नेपाल…
वर्ष 2008 में आज ही के दिन नेपाल में 240 सालों से चली आ रही राजशाही का अंत हुआ. करीब दस साल तक चले गृहयुद्ध के बाद देश में शाह राजवंश के हाथों से देश की सत्ता छूट गयी. इसके बाद से माओवादी हथियार छोड़ देश की राजनीति में उतर आए.
बताते चलें कि, प्राचीन काल में नेपाल की बागडोर गुप्तवंश से शुरू होकर कई सूर्यवंशी राजाओं के हाथों में रही. किरातवंशी राजा स्थुंको, सोमवंशी लिच्छवी, राजा मानदेव, राजा अंशुवर्मा के राज्यकाल में कला, शिक्षा, वैभव के साथ-साथ राजनीति के दृष्टिकोण से लिच्छवि काल ‘स्वर्णयुग’ रहा है. इस काल में आम लोग भी संस्कृत भाषा में लिख पढ़ और बोल सकते थे. राजा स्वयं भी विद्वान् और संस्कृत भाषा के मर्मज्ञ होते थे. इस काल में ‘पैगोडा’ शैली की वास्तुकला बड़ी उन्नत दशा में थी और यह कला सुदूर चीन तक फैली हुई थी साथ ही मूर्तिकला भी समृद्ध अवस्था में थी.
इस काल में काफी वजनदार स्वर्ण मुद्राएं व्यवहार में प्रचलित थीं. विदेशों से व्यापार करने के लिए व्यापारियों का अपना संगठन था. वैदेशिक संबंध की सुदृढ़ता वैवाहिक संबंध के आधार पर कायम थी. वर्ष 880 में लिच्छवि राज्य की समाप्ति के बाद मल्ल राजा सिर उठाने लगे थे.
वर्ष 1350 ई. में बंगाल के शासक शमशुद्दीन इलियास ने नेपाल पर बड़ा जबरदस्त आक्रमण किया जिसके बाद धार्मिक, सामाजिक, राजनीतिक व्यवस्था टूट के कगार पर पहुँच गई. जिसके बाद वर्ष 1480 ई. में अंतिम वैश राजा अर्जुन देव अथवा अर्जुन मल्ल देव को उनके मंत्रियों ने पदच्युत करके ‘स्थितिमल्ल’ नामक राजपूत को राजसिंहासन पर बैठाया. इस समय तक केंद्रीय राज्य पूर्ण रूप से छिन्न-भिन्न होकर काठमाडों, गोरखा, तनहुँ, लमजुङ, मकबानपुर आदि लगभग तीस रियासतों में विभाजित हो गया था.
नेपाली राज परिवार व भारदारो के बीच गुटबन्दी की वजह से युद्ध हुआ जिसके बाद अस्थायित्व कायम हुआ. वर्ष 1846 में शासन कर रही रानी की सेनानायक जंगबहादुर राणा को पदच्युत करने षडयन्त्र की खुलासा होने से ‘कोत पर्व’ नाम का नरसंहार हुआ तह. हथियारधारी सेना व रानी के प्रति वफादार भारदारो के बीच मार काट चलने से देश के कई रजवाडो की हत्या हुई. जंगबहादुर की जीत के बाद राणा वंश का शुरुआत कर राणा शासन लागू किया. राजा को नाममात्र में सीमित करके प्रधानमन्त्री पद को शक्तिशाली और वंशानुगत किया गया. राणा शासक पूर्णनिष्ठा के साथ ब्रिटिस के पक्ष में रहते थे साथ ही ब्रिटिश शासक को वर्ष 1857 की सेपोई रेबेल्योन (प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम), व बादमे दोनों विश्व युद्ध सहयोग किया था.
वर्ष 1923 मे संयुक्त अधिराज्य व नेपाल विच आधिकारिक रुप मे मित्रता की सम्झौता मे हस्ताक्षर हुआ, जिसके बाद नेपाल की स्वतन्त्रता को संयुक्त अधिराज्य ने स्वीकार किया. दक्षिण एशियाई मुल्कों में पहला, नेपाली राजदुतावास ब्रिटेन की राजधानी लंदन में खुला. इक्कसवीं सदी की शुरुआत होने के बाद नेपाल में माओवादियों का आन्दोलन तेज होता गया साथ ही मधेशियों के मुद्दे पर भी आन्दोलन हुए. अन्त में वर्ष 2008 में राजा ज्ञानेन्द्र ने प्रजातांत्रिक चुनाव करवाए जिसमें माओवादियों को बहुमत मिला और ‘प्रचण्ड’ नेपाल के प्रधानमंत्री बने और मधेशी नेता रामबरन यादव ने राष्ट्रपति का कार्यभार संभाला.
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Nepal…
On this day in the year 2008, the monarchy which had been running for 240 years came to an end in Nepal. After the civil war that lasted for about ten years, the power of the country was left out of the hands of the Shah dynasty. After this, Maoists left their arms and entered the politics of the country.
Let us tell that, starting from the Gupta dynasty, the reins of Nepal remained in the hands of many Suryavanshi kings in ancient times. During the reign of Kiratvanshi King Sthunko, Somvanshi Lichchavi, King Mandev, and King Anshuvarma, the Lichchavi period has been ‘Golden Age’ from the point of view of art, education, glory as well as politics. In this period even common people could read and write in the Sanskrit language. The king himself was also a scholar and a connoisseur of the Sanskrit language. In this period, the architecture of the ‘Pagoda’ style was in a very advanced condition and this art was spread too far in China, as well as the sculpture was also in a prosperous state.
In this period very heavy gold currencies were prevalent in practice. Merchants had their own organizations to do business with foreign countries. The strength of foreign relations was maintained on the basis of matrimonial relations. After the end of the Licchavi kingdom in the year 880, the Malla kings started raising their heads.
In the year 1350 AD, Shamshuddin Ilyas, the ruler of Bengal, made a huge attack on Nepal, after which the religious, social, and political systems reached the brink of collapse. After which, in the year 1480 AD, the last Vaish king Arjun Dev or Arjun Malla Dev was deposed by his ministers and a Rajput named ‘Sthimalla’ sat on the throne. By this time, the central state was completely disintegrated and divided into about thirty princely states like Kathmandu, Gorkha, Tanahun, Lamjung, Makbanpur, etc.
Due to factionalism between the Nepalese royal family and the Bhardaros, there was a war, after which instability was established. In the year 1846, the massacre named ‘Kot Parv’ took place due to the disclosure of the conspiracy to depose Jang Bahadur Rana, the army leader of the ruling queen. Many princes of the country were killed due to fighting between armed forces and Bhardars loyal to the queen. After the victory of Jang Bahadur, the Rana rule was implemented by starting the Rana dynasty. The post of Prime Minister was made powerful and hereditary by limiting the name of the king. The Rana ruler lived in favor of the British with complete loyalty, as well as supported the British ruler in the Sepoy Rebellion of 1857 (First Indian War of Independence), and later both world wars.
In the year 1923, an agreement of friendship was officially signed between the United Kingdom and Nepal, after which the United Kingdom accepted the independence of Nepal. The first Nepalese embassy in South Asian countries opened in London, the capital of Britain. After the beginning of the 21st century, the movement of Maoists in Nepal kept on intensifying, along with the movement also taking place on the issue of Madhesis. Finally, in the year 2008, King Gyanendra conducted democratic elections in which Maoists got the majority and ‘Prachanda’ became the Prime Minister of Nepal and Madhesi leader Rambaran Yadav took over as the President.