कैरियर में उनके जन्म तिथि विवाद भी शामिल था, जो मीडिया में काफी चर्चित रहा. इस विवाद में उन्होंने अपनी जन्मतिथि से संबंधित आधिकारिक रिकॉर्ड्स में भिन्नताओं का मुद्दा उठाया था, जिसे बाद में सरकार द्वारा निपटाया गया.
वी. के. सिंह की छवि एक ईमानदार और निष्ठावान अधिकारी के रूप में रही है, और उनके द्वारा किये गए विभिन्न सुधारों की सराहना की गई है.
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कैप्टन योगेन्द्र सिंह यादव
सैनिक योगेन्द्र सिंह यादव एक भारतीय सेना के जवान हैं, जिन्होंने वर्ष1999 के कारगिल युद्ध में असाधारण वीरता और साहस दिखाया था. उन्हें इस बहादुरी के लिए परम वीर चक्र, भारत का सर्वोच्च सैन्य सम्मान, प्रदान किया गया. योगेन्द्र सिंह यादव उस समय 18 ग्रेनेडियर्स के सदस्य थे और उन्होंने टाइगर हिल की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.
लड़ाई के दौरान, यादव और उनकी टीम को टाइगर हिल पर पाकिस्तानी सेना के बंकरों को नष्ट करने का जिम्मा सौंपा गया था. दुश्मन की गोलीबारी के बावजूद, यादव ने आगे बढ़ते हुए तीन बंकरों को नष्ट किया और दुश्मन की अग्रिम पंक्तियों को तोड़ दिया। उनकी इस वीरता ने भारतीय सेना को इस महत्वपूर्ण चोटी पर जीत हासिल करने में मदद की.
कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव का जन्म 10 मई 1980 को उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले औरंगाबाद अहीर गांव में एक फौजी परिवार में हुआ था. उनके पिता राम करण सिंह यादव ने वर्ष 1965 और वर्ष 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों में भाग लेकर कुमाऊं रेजिमेंट में सेवा की थी.
योगेन्द्र सिंह यादव की बहादुरी की कहानी ने उन्हें भारतीय समाज में एक नायक का दर्जा दिलाया है, और वे युवा सैनिकों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गए हैं. उनकी गाथा कारगिल युद्ध के अन्य नायकों के साथ सैन्य इतिहास में उल्लेखित की जाती है.
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छत्रपति साहू महाराज
छत्रपति शाहू महाराज (1874-1922) कोल्हापुर के राजा थे और वे भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण समाज सुधारक माने जाते हैं. उनका असली नाम यशवंतराव जाधव था. उन्होंने वर्ष 1894 -1922 तक कोल्हापुर पर शासन किया और अपने शासनकाल में अनेक सामाजिक और शैक्षिक सुधार किए.
शाहू महाराज का जन्म 26 जून 1874 को हुआ था. वे महारानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र थे. शाहू महाराज ने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए अनेक विद्यालय और कॉलेज स्थापित किए. उन्होंने सभी जातियों और वर्गों के लोगों के लिए शिक्षा के द्वार खोले. उन्होंने पिछड़े वर्गों और दलितों के लिए विशेष रूप से छात्रवृत्ति और शिक्षा के अवसर प्रदान किए.
शाहू महाराज ने जातिगत भेदभाव और ऊँच-नीच की प्रथाओं के खिलाफ कड़े कदम उठाए. उन्होंने जाति के आधार पर भेदभाव को समाप्त करने के लिए कानून बनाए और आरक्षण प्रणाली की शुरुआत की, जिससे समाज के पिछड़े वर्गों को नौकरी और शिक्षा में समान अवसर मिल सके.
उन्होंने बाल विवाह, सती प्रथा, और दहेज प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयों के खिलाफ आवाज उठाई और इन्हें समाप्त करने के लिए कार्य किए. शाहू महाराज ने कृषि सुधार, सिंचाई सुविधाओं का विकास, और गरीबों के लिए आवास योजनाओं की शुरुआत की. उन्होंने समाज के सभी वर्गों के कल्याण के लिए अनेक योजनाएं लागू कीं.
छत्रपति शाहू महाराज की विरासत आज भी भारतीय समाज में देखी जा सकती है. उन्होंने अपने कार्यों के माध्यम से यह सिद्ध किया कि एक सच्चा नेता वही होता है जो समाज के सभी वर्गों के कल्याण के लिए कार्य करे. उनके समाज सुधार के कार्यों ने भारतीय समाज में गहरे प्रभाव छोड़े और उनके प्रयासों को आज भी सम्मानित किया जाता है.
छत्रपति साहू महाराज का निधन 10 मई 1922 मुम्बई में हुआ था. शाहू महाराज ने अपने जीवनकाल में जो भी सामाजिक और शैक्षिक सुधार किए, वे आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बने रहेंगे.
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वैज्ञानिक ज्ञानेन्द्रनाथ मुखर्जी
ज्ञानेन्द्रनाथ मुखर्जी एक प्रमुख भारतीय वैज्ञानिक थे जिन्होंने रसायन शास्त्र के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया. उनका कार्य विशेष रूप से इनॉर्गेनिक केमिस्ट्री और खनिज संसाधनों के प्रयोग पर केंद्रित था. उनका जन्म 23 अप्रैल 1893 को हुआ था और उनकी मृत्यु 10 मई, 1983 को हुआ.
ज्ञानेन्द्रनाथ मुखर्जी का सबसे प्रमुख योगदान भारत में रासायनिक उद्योग के विकास में रहा है. उन्होंने कई शोध पत्रिकाओं में अपने शोध को प्रकाशित किया और वैज्ञानिक समुदाय में उनकी पहचान एक उल्लेखनीय शोधकर्ता के रूप में बनी. उनके काम ने भारत में विज्ञान के क्षेत्र में नवाचार को प्रोत्साहित किया और अन्य वैज्ञानिकों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बने.
वर्ष 1964 में उन्हें विज्ञान एवं अभियांत्रिकी के क्षेत्र में योगदान हेतु भारत सरकार द्वारा ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया गया था.
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उर्दू शायर कैफ़ी आज़मी
कैफ़ी आज़मी, उर्दू साहित्य के एक प्रमुख शायर और गीतकार थे, जिनका जन्म 14 जनवरी 1919 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले में हुआ था. उन्होंने अपने लेखन में गहरी सामाजिक चेतना का प्रदर्शन किया और अपनी कविताओं में अक्सर न्याय, गरीबी, और सामाजिक असमानताओं के विषयों को उठाया. कैफ़ी आज़मी प्रगतिशील लेखक संघ के सक्रिय सदस्य भी थे, जो उस समय के साहित्यिक आंदोलनों में प्रमुख भूमिका निभाते थे.
उनकी कविताएँ न सिर्फ उर्दू साहित्य में, बल्कि हिंदी सिनेमा में भी उनके गीतों के रूप में व्यापक प्रभाव छोड़ीं. फिल्मों में उनके लिखे कुछ प्रमुख गीतों में “कर चले हम फ़िदा” (हकीकत), “वक्त ने किया क्या हसीन सितम” (कागज़ के फूल), और “ये दुनिया ये महफिल” (हीर रांझा) शामिल हैं. उनकी रचनात्मकता और समर्पण ने उन्हें कई प्रतिष्ठित पुरस्कार दिलाए, जिनमें पद्म श्री भी शामिल है.
कैफ़ी आज़मी का 10 मई 2002 को निधन हो गया, लेकिन उनकी रचनाएँ और उनके द्वारा छोड़ी गई साहित्यिक विरासत आज भी उर्दू और हिंदी साहित्य के प्रेमियों के बीच प्रासंगिक और प्रेरणादायक बनी हुई है.
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राजनीतिज्ञ गोविन्द नारायण सिंह
गोविंद नारायण सिंह एक प्रमुख भारतीय राजनेता थे, जिन्होंने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया. वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे और अपने राजनीतिक करियर में कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे. उनका जन्म 25 जुलाई 1920, मध्य प्रदेश में हुआ था और उनकी मृत्यु 10 मई 2005 को हुआ. गोविंद नारायण सिंह का राजनीतिक कैरियर विविध और प्रभावशाली था. उन्होंने विभिन्न राजनीतिक और प्रशासनिक पदों पर काम किया.
गोविंद नारायण सिंह ने वर्ष 1967 – 69 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में सेवा की. उनकी सरकार ने कई विकास कार्य किए और राज्य के इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार के प्रयास किए. उन्होंने कई बार मध्य प्रदेश विधानसभा के सदस्य के रूप में भी कार्य किया और विधानसभा में महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस की.
गोविंद नारायण सिंह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे और उन्होंने पार्टी की विचारधारा को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. उनके कार्यकाल में मध्य प्रदेश में कई विकास परियोजनाएँ शुरू की गईं, जिनमें शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढाँचे पर विशेष ध्यान दिया गया. उन्होंने कृषि क्षेत्र में सुधार लाने के लिए कई योजनाएँ शुरू कीं, जिससे किसानों की स्थिति में सुधार हुआ. उन्होंने सामाजिक न्याय और समानता के लिए भी कार्य किया, विशेषकर पिछड़े वर्गों और अनुसूचित जातियों के लिए योजनाएँ बनाई.
गोविंद नारायण सिंह का व्यक्तिगत जीवन भी अत्यंत प्रेरणादायक था. वे एक समर्पित राजनेता थे और उन्होंने अपना जीवन समाज सेवा और राज्य के विकास के लिए समर्पित किया.
गोविंद नारायण सिंह का राजनीतिक और सामाजिक योगदान आज भी याद किया जाता है. उनके कार्यों ने मध्य प्रदेश के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और वे राज्य की राजनीति में एक प्रमुख व्यक्तित्व के रूप में सम्मानित हैं. उनके प्रयासों से प्रेरित होकर, कई युवा राजनेता आज भी समाज सेवा के क्षेत्र में कार्यरत हैं.
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अभिनेता मैक मोहन
मैक मोहन, जिनका असली नाम मोहन माखीजानी था, भारतीय सिनेमा के एक प्रसिद्ध किरदार अभिनेता थे. उनका जन्म 24 अप्रैल 1938 को कराची में हुआ था और उनका निधन 10 मई 2010 को हुआ. मैक मोहन ने अपने फिल्मी कैरियर में 200 से अधिक फिल्मों में काम किया और विशेष रूप से उन्हें उनके नेगेटिव और सहायक भूमिकाओं के लिए जाना जाता है.
मैक मोहन को सबसे अधिक प्रसिद्धि वर्ष 1975 में आई फिल्म “शोले” में उनके “सांभा” के किरदार से मिली, जो एक डाकू का रोल था और इस फिल्म में उनके कुछ संवाद बेहद लोकप्रिय हुए. उनका यह किरदार और उनके द्वारा बोले गए संवाद “पूरे पचास हज़ार” आज भी बहुत प्रसिद्ध हैं और अक्सर उद्धृत किए जाते हैं.
मैक मोहन ने अन्य फिल्मों में भी महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाईं, जैसे कि “डॉन,” “सत्ते पे सत्ता,” और “करण अर्जुन।” उनकी विशेषज्ञता नेगेटिव रोल्स में थी, जिसमें वे अपने पात्रों को जीवंत कर देते थे. मैक मोहन का कैरियर भारतीय सिनेमा में उनके विविध और यादगार प्रदर्शनों के लिए सराहा जाता है.
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संतूर वादक शिवकुमार शर्मा
पंडित शिवकुमार शर्मा एक विश्वविख्यात भारतीय संगीतकार और संतूर वादक थे, जिन्होंने इस वाद्य यंत्र को शास्त्रीय संगीत की दुनिया में एक विशिष्ट स्थान दिलाया. उनका जन्म 13 जनवरी 1938 को जम्मू में हुआ और उनका निधन 10 मई 2022 को हुआ था.
शिवकुमार शर्मा ने संतूर, जो कि मूल रूप से कश्मीर का लोक वाद्य था, को पूरे भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रतिष्ठित किया. उन्होंने इस वाद्य को ऐसे तरीके से मोडिफाई किया कि यह शास्त्रीय रागों को प्रस्तुत करने में सक्षम हो सके. उनकी इस अनूठी शैली ने संतूर को एक नई पहचान और सम्मान दिलाया.
पंडित शिवकुमार शर्मा का संगीत में योगदान सिर्फ उनके वादन तक ही सीमित नहीं था; उन्होंने कई फिल्मों के लिए भी संगीत दिया, जिसमें उन्होंने पंडित हरिप्रसाद चौरसिया के साथ मिलकर जोड़ी बनाई और ‘शिव-हरि’ के नाम से प्रसिद्ध हुए. उन्होंने ‘सिलसिला’, ‘लम्हे’ और ‘चांदनी’ जैसी प्रसिद्ध फिल्मों के लिए संगीत रचा.
पंडित शिवकुमार शर्मा को उनके कलात्मक योगदान के लिए कई सम्मानों से नवाजा गया, जिसमें पद्म श्री और पद्म विभूषण भी शामिल हैं. उनके निधन पर भारतीय संगीत जगत ने एक महान कलाकार खो दिया.