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माँ सिद्धिदात्री…

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

नवदुर्गा के नौ स्वरूपों में से अंतिम रूप माँ सिद्धिदात्री का है.  “सिद्धिदात्री” का अर्थ है सभी सिद्धियों की दात्री या प्रदाता. या यूँ कहें कि, “सिद्धिदात्री” दो शब्दों से मिलकर बना है जिसमें सिद्धि’ यानी आध्यात्मिक और चमत्कारी शक्तियाँ, और ‘दात्री’ यानी देने वाली. माँ सिद्धिदात्री वह देवी हैं जो अपने भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्रदान करती हैं और उन्हें मोक्ष की ओर ले जाती हैं.

माँ सिद्धिदात्री का स्वरूप अत्यंत शांत और दिव्य है.  वे कमल के आसन पर विराजमान होती हैं, और उनके चार हाथ होते हैं. वे अपने हाथों में शंख, चक्र, गदा और कमल धारण करती हैं. माँ का वाहन सिंह है, किंतु कई स्थानों पर वे कमल पर भी विराजमान दिखाई देती हैं. उनका रूप सभी नौ देवियों में सबसे अधिक सौम्य और कल्याणकारी माना जाता है.  माँ सिद्धिदात्री की उपासना से भक्त को सभी प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं – अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व. ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव ने भी इनसे ही सिद्धियाँ प्राप्त कर अर्धनारीश्वर रूप धारण किया था. भक्त जब माँ सिद्धिदात्री की सच्चे मन से आराधना करते हैं तो उन्हें भौतिक और आध्यात्मिक दोनों प्रकार की सफलता मिलती है.

ध्यान: –

वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम् ।

कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम् ॥

पूजा के नियम: –

माँ सिद्धिदात्री की उपासना करते समय पीले या लाल रंग के वस्त्र पहने और माँ को लाल-पीले, उजले व नील फूलों से चंदन, अक्षत, दूध, दही, शक्कर, फल, पंचमेवे और पंचामृत अर्पित करें. माता के समक्ष शुद्ध घी का दीपक जलाएं तथा धूप अगरबत्ती भी जलाएं और इत्र चढ़ाएं, माँ सिद्धिदात्री के स्वरूप-विग्रह को अपने हृदय में अवस्थित करते हुए, उनके मन्त्रों का जाप करें.

माँ सिद्धिदात्री शक्ति, करुणा और ज्ञान की देवी हैं. उनकी उपासना से केवल सिद्धियां ही नहीं मिलतीं, बल्कि भक्तों का जीवन सुख, समृद्धि और शांति से भर जाता है.वे अज्ञान के अंधकार को दूर करती हैं और आत्मा को ब्रह्म के साथ एकरूप करने में सहायता करती हैं. माँ सिद्धिदात्री शक्ति, करुणा और ज्ञान की देवी हैं.

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