
व्यक्ति विशेष – 487.
अभिनेत्री ज़ोहरा सहगल
ज़ोहरा सहगल भारतीय सिनेमा और थिएटर की एक प्रतिष्ठित अभिनेत्री थीं, जिन्होंने अपने लम्बे और समृद्ध कैरियर के दौरान विभिन्न माध्यमों में काम किया। वे एक बहुमुखी कलाकार थीं और उनके योगदान को भारतीय कला और संस्कृति में हमेशा याद किया जाएगा.
ज़ोहरा सहगल का जन्म 27 अप्रैल 1912, सहारनपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ था और उनकी मृत्यु 10 जुलाई 2014 को नई दिल्ली में हुआ. उनका पूरा नाम साहिबजादी ज़ोहरा बेगम मुमताज़ुल्ला खान था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा क्वीन मैरी कॉलेज, लाहौर से प्राप्त की और बाद में जर्मनी में मैरी विगमैन के साथ बैले का अध्ययन किया।
ज़ोहरा सहगल ने अपने कैरियर की शुरुआत उदय शंकर के डांस ट्रूप से की, जो भारतीय नृत्य और संस्कृति को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुत करता था. उन्होंने पृथ्वीराज कपूर के पृथ्वी थिएटर के साथ भी काम किया, जहाँ उन्होंने विभिन्न नाटकों में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाईं.
फ़िल्में: –
नीचा नगर (1946): – इस फिल्म ने कान्स फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कार जीता और ज़ोहरा सहगल की पहचान बढ़ी.
भाजी ऑन द बीच (1993): –
दिल से (1998): – इस फिल्म में उन्होंने शाहरुख खान की दादी की भूमिका निभाई.
हम दिल दे चुके सनम (1999): – इस फिल्म में भी उन्होंने अहम भूमिका निभाई.
चीनी कम (2007): – इस फिल्म में अमिताभ बच्चन के साथ उनकी जोड़ी को खूब सराहा गया.
ज़ोहरा सहगल ने कई टेलीविजन धारावाहिकों में भी काम किया, जिनमें “अमृतसर आ जा रहा है” और “मुल्ला नसरुद्दीन” शामिल हैं.
ज़ोहरा सहगल को कई सम्मानों से सम्मानित किया गया. उन्हें वर्ष 1998 में भारत सरकार द्वारा ‘पद्म श्री’ सम्मान से सम्मानित किया गया. वर्ष 2002 में ‘पद्म भूषण’, वर्ष 2010 में ‘पद्म विभूषण’ सम्मान से सम्मानित किया गया. जोहरा सगल को वर्ष 1963 में थिएटर में उनके योगदान के लिए संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सममिनित किया गया.
ज़ोहरा सहगल की शादी कमरउद्दीन शाह से हुई थी, जिनसे उन्हें दो बच्चे थे. वे अपने ऊर्जावान और ज़िंदादिल व्यक्तित्व के लिए जानी जाती थीं. ज़ोहरा सहगल का कैरियर सात दशकों तक फैला रहा और उन्होंने भारतीय सिनेमा और थिएटर में अपनी अमिट छाप छोड़ी. उनके योगदान और समर्पण ने उन्हें एक महान कलाकार के रूप में स्थापित किया और उनकी कला और विरासत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा स्रोत बनी रहेगी.
ज़ोहरा सहगल का जीवन और कैरियर प्रेरणादायक है, और उन्होंने भारतीय कला और संस्कृति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है. उनकी अद्वितीय प्रतिभा और समर्पण के कारण वे हमेशा याद की जाएंगी.
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स्वतन्त्रता सेनानी मनीभाई देसाई
मनीभाई देसाई एक प्रमुख भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और समाज सेवक थे. उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान दिया और बाद में स्वतंत्र भारत में सामाजिक उन्नयन और ग्रामीण विकास के प्रयासों में भी अग्रणी भूमिका निभाई.
मनीभाई देसाई का जन्म 27 अप्रैल 1920 को सूरत, गुजरात में उनके गाँव कोस्मादा में हुआ था, और उन्होंने गांधीजी के नेतृत्व में आयोजित विभिन्न आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया. वे खादी और ग्रामोद्योग के प्रमोटर थे, जो स्वदेशी के आदर्शों को बढ़ावा देने में लगे रहे.
स्वतंत्रता के बाद, उन्होंने ग्रामीण विकास पर विशेष जोर दिया और कई विकासात्मक परियोजनाओं की स्थापना की, जिनमें शिक्षा, स्वास्थ्य और कृषि में सुधार शामिल हैं. मनीभाई देसाई का निधन वर्ष 1993 में हुआ था. उनकी विरासत भारत में ग्रामीण विकास और समुदाय निर्माण में उनके अथक प्रयासों में देखी जा सकती है.
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स्वामी विश्वेशतीर्थ
स्वामी विश्वेशतीर्थ एक प्रमुख हिन्दू संत और धार्मिक नेता थे, जिन्होंने उडुपी के पेजावर मठ के पीठाधिपति के रूप में सेवा की. वे विशेष रूप से मध्वाचार्य की द्वैत वेदांत दर्शन के अनुयायी थे. उनका जन्म 27 अप्रैल, 1931 को कर्नाटक के रामाकुंज में एक शिवाली मध्व ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनका वास्तविक नाम वेंकटरामा था. स्वामी विश्वेशतीर्थ ने महज सात वर्ष की उम्र में संन्यास धारण किया था. इनकी शिक्षा श्री भंडारकेरी मठ और पलिमारु मठ के गुरु श्री विद्यामान्या तीर्थ से ली थी.
भारत में उन्होंने कई धार्मिक स्थलों पर ऐसे मठों का निर्माण किया. अयोध्या में राम जन्मभूमि आंदोलन से लेकर गौ संरक्षण के मुद्दों को भी स्वामी ने जमकर समर्थन किया था. पीएम मोदी के अध्यात्मिक गुरु माने जाते हैं स्वामी विश्वेशतीर्थ. उन्होंने धार्मिक शिक्षा, समाज सेवा और हिन्दू धर्म के प्रचार-प्रसार में बड़ा योगदान दिया.
उन्होंने विभिन्न धार्मिक और सामाजिक मुद्दों पर अपनी विचारशीलता और सक्रियता के माध्यम से पहचान बनाई. वे आध्यात्मिक उत्थान के साथ-साथ सामाजिक न्याय और समरसता के लिए भी प्रयासरत रहे. स्वामी विश्वेशतीर्थ का निधन 2019 में हुआ, लेकिन उनकी शिक्षाएँ और उनके द्वारा किए गए कार्य समाज में आज भी प्रेरणा के स्रोत हैं.
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अभिनेता विनोद खन्ना
विनोद खन्ना एक प्रसिद्ध भारतीय अभिनेता थे जिन्होंने वर्ष 1970 – 80 के दशक में बॉलीवुड में अपना एक विशेष स्थान बनाया. उन्हें उनके आकर्षक व्यक्तित्व और शक्तिशाली अभिनय कौशल के लिए जाना जाता है. विनोद खन्ना का जन्म 6 अक्टूबर, 1946 में पेशावर, पाकिस्तान में हुआ था और उनकी मृत्यु 27 अप्रैल, 2017 को हुआ था.
विनोद खन्ना ने अपने कैरियर की शुरुआत 1968 में फिल्म “मन का मीत” से की थी. उन्होंने कई हिट फिल्मों में काम किया जैसे कि “मेरे अपने”, “मेरा गांव मेरा देश”, “इम्तिहान”, और “अमर अकबर एंथोनी”.
विनोद खन्ना ने न केवल नायक के रूप में बल्कि कई फिल्मों में खलनायक के रूप में भी उत्कृष्ट प्रदर्शन किया. उन्होंने अपने अभिनय कैरियर के चरम पर आध्यात्मिकता की ओर रुख किया और कुछ समय के लिए फिल्म जगत से दूर रहे. बाद में उन्होंने फिल्मों में वापसी की और कई और सफल फिल्में दीं. विनोद खन्ना ने राजनीति में भी अपना कैरियर बनाया और भारतीय जनता पार्टी के सदस्य के रूप में चार बार सांसद भी रहे.
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अभिनेता और फ़िल्म निर्माता-निर्देशक फ़िरोज़ ख़ान
फ़िरोज़ ख़ान भारतीय सिनेमा के एक ऐसे दिग्गज कलाकार और दूरदर्शी फिल्म निर्माता-निर्देशक थे जिन्होंने अपने विशिष्ट अंदाज़, दमदार अभिनय और भव्य फिल्म निर्माण शैली से दर्शकों को दीवाना बनाया. उनका करिश्माई व्यक्तित्व, बेबाक अंदाज़ और जोखिम लेने की क्षमता उन्हें हिंदी सिनेमा में एक अलग पहचान दिलाती है. उन्होंने न केवल एक अभिनेता के रूप में अपनी छाप छोड़ी, बल्कि एक निर्माता-निर्देशक के तौर पर भी कई यादगार फिल्में दीं.
फ़िरोज़ ख़ान का जन्म 25 सितंबर, 1939 को बैंगलोर में एक पठान परिवार में हुआ था. इनका वास्तविक नाम ज़ियाउद्दीन ख़ान था. उनके पिता अफ़ग़ानी और माता ईरानी थीं. उनकी शुरुआती शिक्षा बैंगलोर में हुई. फ़िरोज़ ने अपने कैरियर की शुरुआत वर्ष 1960 में फ़िल्म ‘दीदी’ से की. उन्होंने अपने अभिनय और निर्देशन के माध्यम से हिंदी सिनेमा में एक अलग पहचान बनाई। शुरुआत में उन्हें कई छोटी भूमिकाएँ मिलीं, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने अपनी अलग पहचान बनाना शुरू कर दिया।
वर्ष 1960 – 70 के दशक में उन्होंने कई सफल फिल्मों में काम किया, जिनमें ‘सफर’, ‘मेला’, ‘आदमी और इंसान’, ‘धर्मात्मा’, ‘खोटे सिक्के’ और ‘काला सोना’ जैसी फिल्में शामिल हैं. फ़िरोज़ ख़ान अपनी ऑन-स्क्रीन उपस्थिति और स्वैग के लिए जाने जाते थे. उनका बोलने का तरीका, कपड़ों का चयन और आत्मविश्वास उन्हें अन्य अभिनेताओं से अलग करता था. वे अक्सर एक्शन और थ्रिलर फिल्मों में दमदार भूमिकाओं में नज़र आते थे. ‘धर्मात्मा’ (1975), जो हॉलीवुड फिल्म ‘द गॉडफादर’ से प्रेरित थी, उनके कैरियर की एक महत्वपूर्ण फिल्म साबित हुई. इस फिल्म में न केवल उन्होंने अभिनय किया, बल्कि इसका निर्देशन और निर्माण भी उन्होंने ही किया था.
फ़िरोज़ ख़ान ने वर्ष 1965 में सुंदरी के साथ शादी की, लेकिन वर्ष 1985 में उनका तलाक हो गया. उनके बेटे फ़रदीन ख़ान भी अभिनेता हैं. फ़िरोज़ ख़ान हॉलीवुड अभिनेता क्लिंट ईस्टवुड से प्रभावित थे. 27 अप्रैल, 2009 को कैंसर से लंबी लड़ाई के बाद उनका निधन हुआ था.
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राजनीतिज्ञ हरीश रावत
हरीश रावत एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ हैं, जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी से जुड़े हुए हैं. उनका जन्म 27 अप्रैल 1948 को उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में हुआ था. वे उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में वर्ष 2014 – 17 तक कार्यरत रहे. इसके अलावा, उन्होंने केंद्रीय जल संसाधन मंत्री और अन्य महत्वपूर्ण पदों पर भी कार्य किया है.
हरीश रावत ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत गांव स्तर की राजनीति से की और बाद में भारतीय संसद के सदस्य बने. वे पांच बार लोकसभा सांसद रह चुके हैं और राज्यसभा के सदस्य के रूप में भी कार्य कर चुके हैं.
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अभिनेता एवं राजनीतिज्ञ विनोद खन्ना
विनोद खन्ना भारतीय सिनेमा के एक ऐसे दिग्गज कलाकार थे जिन्होंने अपनी दमदार अभिनय क्षमता और आकर्षक व्यक्तित्व से दर्शकों के दिलों पर दशकों तक राज किया। सिर्फ फिल्मी पर्दे पर ही नहीं, बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई। उनका जीवन एक प्रेरणादायक सफर रहा, जिसमें सफलता, आध्यात्मिकता और समाज सेवा का अनूठा संगम देखने को मिलता है.
विनोद खन्ना का जन्म 6 अक्टूबर, 1946 को पेशावर (अब पाकिस्तान) में जन्मे विनोद खन्ना का परिवार विभाजन के बाद मुंबई आ गया. उनकी शुरुआती शिक्षा नासिक के एक बोर्डिंग स्कूल और बाद में मुंबई के सिडेनहैम कॉलेज में हुई. फिल्मों में उनकी कोई विशेष रुचि नहीं थी, लेकिन एक पार्टी में उनकी मुलाकात अभिनेता सुनील दत्त से हुई, जिन्होंने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें वर्ष 1968 में अपनी फिल्म ‘मन का मीत’ में एक खलनायक की भूमिका निभाने का अवसर दिया था.
उन्होंने शुरुआत में खलनायक की भूमिकाएं निभाईं, लेकिन जल्द ही मुख्यधारा के हीरो बन गए. उनकी प्रमुख फिल्मों में “अमर अकबर एंथनी,” “मुकद्दर का सिकंदर,” “कुर्बानी,” और “दयावान” शामिल हैं. वर्ष 1982 में, उन्होंने आध्यात्मिक गुरु ओशो के अनुयायी बनने के लिए फिल्म इंडस्ट्री छोड़ दी, लेकिन वर्ष 1987 में “इंसाफ” फिल्म के साथ वापसी की.
विनोद खन्ना ने वर्ष 1997 में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) में शामिल होकर राजनीति में कदम रखा. वे पंजाब के गुरदासपुर क्षेत्र से लोकसभा सांसद चुने गए. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में उन्होंने पर्यटन और संस्कृति मंत्री के रूप में कार्य किया। बाद में उन्हें विदेश राज्य मंत्री की जिम्मेदारी भी दी गई.
विनोद खन्ना ने दो विवाह किए. उनकी पहली पत्नी गीतांजलि थीं, जिनसे उनका तलाक हो गया. बाद में उन्होंने कविता से शादी की. उनके चार बच्चे हैं: अक्षय खन्ना, राहुल खन्ना, साक्षी खन्ना और श्रद्धा खन्ना. उनका निधन 27 अप्रैल 2017 को कैंसर के कारण हुआ था. वे भारतीय सिनेमा के इतिहास में हमेशा एक महान कलाकार और एक प्रेरणादायक व्यक्तित्व के रूप में याद किए जाएँगे. उनकी फिल्में और उनके विचार आज भी लोगों को प्रेरित करते हैं.