
उस दिन के बाद, रामदीन का हौसला कुछ बढ़ा. उसने उस भले आदमी से मिलकर धन्यवाद दिया और उनसे कुछ काम दिलाने की विनती की. उस आदमी ने रामदीन की ईमानदारी और मेहनत देखकर उसे अपने यहाँ शहर में एक छोटा सा काम दिला दिया.
रामदीन अब हर रोज शहर जाता और मजदूरी करके कुछ पैसे कमाता. वह आधा पैसा घर भेजता और आधे से अपना गुजारा करता. सीता भी घर पर दूसरों के खेतों में काम करके थोड़ी सी मदद करती थी.
उनके बच्चों को अब हर रोज भूखा नहीं सोना पड़ता था. मोहन और सोहन अब थोड़े खुश रहने लगे थे, और उनकी आँखों से डर कुछ कम हुआ था.
लेकिन गरीबी की जड़ें बहुत गहरी थीं. गाँव में अभी भी कई परिवार भूखे थे, और रामदीन जानता था कि उसे सिर्फ अपने परिवार के बारे में नहीं सोचना है.
उसने गाँव के दूसरे लोगों से बात की. उन्होंने मिलकर एक समिति बनाई, जिसका मकसद गाँव में रोजगार के अवसर पैदा करना था. उन्होंने सरकार से मदद की गुहार लगाई और स्थानीय अधिकारियों से मिलकर गाँव की हालत बताई.
यह आसान नहीं था। उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा. अधिकारियों ने उनकी बातों को अनसुना कर दिया, और गाँव के कुछ अमीर लोग उनके प्रयासों का विरोध करने लगे. लेकिन रामदीन और गाँव के दूसरे लोगों ने हार नहीं मानी.
उन्होंने एकजुट होकर संघर्ष जारी रखा. उन्होंने छोटे-छोटे काम शुरू किए, जैसे मिट्टी के बर्तन बनाना और उन्हें शहर में बेचना. उन्होंने मिलकर गाँव के तालाब को साफ किया ताकि सिंचाई के लिए पानी मिल सके.
धीरे-धीरे, उनकी मेहनत रंग लाने लगी. गाँव में थोड़ी सी हरियाली लौटने लगी, और लोगों को काम मिलने लगा. भूख की बेबसी अब पहले जैसी भयानक नहीं थी, लेकिन यह अभी भी मौजूद थी, और उन्हें अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना था.
शेष भाग अगले अंक में…,