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बेबसी… भूख की.

अध्याय 3: उम्मीद की एक किरण

पूरा दिन भटकने के बाद भी रामदीन को कोई काम नहीं मिला। शाम हो चुकी थी, और वह थका-हारा और निराश होकर वापस गाँव की ओर चल पड़ा. उसके हाथ खाली थे, और उसका दिल भारी था। वह अपने बच्चों और पत्नी को क्या जवाब देगा?

जब वह अपनी झोपड़ी के पास पहुँचा, तो उसने देखा कि बाहर कुछ लोग जमा हैं. उसे डर लगा कि कहीं कोई बुरी खबर न हो. लेकिन जैसे ही वह करीब पहुँचा, उसने सीता को देखा, उसकी आँखों में आँसू थे, लेकिन वे खुशी के आँसू थे.

“क्या हुआ?” रामदीन ने घबराकर पूछा.

“एक भले आदमी आए थे,” सीता ने कहा, उसकी आवाज में कृतज्ञता थी. “उन्होंने हमें कुछ अनाज और पैसे दिए हैं.”

रामदीन ने देखा कि झोपड़ी के बाहर अनाज की एक छोटी सी बोरी और कुछ रुपये रखे हुए थे. उसकी आँखों में भी आँसू आ गए. इस अँधेरी रात में, कहीं से उम्मीद की एक किरण फूट पड़ी थी.

पता चला कि वह भला आदमी गाँव का ही एक पुराना निवासी था, जो शहर में सफल हो गया था और अपनी जड़ों को नहीं भूला था. उसने गाँव के गरीब लोगों की हालत सुनी तो मदद के लिए दौड़ा चला आया.

उस रात रामदीन और उसके परिवार ने भरपेट खाना खाया. बरसों बाद उनके चेहरे पर थोड़ी सी मुस्कान लौटी थी. लेकिन रामदीन जानता था कि यह सिर्फ एक शुरुआत है. भूख की बेबसी अभी भी गाँव में पसरी हुई थी, और उन्हें इस गरीबी से लड़ने के लिए और भी बहुत कुछ करना होगा.

शेष भाग अगले अंक में…,

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