
व्यक्ति विशेष -499.
महाराणा प्रताप
महाराणा प्रताप, मेवाड़ के सिसोदिया राजवंश के 13वें राजा थे, जिनका नाम इतिहास में वीरता, शौर्य और स्वतंत्रता के प्रतीक के रूप में अमर हो गया है. उन्होंने मुगल सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार करने से साफ इनकार कर दिया था और अपने पूरे जीवनकाल में मुगलों के खिलाफ संघर्ष किया था. उनका जन्म 9 मई 1540 को कुंभलगढ़ किले में हुआ था. उन्हें बचपन में ‘कीका’ के नाम से बुलाया जाता था. वे बहुत ही शक्तिशाली थे. उनकी लंबाई 7 फीट से अधिक थी और वे 72 किलो का कवच, 81 किलो का भाला और 208 किलो की दो तलवारें आसानी से चला सकते थे.
महाराणा प्रताप और मुगल सम्राट अकबर के बीच वर्ष 1576 में हल्दीघाटी का प्रसिद्ध युद्ध हुआ था. इस युद्ध में मुगल सेना संख्या में अधिक होने बाद भी महाराणा प्रताप ने मुगलों को कड़ी टक्कर दी. युद्ध अनिर्णायक रहा और महाराणा प्रताप जीत हासिल करने में चूक गए. यह युद्ध भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण मोड़ था. इस युद्ध ने दिखाया कि एक छोटी सी सेना भी एक बड़ी सेना को कड़ी टक्कर दे सकती है. हल्दीघाटी के युद्ध के बाद, महाराणा प्रताप ने मुगलों से बचने के लिए जंगलों में शरण ली और गुरिल्ला युद्ध छेड़ दिया.
महाराणा प्रताप के पास एक विश्वासपात्र घोड़ा था जिसका नाम चेतक था. हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक ने महाराणा प्रताप को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. महाराणा प्रताप सादा जीवन जीते थे और वे दाल-बाटी और घी-मुंग की खिचड़ी खाना पसंद करते थे. महाराणा प्रताप की 11 पत्नियां थीं और उनके 17 बेटे और 5 बेटियां थीं. उनका निधन 19 जनवरी, 1597 को चावंड में हुआ था. महाराणा प्रताप को भारत में स्वतंत्रता का प्रतीक माना जाता है. उनकी वीरता और बलिदान को हमेशा याद किया जाता है. वे भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं और उनका नाम गर्व के साथ लिया जाता है.
महाराणा प्रताप एक ऐसे योद्धा थे जिन्होंने अपने पूरे जीवनकाल में मुगल साम्राज्य के खिलाफ संघर्ष किया और स्वतंत्रता के लिए लड़ते रहे. उनकी वीरता और बलिदान को हमेशा याद किया जाएगा.
========== ========= ===========
जहाँदारशाह
जहाँदारशाह किशोर, भारतीय इतिहास में मुग़ल साम्राज्य का चौथा सम्राट था. उनका पूरा नाम अबुल मुज़फ़्फ़र मुहम्मद जहाँदारशाह किशोर था. उनका राज्य काल वर्ष 1627 – 58 तक चला. जहाँदारशाह का उद्यानपुर, दिल्ली में जन्म हुआ था और उनके पिता शाहजहाँ, जहाँदारशाह के प्रारंभिक शिक्षा और तालिम का मुख्य उपाध्यक्ष रहे हैं.
जहाँदारशाह का शासन काल उस समय में हुआ जब मुग़ल साम्राज्य में बहुत सारी आंदोलन और विद्रोह हुए. उनके शासन काल में अनेक राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक संकटों का सामना किया गया. उनका शासनकाल बहुत ही विवादित था. उन्होंने अपनी अनिष्ट कार्यवाहियों के कारण जनसमूह के बीच प्रियता खो दी और उन्हें अपने पिता शाहजहाँ के तुलनात्मक रूप से कम प्रिय माना जाता है.
जहाँदारशाह का राजा बनने के बाद उन्होंने कई कठिनाइयों का सामना किया, जो उन्हें एक शक्तिशाली और स्थिर शासक बनने की प्रतीति दिलाई. लेकिन उनका अव्यवस्थित और अनियंत्रित शासन उन्हें उनके राज्य की विपत्ति में डाल दिया, और उनका शासन वर्ष 1658 में उनके विरोधियों द्वारा उत्तराधिकारी और पुत्र औरंगजेब को बाद में बदल दिया गया. जहाँदारशाह का निधन 12 फ़रवरी 1713 को दिल्ली में हुआ था.
========== ========= ===========
स्वतंत्रता सेनानी गोपाल कृष्ण गोखले
गोपाल कृष्ण गोखले एक प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक और राजनीतिक नेता थे. उन्होंने भारत में ब्रिटिश शासन के खिलाफ राष्ट्रीय जागरूकता बढ़ाने और सुधारों की पैरवी करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. गोखले भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के प्रमुख नेता थे और उनकी उदारवादी राजनीति के कारण उन्हें पार्टी के “मध्यमार्गी” खेमे का हिस्सा माना जाता था.
गोपाल कृष्ण गोखले का जन्म 9 मई 1866 को रत्नागिरी कोटलुक ग्राम में एक सामान्य परिवार में हुआ था. पिता के असामयिक निधन ने गोपालकृष्ण को बचपन से ही सहिष्णु और कर्मठ बना दिया था. गोखले का मानना था कि सामाजिक सुधार और राजनीतिक स्वतंत्रता के लिए शांतिपूर्ण और संवैधानिक तरीके अपनाए जाएं. उन्होंने वर्ष 1905 में सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी की स्थापना की, ताकि युवा भारतीयों को राष्ट्र सेवा के लिए प्रशिक्षित किया जा सके. उन्होंने महात्मा गांधी को भी बहुत प्रभावित किया, और गांधी ने उन्हें अपना राजनीतिक गुरु माना.
गोखले का भारतीय राजनीति में योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था, क्योंकि उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए वैचारिक नींव रखी, जो बाद में गांधी और अन्य नेताओं द्वारा आगे बढ़ाई गई. गोपाल कृष्ण गोखले का निधन 19 फ़रवरी 1915 को हुआ था.
========== ========= ===========
आर्यसमाजी भवानी दयाल सन्यासी
भवानी दयाल सन्यासी आर्य समाज के प्रमुख सदस्य थे, जो एक हिन्दू सुधारवादी आंदोलन है जिसकी स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने की थी. उनका जन्म 10 सितंबर, 1892 को जोहान्सबर्ग, दक्षिण अफ़्रीका में हुआ और उनका निधन 9 मई, 1959को हुआ था.
भवानी दयाल ने आर्य समाज ने वैदिक धर्म की पुनर्स्थापना, जाति प्रथा के खिलाफ लड़ाई और महिला शिक्षा के प्रसार पर जोर दिया. भवानी दयाल सन्यासी ने इन सिद्धांतों को अपनाया और अपने लेखन तथा सामाजिक कार्य के माध्यम से इन्हें बढ़ावा दिया.
भवानी दयाल ने विशेष रूप से फिजी में आर्य समाज की स्थापना में मदद की और वहाँ के भारतीय प्रवासियों के बीच शिक्षा और समाज सुधार के प्रोग्राम चलाए. उनका मानना था कि शिक्षा से ही सच्ची समाजिक परिवर्तन संभव है, और इस विश्वास के साथ उन्होंने अनेकों विद्यालयों की स्थापना में भी योगदान दिया.
उनके इस अद्वितीय योगदान के कारण उन्हें फिजी और भारतीय दियास्पोरा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है.
========== ========= ===========
निबंधकार कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर
कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ हिंदी साहित्य के एक प्रतिष्ठित निबंधकार, साहित्यकार और पत्रकार थे. उनका जन्म 29 मई 1906 को सहारनपुर ज़िले के देवबन्द ग्राम में हुआ और उनकी मृत्यु 9 मई 1995 को हुआ था.
प्रभाकर जी ने हिंदी निबंध को एक नया स्वरूप और दिशा दी. उनकी निबंध शैली सरल, प्रवाहमयी और पाठक को प्रभावित करने वाली थी. उनके निबंधों में सामाजिक, सांस्कृतिक, और मानवतावादी दृष्टिकोण प्रमुखता से देखने को मिलता है. उन्होंने हिंदी पत्रकारिता में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनके लेख नियमित रूप से प्रकाशित होते थे, जिनमें समाज और राष्ट्र की समस्याओं पर गहन चिंतन और समाधान प्रस्तुत किए जाते थे.
प्रमुख कृतियाँ: – ‘हिन्दी निबंध के विकास में मेरा योगदान’ , ‘प्रभाकर के निबंध’ और ‘हिन्दी निबंधकार’.
प्रभाकर जी ने साहित्यिक संस्थानों और संगठनों में भी सक्रिय भूमिका निभाई और हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’ का लेखन केवल साहित्यिक मनोरंजन के लिए नहीं था, बल्कि वे समाज सुधारक की भूमिका में भी थे. उनकी लेखनी में समाज की समस्याओं का गहन विश्लेषण और उनके समाधान के प्रयास दिखाई देते हैं. उनका योगदान हिंदी साहित्य के लिए अमूल्य है और उनकी रचनाएँ आज भी प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं.
========== ========= ===========
गजल गायक तलत महमूद
तलत महमूद भारतीय संगीत जगत के एक गजल गायक और पार्श्व गायक थे. उनका जन्म 24 फरवरी 1924 को लखनऊ, भारत में हुआ था. तलत महमूद को उनकी मखमली आवाज और गहरे भावपूर्ण गायन के लिए जाना जाता है, जिसने गजल गायन की शैली को नई पहचान दी.
तलत महमूद ने वर्ष 1940 के दशक में अपने गायन कैरियर की शुरुआत की और जल्द ही हिंदी सिनेमा में एक लोकप्रिय प्लेबैक सिंगर के रूप में स्थापित हो गए. उन्होंने अपने कैरियर के दौरान अनेक हिट गाने गाए जिनमें ‘ऐ दिल मुझे आजीद कहीं ले चल’, ‘जलते हैं जिसके लिए’, और ‘तस्वीर बनाता हूँ’ जैसे गाने शामिल हैं. उनकी आवाज में एक खास किस्म की कोमलता और भावुकता थी, जो उनके गानों को और भी अधिक प्रभावशाली बनाती थी.
तलत महमूद ने न केवल फिल्मों में अपनी आवाज दी, बल्कि उन्होंने कई निजी एलबम भी रिलीज किए, जिनमें उन्होंने गजलें और गीत प्रस्तुत किए. उनके द्वारा गायी गई गजलें आज भी लोगों के बीच लोकप्रिय हैं और उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी आवाज संगीत प्रेमियों के दिलों में जिंदा है. तलत महमूद का देहांत 9 मई 1998 को हुआ, लेकिन उनका संगीत अब भी उनके प्रशंसकों के बीच में गूंजता रहता है.