
व्यक्ति विशेष – 486.
पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी…
पण्डित गुरुदत्त विद्यार्थी भारतीय आर्य समाज के प्रमुख नेता और स्वामी दयानंद सरस्वती के शिष्य थे. उनका जन्म 26 अप्रैल 1864 को ब्रिटिश भारत के मुल्तान में हुआ था. वे अत्यंत मेधावी और वैरागी प्रकृति के व्यक्ति थे. उन्होंने विज्ञान में एम.ए. की शिक्षा प्राप्त की और आर्य समाज के उद्देश्यों से प्रभावित होकर आस्तिक बन गए.
गुरुदत्त विद्यार्थी ने महर्षि दयानंद के निधन के बाद उनकी स्मृति में ‘दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज’ की स्थापना का प्रस्ताव रखा. उनके प्रयासों से लाहौर में डी.ए.वी स्कूल की स्थापना हुई. वे वैदिक धर्म और संस्कृत के प्रचार-प्रसार में अग्रणी थे. उन्होंने उपनिषदों का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया और वैदिक साहित्य पर गहन शोध किया.
उनका जीवन वैदिक धर्म, सामाजिक सुधार और ज्ञान के प्रचार में समर्पित था. मात्र 26 वर्ष की आयु में 19 मार्च, 1890 को उनका निधन हो गया, लेकिन इतने कम समय में उन्होंने अपनी विद्वता और कार्यों से अमिट छाप छोड़ी.
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स्वतंत्रता सेनानी कृष्ण चन्द्र गजपति
कृष्ण चन्द्र गजपति नारायण देव, जिन्हें महाराजा सर कृष्ण चन्द्र गजपति नारायण देव के नाम से भी जाना जाता है, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सेनानी और ओडिशा राज्य के निर्माण के वास्तुकार थे. उनका जन्म 26 अप्रैल 1892 को परलाखेमुंडी में हुआ था. वे पूर्वी गंगा राजवंश के वंशज थे और ओडिशा के पहले प्रीमियर (प्रधानमंत्री) बने.
गजपति ने ओडिशा के उत्कल सम्मिलनी के साथ मिलकर उड़िया भाषी क्षेत्रों के लिए एक अलग राज्य की मांग की. उनके प्रयासों से 1 अप्रैल 1936 को ओडिशा राज्य का गठन हुआ, जिसे आज भी उत्कल दिवस के रूप में मनाया जाता है. वे वर्ष 1937 और वर्ष 1941 में ओडिशा के प्रीमियर के रूप में कार्यरत रहे.
उन्होंने सामाजिक और शैक्षिक सुधारों में भी योगदान दिया. उत्कल विश्वविद्यालय, एससीबी मेडिकल कॉलेज, और कई अन्य संस्थानों की स्थापना में उनकी भूमिका रही. उन्होंने कृषि, चिकित्सा, और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय कार्य किए.
उनकी सेवाओं के लिए उन्हें नाइट कमांडर ऑफ़ द ऑर्डर ऑफ़ द इंडियन एम्पायर (KCIE) की उपाधि से सम्मानित किया गया. उनका निधन 25 मई 1974 को हुआ, लेकिन उनके योगदान को आज भी याद किया जाता है.
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अभिनेत्री मीनू मुमताज़
मीनू मुमताज़, जिनका असली नाम मालिकाउन्निसा अली था, भारतीय सिनेमा की एक प्रसिद्ध अभिनेत्री और डांसर थीं. उनका जन्म 26 अप्रैल, 1942 को बंबई (अब मुंबई) में हुआ था. वे मशहूर कॉमेडियन महमूद अली की बहन थीं और मीना कुमारी ने उन्हें “मीनू मुमताज़” नाम दिया था.
मीनू मुमताज़ ने वर्ष 1950 – 60 के दशक में कई हिंदी फिल्मों में काम किया. उनकी पहली फिल्म ‘सखी हातिम’ थी, जिसमें उन्होंने बलराज साहनी के साथ अभिनय किया. उन्होंने गुरुदत्त के साथ ‘कागज के फूल’, ‘चौदहवीं का चांद’, और ‘साहिब बीवी और गुलाम’ जैसी फिल्मों में काम किया. उनकी अन्य प्रमुख फिल्मों में ‘ताजमहल’, ‘घूंघट’, ‘इंसान जाग उठा’, और ‘घर बसाके देखो’ शामिल हैं.
मीनू मुमताज़ ने अपने अभिनय और नृत्य से दर्शकों का दिल जीता. वे एक कैरेक्टर आर्टिस्ट के रूप में भी जानी जाती थीं. उन्होंने निर्देशक सैयद अली अकबर से शादी की और उनके चार बच्चे थे. 23 अक्टूबर, 2021 को कनाडा में उनका निधन हो गया. वे लंबे समय से बीमार थीं और कनाडा में ही रह रही थीं. मीनू मुमताज़ का योगदान भारतीय सिनेमा में अमूल्य है और उन्हें हमेशा याद किया जाएगा.
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फ़िल्म निर्देशक नितिन बोस
नितिन बोस भारतीय सिनेमा के प्रारंभिक युग के महान फ़िल्म निर्देशक, छायाकार और पटकथा लेखक थे. उनका जन्म 26 अप्रैल, 1897 को कोलकाता में हुआ था. वे ‘न्यू थियेटर्स’ के प्रमुख सदस्य थे और भारतीय सिनेमा में पार्श्व गायन की शुरुआत करने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा. उनकी बंगाली फ़िल्म ‘भाग्य चक्र’ (1935) और उसका हिंदी संस्करण ‘धूप छाँव’ भारतीय सिनेमा में पार्श्व गायन की शुरुआत के लिए जानी जाती हैं.
नितिन बोस ने अपने कैरियर में 50 से अधिक फ़िल्मों का निर्देशन किया, जिनमें ‘गंगा-जमुना’, ‘चंडीदास’, ‘धूप छाँव’, और ‘दीदार’ जैसी कालजयी फ़िल्में शामिल हैं. उनकी फ़िल्म ‘गंगा-जमुना’ को हिंदी सिनेमा की सबसे बड़ी फ़िल्मों में से एक माना जाता है. इस फ़िल्म का प्रसिद्ध गीत “इंसाफ की डगर पे” नई पीढ़ी को उसके दायित्वों का अहसास कराने वाला था.
उनके विशिष्ट योगदान के लिए उन्हें वर्ष 1977 में ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया. नितिन बोस का निधन 14 अप्रैल, 1986 को कोलकाता में हुआ. उनका जीवन और कार्य भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमूल्य योगदान के रूप में दर्ज है.
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जूडो खिलाड़ी विजय कुमार यादव
विजय कुमार यादव भारतीय जूडो खिलाड़ी हैं, जिन्होंने अपने खेल कौशल और समर्पण से देश का नाम रोशन किया है. उनका जन्म 26 अप्रैल, 1996 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के महरिया गांव में हुआ. विजय ने अपने जूडो कैरियर की शुरुआत उत्तर प्रदेश क्षेत्रीय खेल स्टेडियम से की और भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के लखनऊ केंद्र में प्रशिक्षण प्राप्त किया.
विजय कुमार यादव ने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया. उन्होंने वर्ष 2022 में बर्मिंघम में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में पुरुषों के 60 किलोग्राम वर्ग में कांस्य पदक जीता. इसके अलावा, उन्होंने वर्ष 2019 में साउथ एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक और कई अन्य प्रतियोगिताओं में पदक जीते हैं. उनकी सफलता की कहानी उनके संघर्ष और मेहनत का प्रमाण है. विजय ने आर्थिक कठिनाइयों के बावजूद अपने सपनों को साकार किया. उनके परिवार की स्थिति अच्छी नहीं थी, लेकिन उन्होंने अपने भाई और कोच के सहयोग से अपने खेल को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया.
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गणितज्ञ श्रीनिवास अयंगर रामानुजन
श्रीनिवास अयंगर रामानुजन भारतीय गणित के इतिहास में एक अद्वितीय नाम हैं. उनका जन्म 22 दिसंबर, 1887 को तमिलनाडु के इरोड गांव में हुआ था. बचपन से ही उनकी गणित में गहरी रुचि थी. उन्होंने बिना किसी औपचारिक शिक्षा के गणित के क्षेत्र में असाधारण योगदान दिया.
रामानुजन ने गणित के 3,884 प्रमेयों का संकलन किया, जिनमें से अधिकांश को सही सिद्ध किया जा चुका है. उनकी खोजें संख्या सिद्धांत, गणितीय विश्लेषण, और निरंतर भिन्नों के क्षेत्रों में थीं. उनके कार्यों ने गणित के क्षेत्र में नई दिशाएं प्रदान कीं. वर्ष 1913 में, उन्होंने ब्रिटिश गणितज्ञ जी. एच. हार्डी को अपने शोध पत्र भेजे, जिससे उनकी प्रतिभा को पहचान मिली. हार्डी ने उन्हें कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय बुलाया, जहां उन्होंने कई महत्वपूर्ण गणितीय खोजें कीं.
रामानुजन का जीवन संघर्षों से भरा था. वे स्वास्थ्य समस्याओं से जूझते रहे और 26 अप्रैल, 1920 को मात्र 32 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया. उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए भारत में उनके जन्मदिन को “राष्ट्रीय गणित दिवस” के रूप में मनाया जाता है.
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संगीतकार शंकर
शंकर सिंह रघुवंशी, जिन्हें शंकर के नाम से जाना जाता है, भारतीय सिनेमा के प्रसिद्ध संगीतकार थे. उनका जन्म 15 अक्टूबर, 1922 को हैदराबाद में हुआ था. वे मध्य प्रदेश के मूल निवासी थे, लेकिन उनके पिता काम के सिलसिले में हैदराबाद में बस गए थे. शंकर ने बचपन में ही संगीत में रुचि विकसित की और तबला वादन में महारत हासिल की.
शंकर ने जयकिशन के साथ मिलकर एक प्रसिद्ध संगीतकार जोड़ी बनाई, जिसे “शंकर-जयकिशन” के नाम से जाना जाता है. इस जोड़ी ने हिंदी सिनेमा में लगभग दो दशक तक संगीत की दुनिया पर राज किया. उनकी धुनें जैसे “हवा में उड़ता जाए मेरा लाल दुपट्टा” और “जिया बेकरार है” आज भी लोकप्रिय हैं.
शंकर ने पृथ्वी थियेटर्स में तबला वादक के रूप में काम किया और वहीं से उनकी संगीत यात्रा शुरू हुई. उन्होंने राज कपूर की फ़िल्म ‘बरसात’ के लिए संगीत दिया, जिसने उन्हें प्रसिद्धि दिलाई. शंकर-जयकिशन ने लगभग 170 फ़िल्मों में संगीत दिया और नौ बार फ़िल्म फेयर पुरस्कार जीता. शंकर का निधन 26 अप्रैल, 1987 को मुंबई में हुआ. उनकी संगीत यात्रा और योगदान भारतीय सिनेमा के इतिहास में अमूल्य हैं.